"आज अगर विश्व के ऐतिहासिक जनतंत्र व् विकसित माने जाने वाले राष्ट्र को भी अपने नेतृत्व का चयन करने के लिए भारत तथा भारतियों को प्रभावित करने की आवश्यकता पड़ रही है तो क्या इससे यह स्पष्ट नहीं की वर्त्तमान के सन्दर्भ में भारतियों का मत और भारत की भूमिका विश्व पटल पर कितनी महत्वपूर्ण है।
कौन सा राष्ट्र अपने नेतृत्व के लिए किसे चुनता है यह उनका आतंरिक विषय है और हमारे लिए इसमें हस्तछेप करना उचित न होगा, फिर व्यक्तिगत स्तर पर किसी की राय कुछ भी हो सकती है, पर अपने राष्ट्र के नेतृत्व के लिए हम किसे चुनते हैं और क्यों, इस विषय से हम अपने आप को अलग नहीं कर सकते क्योंकि यह हमारा कर्त्तव्य भी है और दायित्व भी।
किसी भी परिस्थिति में राजनीतिक स्वार्थ को शाशन तंत्र के कर्त्तव्य व् दायित्व पर हावी होने नहीं दिया जा सकता पर जब परिस्थिति ऐसी हो जाए की राजनीतिक कारणों से सत्ता भी विवश दिखे और राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रभक्ति की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी 'हाईजैक' हो तो स्वाभाविक है की
परिस्थितियां सामाजिक चिंता का कारन बनेंगी।
परिस्थितियां सामाजिक चिंता का कारन बनेंगी।
अगर अखंड भारत की कल्पना को हम यथार्थ में परिणित करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपनी सोच और समझ की परिधि का विस्तार करना होगा . जब तक अपनी समझ से समस्याओं को समझ कर उनके प्रति प्रतिक्रियाएं करते रहेंगे, हम न ही उनके मूल तक पहुँच सकते हैं, न ही उनका निवारण संभव है।
विरोध किसका और विपक्ष में हम किसे देखते हैं जब तक यह स्पष्ट न हो, प्रतिक्रिया प्रभावी नहीं होंगे उल्टा वह सोच के छिछलेपन को ही सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करेगा; आखिर परिपक्व होना इतना भी कठिन नहीं, बस, प्रतिक्रिया और प्रतिउत्तर के अंतर को समझना होगा।
किसी भी विषय पर संशय ही समस्याओं को जन्म देती हैं और इसलिए सम्बंधित पक्षों के बीच परस्पर संवाद आवश्यक है, ऐसे में, जब समाज और सरकार के बीच किसी भी विषय में समन्वय न हो तो बात सरकार से होनी चाहिए; राजनीती द्वारा समाज की स्वतंत्रता का अपहरण करना अपनी बात रखने का सही तरीका नहीं हो सकता; जब दबाव सरकार पर बनाई जानी चाहिए समाज को प्रताड़ित किया जा रहा, कहीं यह राजनीति द्वारा प्रायोजित षड्यंत्र तो नहीं ताकि विषय को विवाद बनाकर सुर्ख़ियों में लंबे समय तक जीवित रखा जा सके।
हमारे प्रयास की दिशा गलत हो गयी है और इस गलती को सुधारने के लिए सर्वप्रथम इसकी स्वीकृति आवश्यक होगी; जब तक हम अपनी गलती को सही सिद्ध करने के लिए स्पष्टीकरण का प्रयास करते रहेंगे, समस्याओं का जटिल होना स्वाभाविक है।
अगर मूल्य ही धन का महत्व है तो समय तो अनमोल है, महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए ; परिस्थितियों से विवश होना व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है पर परिस्थितियों को बदलने का निर्णय भी व्यक्तिगत स्तर पर ही लिया जा सकता है; हमारी प्राथमिकताओं के लिए महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए, आज हमें यही निर्णय लेना है ; चूँकि हमें भविष्य का बोध नहीं दोनों ही परिस्थितियों में संभावनाएं असीम हैं , जैसा निर्णय, वैसी नियति !”
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