Tuesday 4 October 2016

श्यामजी कृष्ण वर्मा जयंती स्पेशियल, इतिहास में दबा हुआ महान नाम...

हमारे इतिहास में कई स्वतंत्रता सेनानी ऐसे है जो गुमनाम है अर्थात उनको लेकर कई लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। क्योंकि राजनीति उनके नाम आगे आने की या सभी को जानकारी देने की इजाजत नहीं देती। उनमें से एक है श्यामजी कृष्ण वर्मा, जिनकी आज जयंती है।

जानिये कौन थे श्यामजी कृष्ण वर्मा

जन्म- 4 अक्टूबर, 1857, मांडवी, कच्छ, गुजरात।
मृत्यु- 30 मार्च, 1930, जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
कार्य- भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, इंडियन होम रूल सोसायटी, इंडिया हाउस और द इंडियन सोसिओलोजिस्ट के संस्थापक।
श्यामजी कृष्ण वर्मा भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, वकील और पत्रकार थे। वर्माजी भारत माता के उन सपूतों में से है जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपनी हर साँस कुर्बान कर दी। इंग्लैंड में पढाई करने के बाद वो भारत आये और वकालत की पढ़ाई की। उसके बाद वे राजघरानों में दीवान के तौर पर कार्य करने लगे। ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से परेशान होकर वो इंग्लैंड चले गए। वे संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता थे। उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफ़ोर्ड में अपना सहायक बनने के लिए निमंत्रण दिया था। उन्होंने होम इंडियन रूल सोसाइटी, इंडिया हाउस और द इंडियन सोसियोलॉजिस्ट की लंदन में स्थापना की। इन सोसाइटी का उद्देश्य था कि, वहां रह रहे भारतीयों को देश की आजादी से अवगत कराना और वहां पढ़ रहे छात्रों के मध्य परस्पर मिलन और विविध विचार विमर्श करना। वर्माजी ऐसे भारतीय थे जिनको ऑक्सफोर्ड में एम ए और बार-एट-ला की उपलब्धि मिली थी।

स्वामी दयानंद सरस्वती का साहित्य के राष्ट्रवाद और दर्शन से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बन गए। स्वामीजी की प्रेरणा से ही उन्होंने इंडिया हाउस की स्थापना की जिससे मैडम कामा, वीर सावरकर, विरेंद्रनाथ चटोपाध्याय, एस आर राणा, लाला हरदयाल, मदन लाल ढींगरा और भगतसिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानी जुड़े हुए थे। वर्माजी लोकमान्य गंगाधर तिलक के भी बड़े प्रशंसक और समर्थक थे। उन्हें कांग्रेस पार्टी की अंग्रेजों के प्रति नीति अशोभनीय और शर्मनाक प्रतीत होती थी। वर्माजी ने चापेकर बंधुओं के हाथ पूना के प्लेग कमिश्नर की हत्या का भी समर्थन किया था। भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई को जारी रखने के लिए वे इंग्लैंड चले गए। वर्माजी का मानना था कि अंग्रेजो को सहयोग देना बंद करे तो स्वाधीनता पाई जा सकती है।

1900 में इंग्लैंड पहुँचने के बाद वर्माजी ने घर ख़रीदा, जो राजनितिक गतिविधियों का केंद्र बना। उन्होंने सन 1905 में इंडियन सोसियोलोजिस्ट नामक एक पत्रिका निकाली और 18 फरवरी, 1905 को इंडियन होम रूल सोसायटी की स्थापना की। इस संस्था का उद्देश्य था कि, 'भारतीयों के लिए भारतीयों द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित करना।' इस घोषणा के क्रियान्वयन हेतु उन्होंने लंदन में इंडिया हाउस की स्थापना की। यह भारत के स्वाधीनता आंदोलन के दौरान इंग्लैंड में भारतीय राजनितिक गतिविधियों का सबसे बड़ा केंद्र रहा। बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, गोपाल कृष्ण गोखले, गांधी और लेनिन जैसे नेता इंग्लैंड प्रवास के दौरान इंडिया हाउस जाते रहते थे।
वर्माजी के राष्ट्रवादी लेखों और सक्रियता ने ब्रिटिश सरकार को चौकन्ना कर दिया। इन्हें इनर टेम्पल से निष्कासित कर दिया गया और उनकी सदस्यता भी 30 अप्रैल, 1909 को समाप्त कर दी। ब्रिटिश प्रेस ने उनपर कई गलत इल्जाम लगाये लेकिन उन्होंने हर बात का जवाब बहादुरी से दिया। ब्रिटिश सरकार ने ख़ुफ़िया तरीके से उनपर निगरानी रखनी शुरू कर दी इसीलिये उन्होंने पेरिस को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाना उचित समझा। वीर सावरकर को इंडिया हाउस की जिम्मेदारी सौपकर वो पेरिस चले गए।

पेरिस में उन्होंने अपनी गतिविधियों को पुनः शुरू कर दिया। जिसके स्वरुप ब्रिटिश सरकार ने फ्रांसिसी सरकार पर प्रत्यर्पण का दवाब डाला लेकिन असफल रही। पेरिस में श्यामजी वहां के कई नेताओं को अपने विचार समझाने में सफल रहे। वर्ष 1914 में वे जिनोवा चले गए जहाँ अपनी गतिविधयों का संचालन जारी रखा। उन्होंने वहां भी इंडियन सोसियोलॉजिस्ट का प्रकाशन जारी रखा।

1920 के दशक में शायमजी की तबियत खराब रहती थी। जिसकी वजह 1922 के बाद इंडियन सोसियोलॉजिस्ट का कोई अंक प्रकाशित नहीं कर पाए।

उनका निधन जिनोवा के एक हॉस्पिटल में 30 मार्च, 1930 को हो गया। ब्रिटिश सरकार ने उनकी मौत की खबर को भारत में दबाने की कोशिश की।

आजादी के लगभग 55 साल बाद शायमजी और उनकी पत्नी की अस्थियो को भारत लाया गया। उनके सम्मान में मांडवी के पास 2010 में 'क्रांति तीर्थ' नामक एक स्मारक बनाया गया। भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया। उनके नाम से कच्छ विश्वविद्यालय का नाम रख दिया गया।

ऐसे वीरो का देश हमेशा कर्जदार है जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश की स्वाधीनता पर न्योछावर कर दिया।




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