Saturday 16 August 2014

आज भी किताबो में आज़ाद को "उग्रवादी" लिखा जाता है


शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था, ‘‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है । वहीं इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे ।”अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी ।
2 ] इसी प्रकार एक ओर महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को जो आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी ।
3] जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीताभिरमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे।
४] इसी प्रकार गांधी ने कहा था, “पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तान उनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी ।
५] इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?
६]गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रहद्) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई ।
७]इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौ० ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है ।
8]इस आजादी के बारे में इतिहासकार सी. आर. मजूमदार लिखते हैं – “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा । यह कहना उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी । इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन सभी क्रान्तिकारियोंका अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया ।” 
शहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाई
जा चुकी थी ,इसके कारन हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद
काफी परेसान और चिंतित हो गय। भगत सिंह
कि फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिश
सरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिए
आज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिन
गांधी ने कहा कि वो किसी भी उग्रवादी से
नहीं मिल सकते।
गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू
से मिलने का फैसला लिया ,27 फरवरी 1931 के दिन
आज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की। ठीक इसी दिन
आज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह
कि फांसी को रोकने कि विनती कि। बैठक में
आज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने
का सफल प्लान रख दिया। जिसे देखकर नेहरू हक्का -
बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह
को आसानी से बचाया जा सकता था।
नेहरू ने आज़ाद को मदत देने से साफ़ मना कर दिया ,इस
पर आज़ाद नाराज हो गय और नेहरू से जोरदार बहस
हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिल
पर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क कि होकर निकल गय।
पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस
ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के
साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में
ही मौजूद है।
आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज
अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा ,आज़ाद कि पिस्तौल में
जब तक गोलिया बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके
करीब नहीं आ सका। आखिर कार आज़ाद जीवन
भरा आज़ाद ही रहा और आज़ादी में ही वीर
गति प्राप्त की।
अब अक्ल का अँधा भी समज सकता है कि नेहरु के घर
से बहस करके निकल कर पार्क में १५ मिनट अंदर
भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने बिना नेहरू
कि गद्दारी के नहीं पहुच सकता। नेहरू ने पोलिस
को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ
देर वही रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद
को जिन्दा पकड़ने कि भूल ना करे नहीं तो भगत
सिंह कि तरफ मामला बढ़ सकता है।
लेकन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू
को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू
बना दिया और आज भी किताबो में आज़ाद
को "उग्रवादी" लिखा जाता है। 

Vivek Arya
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सरदार पटेल के पास 563 रियासतों को एकत्रित करने का दायित्व था जिसे उन्होंने बखूबी निभाया ....और जवाहर लाल के पास एकमात्र कश्मीर का .....जो आज तक भारत के लिए नासूर है॥
प्रथम प्रधान मंत्री(कथिक बौद्धिक) जवाहर लाल ने पोर्तुगीज शासन के दीव, दमन, गोवा, दादरनगर हवेली को स्वतन्त्रता के पश्चात मुक्त न किए , साहस भी न किया वह मानते थे की यह कदम से ब्रिटन एवं अमेरिका अप्रसन्न होगे 1498 मे देश मे घुसे पोर्तुगीज के पास 4500 सैनिक तोप( शतघ्नी ), रणगाड़ी थे ।
जवाहर मे कोई क्षमता, साहस, शौर्य, कूटनीति, नहीं थी .... अतः जन आंदोलन छेदना पड़ा। सत्याग्रही ने शस्त्रविहीन दादरनगर मे प्रवेश किया जहा पोर्तुगीज ने 33 सत्याग्रही को मार गिराया, 44 सतत हताहत हुए। अतः आंदोलन तेज हुआ, सर्वत्र नहेरु की कायरता, निष्क्रियता, नपुसकता के कारण असंतोष हुआ,
अंत मे बलात निर्णय ले कर भारत ने ई,स, 1961 मे 45000 सैनिक के साथ आक्रमण किया, आक्रमण 36 घंटे चला
पोर्तुगीज शासन का अंत 451 वर्ष के पश्चात आया --
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क्या आप जानते हैं कि..... हमारे हिंदुस्तान से अलग होने के बाद ..... मुस्लिमों ने अपने नए देश का नाम ""पाकिस्तान"" ही क्यों रखा ....??
असल में..... "पाकिस्तान" शब्द का जनक ....सियालकोट का रहने वाला 'मुहम्मद इकबाल' था..... जो कि... जन्म से एक कश्मीरी ब्राह्मण था . परन्तु बाद में मुसलमान बन गया था..ये वही मुहम्मद इकबाल है.... जिसने प्रसिद्द सेकुलर गीत ........"सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तान हमारा" .. लिखा है...!और, इसी इकबाल ने अपने गीत में एक जगह लिखा है कि..... ""मजहब नहीं सिखाता ....आपस में बैर रखना"
परन्तु दूसरी तरफ इस इकबाल ने .........अपनी एक किताब " कुल्लियाते इकबाल " में अपने बारे में लिखा है....
"मिरा बिनिगर कि दर हिन्दोस्तां दीगर नमी बीनी ,बिरहमन जादए रम्ज आशनाए रूम औ तबरेज अस्त "
अर्थात... मुझे देखो......... मेरे जैसा हिंदुस्तान में दूसरा कोई नहीं होगा... क्योंकि, मैं एक ब्राह्मण की औलाद हूँ......लेकिन, मौलाना रूम और मौलाना तबरेज से प्रभावित होकर मुसलमान बन गया...!
कालांतर में यही इकबाल....... मुस्लिम लीग का अध्यक्ष बन गया....
और, हैरत कि बात है कि...... जो इकबाल "सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तान हमारा" .. लिखा .उसी  इकबाल ने ....... मुस्लिम लीग खिलाफत मूवमेंट के समय ...... 1930 के इलाहाबाद में मुस्लिम लीग के सम्मलेन में कहा था .....
"हो जाये अगर शाहे खुरासां का इशारा ,सिजदा न करूं हिन्दोस्तां की नापाक जमीं पर "
यानि.... यदि तुर्की का ‪#‎खलीफा‬ अब्दुल हमीद ( जिसको अँगरेजों ने 1920 में गद्दी से उतार दिया था ) इशारा कर दे...... तो, मैं इस "नापाक हिंदुस्तान" पर नमाज भी नहीं पढूंगा...!
बाद में...... इसी " नापाक" शब्द का विपरीत शब्द लेकर "पाक " से "पाकिस्तान " बनाया गया ...... जिसका शाब्दिक अर्थ है .....( मुस्लिमों के लिए ) पवित्र देश ...!
कहने का तात्पर्य ये है कि..... हिन्दू बहुल क्षेत्र होने के कारण.... मुस्लिमों को हिंदुस्तान ""नापाक"" लगता था.... इसीलिए... मुस्लिमों ने अपने लिए एक अलग देश की मांग की.... तथा, अपने तथाकथित पवित्र देश का नाम ... "पाकिस्तान"... रख लिया...!






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