Friday 1 March 2013

दुल्हन लाई बारात , दूल्हा हुआ विदा...

दुल्हन लाई बारात , दूल्हा हुआ विदा...

लाजवाब ! बेमिसाल ! लाजवाब!
जी हाँ ! वो लाखों लोग यह अनोखी शादी देखकर दंग रह गए जिनकी आँखे इस अनूठी रस्म की गवाह बनी|
शादी का जोड़ा , दुल्हन के सिर पर सजी खूबसूरत पगड़ी , हाथों में तलवार और नाचते-गाते ख़ुशी मानते रिश्तेदार | किसी भी सामान्य शादी की तरह ढोल की थाप पर , संगीत की धुनों पर यह विवाह हुआ , परन्तु इस विवाह की ख़ास बात ये रही कि इस शादी में दुल्हन बरात लेकर आई और दूल्हा अपने माँ-बाप के घर से विदा हुआ | सुनने में अजीब लग रहा होगा पर यह वाकया है वीरवार को 'डेरा सच्चा सौदा' में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान हुई एक अनूठी शादी का| डेरा सच्चा सौदा द्वारा 'महिला सशक्तिकरण' के लिए एक अनोखी पहल की गयी जो पहले कभी भी कही भी देखने-सुनने में नहीं आई| और इस परम्परा का नाम रखा गया 'कुल का crown' यानि 'वंश का ताज'
इस अनोखी रवायत के अनुसार जिन माँ-बाप की एकमात्र संतान बेटी है , उनके वंश को चलने की जिम्मेदारी अब बेटी उठाएगी , यानि कि अब दुल्हन दूल्हे को ब्याह कर अपने घर लाएगी| बेटी अपना वंश चलाएगी और दूल्हा नव-विवाहिता के माता-पिता की अपने माता-पिता की भांति संभाल करेगा| दोनों परिवारों की आपसी सहमति से इस रिवायत को शुरू किया गया, और अपने आप में यह एक सराहनीय पहल है| वीरवार को लाखों लोग इस अनूठे विवाह के साक्षी बने जब पानीपत की गुरप्रीत और जींद के निर्भय परिणय-सूत्र में बंधे| बस फर्क इतना था कि यहाँ से गुरप्रीत को नही बल्कि निर्भय को डोली में बैठकर विदा होना था| जींद के निर्भय भी अपने इस निर्णय पर फक्र महसूस करते नजर आए तो उधर गुरप्रीत का परिवार भी शादी के जश्न में सराबोर दिखा|दुल्हन भी पूरे आत्म-विश्वास के साथ अपनी सहेलियों के साथ मधुर संगीत की धुनों पर थिरकती नजर आई| नवविवाहित युवक 'निर्भय' ने सच में यह साहस भरा कदम उठाकर अपने नाम को सार्थक कर दिखाया , लोकलाज की परवाह ना करते हुए गुरूजी के एक आह्वान पर ऐसे सैंकड़ों नवयुवक इस रिवायत का के तहत अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं| यूँ तो डेरा सच्चा सौदा अक्सर विवादों में उलझा रहता है पर निष्पक्ष तौर पर अगर देखा जाए तो समाज-सेवा के नाम पर जो जज्बा डेरा के लोगों में नजर आता है शायद ही कहीं ओर नजर आए|समाज के 'तथाकथित बुद्धिजीवी' इस अनूठी पहल पर भी सवाल उठाते नजर आयेंगे कि डेरा परम्पराओं पर प्रहार कर रहा है , रवायतों को बदल रहा है , परन्तु इस मुहिम का सकारात्मक पहलू या तो एक "औरत" समझ सकती है , या वो माँ-बाप समझ सकते हैं जिन्होंने अपनी इकलोती संतान को बड़े ही लाड-चाव से पाला हो और उसे 'पराया धन'समझकर विदा कर देना हो| सच है.. जब भी डेरा वाले कुछ भी नयी शुरुआत करते हैं तो कुछ ऐसा कर जाते हैं कि लोग दांतों तले उँगलियाँ दबाने पर मजबूर हो जाएँ| सभी बुद्धिजीवी पाठकों से अनुरोध है कि वे अपने कीमती समय में से समय निकालकर इस प्रयास पर प्रतिक्रिया जरूर व्यक्त करें |

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