Friday 12 April 2013

मैं अपनी आँखों के सामने अपने घर की महिलाओं की अस्मिता लुटते नहीं देख सकता कहते हुए 80 वर्षीय बुजुर्ग वैशाखी लाल की आँखें नम हो गयी। दरअसल यह दिल्ली स्थित बिजवासन गांव के एक सामजिक कार्यकर्ता नाहर सिंह के द्वारा की गई आवास व्यवस्था मे रह रहे 479 पाकिस्तानी हिन्दुओं की कहानी है (कुल 200 परिवारों में 480 लोग हैं, परंतु एक 6 माह की बच्ची का पिछले दिनों स्वर्गवास हो गया)। एक माह की अवधि पर तीर्थयात्रापर भारत आये पाकिस्तानी-हिन्दू अपने वतन वापस लौटने के लिए तैयार नहीं है, साथ ही भारत-सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि इन पाकिस्तानी हिन्दुओं की वीजा-अवधि समाप्त हो चुकी है।

विश्व के मानस पटल पर सभी मुनष्यों को मानवता का अधिकार देने की बात उठी परिणामतः विश्व मानवाधिकार का गठन हुआ। मानवाधिकार के घोषणा-पत्र में साफ शब्दों में कहा गया कि मानवाधिकार हर व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है, जो प्रशासकों द्वारा जनता को दिया गया कोई उपहार नहीं है तथा इसके मुख्य विषय शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास, संस्कृति, खाद्यान्न व मनोरंजन इत्यादि से जुडी मानव की बुनयादी मांगों से संबंधित होंगे। इसके साथ-साथ अभी हाल में ही पिछले वर्ष मई के महीने 
में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा मानवाधिकार कानून पर हस्ताक्षर करने से वहां एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कार्यरत है।

अभी पिछले दिनों पाकिस्तान द्वारा हिन्दुओं पर हो रही ज्यादतियों पर भारत की संसद में भी सभी दलों के नेताओं ने एक सुर में पाकिस्तान की आलोचना की जिस पर भारत के विदेश मंत्री ने सदन को यह कहकर धीरज बंधाया कि वे इस मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करेंगे परन्तु पाकिस्तान से बात करना अथवा संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को उठाना तो दूर यूपीए सरकार ने इस मसले को ही ठन्डे बसते में डाल दिया और आज तक एक भी शब्द नहीं कहा। पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं पर की जा रही बर्बरता को देखते हुए हम मान सकते हैं कि विश्व-मानवाधिकार पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं के लिए नहीं है। भारत के कुछ हिन्दू संगठनों के लोगों के अनुसार इन पाकिस्तानी हिन्दुओं द्वारा इस सम्बन्ध में पिछले माह (मार्च) में ही भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री, कानून मंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री के साथ सभी संबन्धित सरकारी विभागों सहित भारत व संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोगों को भी पत्र भेजा जा चुका है किन्तु आज तक किसी के पास न तो इन पाक पीड़ितों का दर्द सुनने की फ़ुर्सत है और न ही किसी ऐसी कार्यवाही की जो पाकिस्तानी दरिंदगी पर अंकुश लगा सके। तो क्या यह मान लिया जाए कि पाकिस्तान के 76 वर्षीय शोभाराम का कहना सही ही है कि पाकिस्तानी हिन्दू अपने हिन्दू होने की सजा भुगत रहे हैं और उनके लिए मानवाधिकार की बात करना मात्र एक छलावा है ? ऐसी वीभत्स परिस्थिति में यदि समय पर विश्व मानवाधिकार ने इस गंभीर समस्या पर कोई संज्ञान नहीं लिया यह अपनेआप में विश्व मानवाधिकार की कार्यप्रणाली और उसके उद्देश्यों की पूर्ति पर ऐसा कुठाराघात है जिसे इतिहास कभी नहीं माफ़ करेगा।

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