Sunday, 30 June 2013
क्यों..? क्यों..? क्यों..?
65 साल से ज्यादा हो गए स्वतंत्र हुए ...?
1. 32 लाख वर्ग km छेत्रफल, उसमे आधे से ज्यादा खेती बाड़ी, दुनिया की 10 सबसे महान बहती हुई नदिया, फिर भी देश में 60 करोड़ से ज्यादा भूखे नंगे परिवार, आधे से ज्यादा बच्चे भीख मांगते है क्यों..? क्यों..? क्यों..?
2. 2.50 लाख से भी ज्यादा बड़े उद्योग जिसमे 500 से भी ज्यादा विश्व के सर्वोच है जन्हा दुनिया के दूसरी सबसे बड़ी आबादी 121 करोड़ से ज्यादा मैन पॉवर है, फिर भी विश्व स्तर पर भारत फिस्सडी 1$ की कीमत 60 रुपये, 70% युवा आबादी बेरोजगार क्यों..? क्यों..? क्यों..?
3. वो देश जो कभी ऋषि-मुनियों की भूमि हुवा करती थी, जिसके सनातन संस्कृति को सारी दुनिया सलाम करती थी जन्हा नारियो को देवी मानकर पूजा की जाती थी , जन्हा 100 करोड़ सनातन धर्म और 25 करोड़ मोहम्मद पैगम्बर के फोल्लोवेर्स है वो देश बलात्कार और भ्रस्टाचार में दुनिया में पहले नंबर पर है..गंदगी में तीसरा स्थान, एड्स में दूसरा स्थान है हमारा.. क्यों..? क्यों..? क्यों..?
4 . वो देश जो ताक़त के हिसाब से दुनिया में आठवे नंबर पर है, जिसके पास दुनिया की सबसे बेहतरीन सेना और परमाणु हथियार है, वन्हा कभी पाकिस्तानी घुसकर हमारे जवान का सर काट देते है तो कोई चीनी घुसकर अपना टेंट गाड़ देता है क्यों ..? क्यों ..? क्यों ..?
5. वो देश जन्हा 70 % लोगो का पेट खेती बाड़ी से पलता है जिस देश की 50 % अर्थ-व्यवस्था कृषि भूमि पर टिकी है वंहा औसत रोज 1000 किसान गरीबी और कर्ज से तंग आकर आत्महत्या करते है, खेती बाड़ी और किसान को सबसे नीचे का दर्जा दिया गया है, क्यों ..? क्यों ..? क्यों ..?
6. जन्हा 550 से भी ज्यादा विश्व विद्यालय है 50 हजार से भी ज्यादा कालेज है वो देश विश्व शिक्षा स्तर पर 150 वे स्थान पर है दुनिया के टॉप 200 उनिवेर्सिटी और कालेज में भारत का एक भी कालेज नहीं.?
गुणवत्ता के हिसाब से दुनिया के 73 देशो में से 72 वे स्थान पर है, इंजीनियरिंग के 25 ग्रेजुएट में से सिर्फ 2 नौकरी के लायक है क्यों..? क्यों..? क्यों..?
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Friday, 28 June 2013
ये कैसी सेकुलर सरकार?
हिन्दू मन्दिरों का पैसा मदरसों,हज, और चर्च में हो रहा खर्च।
सुप्रीम कोर्ट ने किया भण्डाफोड़
यदि आप सोचते हैं कि मन्दिरों में दान किया हुआ, भगवान को अर्पित किया हुआ पैसा, सनातन धर्म की बेहतरी के लिए, हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए काम आ रहा है तो आप निश्चित ही बड़े भोले हैं। मन्दिरों की सम्पत्ति एवं चढ़ावे का क्या और कैसा उपयोग किया जाता है पहले इसका एक उदाहरण देख लीजिये, फ़िर आगे बढ़ेंगे-
कर्नाटक सरकार के मन्दिर एवं पर्यटन विभाग (राजस्व) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार 1997 से 2002 तक पाँच साल में कर्नाटक सरकार को राज्य में स्थित मन्दिरों से “सिर्फ़ चढ़ावे में” 391 करोड़ की रकम प्राप्त हुई, जिसे निम्न मदों में खर्च किया गया-
1) मन्दिर खर्च एवं रखरखाव – 84 करोड़ (यानी 21.4%)
2) मदरसा उत्थान एवं हज – 180 करोड़ (यानी 46%)
3) चर्च भूमि को अनुदान – 44 करोड़ (यानी 11.2%)
4) अन्य – 83 करोड़ (यानी 21.2%)
कुल 391 करोड़
जैसा कि इस हिसाब-किताब में दर्शाया गया है उसको देखते हुए “सेकुलरों” की नीयत बिलकुल साफ़ हो जाती है कि मन्दिर की आय से प्राप्त धन का (46+11) 57% हिस्सा हज एवं चर्च को अनुदान दिया जाता है (ताकि वे हमारे ही पैसों से जेहाद, धार्मिक सफ़ाए एवं धर्मान्तरण कर सकें)। जबकि मन्दिर खर्च के नाम पर जो 21% खर्च हो रहा है, वह ट्रस्ट में कुंडली जमाए बैठे नेताओं व अधिकारियों की लग्जरी कारों, मन्दिर दफ़्तरों में AC लगवाने तथा उनके रिश्तेदारों की खातिरदारी के भेंट चढ़ाया जाता है। उल्लेखनीय है कि यह आँकड़े सिर्फ़ एक राज्य (कर्नाटक) के हैं, जहाँ 1997 से 2002 तक कांग्रेस सरकार ही थी…
सुप्रीम कोर्ट ने इस खजाने की रक्षा एवं इसके उपयोग के बारे में सुझाव माँगे हैं। सेकुलरों एवं वामपंथियों के बेहूदा सुझाव एवं उसे “काला धन” बताकर सरकारी जमाखाने में देने सम्बन्धी सुझाव तो आ ही चुके हैं, ऐसे कई सुझाव माननीय सुप्रीम कोर्ट को दिये जा सकते हैं, जिससे हिन्दुओं द्वारा संचित धन का उपयोग हिन्दुओं के लिए ही हो, सनातन धर्म की उन्नति के लिए ही हो, न कि कोई सेकुलर या नास्तिक इसमें “मुँह मारने” चला आए।
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कुछ सार्वजनिक सत्य -
कुछ सार्वजनिक सत्य -
1. मोदी के एक भाई तृतीय श्रेणी कर्मचारी हैं और दूसरे राशन की दुकान चलाते है जो उन्हें विरासत में मिली है.
2. मोदी अपनी माँ को अपने राजकीय आवास में नहीं रखते.
अब एक अवलोकन - यदि वह वृद्धा मोदी की माँ हैं तो धन्य हैं वह और धन्य है उनका सपूत. जिस देश में एक सांसद सामान्य नागरिक की हैसियत से जेया कर जवानो के टेंट खाली करवा कर आराम कर सकता है वहां एक मुख्यमंत्री की माँ एक साधारण तीर्थयात्री की तरह यात्रा कर रही थी और मजे की बात यह कि उत्तराखंड सरकार को इसकी भनक तक नहीं थी. जैसा कि प्रकाशित समाचार कह रहा है उन्हें उनकी माता देहरादून में ही मिल गई तीं अगर उसके बाद भी मोदी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे रहे तो उनका उद्देश्य बहुत स्पष्ट है. आखिरी बात हर बेटा अपनी माँ के बारे में चिंता करता है यह कोई अनोखी घटना नहीं है.
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नेताजी सुभाषचंद्र बोस एकसभा को संबोधित कर रहे थे। अचानक मंच पर चढ़ने का प्रयास करती हुई एक स्त्री पर उनकी नजर पड़ी। वह बिल्कुल फटेहाल थी। आजाद हिंद फौज के अधिकारी भी अचरज में थे। सभी के भीतर उत्सुकता थी कि आखिर यह चाहती क्या है? तभी उस स्त्री ने अपनी मैली-कुचैली साड़ी की खूंट में बंधे तीन रुपये निकाले और नेताजी के पांवों के पास रख दिए। नेताजी हैरान होकर उसे देख रहे थे। फिर उस महिला ने हाथ जोड़कर कहा, 'नेताजी, इसे स्वीकार कर लीजिए। आपने राष्ट्र देवता के लिए सर्वस्व दान करने के लिए कहा है। मेरा यही सर्वस्व है। इसके अलावा मेरे पास कुछ नहीं।' सभा में उपस्थित जनसमुदाय भी चकित था। नेताजी मौन रहे। कुछ देर बाद
वह औरत कुछ निराश सी बोली, 'क्या आप मुझ गरीब के इस तुच्छ से दान को स्वीकार करेंगे? क्या भारत मां की सेवा करने का गरीबों को अधिकार नहीं है?'
इतना कहकर वह नेताजी के पैरों पर गिर गई। नेताजी की आंखों में आंसू आ
गए। बिना कुछ कहे उन्होंने रुपये उठा लिए। उस स्त्री की खुशी का ठिकाना न
रहा। वह उन्हें प्रणाम कर चली गई। उसके जाने के बाद पास खडे़ एक अधिकारी नेपूछा, 'नेताजी, उस गरीब महिला से तीन रुपये लेते हुए आप की आंखों में आंसू क्यों आगए थे?' नेताजी ने कहा, 'मैं सचमुच बहुत असमंजस में पड़ गया था। उसगरीब महिला के पास कुछ भी नहीं होगा। यदि मैंइन्हें भी ले लूं तो इसका सब कुछ छिन जाएगा। और यदि नहीं लूं तोइसकी भावनाएं आहत
होंगी। देश की स्वाधीनता के लिए यह अपना सब कुछ देने आई है।
इसे इंकार करने पर पता नहीं, वह क्या क्या सोचती। हो सकता है, वह
यही सोचने लगती कि मैं केवल अमीरों का ही सहयोग स्वीकार करता हूं। यही सब सोच-विचार करके मैंने यह महादान स्वीकार कर लिया।'
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वह औरत कुछ निराश सी बोली, 'क्या आप मुझ गरीब के इस तुच्छ से दान को स्वीकार करेंगे? क्या भारत मां की सेवा करने का गरीबों को अधिकार नहीं है?'
इतना कहकर वह नेताजी के पैरों पर गिर गई। नेताजी की आंखों में आंसू आ
गए। बिना कुछ कहे उन्होंने रुपये उठा लिए। उस स्त्री की खुशी का ठिकाना न
रहा। वह उन्हें प्रणाम कर चली गई। उसके जाने के बाद पास खडे़ एक अधिकारी नेपूछा, 'नेताजी, उस गरीब महिला से तीन रुपये लेते हुए आप की आंखों में आंसू क्यों आगए थे?' नेताजी ने कहा, 'मैं सचमुच बहुत असमंजस में पड़ गया था। उसगरीब महिला के पास कुछ भी नहीं होगा। यदि मैंइन्हें भी ले लूं तो इसका सब कुछ छिन जाएगा। और यदि नहीं लूं तोइसकी भावनाएं आहत
होंगी। देश की स्वाधीनता के लिए यह अपना सब कुछ देने आई है।
इसे इंकार करने पर पता नहीं, वह क्या क्या सोचती। हो सकता है, वह
यही सोचने लगती कि मैं केवल अमीरों का ही सहयोग स्वीकार करता हूं। यही सब सोच-विचार करके मैंने यह महादान स्वीकार कर लिया।'
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Thursday, 27 June 2013
अंग्रेजो ने वर्ष 1939 में एक बद्रीनाथ-केदारनाथ-अधिनियम बनाया. राज्य सरकार के नियंत्रण में बद्रीनाथ-केदारनाथ आज भी है और वर्तमान समय में श्रीनगर, उत्तराखंड से कांग्रेस के विधायक श्री गणेश गोडियाल इस समय बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर कमेटी के अध्यक्ष है. इसका अर्थ यह हुआ कि जो भी भेंट / चढावा बद्रीनाथ-केदारनाथ मे समाज-द्वारा चढाया जाता है वो सब सरकारी खजाने में जाता है. इस समय उत्तराखंड में आयी प्रकृतिक विपदा के चलते तबाह हुए वहाँ के गाँवों और स्थानीय निवासियों को पुनर्स्थापित करने हेतु खर्च होने वाले धन से भी अधिक धन उत्तराखंड सरकार के पास है क्योंकि आज़ादी के बाद से लेकर अबतक मन्दिर मे चढने वाला चाढावों का आंकलन हमारे-आपके लिये अकल्पनीय है. भारत में मन्दिर की कल्पना ही समाज-कल्याण आधारित है. ऐसे में मेरा आपसे यह अनुरोध है कि आज़ादी के बाद से लेकर अबतक मन्दिर मे चढने वाला चाढावों का उपयोग इस प्रकृतिक विपदा के चलते तबाह हुए वहाँ के गाँवों और स्थानीय निवासियों को पुनर्स्थापित करने हेतु उत्तराखंड सरकार के नाम एक पत्र लिखें....राजीव गुप्ता
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एक किसान था
एक बार एक किसान की घड़ी कहीं खो गयी. वैसे तो घडी कीमती नहीं थी पर किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और किसी भी तरह उसे वापस पाना चाहता था.
उसने खुद भी घडी खोजने का बहुत प्रयास किया, कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े तो कभी अनाज के ढेर में ….पर तामाम कोशिशों केबाद भी घड़ी नहीं मिली. उसने निश्चय किया की वो इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई , ” सुनो बच्चों , तुममे से जो कोई भी मेरी खोई घडी खोज देगा उसे मैं १०० रुपये इनाम में दूंगा.”
फिर क्या था , सभी बच्चे जोर-शोर दे इस काम में लगा गए…वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे , ऊपर-नीचे , बाहर, आँगन में ..हर जगह…परघंटो बीत जाने पर भी घडी नहीं मिली.
अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यहीलगा की घड़ी नहीं मिलेगी, तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला , ” काका मुझे एक मौका और दीजिये, पर इस बार मैं ये काम अकेले ही करना चाहूँगा.”
किसान का क्या जा रहा था, उसे तो घडी चाहिए थी, उसने तुरंत हाँ कर दी.
लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जाने लगा…और जब वह किसान के शयन कक्ष से निकला तो घड़ी उसके हाथ में थी.
किसान घड़ी देख प्रसन्न होगया और अचरज से पूछा ,” बेटा, कहाँ थी ये घड़ी , और जहाँ हम सभी असफल हो गए तुमने इसे कैसे ढूंढ निकाला ?”
लड़का बोला,” काका मैंने कुछ नहीं किया बस मैं कमरे में गया औरचुप-चाप बैठ गया,और घड़ी की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने लगा , कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाईदे गयी , जिससे मैंने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और आलमारी के पीछे गिरी ये घड़ी खोज निकाली.”
मित्रो, जिस तरह कमरे की शांति घड़ी ढूढने में मददगार साबित हुई उसी प्रकार मन की शांति हमें जिंदगी की ज़रूरी चीजें समझने में मददगार होती है .
हर दिन हमें अपने लिए थोडा वक़्त निकालना चाहिए , जसमे हम बिलकुल अकेले हों ,जिसमे हम शांति से बैठ कर खुद से बात कर सकें और अपने भीतर की आवाज़ को सुन सकें , तभी हम जिंदगी को और अच्छे ढंग से जी पायेंगे .
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jay bajarang bali ...
महाभारत युद्ध के अट्ठारहवें दिन दुर्योधन मारा गया और युद्ध की समाप्ति हुई तो श्रीकृष्ण, अर्जुन को उस के रथ से नीचे उतर जाने के लिए कहते हैं। जब अर्जुन उतर जाता है तो वे उसे कुछ दूरी पर ले जाते हैं। तब वे हनुमानजी को रथ के ध्वज से उतर आने का संकेत करते हैं। जैसे ही श्री हनुमान उस रथ से उतरते हैं, अर्जुन के रथ के अश्व जीवित ही जल जाते हैं और रथ में विस्फोट हो जाता है। यह देखकर अर्जुन दहल उठता है। तब श्रीकृष्ण उसे बताते हैं कि पितामह भीष्म, गुरुद्रोण, कर्ण, और अश्वत्थामा के घातक अस्त्रों के कारण अर्जुन के रथ में यह विस्फोट हुआ है। यह अब तक इसलिए सुरक्षित था क्योंकि उस पर स्वयं उनकी कृपा थी और श्री हनुमान की शक्ति थी जो रथ अब तक इन विनाशकारी अस्त्रों के प्रभाव को सहन किए हुए था ।।।
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काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा, ‘गुरुवर, शिक्षा का निचोड़ क्या है?’ संत ने मुस्करा कर कहा, ‘एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।’ बात आई और गई। कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा, ‘वत्स, इस पुस्तक को मेरे कमरे मेंतख्त पर रख दो।’ शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा, ‘क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?’ शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, कमरे में सांपहै।’
संत ने कहा, ‘यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना।सांप होगा तो भाग जाएगा।’ शिष्य दोबारा कमरे में गया।उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गयाऔर संत से बोला, ‘सांप वहां से जा नहीं रहा है।’ संत ने कहा, ‘इस बार दीपक लेकर जाओ।सांप होगा तोदीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।’
शिष्य इस बार दीपक लेकर गयातो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरेमें मैंने उसे सांप समझ लिया था।’ संत ने कहा, ‘वत्स,इसी को भ्रम कहते हैं। संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान केप्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है लेकिनअज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रम जाल पाल लेते हैंऔर आंतरिक दीपक के अभाव मेंउसे दूर नहीं कर पाते। यह आंतरिक दीपक का प्रकाश संतों और ज्ञानियों के सत्संग से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोगबाग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।
Bharat Humko Jaan Se pyaara Hai
ऐसा ही एक भ्रमजाल इस देश में श्री नरेंद्र मोदी जी के लिए बनाया गया है कि "देखो साँप साँप साँप.." पर है कुछ और.. पर इसे देखने के लिए भी रोशनी चाहिए..
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एक बार एक किसान की घड़ी कहीं खो गयी. वैसे तो घडी कीमती नहीं थी पर किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और किसी भी तरह उसे वापस पाना चाहता था.
उसने खुद भी घडी खोजने का बहुत प्रयास किया, कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े तो कभी अनाज के ढेर में ….पर तामाम कोशिशों केबाद भी घड़ी नहीं मिली. उसने निश्चय किया की वो इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई , ” सुनो बच्चों , तुममे से जो कोई भी मेरी खोई घडी खोज देगा उसे मैं १०० रुपये इनाम में दूंगा.”
फिर क्या था , सभी बच्चे जोर-शोर दे इस काम में लगा गए…वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे , ऊपर-नीचे , बाहर, आँगन में ..हर जगह…परघंटो बीत जाने पर भी घडी नहीं मिली.
अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यहीलगा की घड़ी नहीं मिलेगी, तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला , ” काका मुझे एक मौका और दीजिये, पर इस बार मैं ये काम अकेले ही करना चाहूँगा.”
किसान का क्या जा रहा था, उसे तो घडी चाहिए थी, उसने तुरंत हाँ कर दी.
लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जाने लगा…और जब वह किसान के शयन कक्ष से निकला तो घड़ी उसके हाथ में थी.
किसान घड़ी देख प्रसन्न होगया और अचरज से पूछा ,” बेटा, कहाँ थी ये घड़ी , और जहाँ हम सभी असफल हो गए तुमने इसे कैसे ढूंढ निकाला ?”
लड़का बोला,” काका मैंने कुछ नहीं किया बस मैं कमरे में गया औरचुप-चाप बैठ गया,और घड़ी की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने लगा , कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाईदे गयी , जिससे मैंने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और आलमारी के पीछे गिरी ये घड़ी खोज निकाली.”
मित्रो, जिस तरह कमरे की शांति घड़ी ढूढने में मददगार साबित हुई उसी प्रकार मन की शांति हमें जिंदगी की ज़रूरी चीजें समझने में मददगार होती है .
हर दिन हमें अपने लिए थोडा वक़्त निकालना चाहिए , जसमे हम बिलकुल अकेले हों ,जिसमे हम शांति से बैठ कर खुद से बात कर सकें और अपने भीतर की आवाज़ को सुन सकें , तभी हम जिंदगी को और अच्छे ढंग से जी पायेंगे .
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jay bajarang bali ...
महाभारत युद्ध के अट्ठारहवें दिन दुर्योधन मारा गया और युद्ध की समाप्ति हुई तो श्रीकृष्ण, अर्जुन को उस के रथ से नीचे उतर जाने के लिए कहते हैं। जब अर्जुन उतर जाता है तो वे उसे कुछ दूरी पर ले जाते हैं। तब वे हनुमानजी को रथ के ध्वज से उतर आने का संकेत करते हैं। जैसे ही श्री हनुमान उस रथ से उतरते हैं, अर्जुन के रथ के अश्व जीवित ही जल जाते हैं और रथ में विस्फोट हो जाता है। यह देखकर अर्जुन दहल उठता है। तब श्रीकृष्ण उसे बताते हैं कि पितामह भीष्म, गुरुद्रोण, कर्ण, और अश्वत्थामा के घातक अस्त्रों के कारण अर्जुन के रथ में यह विस्फोट हुआ है। यह अब तक इसलिए सुरक्षित था क्योंकि उस पर स्वयं उनकी कृपा थी और श्री हनुमान की शक्ति थी जो रथ अब तक इन विनाशकारी अस्त्रों के प्रभाव को सहन किए हुए था ।।।
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काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा, ‘गुरुवर, शिक्षा का निचोड़ क्या है?’ संत ने मुस्करा कर कहा, ‘एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।’ बात आई और गई। कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा, ‘वत्स, इस पुस्तक को मेरे कमरे मेंतख्त पर रख दो।’ शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा, ‘क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?’ शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, कमरे में सांपहै।’
संत ने कहा, ‘यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना।सांप होगा तो भाग जाएगा।’ शिष्य दोबारा कमरे में गया।उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गयाऔर संत से बोला, ‘सांप वहां से जा नहीं रहा है।’ संत ने कहा, ‘इस बार दीपक लेकर जाओ।सांप होगा तोदीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।’
शिष्य इस बार दीपक लेकर गयातो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरेमें मैंने उसे सांप समझ लिया था।’ संत ने कहा, ‘वत्स,इसी को भ्रम कहते हैं। संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान केप्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है लेकिनअज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रम जाल पाल लेते हैंऔर आंतरिक दीपक के अभाव मेंउसे दूर नहीं कर पाते। यह आंतरिक दीपक का प्रकाश संतों और ज्ञानियों के सत्संग से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोगबाग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।
Bharat Humko Jaan Se pyaara Hai
ऐसा ही एक भ्रमजाल इस देश में श्री नरेंद्र मोदी जी के लिए बनाया गया है कि "देखो साँप साँप साँप.." पर है कुछ और.. पर इसे देखने के लिए भी रोशनी चाहिए..
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एक जंगल में एक भयंकर सर्प रहता था।
उसके
आतंक के कारन कोई वहां से नहीं जाता था। एक
दिन एक ऋषि उस रस्ते से गुजर रहे थे।
उनको देखकर सर्प लपका और काटना चाहा,
परन्तु ऋषि ने योग बल से उसपर विजय पा ली।
सर्प शरणागत होकर बोला - क्षमा करिए
ऋषिवर, मैं आपकी शरण में हूँ। ऋषि ने उसे
क्षमा कर दिया, और कहा कि आज से तू
किसी को नहीं काटेगा। सर्पमान गया। ऋषि चले
गए। उनके जाने के बाद सर्प ने
लोगों को काटना बंद कर दिया। किसी को वह
नहीं काटता था और धीरे-धीरे जंगल
का रास्ता खुल गया। लोग आने-जाने लगे। सर्प
लोगों को देखकर मार्ग से हट जाता। चरवाहे
लड़के वहां आने लगे। वह सर्प को देखते
ही पत्थर मरने लगे। सर्प भागकर बिल में
चला जाता था। वह मार खाते-खाते दुबला और
घायल हो गया था। बहुत समय बाद मुनि उस
रास्ते से गुजरे। सर्प ने प्रणाम किया और
अपनी व्यथा बताई। मुनि बोले - मुर्ख मैंने काटने
से मना किया था, फुफकारने के लिए नहीं। मुनिवर
समझाकर चले गए। सर्प समझ गया। चरवाहे
लड़के पत्थर मारने वाले हीथे, कि वह फुफकार
उठा। लड़के घबराकर भाग गए।तब से उसे
किसी ने पत्थर नहीं मारा।
मनुष्य को अकारण किसी पर आक्रमण
नहीं करना चाहिए, परन्तु इतना डरपोक
भी नहीं होना चाहिए कि कोई भी उसपर
आक्रमण करने की हिम्मत कर सके। इसलिए
अपना रोबीला अस्तित्व बनाये रखें, ताकि कोई
भी आपकी ओर आँख उठाकर नहीं देख सके।
उसके
आतंक के कारन कोई वहां से नहीं जाता था। एक
दिन एक ऋषि उस रस्ते से गुजर रहे थे।
उनको देखकर सर्प लपका और काटना चाहा,
परन्तु ऋषि ने योग बल से उसपर विजय पा ली।
सर्प शरणागत होकर बोला - क्षमा करिए
ऋषिवर, मैं आपकी शरण में हूँ। ऋषि ने उसे
क्षमा कर दिया, और कहा कि आज से तू
किसी को नहीं काटेगा। सर्पमान गया। ऋषि चले
गए। उनके जाने के बाद सर्प ने
लोगों को काटना बंद कर दिया। किसी को वह
नहीं काटता था और धीरे-धीरे जंगल
का रास्ता खुल गया। लोग आने-जाने लगे। सर्प
लोगों को देखकर मार्ग से हट जाता। चरवाहे
लड़के वहां आने लगे। वह सर्प को देखते
ही पत्थर मरने लगे। सर्प भागकर बिल में
चला जाता था। वह मार खाते-खाते दुबला और
घायल हो गया था। बहुत समय बाद मुनि उस
रास्ते से गुजरे। सर्प ने प्रणाम किया और
अपनी व्यथा बताई। मुनि बोले - मुर्ख मैंने काटने
से मना किया था, फुफकारने के लिए नहीं। मुनिवर
समझाकर चले गए। सर्प समझ गया। चरवाहे
लड़के पत्थर मारने वाले हीथे, कि वह फुफकार
उठा। लड़के घबराकर भाग गए।तब से उसे
किसी ने पत्थर नहीं मारा।
मनुष्य को अकारण किसी पर आक्रमण
नहीं करना चाहिए, परन्तु इतना डरपोक
भी नहीं होना चाहिए कि कोई भी उसपर
आक्रमण करने की हिम्मत कर सके। इसलिए
अपना रोबीला अस्तित्व बनाये रखें, ताकि कोई
भी आपकी ओर आँख उठाकर नहीं देख सके।
Wednesday, 26 June 2013
उत्तराखंड के लोगों और चारों धाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की रक्षक मानी जाने वाली धारा देवी की प्राचीन प्रतिमा को 16 जून को शाम छह बजे हटाया गया और रात्रि आठ बजे अचानक बजने लगा तबाही का ढंका।
उत्तराखंड में आए इस सैलाब ने मौत का तांडव रचा और सबकुछ तबाह कर दिया जबकि दो घंटे पूर्व मौसम सामान्य था।
कयास लगाए जा रहे हैं कि उत्तराखंड में आई दैवीय आपदा का कारण धारी देवी को इसलिए माना जा रहा है धारी शब्द का मतलब 'रखना' होता है जबकि वहां से धारी देवी को हटा दिया गया। इसके बाद इस मुद्दे पर तर्क वितर्क सामने आने लगे। कुछ सवाल आज भी उत्तराखंड के उन पहाड़ियों में गूंज रहे हैं, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है
श्रीनगर गढ़वाल क्षेत्र में एक बहुत ही प्राचीन सिद्ध पीठ है जिसे 'धारी देवी' का सिद्धपीठ कहा जाता है। इसे दक्षिणी काली माता भी कहते हैं। मान्यता अनुसार उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती है ये देवी। इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। महा विकराल इस काली देवी की मूर्ति स्थापना और मंदिर निर्माण की भी रोचक कहानी है। मूर्ति जाग्रत और साक्षात है।
बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है, लेकिन नदी पर बांध बनाने के चक्कर में कांग्रेस सरकार ने इस देवी के मंदिर को तोड़ दिया और मूर्ति को मूल स्थल से हटाकर अन्य जगह पर रख दिया।
इस मंदिर को बचाने के प्रयास के तहत, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और राष्ट्रपति तक को पत्र लिखे गए और कोर्ट में यह मामला था, लेकिन किसी ने भी आस्था के इस प्राचीन केंद्र पर विचार नहीं किया। इस मंदिर को बचाने के लिए आंदोलन चल रहा था। आंदोलन में हजारों साधु-संतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पर्यावरणविदों ने भाग लिया था। लेकिन उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और अंतत: उत्तराखंड की रक्षक देवी मानी जाने वाली 'धारी देवी' के शक्तिपीठ को तोड़ दिया गया।
समूचा हिमालय क्षेत्र मां दुर्गा और भगवान शंकर का मूल निवास स्थान माना गया है। इस स्थान पर मानव ने जब से अपनी गतिविधियां बढ़ाना शुरू की है तब से जहां प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गई है वहीं यह समूचा क्षेत्र अब ग्लेशियर की चपेट में भी आने लगा है।
— with Ninu Mukhyan Shyam, Kumar Priyavrat,Raman Sharma, Pradip Patil and Jiten Kohli.उत्तराखंड में आए इस सैलाब ने मौत का तांडव रचा और सबकुछ तबाह कर दिया जबकि दो घंटे पूर्व मौसम सामान्य था।
कयास लगाए जा रहे हैं कि उत्तराखंड में आई दैवीय आपदा का कारण धारी देवी को इसलिए माना जा रहा है धारी शब्द का मतलब 'रखना' होता है जबकि वहां से धारी देवी को हटा दिया गया। इसके बाद इस मुद्दे पर तर्क वितर्क सामने आने लगे। कुछ सवाल आज भी उत्तराखंड के उन पहाड़ियों में गूंज रहे हैं, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है
श्रीनगर गढ़वाल क्षेत्र में एक बहुत ही प्राचीन सिद्ध पीठ है जिसे 'धारी देवी' का सिद्धपीठ कहा जाता है। इसे दक्षिणी काली माता भी कहते हैं। मान्यता अनुसार उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती है ये देवी। इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। महा विकराल इस काली देवी की मूर्ति स्थापना और मंदिर निर्माण की भी रोचक कहानी है। मूर्ति जाग्रत और साक्षात है।
बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है, लेकिन नदी पर बांध बनाने के चक्कर में कांग्रेस सरकार ने इस देवी के मंदिर को तोड़ दिया और मूर्ति को मूल स्थल से हटाकर अन्य जगह पर रख दिया।
इस मंदिर को बचाने के प्रयास के तहत, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और राष्ट्रपति तक को पत्र लिखे गए और कोर्ट में यह मामला था, लेकिन किसी ने भी आस्था के इस प्राचीन केंद्र पर विचार नहीं किया। इस मंदिर को बचाने के लिए आंदोलन चल रहा था। आंदोलन में हजारों साधु-संतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पर्यावरणविदों ने भाग लिया था। लेकिन उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और अंतत: उत्तराखंड की रक्षक देवी मानी जाने वाली 'धारी देवी' के शक्तिपीठ को तोड़ दिया गया।
समूचा हिमालय क्षेत्र मां दुर्गा और भगवान शंकर का मूल निवास स्थान माना गया है। इस स्थान पर मानव ने जब से अपनी गतिविधियां बढ़ाना शुरू की है तब से जहां प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गई है वहीं यह समूचा क्षेत्र अब ग्लेशियर की चपेट में भी आने लगा है।
प्रकाश की गति का आकलन - ऋग्वेद
महर्षि सायण
माना जाता है की आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना Scotland के एक भोतिक विज्ञानी James Clerk Maxwell (13 June 1831 – 5 November 1879) ने की थी ।
जबकि आधुनिक समय में महर्षि सायण , जो वेदों के महान भाष्यकार थे , ने १४वीं सदी में प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी जिसका आधार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ५ ० वें सूक्त का चोथा श्लोक था ।
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमा भासि रोचनम् ॥ ...ऋग्वेद १. ५ ० .४
अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।
Swift and all beautiful art thou, O Surya (Surya=Sun), maker of the light, Illuming all the radiant realm.
उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी/भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥
-सायण ऋग्वेद भाष्य १. ५ ० .४
अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है
[O light,] bow to you, you who traverse 2,202 yojanas in half a nimesha..
-Sage Sayana 14th AD
http://en.wikipedia.org/wiki/ Sayana
yojana and nimesha are ancient unit of distance and time respectively.
उपरोक्त श्लोक से हमें प्रकाश के आधे निमिष में 2202 योजन चलने का पता चलता है अब समय की ईकाई निमिष तथा दुरी की ईकाई योजन को आधुनिक ईकाईयों में परिवर्तित कर सकते है ।
किन्तु उससे पूर्व प्राचीन समय व् दुरी की इन ईकाईयों के मान जानने होंगे .
निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |
त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ........मनुस्मृति 1-64
मनुस्मृति 1-64 के अनुसार :
पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !
18 निमीष = 1 काष्ठ;
30 काष्ठ = 1 कला;
30 कला = 1 मुहूर्त;
30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात (लगभग 24 घंटे )
As per Manusmriti 1/64 18 nimisha equals 1 kashta, 30 kashta equals 1 kala, 30 kala equals 1 muhurta, 30 muhurta equals 1 day+night
अतः एक दिन (24 घंटे) में निमिष हुए :
24 घंटे = 30*30*30*18= 486000 निमिष
hence, in 24 hours there are 486000 nimishas.
24 घंटे में सेकंड हुए = 24*60*60 = 86400 सेकंड
86400 सेकंड =486000 निमिष
अतः 1 सेकंड में निमिष हुए :
1 निमिष = 86400 /486000 = .17778 सेकंड
1/2 निमिष =.08889 सेकंड
in 1/2 nimisha approx .08889 seconds
अब योजन ज्ञान करना है , श्रीमद्भागवतम 3.30.24, 5.1.33, 5.20.43 आदि के अनुसार
1 योजन = 8 मील लगभग
2202 योजन = 8 * 2202 = 17616 मील
As per Shrimadbhagwatam 1 yojana equals to approx 8 miles.
सूर्य प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है अर्थात
.08889 सेकंड में 17616 मील चलता है ।
.08889 सेकंड में प्रकाश की गति = 17616 मील
1 सेक में = 17616 / .08889 = 198177 मील लगभग
Speed of light in vedas 198177 miles per second approximately .
आज की प्रकाश गति गणना 186000 मील प्रति सेकंड लगभग
In morden science , its 186000 miles per second approximate
महर्षि सायण
माना जाता है की आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना Scotland के एक भोतिक विज्ञानी James Clerk Maxwell (13 June 1831 – 5 November 1879) ने की थी ।
जबकि आधुनिक समय में महर्षि सायण , जो वेदों के महान भाष्यकार थे , ने १४वीं सदी में प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी जिसका आधार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ५ ० वें सूक्त का चोथा श्लोक था ।
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमा भासि रोचनम् ॥ ...ऋग्वेद १. ५ ० .४
अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।
Swift and all beautiful art thou, O Surya (Surya=Sun), maker of the light, Illuming all the radiant realm.
उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी/भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥
-सायण ऋग्वेद भाष्य १. ५ ० .४
अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है
[O light,] bow to you, you who traverse 2,202 yojanas in half a nimesha..
-Sage Sayana 14th AD
http://en.wikipedia.org/wiki/
yojana and nimesha are ancient unit of distance and time respectively.
उपरोक्त श्लोक से हमें प्रकाश के आधे निमिष में 2202 योजन चलने का पता चलता है अब समय की ईकाई निमिष तथा दुरी की ईकाई योजन को आधुनिक ईकाईयों में परिवर्तित कर सकते है ।
किन्तु उससे पूर्व प्राचीन समय व् दुरी की इन ईकाईयों के मान जानने होंगे .
निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |
त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ........मनुस्मृति 1-64
मनुस्मृति 1-64 के अनुसार :
पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !
18 निमीष = 1 काष्ठ;
30 काष्ठ = 1 कला;
30 कला = 1 मुहूर्त;
30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात (लगभग 24 घंटे )
As per Manusmriti 1/64 18 nimisha equals 1 kashta, 30 kashta equals 1 kala, 30 kala equals 1 muhurta, 30 muhurta equals 1 day+night
अतः एक दिन (24 घंटे) में निमिष हुए :
24 घंटे = 30*30*30*18= 486000 निमिष
hence, in 24 hours there are 486000 nimishas.
24 घंटे में सेकंड हुए = 24*60*60 = 86400 सेकंड
86400 सेकंड =486000 निमिष
अतः 1 सेकंड में निमिष हुए :
1 निमिष = 86400 /486000 = .17778 सेकंड
1/2 निमिष =.08889 सेकंड
in 1/2 nimisha approx .08889 seconds
अब योजन ज्ञान करना है , श्रीमद्भागवतम 3.30.24, 5.1.33, 5.20.43 आदि के अनुसार
1 योजन = 8 मील लगभग
2202 योजन = 8 * 2202 = 17616 मील
As per Shrimadbhagwatam 1 yojana equals to approx 8 miles.
सूर्य प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है अर्थात
.08889 सेकंड में 17616 मील चलता है ।
.08889 सेकंड में प्रकाश की गति = 17616 मील
1 सेक में = 17616 / .08889 = 198177 मील लगभग
Speed of light in vedas 198177 miles per second approximately .
आज की प्रकाश गति गणना 186000 मील प्रति सेकंड लगभग
In morden science , its 186000 miles per second approximate
Monday, 24 June 2013
जानिये "प्रधानमंत्री राहत कोष " होता क्या है
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने उत्तरांचल में मदद के लिए
एक हजार करोड़ रुपयों "प्रधानमंत्री राहत कोष " से देने की घोषणा की है ,, पहले जानिये "प्रधानमंत्री राहत कोष " होता क्या है ,,,,इस कोष को नेहरु ने बनाया था 1948 में ,,इस में सरकार की तरफ से कोई पैसा जमा नहीं किया जाता ,बल्कि विभिन्न संस्थाए और आम जनता जो दान करती है इस कोष के लिए ,उस से जो पैसा एकत्र होता है वही प्रधानमन्त्री उपयोग करते है ,,
"प्रधानमंत्री राहत कोष " में जमा कराया गया धन पूर्णत : कर मुक्त होता है ,, और सूचना के अधिकार के तहत भी इस में दान दातो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती ,,,
सरकार इस कोष में अपनी तरफ से एक भी पैसा जमा नहीं कराती ....इस समय "प्रधानमंत्री राहत कोष " में करीब 17 हजार करोड़ रुपये जमा है ... तो कहने का मतलब है की अभी जो मनमोहन जी ने एक हजार करोड़ रूपये देने की घोषणा की वो आम जनता के दान का ही पैसा है ना की सरकार ने अपनी तरफ से कोई अलग से राशि आम जनता को मुहैया करवाई है मदद के लिए.
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एक हजार करोड़ रुपयों "प्रधानमंत्री राहत कोष " से देने की घोषणा की है ,, पहले जानिये "प्रधानमंत्री राहत कोष " होता क्या है ,,,,इस कोष को नेहरु ने बनाया था 1948 में ,,इस में सरकार की तरफ से कोई पैसा जमा नहीं किया जाता ,बल्कि विभिन्न संस्थाए और आम जनता जो दान करती है इस कोष के लिए ,उस से जो पैसा एकत्र होता है वही प्रधानमन्त्री उपयोग करते है ,,
"प्रधानमंत्री राहत कोष " में जमा कराया गया धन पूर्णत : कर मुक्त होता है ,, और सूचना के अधिकार के तहत भी इस में दान दातो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती ,,,
सरकार इस कोष में अपनी तरफ से एक भी पैसा जमा नहीं कराती ....इस समय "प्रधानमंत्री राहत कोष " में करीब 17 हजार करोड़ रुपये जमा है ... तो कहने का मतलब है की अभी जो मनमोहन जी ने एक हजार करोड़ रूपये देने की घोषणा की वो आम जनता के दान का ही पैसा है ना की सरकार ने अपनी तरफ से कोई अलग से राशि आम जनता को मुहैया करवाई है मदद के लिए.
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एक पहाड़ी बुजुर्ग से गहरी और लम्बी बातचीत के आधार पर निष्कर्ष ये निकला कि ये प्रत्यक्ष देवी विपदा है। यहाँ पर देवी विपदा से मेरा वो मतलब नहीं जैसा कि सरकार समझती है या आमतौर पर समझा जाता है। ये प्रत्यक्ष देवी का प्रकोप है, जो लोग पहाड के निवासी है वो ये बात जानते है कि पहाड के देवी देवता कितने जल्दी रुष्ट होते है। धारी देवी उस देव भूमि की अधिष्टाता एवं रक्षक देवी है। मान्यता ये रही की दिन में तीन बार माँ अपना रूप बदलती थी और खास कर केदारनाथ और बदरीनाथ धाम की रक्षा करती थी जिस दिन ये देवी आपदा हुई, मतलब शनिवार की शाम को, उसी दिन शाम को "धारी देवी" के मंदिर को विस्थापित किया गया था। लगभग शाम को ६ बजे और केदारनाथ में जो भारी तबाही हुई वो भी लगभग ८ बजे शुरू हुई। मौसम विभाग के अनुसार जहाँ जून के मानसून में 70mm बारिश का अनुमान होता है परन्तु वहाँ 300mm बारिश हुई, वो भी सिर्फ ३० घंटो में। माँ धारी देवी बड़ी प्रत्यक्ष शक्ति है उस क्षेत्र की, वहाँ के निवासी ये सब जानते है। किन्तु कांग्रेस सरकार वहाँ पर एक बाँध बना रही है जिससे मंदिर को अपलिफ्ट करने की जरुरत थी। स्थानीय लोग दो गुटो में बाते हुए थे। एक मंदिर को हटाना चाहता था और एक गुट नहीं। पर सरकार ने मंदिर की मूर्ति को विस्थापित कर ही दिया। जिसका परिणाम आपके सामने है। मेरा मानना है कि यदि ऐसी स्थिति किसी मस्जिद या मजार को लेकर होती तो सरकार कोई दूसरा रास्ता खोजती। जैसा दिल्ली में सुभाष मेट्रो स्टेशन के पास किया। जो भी हुआ दुखद हुआ लेकिन ये घटना इस बात का भी संकेत देती है की जब जब आस्था के विषय की अनदेखी की जाएगी ऐसे संकट का सामना करना ही होगा। मित्रों हम माँ धारी देवी से क्षमा प्रार्थना करते है कि वो हम सबको क्षमा करे व सरकार को अकल दे।
मित्रो,
क्या आपको पता है की हर साल 1 लाख से 2 लाख मुस्लिम हज करने जाते है
जिसका पूरा खर्च हमारी भारत सरकार देती है.
जो की प्रत्येक व्यक्ति 71000 सिर्फ किराये के होते है और बाकि फ़ोन, खाने और रहने का खर्च भी सरकार ही देती है जो कम से कम 30000 से 40000 पर व्यक्ति पड़ता है। यानि 1,10,000 रूपये प्रत्येक व्यक्ति।
2012 मैं 1,26,000 मुस्लिम हज करके आये थे
अगर हिसाब लगाया जाये तो 1,10,000 X 1,26,000 = 13,86,00,00,000
हर साल सिर्फ मुस्लिमो की हज पर खर्च किया जाता है वो भी हमारे टैक्स के पैसो से उनकी पूरी सुविधा का ख्याल रखा जाता है
पर लाखो लोग विपदा मैं फंस गए जो मुस्लिम नहीं है हिन्दू है उनके लिए सरकार के पास सिर्फ 10,00,00,00,000ही है जो की हर साल नहीं दिए जाते वो भी पूरे उनके पास जायेंगे की नहीं इसका कोई पक्का अस्वासन नहीं है
इसको कहते है भारत सरकार की धर्म निरपेक्षता और मोदी को साम्रदायिक कहा जाता है।
हो रहा भारत निर्वाण
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Monday, 17 June 2013
☞ हर साल लगभग 2500 बांए हाथ से काम करने वाले लोग, उन वस्तुओं व उपकरणों का उपयोग करने से मारे जाते हैं जिन्हें दांए हाथ से काम करने वाले लोगों के लिए बनाया जाता है
☞ किसी भी वर्गाकार सूखे कागज को आधा-आधा करके 7 बार से अधिक बार नहीं मोड़ा जा सकता
☞ दुनिया के लगभग आधे अखबार अकेले अमेरिका और कनाडा में प्रकाशित होते हैं
☞ एक वायलिन बनाने में लकड़ी के 70 विभिन्न आकार के टुकड़े लगते हैं
☞ आकाशीय बिजली कड़कने से जो तापमान पैदा होता है वह सूर्य की सतह पर पाए जाने वाले तापमान से पांच गुना ज्यादा होता है
☞ जब कांच टूटता है तो इसके टुकड़े 3000 मील प्रति घंटा की गति से छिटकते हैं।
☞ यदि कभी आप आइसलैण्ड जाएं तो वहां कभी भी रेस्त्रां में बैरे को टिप न दें।
ऐसा करना वहां अपमान समझा जाता है।
☞ लास वेगास के जुआघरों में घड़ियां नहीं होतीं
☞ मनुष्य के शरीर में हर सेकेण्ड 15 मिलियन लाल रक्त कणिकाएं पैदा होतीं हैं और मरती हैं।
☞ अपनी गुफा से निकलते समय, चमगादड़ हमेशा बाईं तरफ को ही मुड़ते हैं.
☞ जिराफ की जीभ इतनी लंबी होती है कि वह अपने कान साफ़ कर सकता है
☞ जापान के शहर टोकियो में, 50 मिनट से कम दूरी वाली यात्रा के लिए एक साइकिल कार से ज्यादा तेज मानी जाती है।
क्या आपको पता है?? (पूरा पढ़ें)
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "मसाले" भारत में होता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह का "फल" भारत में मिलता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह की "सब्जिया" भारत में उगती है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "अनाज" भारत में पैदा होता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "खनिज पदार्थ" भारत में पाया जाता है!
दुनिया में चार "मौसम" सिर्फ भारत में होते है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "कपड़े" सिर्फ भारत में बनते है!
भारत को आज सुपर पावर होना चाहिए था लेकिन,
भारत में सबसे अधिक और सभी तरह के देश-द्रोही, गद्दार तथा भ्रष्ट लोग भी पाए जाते हैँ!
जन-जन तक पहुँचा दो..
☞ हर साल लगभग 2500 बांए हाथ से काम करने वाले लोग, उन वस्तुओं व उपकरणों का उपयोग करने से मारे जाते हैं जिन्हें दांए हाथ से काम करने वाले लोगों के लिए बनाया जाता है
☞ किसी भी वर्गाकार सूखे कागज को आधा-आधा करके 7 बार से अधिक बार नहीं मोड़ा जा सकता
☞ दुनिया के लगभग आधे अखबार अकेले अमेरिका और कनाडा में प्रकाशित होते हैं
☞ एक वायलिन बनाने में लकड़ी के 70 विभिन्न आकार के टुकड़े लगते हैं
☞ आकाशीय बिजली कड़कने से जो तापमान पैदा होता है वह सूर्य की सतह पर पाए जाने वाले तापमान से पांच गुना ज्यादा होता है
☞ जब कांच टूटता है तो इसके टुकड़े 3000 मील प्रति घंटा की गति से छिटकते हैं।
☞ यदि कभी आप आइसलैण्ड जाएं तो वहां कभी भी रेस्त्रां में बैरे को टिप न दें।
ऐसा करना वहां अपमान समझा जाता है।
☞ लास वेगास के जुआघरों में घड़ियां नहीं होतीं
☞ मनुष्य के शरीर में हर सेकेण्ड 15 मिलियन लाल रक्त कणिकाएं पैदा होतीं हैं और मरती हैं।
☞ अपनी गुफा से निकलते समय, चमगादड़ हमेशा बाईं तरफ को ही मुड़ते हैं.
☞ जिराफ की जीभ इतनी लंबी होती है कि वह अपने कान साफ़ कर सकता है
☞ जापान के शहर टोकियो में, 50 मिनट से कम दूरी वाली यात्रा के लिए एक साइकिल कार से ज्यादा तेज मानी जाती है।
☞ किसी भी वर्गाकार सूखे कागज को आधा-आधा करके 7 बार से अधिक बार नहीं मोड़ा जा सकता
☞ दुनिया के लगभग आधे अखबार अकेले अमेरिका और कनाडा में प्रकाशित होते हैं
☞ एक वायलिन बनाने में लकड़ी के 70 विभिन्न आकार के टुकड़े लगते हैं
☞ आकाशीय बिजली कड़कने से जो तापमान पैदा होता है वह सूर्य की सतह पर पाए जाने वाले तापमान से पांच गुना ज्यादा होता है
☞ जब कांच टूटता है तो इसके टुकड़े 3000 मील प्रति घंटा की गति से छिटकते हैं।
☞ यदि कभी आप आइसलैण्ड जाएं तो वहां कभी भी रेस्त्रां में बैरे को टिप न दें।
ऐसा करना वहां अपमान समझा जाता है।
☞ लास वेगास के जुआघरों में घड़ियां नहीं होतीं
☞ मनुष्य के शरीर में हर सेकेण्ड 15 मिलियन लाल रक्त कणिकाएं पैदा होतीं हैं और मरती हैं।
☞ अपनी गुफा से निकलते समय, चमगादड़ हमेशा बाईं तरफ को ही मुड़ते हैं.
☞ जिराफ की जीभ इतनी लंबी होती है कि वह अपने कान साफ़ कर सकता है
☞ जापान के शहर टोकियो में, 50 मिनट से कम दूरी वाली यात्रा के लिए एक साइकिल कार से ज्यादा तेज मानी जाती है।
क्या आपको पता है?? (पूरा पढ़ें)
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "मसाले" भारत में होता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह का "फल" भारत में मिलता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह की "सब्जिया" भारत में उगती है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "अनाज" भारत में पैदा होता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "खनिज पदार्थ" भारत में पाया जाता है!
दुनिया में चार "मौसम" सिर्फ भारत में होते है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "कपड़े" सिर्फ भारत में बनते है!
भारत को आज सुपर पावर होना चाहिए था लेकिन,
भारत में सबसे अधिक और सभी तरह के देश-द्रोही, गद्दार तथा भ्रष्ट लोग भी पाए जाते हैँ!
जन-जन तक पहुँचा दो..
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "मसाले" भारत में होता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह का "फल" भारत में मिलता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह की "सब्जिया" भारत में उगती है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "अनाज" भारत में पैदा होता है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "खनिज पदार्थ" भारत में पाया जाता है!
दुनिया में चार "मौसम" सिर्फ भारत में होते है!
दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "कपड़े" सिर्फ भारत में बनते है!
भारत को आज सुपर पावर होना चाहिए था लेकिन,
भारत में सबसे अधिक और सभी तरह के देश-द्रोही, गद्दार तथा भ्रष्ट लोग भी पाए जाते हैँ!
जन-जन तक पहुँचा दो..
Friday, 14 June 2013
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना जिस शेरशाह के नाम से ही डर जाती थी और रेडियो पर जिसकी गर्जना से ही दुश्मन सैनिक दहशत में आ जाते थे उस शेरशाह यानी परम वीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बतरा को आज भी सारा देश सलाम करता है।
जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया।
पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया।
हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बतरा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बतरा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। विक्रम बतरा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया।
इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बतरा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी भी बागडोर विक्रम को सौंपी गई। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। इसी दौरान एक अन्य लेफ्टिनेंट नवीन घायल हो गए। उन्हें बचाने के लिए विक्रम बंकर से बाहर आ गए। इस दौरान एक सूबेदार ने कहा, ‘नहीं साहब आप नहीं मैं जाता हूं।’ इस पर विक्रम ने उत्तर दिया, ‘तू बीबी-बच्चों वाला है, पीछे हट।’ घायल नवीन को बचाते समय दुश्मन की एक गोली विक्रम की छाती में लग गई और कुछ देर बाद विक्रम ने ‘जय माता की’ कहकर अंतिम सांस ली।
विक्रम बतरा के शहीद होने के बाद उनकी टुकड़ी के सैनिक इतने क्रोध में आए कि उन्होंने दुश्मन की गोलियों की परवाह न करते हुए उन्हें चोटी 4875 से परास्त कर चोटी को फतह कर लिया। इस अदम्य साहस के लिए कैप्टन विक्रम बतरा को 15 अगस्त 1999 को परम वीर चक्र के सम्मान से नवाजा गया
एक सलाम भारत माँ के इस जांबाज सिपाही को...
जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया।
पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया।
हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बतरा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बतरा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। विक्रम बतरा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया।
इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बतरा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी भी बागडोर विक्रम को सौंपी गई। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। इसी दौरान एक अन्य लेफ्टिनेंट नवीन घायल हो गए। उन्हें बचाने के लिए विक्रम बंकर से बाहर आ गए। इस दौरान एक सूबेदार ने कहा, ‘नहीं साहब आप नहीं मैं जाता हूं।’ इस पर विक्रम ने उत्तर दिया, ‘तू बीबी-बच्चों वाला है, पीछे हट।’ घायल नवीन को बचाते समय दुश्मन की एक गोली विक्रम की छाती में लग गई और कुछ देर बाद विक्रम ने ‘जय माता की’ कहकर अंतिम सांस ली।
विक्रम बतरा के शहीद होने के बाद उनकी टुकड़ी के सैनिक इतने क्रोध में आए कि उन्होंने दुश्मन की गोलियों की परवाह न करते हुए उन्हें चोटी 4875 से परास्त कर चोटी को फतह कर लिया। इस अदम्य साहस के लिए कैप्टन विक्रम बतरा को 15 अगस्त 1999 को परम वीर चक्र के सम्मान से नवाजा गया
एक सलाम भारत माँ के इस जांबाज सिपाही को...
एक नगर मे रहने वाले एक पंडित जी
की ख्याति दूर-दूर तक थी पास ही के गाँव मे
स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन
होने की वजह से उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था...
एक बार वह अपने गंतव्य की ओर जाने के लिए
बस मे चढ़े उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए
और सीट पर जाकर बैठ गए
कंडक्टर ने जब किराया काटकर रुपये वापस दिए
तो पंडित जी ने पाया कि
कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा उन्हें दे दिए है
पंडित जी ने सोचा कि
थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा
कुछ देर बाद मन मे विचार आया कि बेवजह
दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है
आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है
बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर
अपने पास ही रख लिया जाए
वह इनका सदुपयोग ही करेंगे
मन मे चल रहे विचार के बीच
उनका गंतव्य स्थल आ गया
बस मे उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके
उन्होंने जेब मे हाथ डाला और
दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा
भाई तुमने मुझे किराए के रुपये काटने के बाद भी
दस रुपये ज्यादा दे दिए थे
कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला
क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी हो?
पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला
मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा है
आपको बस मे देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि
मैं ज्यादा पैसे लौटाऊँ तो आप क्या करते हो
अब मुझे पता चल गया कि
आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है
जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए
ये बोलकर कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी
पंडित जी बस से उतरकर पसीना पसीना थे
उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर भगवान से कहा
हे प्रभु तेरा लाख लाख शुक्र है
जो तूने मुझे बचा लिया मैने तो दस रुपये के लालच मे
तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी पर
तूने सही समय पर मुझे थाम लिया....!
अब हम मुगल शासको के तथ्य जान ले
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1) जिसे आप ताजमहल कहते है वहां कभी शिवजी का तेजोमय नाम का मंदिर हुवा करता था जिसे शाहजहान ने तुडवा दिया
2) मुमताज की मीत 14 वें बच्चे को जन्म देते हुए हुवे था
3) शाहजहान ने ताज महल बनवाने के बाद उन 1500 सो कारीगरो की निर्दयता पुर्वक हात काट दिये थे
4) शाहजहान मुमताज से इतना प्यार करता था की उसके गम मे उसने मुमताज की बहन से तुरंत शादि करली
5) टीपु सुलतान हिंदू राजाओ से दोस्ती कर उन्हे धोके से मार देता था और उनके राज्य हतीया लेता था
6) टीपु सुलतान ने हिदूंस्तान को इस्लामीक देश बनाने की कसम खाई थी . जो की कभी पुरी नही हुई
7) अफजल खान ने हिदूं मंदिरो को तोडकर वहा सेकडौ गाय कटे . वो रोज एक बकरा खुद ही खा जाता था
8) अफजल खान की कुल 63 बिबियां थी इसके अलावा उसके हरम मे 600 औरत रहती थी
9) अफजल खान की एक बिबि ने उनसे शिवाजी राजे के शरण जाने को कहा तो अफजल खान इतना भडक गया की उसने पुरे 63 बिबियो को मार के एक कुवे मे फेक दिया.
13) औरगंजेब की कन्या जैबुन्निसा ने अपने पीता की हैवानीयत से तंग आकर क्रूषण भक्ती मे लीन होगई
10) औरगंजेब ने इस देश को इतना लुटा की आज उसके महल की कीमत इतनी है की पुरा प्यारीस शहर खरीदा जा सकता है.
11)गुरू गोबिन्द सिंहजी ने अत्याचारि मुगलो की ईंट से ईंट बजा दी थी लेकीन औरंगजेब ने उन्हे धोखे से मार दिया
12) औरगंजेब ने हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगज़ेब के अत्याचारों का उल्लेख है | तोड़े गये मंदिरों की जगह पर मस्जिद और सराय बनाई गईं तथा मकतब और कसाईखाने कायम किये गये। हिन्दुओं के दिल को दुखाने के लिए गो−वध करने की खुली छूट दे दी गई। उसकी नीति ने इतने विरोधी पैदा कर दिये, जिस कारण मुग़ल साम्राज्य का अंत ही हो गया
.
13) आदिल शाह बहोत हि क्रुर शासक था तथा हवस का पुजारी भी था वो गैर मुसलमानो से सिर्फ नफरत करता था. आदिल शाह ने इसी नफरत के चलते हिंदूओ की जमीन जायदाद छिनलेता तथा हिंदूओ से तीर्थ यात्रा पर जज़िया कर वसुल करने लगा
14) आदिल शाह ने शिवाजी राजे को मारने मे अपनी पुरी जिंदगी निकाल दि पर उस मे वो सफल नही हुवा
15) ज़हिर उद-दिन मुहम्मद जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध है खुद को भगवान बताने वाला एक अधर्मी पाखंडी और कट्टर मुगल शासक था उसने अयोध्या का राम मंदिर तुडवाकर खुद की बाबर मज्जिद बनाई
16) चंगेज खान इतिहास का सबसे बड़ा क्रूर मंगोल था वो हमलों में इस कदर खूनखराबा किया करता था कि उसने हमलों में तकरीबन चार करोड़ लोग मार डाले इसके बाद उसने धरती की 22 फीसदी जमीन पर अपने साम्राज्य का विस्तार कीया.
17) जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर जिसे आप जोधा अकबर के नाम से ज्यादा जानते है अकबर का वेश्यावृति को संरक्षण प्रदान था उसकी एक बहुत बड़ी हरम थी जिसमे कई सो स्त्रियाँ थीं इनमें अधिकांश स्त्रियों को बलपूर्वक सुदंर स्त्री का अपहरण करवाता था
18) अकबर जिस सुन्दर स्त्री को सती होते देखते थे, बलपूर्वक जाकर सती होने से रोक देते व उसे हरम में डाल दिया जाता था। अकबर अपनी प्रजा को बाध्य किया करता था की वह अपने घर की स्त्रियों का नग्न प्रदर्शन सामूहिक रूप से आयोजित करे जिसे अकबर ने खुदारोज (प्रमोद दिवस) नाम दिया हुआ था। इस उत्सव के पीछे अकबर का एकमात्र उदेश्य सुन्दरियों को अपने हरम के लिए चुनना था
19) गोंडवाना की रानी दुर्गावती पर भी अकबर की कुदृष्टि थी। उसने रानी को प्राप्त करने के लिए उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया. अकबर ने दिखावे के लीये हिन्दुओं पर लगे जज़िया कर हटा दिया, किंतु कुछ सालो बाद उसने वापस लगा डाला.
20) अकबर ने हजारो हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध इस्लाम ग्रहण करवाया था इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए|
अगर मुगल इतीहास को गौर से देखे सोचे समझे तो इनमे बहोत सारी बाते समान दिखती है जेसै की अय्याशी लुट अत्याचार अधर्म और कट्टरता इसमे कोई शक नही की सभी मुगल शासक कुरान का पालन करते है!
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1) जिसे आप ताजमहल कहते है वहां कभी शिवजी का तेजोमय नाम का मंदिर हुवा करता था जिसे शाहजहान ने तुडवा दिया
2) मुमताज की मीत 14 वें बच्चे को जन्म देते हुए हुवे था
3) शाहजहान ने ताज महल बनवाने के बाद उन 1500 सो कारीगरो की निर्दयता पुर्वक हात काट दिये थे
4) शाहजहान मुमताज से इतना प्यार करता था की उसके गम मे उसने मुमताज की बहन से तुरंत शादि करली
5) टीपु सुलतान हिंदू राजाओ से दोस्ती कर उन्हे धोके से मार देता था और उनके राज्य हतीया लेता था
6) टीपु सुलतान ने हिदूंस्तान को इस्लामीक देश बनाने की कसम खाई थी . जो की कभी पुरी नही हुई
7) अफजल खान ने हिदूं मंदिरो को तोडकर वहा सेकडौ गाय कटे . वो रोज एक बकरा खुद ही खा जाता था
8) अफजल खान की कुल 63 बिबियां थी इसके अलावा उसके हरम मे 600 औरत रहती थी
9) अफजल खान की एक बिबि ने उनसे शिवाजी राजे के शरण जाने को कहा तो अफजल खान इतना भडक गया की उसने पुरे 63 बिबियो को मार के एक कुवे मे फेक दिया.
13) औरगंजेब की कन्या जैबुन्निसा ने अपने पीता की हैवानीयत से तंग आकर क्रूषण भक्ती मे लीन होगई
10) औरगंजेब ने इस देश को इतना लुटा की आज उसके महल की कीमत इतनी है की पुरा प्यारीस शहर खरीदा जा सकता है.
11)गुरू गोबिन्द सिंहजी ने अत्याचारि मुगलो की ईंट से ईंट बजा दी थी लेकीन औरंगजेब ने उन्हे धोखे से मार दिया
12) औरगंजेब ने हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगज़ेब के अत्याचारों का उल्लेख है | तोड़े गये मंदिरों की जगह पर मस्जिद और सराय बनाई गईं तथा मकतब और कसाईखाने कायम किये गये। हिन्दुओं के दिल को दुखाने के लिए गो−वध करने की खुली छूट दे दी गई। उसकी नीति ने इतने विरोधी पैदा कर दिये, जिस कारण मुग़ल साम्राज्य का अंत ही हो गया
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13) आदिल शाह बहोत हि क्रुर शासक था तथा हवस का पुजारी भी था वो गैर मुसलमानो से सिर्फ नफरत करता था. आदिल शाह ने इसी नफरत के चलते हिंदूओ की जमीन जायदाद छिनलेता तथा हिंदूओ से तीर्थ यात्रा पर जज़िया कर वसुल करने लगा
14) आदिल शाह ने शिवाजी राजे को मारने मे अपनी पुरी जिंदगी निकाल दि पर उस मे वो सफल नही हुवा
15) ज़हिर उद-दिन मुहम्मद जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध है खुद को भगवान बताने वाला एक अधर्मी पाखंडी और कट्टर मुगल शासक था उसने अयोध्या का राम मंदिर तुडवाकर खुद की बाबर मज्जिद बनाई
16) चंगेज खान इतिहास का सबसे बड़ा क्रूर मंगोल था वो हमलों में इस कदर खूनखराबा किया करता था कि उसने हमलों में तकरीबन चार करोड़ लोग मार डाले इसके बाद उसने धरती की 22 फीसदी जमीन पर अपने साम्राज्य का विस्तार कीया.
17) जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर जिसे आप जोधा अकबर के नाम से ज्यादा जानते है अकबर का वेश्यावृति को संरक्षण प्रदान था उसकी एक बहुत बड़ी हरम थी जिसमे कई सो स्त्रियाँ थीं इनमें अधिकांश स्त्रियों को बलपूर्वक सुदंर स्त्री का अपहरण करवाता था
18) अकबर जिस सुन्दर स्त्री को सती होते देखते थे, बलपूर्वक जाकर सती होने से रोक देते व उसे हरम में डाल दिया जाता था। अकबर अपनी प्रजा को बाध्य किया करता था की वह अपने घर की स्त्रियों का नग्न प्रदर्शन सामूहिक रूप से आयोजित करे जिसे अकबर ने खुदारोज (प्रमोद दिवस) नाम दिया हुआ था। इस उत्सव के पीछे अकबर का एकमात्र उदेश्य सुन्दरियों को अपने हरम के लिए चुनना था
19) गोंडवाना की रानी दुर्गावती पर भी अकबर की कुदृष्टि थी। उसने रानी को प्राप्त करने के लिए उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया. अकबर ने दिखावे के लीये हिन्दुओं पर लगे जज़िया कर हटा दिया, किंतु कुछ सालो बाद उसने वापस लगा डाला.
20) अकबर ने हजारो हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध इस्लाम ग्रहण करवाया था इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए|
अगर मुगल इतीहास को गौर से देखे सोचे समझे तो इनमे बहोत सारी बाते समान दिखती है जेसै की अय्याशी लुट अत्याचार अधर्म और कट्टरता इसमे कोई शक नही की सभी मुगल शासक कुरान का पालन करते है!
हैदराबाद निजाम और MIM का किस्सा पता है ?/
क्या आप को सरदार पटेल , हैदराबाद निजाम और MIM का किस्सा पता है ?/
जिसकी खबर सुन के नेहरु ने फ़ोन तोड़ दिया था | तथ्य जो कभी बताये नहीं गए -
1- हैदराबाद विलय के वक्त नेहरु भारत में नहीं थे |
2- हैदराबाद के निजाम और नेहरु ने समझौता किया था अगर उस समझौते पे ही रहा जाता तो आज देश के बीच में एक दूसरा पकिस्तान होता |
3 - मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (MIM) के पास उस वक़्त २००००० रजाकार थे जो निजाम के लिए काम करते थे और हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करवाना चाहते थे या स्वतंत्र रहना |
ह्म्म्म कल आप सब की तीव्र इच्छा थी हैदराबाद के निजाम ओसमान अली खान और लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के बारे में जानने की |
ये तो आप सब जानते ही है की नेहरु में गयासुदीन गाजी नामक मुल्ले का मिलावटी खून था जिस वजह से देश विरोधी मुल्लो के प्रति उनका विशेष प्रेम था जो उनके खून से ही था |
बात तब की है जब १९४७ में भारत आजाद हो गया उसके बाद हैदराबाद की जनता भी भारत में विलय चाहती थी | पर उनके आन्दोलन को निजाम ने अपनी निजी सेना रजाकार के द्वारा दबाना शुरू कर दिया |
रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) थी जो निजाम ओसमान अली खान के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को नवस्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई थी।
यह सेना कासिम रिजवी द्वारा निर्मित की गई थी।
रजाकारों ने यह भी कोशिश की कि निजाम अपनी रियासत को भारत के बजाय पाकिस्तान में मिला दे।
रजाकारों का सम्बन्ध 'मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (MIM ) नामक राजनितिक दल से था।
नोट -ओवैसी भाई इसी MIM की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं और कांग्रेस की मुस्लिम परस्ती और देश विरोधी नीतियों की वजह से और पकिस्तान परस्त मुल्लो की वजह से ये आज तक हिन्दुस्तान में काम कर रही है |
चारो ओर भारतीय क्षेत्र से घिरे हैदराबाद राज्य की जनसंख्या लगभग 1करोड60लाख थी जिसमें से 85%हिंदु आबादी थी।
29नवंबर1947 को निजाम-नेहरू में एक वर्षीय समझौता हुआ कि हैदराबाद की यथा स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी।
नोट - यहाँ आप देखते हैं की नेहरु कितने मुस्लिम परस्त थे की वो देश द्रोही से समझौता कर लेते हैं |
पर निजाम नें समझौते का उलंघन करते हुए राज्य में एक रजाकारी आतंकवादी संगठन को जुल्म और दमन के आदेश दे दिए और पाकिस्तान को 2 करोड़ रूपये का कर्ज भी दे दिया.
राज्य में हिंदु औरतों पर बलात्कार होने लगे उनकी आंखें नोच कर निकाली जाने लगी और नक्सली तैय्यार किए जाने लगे.
सरदार पटेल निजाम के साथ लंबी लंबी झुठी चर्चाओं से उकता चुके थे अतः उन्होने नेहरू के सामने सीधा विकल्प रखे कि युद्ध के अलावा दुरा कोई चारा नही है। पर नेहरु इस पे चुप रहे |
कुछ समय बीता और नेहरु देश से बाहर गए सरदार पटेल गृह मंत्री तथा उप प्रधान मंत्री भी थे इसलिए उस उस वक़्त सरदार पटेल सेना के जनरलों को तैयार रहने का आदेश देते हुए विलय के कागजों के साथ हैदराबाद के निजाम के पास पहुचे और विलय पे हस्ताक्षर करने को कहा |
निजाम ने मना किया और नेहरु से हुए समझौते का जिक्र किया उन्होंने कहा की नेहरु देश में नहीं है तो वो ही प्रधान हैं |
उसी वक्त नेहरु भी वापस आ रहे थे अगर वो वापस भारत की जमीन पे पहोच जाते तो विलय न हो पाता इस को ध्यान में रखते हुए पटेल ने नेहरु के विमान को उतरने न देने का हुक्म दिया तब तक भारतीय वायु सेना के विमान निजाम के महल पे मंडरा रहे थे | बस आदेश की देरी को देखते हुए निजाम ने उसी वक़्त विलय पे हस्ताक्षर कर दिए | और रातो रात हैदराबाद का भारत में विलय हो गया |
उसके बाद नेहरु के विमान को उतरने दिया गया लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने नेहरु को फ़ोन किया और बस इतना ही कहा " हैदराबाद का भारत में विलय " ये सूनते ही नेहरु ने वो फ़ोन वही AYERPORT पे पटक दिया "
उसके बाद रजाकारो (MIM) ने सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया जो 13 सितम्बर 1948 से 17 सितम्बर 1948 तक चला |
भारत के तत्कालीन गृहमंत्री एवं 'लौह पुरूष' सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पुलिस कार्रवाई करने हेतु लिए गए साहसिक निर्णय ने निजाम को 17 सितम्बर, 1948 को आत्म-समर्पण करने और भारत संघ में सम्मिलित होने पर मजबूर कर दिया।
इस कार्यवाई को 'आपरेशन पोलो' नाम दिया गया था। इसलिए शेष भारत को अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद हैदराबाद की जनता को अपनी आजादी के लिए 13 महीने और 2 दिन संघर्ष करना पड़ा था।
यदि निजाम को उसके षड़यंत्र में सफल होने दिया जाता तो भारत का नक्शा वह नहीं होता जो आज है।
वो फ़ोन आज भी संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है |
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मुगल सामराज्य की कुछ रोचक तथ्य
बाल विवाह हमारी संस्कुती नही है ये देन है मुसलमानो की.. करीब 900 साल पहले ये देश बहोत ही खुशहाल हुवा करता था इस देश मे कीसी बात की कोई कमी नही थी हिंदू राजाओ के शासक मे ये देश सोने की चिडीया कहलाती थी .और इसी चिडीया को लुटने अरब देश के लुटेरे आने लगे सोने चांदि के साथ साथ वो कुवारी लडकीयो कोभी लुट के लेजाते थे .उन दिनों औरतों का खूबसूरत होना खतरे से खाली न रहता। कारण, लुटेरे उनपर आंखें लगाए रहते थें। गांवों की कई सुन्दर, लडकिंयो की वो शिकार करते थे ये सिल सिला इतना बढ गया की वो लुटेरे लुटने तो आते थे पर जाते नही थे उन्होने भारत पर कब्जा जमाना चालु कीया और इसी अधर्म को रोकने के लीये हिंदू अपनी लडकीयो को छोटी उमर मे ही विवाह कर देते बाद मे इसने प्रथा का रुप लेलीया.
सती होना भी इसी उद्देश से जुडा है मुसलमान कुवारी लडकीयो को तो हवस का शिकार बनाते हि थे साथमे जो विधवा स्त्री है उसे भी वो नही बक्षते थे और इस तरहसे कीसीको लडकी होना याने उस व्यक्ती का दुर्भाग्य बन जाता था.
मुघलोने जब भारत पर कबजा कीया तो उन्हे भारत की वैभवशाली सभ्यता देख नफरत होने लगी और उसे भ्रष्ट- नष्ट करने हेतु हर मुमकीन कोशीश की जाने लगी उन्होने सबसे पहले तक्षशिला के प्राचिन हिंदू साहीत्य तथा अनमोल पुस्तको को अग्नी मे स्वाहा: कर दिया. इस वजह से हम हमारे सनातन धर्म के ग्यान से वंचित होगये ये इतनी बडी चोट है की इसकी भरपाई होना असंभव है हम हिंदू धर्म के बारे मे जितना जानते है वो मात्र 10% हि है
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जिसकी खबर सुन के नेहरु ने फ़ोन तोड़ दिया था | तथ्य जो कभी बताये नहीं गए -
1- हैदराबाद विलय के वक्त नेहरु भारत में नहीं थे |
2- हैदराबाद के निजाम और नेहरु ने समझौता किया था अगर उस समझौते पे ही रहा जाता तो आज देश के बीच में एक दूसरा पकिस्तान होता |
3 - मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (MIM) के पास उस वक़्त २००००० रजाकार थे जो निजाम के लिए काम करते थे और हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करवाना चाहते थे या स्वतंत्र रहना |
ह्म्म्म कल आप सब की तीव्र इच्छा थी हैदराबाद के निजाम ओसमान अली खान और लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के बारे में जानने की |
ये तो आप सब जानते ही है की नेहरु में गयासुदीन गाजी नामक मुल्ले का मिलावटी खून था जिस वजह से देश विरोधी मुल्लो के प्रति उनका विशेष प्रेम था जो उनके खून से ही था |
बात तब की है जब १९४७ में भारत आजाद हो गया उसके बाद हैदराबाद की जनता भी भारत में विलय चाहती थी | पर उनके आन्दोलन को निजाम ने अपनी निजी सेना रजाकार के द्वारा दबाना शुरू कर दिया |
रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) थी जो निजाम ओसमान अली खान के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को नवस्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई थी।
यह सेना कासिम रिजवी द्वारा निर्मित की गई थी।
रजाकारों ने यह भी कोशिश की कि निजाम अपनी रियासत को भारत के बजाय पाकिस्तान में मिला दे।
रजाकारों का सम्बन्ध 'मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (MIM ) नामक राजनितिक दल से था।
नोट -ओवैसी भाई इसी MIM की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं और कांग्रेस की मुस्लिम परस्ती और देश विरोधी नीतियों की वजह से और पकिस्तान परस्त मुल्लो की वजह से ये आज तक हिन्दुस्तान में काम कर रही है |
चारो ओर भारतीय क्षेत्र से घिरे हैदराबाद राज्य की जनसंख्या लगभग 1करोड60लाख थी जिसमें से 85%हिंदु आबादी थी।
29नवंबर1947 को निजाम-नेहरू में एक वर्षीय समझौता हुआ कि हैदराबाद की यथा स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी।
नोट - यहाँ आप देखते हैं की नेहरु कितने मुस्लिम परस्त थे की वो देश द्रोही से समझौता कर लेते हैं |
पर निजाम नें समझौते का उलंघन करते हुए राज्य में एक रजाकारी आतंकवादी संगठन को जुल्म और दमन के आदेश दे दिए और पाकिस्तान को 2 करोड़ रूपये का कर्ज भी दे दिया.
राज्य में हिंदु औरतों पर बलात्कार होने लगे उनकी आंखें नोच कर निकाली जाने लगी और नक्सली तैय्यार किए जाने लगे.
सरदार पटेल निजाम के साथ लंबी लंबी झुठी चर्चाओं से उकता चुके थे अतः उन्होने नेहरू के सामने सीधा विकल्प रखे कि युद्ध के अलावा दुरा कोई चारा नही है। पर नेहरु इस पे चुप रहे |
कुछ समय बीता और नेहरु देश से बाहर गए सरदार पटेल गृह मंत्री तथा उप प्रधान मंत्री भी थे इसलिए उस उस वक़्त सरदार पटेल सेना के जनरलों को तैयार रहने का आदेश देते हुए विलय के कागजों के साथ हैदराबाद के निजाम के पास पहुचे और विलय पे हस्ताक्षर करने को कहा |
निजाम ने मना किया और नेहरु से हुए समझौते का जिक्र किया उन्होंने कहा की नेहरु देश में नहीं है तो वो ही प्रधान हैं |
उसी वक्त नेहरु भी वापस आ रहे थे अगर वो वापस भारत की जमीन पे पहोच जाते तो विलय न हो पाता इस को ध्यान में रखते हुए पटेल ने नेहरु के विमान को उतरने न देने का हुक्म दिया तब तक भारतीय वायु सेना के विमान निजाम के महल पे मंडरा रहे थे | बस आदेश की देरी को देखते हुए निजाम ने उसी वक़्त विलय पे हस्ताक्षर कर दिए | और रातो रात हैदराबाद का भारत में विलय हो गया |
उसके बाद नेहरु के विमान को उतरने दिया गया लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने नेहरु को फ़ोन किया और बस इतना ही कहा " हैदराबाद का भारत में विलय " ये सूनते ही नेहरु ने वो फ़ोन वही AYERPORT पे पटक दिया "
उसके बाद रजाकारो (MIM) ने सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया जो 13 सितम्बर 1948 से 17 सितम्बर 1948 तक चला |
भारत के तत्कालीन गृहमंत्री एवं 'लौह पुरूष' सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पुलिस कार्रवाई करने हेतु लिए गए साहसिक निर्णय ने निजाम को 17 सितम्बर, 1948 को आत्म-समर्पण करने और भारत संघ में सम्मिलित होने पर मजबूर कर दिया।
इस कार्यवाई को 'आपरेशन पोलो' नाम दिया गया था। इसलिए शेष भारत को अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद हैदराबाद की जनता को अपनी आजादी के लिए 13 महीने और 2 दिन संघर्ष करना पड़ा था।
यदि निजाम को उसके षड़यंत्र में सफल होने दिया जाता तो भारत का नक्शा वह नहीं होता जो आज है।
वो फ़ोन आज भी संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है |
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मुगल सामराज्य की कुछ रोचक तथ्य
बाल विवाह हमारी संस्कुती नही है ये देन है मुसलमानो की.. करीब 900 साल पहले ये देश बहोत ही खुशहाल हुवा करता था इस देश मे कीसी बात की कोई कमी नही थी हिंदू राजाओ के शासक मे ये देश सोने की चिडीया कहलाती थी .और इसी चिडीया को लुटने अरब देश के लुटेरे आने लगे सोने चांदि के साथ साथ वो कुवारी लडकीयो कोभी लुट के लेजाते थे .उन दिनों औरतों का खूबसूरत होना खतरे से खाली न रहता। कारण, लुटेरे उनपर आंखें लगाए रहते थें। गांवों की कई सुन्दर, लडकिंयो की वो शिकार करते थे ये सिल सिला इतना बढ गया की वो लुटेरे लुटने तो आते थे पर जाते नही थे उन्होने भारत पर कब्जा जमाना चालु कीया और इसी अधर्म को रोकने के लीये हिंदू अपनी लडकीयो को छोटी उमर मे ही विवाह कर देते बाद मे इसने प्रथा का रुप लेलीया.
सती होना भी इसी उद्देश से जुडा है मुसलमान कुवारी लडकीयो को तो हवस का शिकार बनाते हि थे साथमे जो विधवा स्त्री है उसे भी वो नही बक्षते थे और इस तरहसे कीसीको लडकी होना याने उस व्यक्ती का दुर्भाग्य बन जाता था.
मुघलोने जब भारत पर कबजा कीया तो उन्हे भारत की वैभवशाली सभ्यता देख नफरत होने लगी और उसे भ्रष्ट- नष्ट करने हेतु हर मुमकीन कोशीश की जाने लगी उन्होने सबसे पहले तक्षशिला के प्राचिन हिंदू साहीत्य तथा अनमोल पुस्तको को अग्नी मे स्वाहा: कर दिया. इस वजह से हम हमारे सनातन धर्म के ग्यान से वंचित होगये ये इतनी बडी चोट है की इसकी भरपाई होना असंभव है हम हिंदू धर्म के बारे मे जितना जानते है वो मात्र 10% हि है
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Wednesday, 12 June 2013
क्या आप जानते हैं कि.... विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था......???
लेकिन... ये जानने से पहले..... हम एक झलक नालंदा विश्वविधालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास पर डाल लेते हैं....... फिर, बात को समझने में आसानी होगी....!
यह प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था...।
महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे।
यह... वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं।
अनेक पुराभिलेखों और सातवीं सदी में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था.. तथा, प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था।
इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है..... और, इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग
मिला।यहाँ तक कि... गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा... और, इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला... तथा , स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।
आपको यह जानकार ख़ुशी होगी कि... यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था.... और, विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10 ,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2 ,000 थी....।
इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे.... और, नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे।
इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं सदी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी।
उसी समय बख्तियार खिलजी नामक एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मुस्लिम लूटेरा था ....!.
उसी मूर्ख मुस्लिम ने इसने 1199 इस्वी में इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।
हुआ कुछ यूँ था कि..... उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था.
और..... एक बार वह बहुत बीमार पड़ा... जिसमे उसके मुस्लिम हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली ... मगर वह ठीक नहीं हो सका...! और, मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया....!तभी उसे किसी ने उसको सलाह दी... नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय....!
हालाँकि.... उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई हिन्दू और भारतीय वैद्य ... उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाया जाए.... फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए
उनको बुलाना पड़ा....!
लेकिन..... उस बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि.... मैं एक मुस्लिम हूँ ... इसीलिए, मैं तुम काफिरों की दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा... लेकिन, किसी भी तरह मुझे ठीक करों ...वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो....!
यह सुनकर.... बेचारे वैद्यराज को रातभर नींद नहीं आई...!
उन्होंने बहुत सा उपाय सोचा ..... और, सोचने के बाद...... वे वैद्यराज अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए...... और, उस बख्तियार खिलजी से कहा कि ...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...!
बख्तियार खिलजी ने.... वैसे ही कुरान को पढ़ा ....और ठीक हो गया ..... तथा, उसकी जान बच गयी.....!
इस से .... उस पागल को...... कोई ख़ुशी नहीं..... बल्कि बहुत झुंझलाहट हुई .... और, उसे बहुत गुस्सा आया कि..... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...??????और..... उस एहसानफरामोश .... बख्तियार खिलजी ने ....... बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ... उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ....... और. पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया..... ताकि.... फिर कभी कोई ज्ञान ही ना प्राप्त कर सके.....!
कहा जाता है कि...... वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगने के बाद भी .... तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं..!
सिर्फ इतना ही नहीं...... उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाले.
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अब आप भी जान लें कि..... वो एहसानफरामोश मुस्लिम (हालाँकि, सभी मुस्लिम एहसानफरामोश ही होते हैं) ..... बख्तियार खिलजी ...... कुरान पढ़ के ठीक कैसे हो गया था.....
हुआ दरअसल ये था कि...... जहाँ...हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते... ना ही कभी, थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते हैं....!
जबकि.... मुस्लिम ठीक उलटा करते हैं..... और, वे कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के ही पलटते हैं...!
बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था...
इस तरह..... वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज के दवा को चाट गया... और, ठीक हो गया ...!परन्तु..... उसने इस एहसान का बदला ..... अपने मुस्लिम संस्कारों को प्रदर्शित करते हुए...... नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया...!
हद तो ये है कि...... आज भी हमारी बेशर्म और निर्ल्लज सरकारें...उस पागल और एहसानफरामोश बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... !
शर्मिन्दिगी नाम की चीज ही नहीं बची है.... इन तुष्टिकरण में आकंठ डूबी हमारी तथाकथित सेकुलर सरकारों में ...!
लेकिन... ये जानने से पहले..... हम एक झलक नालंदा विश्वविधालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास पर डाल लेते हैं....... फिर, बात को समझने में आसानी होगी....!
यह प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था...।
महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे।
यह... वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं।
अनेक पुराभिलेखों और सातवीं सदी में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था.. तथा, प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था।
इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है..... और, इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग
मिला।यहाँ तक कि... गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा... और, इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला... तथा , स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।
आपको यह जानकार ख़ुशी होगी कि... यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था.... और, विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10 ,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2 ,000 थी....।
इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे.... और, नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे।
इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं सदी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी।
उसी समय बख्तियार खिलजी नामक एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मुस्लिम लूटेरा था ....!.
उसी मूर्ख मुस्लिम ने इसने 1199 इस्वी में इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।
हुआ कुछ यूँ था कि..... उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था.
और..... एक बार वह बहुत बीमार पड़ा... जिसमे उसके मुस्लिम हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली ... मगर वह ठीक नहीं हो सका...! और, मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया....!तभी उसे किसी ने उसको सलाह दी... नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय....!
हालाँकि.... उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई हिन्दू और भारतीय वैद्य ... उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाया जाए.... फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए
उनको बुलाना पड़ा....!
लेकिन..... उस बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि.... मैं एक मुस्लिम हूँ ... इसीलिए, मैं तुम काफिरों की दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा... लेकिन, किसी भी तरह मुझे ठीक करों ...वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो....!
यह सुनकर.... बेचारे वैद्यराज को रातभर नींद नहीं आई...!
उन्होंने बहुत सा उपाय सोचा ..... और, सोचने के बाद...... वे वैद्यराज अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए...... और, उस बख्तियार खिलजी से कहा कि ...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...!
बख्तियार खिलजी ने.... वैसे ही कुरान को पढ़ा ....और ठीक हो गया ..... तथा, उसकी जान बच गयी.....!
इस से .... उस पागल को...... कोई ख़ुशी नहीं..... बल्कि बहुत झुंझलाहट हुई .... और, उसे बहुत गुस्सा आया कि..... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...??????और..... उस एहसानफरामोश .... बख्तियार खिलजी ने ....... बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ... उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ....... और. पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया..... ताकि.... फिर कभी कोई ज्ञान ही ना प्राप्त कर सके.....!
कहा जाता है कि...... वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगने के बाद भी .... तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं..!
सिर्फ इतना ही नहीं...... उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाले.
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अब आप भी जान लें कि..... वो एहसानफरामोश मुस्लिम (हालाँकि, सभी मुस्लिम एहसानफरामोश ही होते हैं) ..... बख्तियार खिलजी ...... कुरान पढ़ के ठीक कैसे हो गया था.....
हुआ दरअसल ये था कि...... जहाँ...हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते... ना ही कभी, थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते हैं....!
जबकि.... मुस्लिम ठीक उलटा करते हैं..... और, वे कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के ही पलटते हैं...!
बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था...
इस तरह..... वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज के दवा को चाट गया... और, ठीक हो गया ...!परन्तु..... उसने इस एहसान का बदला ..... अपने मुस्लिम संस्कारों को प्रदर्शित करते हुए...... नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया...!
हद तो ये है कि...... आज भी हमारी बेशर्म और निर्ल्लज सरकारें...उस पागल और एहसानफरामोश बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... !
शर्मिन्दिगी नाम की चीज ही नहीं बची है.... इन तुष्टिकरण में आकंठ डूबी हमारी तथाकथित सेकुलर सरकारों में ...!
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