Wednesday, 12 October 2016

भावनाओं से ही तय होता है मनुष्य का भाग्य
दो मित्र गांव से नगर घूमने आए। रास्ते में चलते- चलते एक जगह उन्होंने देखा भागवत का पाठ चल रहा है। एक ने कहा चलो थोड़ी देर यहां बैठकर भागवत की कथा सुन लें। दूसरा बोला- नहीं भाई, भागवत सुनकर क्या होगा? चलो नर्तकी के यहां थोड़ा नाच गाने का लुफ्त उठाएं।
इस पर पहला मित्र राजी नहीं हुआ और अकेला ही भागवत सुनने चला गया। दूसरा मित्र नर्तकी के घर जा पहुंचा। पर वहां जाकर उसका मन विचलित हुआ। थोड़ी ही देर में उसके मन में विरक्ति आई और वह सोचने लगा- मुझे धिक्कार है। मै यहां क्यों आया। मेरा दोस्त वहां भगवान की कल्याणकारी बातें सुन रहा है और मै यहां कहां आ पड़ा हूं। इधर, पहला मित्र भागवत सुनने तो बैठ गया परंतु वह मन ही मन सोच रहा था कि मै कैसा मूर्ख हूं। यह पंडित ना जाने क्या क्या बोल रहा है और मै यहां बैठा हुआ हूं। मै अपने दोस्त के साथ क्यों नहीं गया। मेरा मित्र इस समय मौज कर रहा होगा।
सहसा तभी उस नगर में भूंकप आया और एक ही साथ दोनों मित्रों की मृत्यु हो गई। अब जो भागवत सुन रहा था उसे यमदूत ले गए और जो नर्तकी के घर गया था, उसे विष्णु दूत बैकुंठ ले गए क्योंकि भगवान भावग्रही है। वे व्यक्ति का मन देखते है। कौन क्या कर रहा है, कहां पड़ा हुआ है ये नहीं देखते। जैसा भाव होता है वैसा लाभ भी होता है।
#सार- मन की भावनाएं मनुष्य के भाग्य का निर्माण करती है। आडंबर करने वाले कभी वास्तविकता का सुख नहीं पाते।

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