पाकिस्तान में हिन्दू थे .. सिख थे .. कुछ इसाई थे और फिर सुन्नी मुस्लिम थे.. शिया मुस्लिम थे .. अहमदिया मुस्लिम थे... मुस्लिम कभी शांति से नहीं रह सकते।
सबसे पहले हिन्दू को मारा गया क्यूंकि ये तो मुस्लिम थे ही नहीं .... फिर वो ख़त्म होने को आये तो इसाई को साथ में मारा गया ... फिर ये दोनों ख़त्म होने को आये तो सिख तो वैसे भी कम थे.. कब ख़त्म कर दिए गए पता ही नहीं चला ...
फिर बचे मुसल्लम... अब क्या करें ? साला किसको मारें ? हमारी तो आदत है खून करने की .. ऐसे तो बैठ नहीं सकते ... तभी पाकिस्तान में घोषणा करवाई गयी की... अहमदिया .. मुस्लिम नहीं है .. नकली मुस्लिम है .... बस रातों रात सारे सुन्नी और शिया मुस्लिम .......अहमदिया मुस्लिम को मारने दौड़ पड़े... सारे अहमदिया मारे जाने लगे और पाकिस्तान छोड़ कर इधर उधर जंगल में दुसरे देशों में भागने लगे ......... ध्यान रहे .. हिन्दू इसाई आदि को मारने समय में ये अहमदिया मुस्लिम ने भी खूब साथ निभाया था .. और अब खुद काटे जा रहे थे .........
खैर धीरे धीरे अहमदिया का मामला अल्लाह ने निपटा दिया .. अब बचे शिया और सुन्नी ...... दोनों बैठे रहे .. बैठे रहे .. बैठे रहे........ दोनों सोच रहे थे .. साला हम तो इंसानों की हत्या ना करें तो कैसा मुस्लिम ? ? इतने दिन हो गए .. किसको मारें क्या करें .........
तभी सुन्नी बोला .. शिया सच्चा मुस्लमान नहीं होते ...
शिया ने भी बोला .. तुम सुन्नी भी सच्चा मुसलमान नहीं होते .......
बस फिर निकल गयी तलवारें .. शिया मारने लगे सुन्नी को और सुन्नी काटने लगे शिया को .......ध्यान रहे पहले शिया और सुन्नी दोनों ने मिल कर दुसरो की हत्या की थी ........और अब खुद ही एक दुसरे को मारने में लगे थे..
शिया ने भी बोला .. तुम सुन्नी भी सच्चा मुसलमान नहीं होते .......
बस फिर निकल गयी तलवारें .. शिया मारने लगे सुन्नी को और सुन्नी काटने लगे शिया को .......ध्यान रहे पहले शिया और सुन्नी दोनों ने मिल कर दुसरो की हत्या की थी ........और अब खुद ही एक दुसरे को मारने में लगे थे..
'इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पीस' ने अपनी 2014 की रपट में कहा है कि एक कड़वी सचाई यह है कि 2013 में 80 फीसदी आतंकवादी मौतें केवल पांच देशों इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया में हुई हैं। ये सभी इस्लामी देश हैं। याने सबसे ज्यादा मुस्लाल्मानो की मौत इस्लामिक देशो में होती है ...
(कोई मुर्ख हिन्दू ये ना समझे की ऐसे में तो ये लोग खुद लड़ कर मर ही जायेंगे तो टेंशन क्या है .. इसलिए मैंने शुरू में ही बता दिया की मुस्लिम एक दुसरे की हत्या करना तब शुरू करते हैं जब हिन्दूओं को, बौद्धों को, ईसाईयों को मिल कर निपटा लेते हैं। )----Ravi Aggrawalmediya
संजय द्विवेदी से प्राप्त
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घाटी में स्कूल ही क्यों फूंके जा रहे हैं, मदरसे क्यों नहीं ..?
पिछले हफ्ते कश्मीर घाटी में एक और स्कूल फूंक दिया गया.
कश्मीर घाटी में चूँकि 4 महीने हिमपात होता है और भीषण ठण्ड पड़ती है इसलिए ज़्यादातर भवन लकड़ी के बने होते है.
लकड़ी भी वो जो अत्यंत ज्वलनशील होती है. ज़रा सी चिंगारी भड़की और पूरा भवन धूँ धूँ कर जल उठता है और देखते ही देखते सब भस्म हो जाता है.
यही स्कूल भवन यदि कंक्रीट का हो तो उसमें आग लगने पर बहुत मामूली नुकसान होता है.
पिछले हफ्ते बारामूला का एक सरकारी स्कूल जला दिया गया. कुख्यात आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद जब से घाटी में हालात बिगड़े हैं, अब तक 19 स्कूल फूंके जा चुके हैं.
जब से घाटी में ये अलगाववाद का आंदोलन शुरू हुआ है, 200 से ज़्यादा सरकारी स्कूल फूंके जा चुके हैं.
कश्मीर घाटी के श्रीनगर में सबसे बड़ा और पुराना मिशनरी स्कूल है Biscoe School. ठीक लाल चौक पर है. इसकी एक शाखा गुलमर्ग में है और एक तंगमर्ग में.
आज से कोई 20 साल पहले जब कि वो तंगमर्ग वाली शाखा बन रही थी, तब मैंने उसे देखा था.
पूरा भवन ही लकड़ी का बना था. इतनी शानदार बिल्डिंग और क्या कलात्मक उसका शिल्प…. वाह…. यूँ लगता था मानो लकड़ी का कोई ताजमहल हो…. घाटी के 2000 बच्चे यहां पढ़ते थे.
फिर एक दिन हमने अखबारों में पढ़ा कि अलगाव वादियों ने वो तंगमर्ग का Biscoe School फूंक दिया. सिर्फ घंटे भर में सारा भवन जल के भस्म हो गया.
अलगाववादी जब किसी स्कूल भवन को आग लगाते हैं, उससे पहले वहाँ तक पहुंचने के सभी रास्ते ब्लॉक कर देते हैं जिससे फायर ब्रिगेड की गाड़ी आग बुझाने आ न सके.
अब सवाल उठता है कि अलगाववादियों की वो कौन सी सोच है जो स्कूलों को निशाना बनाती है?
घाटी में आखिर स्कूल ही क्यों फूंके जा रहे हैं? आज तक एक भी मदरसा क्यों नहीं फूँका गया?
इसका सीधा सा जवाब ये है कि जैसे बैक्टीरिया को पनपने के लिए एक अनुकूल वातावरण चाहिए, अनुकूल तापमान और नमी होगी तभी बैक्टीरिया पनपेगा वरना सुषुप्तावस्था में पड़ा रहेगा.
इसी तरह शान्ति का धर्म है. ये सिर्फ और सिर्फ जहालत में पनप सकता है. जहां शिक्षा होगी वहाँ दीन पनप नहीं सकता. इसलिए शान्ति दूत हमेशा शिक्षा संस्थानों को सबसे पहले निशाना बनाते हैं.
शांति दूतों का पहला लक्ष्य, अपने अनुयायी को भरसक जाहिल बना कर रखो और तालीम से दूर रखो. देनी ही है तो मदरसे में दीनी तालीम दो.
गलती से अगर कोई पढ़ लिख जाए तो उसे भी दीनी तालीम दे के बेअसर कर दो.
जहालत का अन्धेरा कायम रहेगा तभी तक दीन कायम रहेगा.
इसीलिए घाटी में स्कूलों को निशाना बनाया जा रहा है और नए मदरसे खोले जा रहे हैं.
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