Thursday, 22 September 2016

1980 के दशक में केरल के मुख्यमंत्री के करुणाकरण ने गुरुवायूर मंदिर ट्रस्ट पर दबाव बनाकर राज्य कोषालय में दस करोड़ रूपए जमा करवाए थे, ताकि सरकारी राजकोषीय घाटा पूरा किया जा सके. इसी के साथ उन्होंने “भूमि सुधार क़ानून” लागू करके गुरुवायूर मंदिर की 13,000 एकड़ भूमि को केवल 230 एकड़ तक सीमित कर दिया, लेकिन चर्च (जो कि रेलवे के बाद सबसे बड़ा रियल एस्टेट मालिक है) की जमीन को हाथ तक नहीं लगाया.
इसी प्रकार पूर्ववर्ती महाराष्ट्र सरकार ने मुम्बई हाईकोर्ट में 2004 में लिखित में स्वीकार किया है कि समाज कल्याण एवं कपड़ा मंत्री विलासराव पाटिल उन्दालकर ने मुम्बई के सिद्धिविनायक मंदिर से एक लाख नब्बे हजार डॉलर निकालकर, किसी ऐसी चैरिटी ट्रस्ट में डाल दिया जो कि नेताओं के परिजनों द्वारा संचालित है.
ये तो केवल दो ही उदाहरण हैं, मंदिरों के धन की ऐसी लूट के दर्जनों किस्से हैं...

गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अथवा वक्फ बोर्ड की तरह एक "केन्द्रीय देवस्वं बोर्ड" गठित होना चाहिए... जिसकी रूपरेखा मोदी सरकार के समक्ष रखी जा चुकी है, संसद में बिल लाकर क़ानून बनाना शेष है... हमारे मंदिर "शासकीय चंगुल" और खुली डकैती से कब मुक्त होंगे यह देखना है...

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