‘लव जिहाद’की समस्याके संदर्भ में प्रवचनकारों, धर्मपीठों और संतों का दायित्व महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि वे लाखोंकी संख्यामें जनसमुदायको उपदेश कर सकते हैं । जिस क्षण से इस्लाम के इतिहास के काले पृष्ठ और आज का भीषण सत्य प्रवचनोंके माध्यम से वातावरण में गूंजने लगेगा, उस क्षण से गत १,३०० वर्षों से जारी हिंदू सि्त्रयों के करुण-क्रंदनका प्रतिशोध लेनेके लिए आजका हिंदू युवक आगे-पीछे नहीं देखेगा ।’ -
‘लव जिहाद’के संकटके विषयमें विद्यालय, महाविद्यालय, महिला मंडल, जातिसंस्थाएं, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, धार्मिक कार्यक्रम आदिमें प्रवचन करना आवश्यक है ।जराइल में ज्यू और मुसलमानों के विवाहपर वैधानिक प्रतिबंध है । हिंदुस्थान में भी ‘लव जिहाद’ रोकनेके लिए इजराइल समान विधान बनानेकी आवश्यकता है । इसके लिए अपने क्षेत्रके जन प्रतिनिधियों और मंति्रयों को संगठित रूप से निवेदन देकर लव जिहाद के विरुद्ध विधान बनाने की मांग करें । स्वा. सावरकर हिंदुओं से कहते हैं, ‘अपनी सि्त्रयों को शत्रु भगा ले जाकर मुसलमान बनाते हैं, तो उनसे उत्पन्न लडके आगे चलकर हमारे शत्रु बनते हैं । इसलिए उन सि्त्रयों को छुडाकर पुनः अपने धर्ममें लाएं ।’ अपनी बेटियों को परधर्म में न जाने देने के लिए सदैव सावधान रहना, यह जैसे ‘लव जिहाद’को रोकने का एक मार्ग है, तो दूसरा मार्ग है - सावरकरके विचारों के अनुसार ‘लव जिहाद’की बलि चढी युवतियों को छुडाकर, शुद्ध कर, पुनः स्वधर्म में समि्मलित कर लेना । ‘लव जिहाद’को रोकनेके लिए इस दूसरे मार्ग का तुरंत अवलंबन भी हिंदू समाज को करना चाहिए !
. जिहादी युवकपर तुरंत विश्वास करना :
हिन्दू युवतियोंका ‘लव जिहाद’की बलि चढनेका एक प्रमुख कारण है, हिन्दुस्थानपर इस्लामी आक्रमणकारियोंद्वारा गत १,३०० वर्षोंमें किए गए अत्याचारोंसे और इस्लामकी जिहादी विचारधाराका ज्ञान न होना ।
‘एक पाकिस्तानी वंश के जिहादी ने कहा, ‘‘हिन्दू युवतियों को फंसाना सरल होता है; क्योंकि वे भोली होती हैं तथा किसी भी बातपर तुरंत विश्वास कर लेती हैं । उनसे मीठा बोलने पर तथा उनकी झूठी प्रशंसा करते ही उन्हें हम ‘जिहादी’ अपने ही लगते हैं ।‘लव जिहाद ’की बलि चढी अधिकतर हिन्दू युवतियां १३ से १८ वर्षके बीच की होती हैं । इस अल्हड आयु की युवतियों को जिहादी युवक लालच दिखाकर प्रेमके जालमें फांस लेते हैं और बलात्कार करते हैं । ऐसी अल्पवयीन युवतियां लैंगिक आकर्षण के कारण, क्या हितकर है और क्या अहितकर, इसका भेद नहीं समझ पातीं । इस कारण उनके प्रेमजाल में फंस जाती हैं ।’
कुछ हिन्दू युवतियोंको इस्लामी क्रूरताका इतिहास ज्ञात होता है; तो भी ‘यदि एक भी जिहादीकी मानसिकता परिवर्तित कर मैं उसे राष्ट्रीय प्रवाहमें ला सकी, तो मेरा जीवन सार्थक हो जाएगा’, यह भ्रम वे इस अवयस्क अवस्था में ही पाल लेती हैं और अपने पैरों पर कुल्हाडी मार लेती हैं ।
जिहादीयों को पौरुषयुक्त और हिन्दुओंको पौरुषहीन समझना :
‘कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिहादी के प्रेमजाल में फंसी युवती को समझाने हेतु उसके पास जानेपर वह यह कहकर कि ‘‘जिहादी पौरुष युक्त (मर्द) होते हैं, और हिन्दू ‘नामर्द (पौरुषहीन) होते हैं’’, हिन्दुओं के पुरुषार्थ को ही चुनौती दे डालती हैं ।’
. हिन्दू धर्मके महत्त्वसे अनभिज्ञ होना : हिन्दू युवतियों को हिन्दू धर्म का महत्त्व ज्ञात न होना, यह भी उनके ‘लव जिहाद’ के बलि चढने का महत्त्वपूर्ण कारण है । ऐसी युवतियों द्वारा धर्मपालन न किए जाने के कारण उनमें हिन्दू धर्म के विषय में अभिमान नहीं होता । इसीलिए वे दूसरे धर्म में जाने के लिए तत्पर हो जाती हैं ।
अभिभावकों द्वारा अपनी बेटियों को दी जानेवाली अनियंत्रित स्वतंत्रता एवं उन्हें पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने की दी जाने वाली छूट के कारण ये युवतियां आगे जाकर अपने माता-पिता की नहीं सुनतीं और मनमाने ढंग से रहने लगती हैं ।
युवतियोंको भावनिक आधार देनेमें असफल रहना :
‘एक सर्वेक्षणके अनुसार अकेली अथवा अलिप्त रहनेवाली युवतियों की ‘लव जिहाद’में फंसने की संख्या अधिक है । जिन युवतियों को भावनिक आधार नहीं मिलता, वे युवतियां वह आधार बाहर ढूंढने का प्रयास करती हैं । प्रत्येक युवा को उसके सिरपर हाथ फेरकर आत्मीयता से उसका कुशल-मंगल पूछने वाले तथा उसका कहना खुले मन से सुनने वाले अभिभावक की आवश्यकता होती है ।
मारवाडी सम्मेलन में ‘लव जिहाद’ में फंसी युवती के अभिभावक ने अपनी व्हृाथा प्रकट करते हुए कहा, ‘‘हमारी बेटियां धार्मिक विचारों की थीं । पूजन-अर्चन और उपवास करती थीं, तो भी जिहादीयों के साथ भाग गर्इं ।’’ यही अभिभावक पहले ‘सर्वधर्मसमभाव’ का खोटा तत्त्वज्ञान समाज को बताया करते थे । परिस्थितिवश कभी हिन्दू-जिहादी का प्रश्न उपस्थित होने पर वे अपनी बेटियों को ‘सर्वधर्मसमभाव का उपदेश करते हुए कहते, ‘‘यह तुम लोगों का विषय नहीं है । यह राजनीति है । तुम लोग अपनी पढाई पर ध्यान दो ।’’
बेटीका आधुनिक विचारोंका आत्मघाती अभिमान पालना :
कुछ अभिभावक उनकी बेटी किस पार्टीमें जाती है, किस स्तर के युवकों के साथ पिकनिक पर जाती है, किस प्रकार के चलचित्र देखती है, किस प्रकार के कार्यक्रमों में भाग लेती है आदि की कभी पूछताछ नहीं करते । उलटे, ‘मेरी बेटी आधुनिक विचारों की है’, यह आत्मघाती अभिमान प्रदर्शित करते हैं ।’ ‘लव जिहाद ’की बलि चढी बेटी के विषय में माता-पिता पुलिस में परिवाद लिखवाते तो हैं; किंतु समाज में अपनी छवि कलंकित होने के भयसे उनका प्रयास यह रहता है कि प्रकरण न्यायालय के बाहर ही निपट जाए ।’
हिन्दू समाजकी अनुचित विचार-प्रक्रिया
‘मुझे इससे क्या लेना-देना’ ऐसी मनोवृत्ति : ‘एक हिन्दू घर की युवती को जिहादी भगा ले गया, फिर भी कुछ हिन्दू ऐसा विचार करते हैं कि ‘मेरे घर की बेटियां तो सुरक्षित हैं ! इसलिए, यह सब क्यों सोचूं ?’ ‘जिहादीयों द्वारा भगाई गई हिन्दू युवतियों का करुण-क्रंदन हिन्दू समाज के कुछ लोगों को सुनाई ही नहीं देता; क्योंकि, वे न टूटने वाले धर्मनिरपेक्षता के भ्रामक कवच से अपने दोनों कान बंद कर लिए होते हैं ।
हिन्दू समाज आपस में झगडने में अपने को धन्य मानता है । एक-दूसरेकी त्रुटियां निकालने में बडप्पन मानता है । विविध हिन्दू संगठन और संस्थाएं इसमें अपना अस्तित्व बचाने का प्रयत्न अधिक करती हैं । हिन्दू धर्म और उसपर आए संकटों के विषय में उन्हें कुछ लेना-देना नहीं होता ।’
‘जिहादी युवकद्वारा बेटीको भगाकर ले जानेपर उसे छुडाकर वापस लानेका साहस हिन्दू समाज नहीं दिखाता । हिरन के झुंड पर आक्रमण कर उसके उत्तम हिरन को उस झुंड के सामने ही बाघ क्रूरता पूर्वक फाडकर खा जाता है; परंतु केवल विवश होकर वह दृश्य देखने के अतिरिक्त झुंड के अन्य हिरन कुछ नहीं कर पाते । ठीक ऐसी ही अवस्था हिन्दू समाज की हो गई है । ‘बेटी आज से मेरे लिए मर गई’, यह कहते हुए हाथ झटककर अभिभावक अपने नित्य के कामकाज में व्यस्त हो जाते हैं; किंतु इसमें कोई पुरुषार्थ नहीं । `लव जिहाद'की घटना सुनकर हिन्दू समाज के अधिकतर लोगों की मुटि्ठयां कडी तो होती हैं; किंतु उसके विरुद्ध संगठित रूप से लडने की मानसिकता कोई नहीं दिखाता ।’जिहादीों के मत गंवाने के भयसे ‘लव जिहाद ’को कुचलने का साहस कोई राजनीतिक दल नहीं करता ।’
तारा की रंजीत से मुलाकात होटवार स्टेडियम में हुई थी, जहां वो शूटिंग की प्रैक्टिस के लिए अक्सर जाया करती थी। यहीं पर रंजीत ने तारा को सबके सामने पसंद करने व शादी का प्रस्ताव दे दिया था। १४ जून को रंजीत कुमार कोहली ने उसे घर पर डिनर के लिए बुलाया, इसके ठीक एक दिन बाद १५ जून को एक दोस्त के निमंत्रण पर तारा उसके घर डिनर के लिए पहुंची। वहां रंजीत भी पहले से ही मौजूद था, उसने तारा को अंगूठी व कंगन पहना दिया और शादी की तारीख तय करने की बात कही। इसके बाद 20 जून को दोनों की सगाई हुई और सात जुलाई को दोनों विवाह बंधन में बंध गए। लेकिन उसे यह पता नहीं था की मेहंदी का रंग उतरने के पहले ही उस पर सितम ढाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।
नेशनल लेवल की शूटर तारा सहदेव से नाम बदलकर शादी करने और शादी के बाद धर्म बदलने के लिए प्रताडि़त करने
के आरोपी रकीबुल हसन खान उर्फ रंजीत सिंह कोहली
ने बड़े लोगों को लड़कियां सप्लाई करने की बात पूछताछ में कबूल कर ली है।
९ जुलाई को उसके पति ने २०-२५ हाजियों को घर बुलाया और उस पर जबरन धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाया। इस दौरान विरोध करने पर उसे न सिर्फ बुरी तरह मारा गया, बल्कि कई बार कुत्ते से कटवाया भी गया, ताकि वह डर से धर्म परिवर्तन कर ले। यही नहीं जुबान खोलने पर उसके भाई को मरवा डालने की धमकी तक दी गई। रिमांड पर लिए जाने के बाद रांची के जगन्नाथपुर थाने में पूछताछ के दौरान रकीबुल ने सेक्स रैकेट से जुड़े कई पुलिस अफसरों और हाई प्रोफाइल लोगों के नाम भी बताए। इससे पहले उसकी पत्नी तारा सहदेव ने दावा किया था कि 15 विधायकों से उसके संपर्क हैं।
डीएसपी के पास कई बार भेज चुका है लड़कियां
रकीबुल ने पुलिस को बताया कि झारखंड के एक जिले में पदस्थापित डीएसपी जब रांची पहुंचते थे, तब उसके अशोक नगर रोड नंबर छह स्थित किराए के मकान या अशोक विहार स्थित मकान में ठहरते थे। वहां वह लड़कियों को भेजता था। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, रंजीत ने पूछताछ में बताया कि वह उक्त दोनों आवासों का उपयोग बाहर से रांची आने वाले उन्हीं अधिकारियों को ठहराने के लिए करता था जो खातिरदारी में लड़कियों की मांग करते थे।
तारा के आरोप सही
तारा ने कहा कि अब पता चला कि दरिंदगी क्या होती है। पहले सिर्फ सुना करती थी। अब मैं वहां नहीं जाना चाहती हूं। नाम बदल दिया जाता, पहचान छुपा दी जाती। ऐसी जगह रखा जाता कि वहां से निकलना मुश्किल हो जाता। वह तो मेरी मां का आशीर्वाद है कि मैं वहां से निकली।तारा ने सांसद रामटहल चौधरी और डीआईजी प्रवीण सिंह को आपबीती सुनाई। तारा बताती है कि उसके बाएं हाथ पर ही वह हथियार से प्रहार करता था। वह कहता था कि धर्म परिवर्तन नहीं करोगी तो तुम्हारी प्रतिभा बरबाद कर देंगे। वह अक्सर उसे केहूनी से ही मारता था। वह कहता था कि दुनिया में तुम्हारा नाम न हो, इसके लिए जो भी होगा करेंगे।
तारा ने बताया, "रकीबुल कई लड़कियों के साथ खेलता था। एक दिन मेरे सामने ही दो-तीन बच्चियां आई थीं। कुछ दिनों के बाद कॉलेज में उनका एडमिशन करा दिया गया। रकीबुल उनके साथ अच्छे से तैयार होकर जाता था। उसके बाद वह गार्ड मंगा लेता था। उसके लिए गाड़ी भेज दी जाती थी। वह ऐसा व्यवहार करता था कि मानो उससे अच्छा और प्रभावशाली इंसान हो ही नहीं सकता। एक बार तो उनसे पूछा कि अगर हमारी शादी नहीं हुई होती, तो क्या आप लोग हमसे शादी करतीं।"लड़कियों ने कहा, "सर, आपके जैसे इंसान के साथ कौन नहीं शादी करना चाहेगा। इस पर उसने कहा, मेरे बहुत सारे दोस्त हैं।"
रकीबुल ने तारा के उस आरोप को सही बताया, जिसमें तारा ने कहा है कि किन-किन मंत्रियों को वह स्टेशन रोड स्थित होटल में ले जाता था। देवघर के एक न्यायिक अधिकारी के ब्लेयर अपार्टमेंट में आने की बात भी कबूल की। उधर, रकीबुल की नौकरानी हरिमती ने पुलिस को बताया है कि रकीबुल और उसकी मां तारा के साथ मारपीट करते थे।प्रताडि़त करते थे और इस्लाम कबूल नहीं करने पर वेश्यावृत्ति करवाने की धमकी देते थे।