Sunday 1 September 2013

हमारे हिन्दुस्थान के मुस्लिमों का कहना है कि.... वे भी हम हिन्दुओं की तरह ही इस हिन्दुस्थान के नागरिक हैं ... और, वे भी इस देश को उतना ही प्यार करते हैं जितना कि.... हम हिन्दू ...!

परन्तु दूसरे ही पल.... वे बाबर को अपना आदर्श बताने लगते हैं.... और बाबर द्वारा अतिक्रमण कर बनाये गए बाबरी मस्जिद के टूटने पर हल्ला मचाते हैं ... और, उसके टूटने का शोक भी मनाते हैं...!

मुस्लिमों का दोगलापन साबित करने के लिए ... पिग्गिस्तान का उदाहरण देना काफी होगा.... जो एक तरफ तो हमारे हिन्दुस्थान से रिश्ते सुधारने की बात करता है.... तो, दूसरी तरफ अपने मिसाइल का नाम "बाबर" रखा हुआ है...!

लेकिन... क्या सच में आप जानते हैं कि.......... बाबर कौन था...??????

जिस तरह कुत्तों को ...उसकी नस्ल देखकर पहचान की जाती है...... उसी प्रकार , मनुष्यों में उसके खानदान से उसके आचार-विचार और व्यवहार का पता लगता है...!

अतः... अगर नस्ल के आधार पर बाबर की बात की जाए तो..... बाबर एक मंगोल तुर्क लुटेरा था...

और.... अगर खानदान की बात की जाए तो.... यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि..... वो एक खानदानी लुटेरा था...... क्योंकि, बाबर ..... रिश्ते में लंगड़े तैमूरलंग का परपोता और चंगेज खान का नाती था...!

इतना ही नहीं.... बाबर "तैमूर वंश"" का होने पर गर्व था.... और, उसे इस बात का बहुत गर्व था कि.... उसका परदादा लंगड़ा तैमूरलंग एक बहुत बड़ा व्याभिचारी और लुटेरा था...!

बाबर का पूरा नाम .....ज़हिर उद-दिन मुहम्मद था...और उसके बाप का नाम ... उमर शेख मिर्जा तथा ... माँ का नाम कुतलुग निगार खानम था...!

चूँकि... उस समय, जब चागताई लोग असभ्य तथा असंस्कृत थे .... इसीलिए , उन्हे ज़हिर उद-दिन मुहम्मद का उच्चारण कठिन लगा.. तथा , उन्होंने इसका नाम बाबर रख दिया।

बाबर का जन्म ...14 फरवरी 1483 ईस्वी में फ़रगना घाटी के अन्दीझ़ान नामक शहर में हुआ था जो अब उज्बेकिस्तान में है।

बाबर का बाप शेख मिर्जा ... फरगाना घाटी का शासक था.... लेकिन, असामयिक मृत्यु के कारण सन् १४९४ में ११ वर्ष की आयु में ही बाबर फ़रगना घाटी के शासक का पद सौंपा गया.. परन्तु , उसके चाचाओं ने इस स्थिति का फ़ायदा उठाया और बाबर को गद्दी से हटा दिया.. जिस कारण कई सालों तक उसने निर्वासन में जीवन बिताया और लूटमार तथा चोरी चकारी कर....अपना जीवन यापन करने लगा...!

इसी तरह... वो अपने चोरों और लुटेरों के गिरोह को बढाता गया.... और, थोड़े ही समय में वो एक बड़ा लुटेरा बन बैठा .. तथा , फरगाना घाटी पर पुनः अधिकार कर लिया....!

परन्तु.... बाबर को हमेशा से लगता था कि.... दिल्ली सल्तनत पर फिर से तैमूरवंशियों का शासन होना चाहिए... और, एक तैमूरवंशी होने के कारण वो दिल्ली सल्तनत पर कब्ज़ा करना चाहता था।

इसीलिए... उसने सुल्तान इब्राहिम लोदी को अपनी इच्छा से अवगत कराया ... परन्तु , इब्राहिम लोदी के जबाब नहीं आने पर उसने भारत पर....छोटे-छोटे आक्रमण करने आरंभ कर दिए.. और, सबसे पहले उसने कंधार पर कब्ज़ा किया।
इधर शाह इस्माईल को तुर्कों के हाथों भारी हार का सामना करना पड़ा... और, इस युद्ध के बाद शाह इस्माईल तथा बाबर, दोनों ने बारूदी हथियारों की सैन्य महत्ता समझते हुए इसका उपयोग अपनी लुटेरी सेना में आरंभ किया।

इसके बाद उसने इब्राहिम लोदी पर आक्रमण किया.. और, पानीपत में लड़ी गई इस लड़ाई को पानीपत का प्रथम युद्ध के नाम से जानते हैं।

हालाँकि, बाबर की लुटेरी सेना इब्राहिम लोदी की सेना के सामने बहुत छोटी थी... परन्तु सेना में संगठन के अभाव में इब्राहिम लोदी यह युद्ध बाबर से हार गया... जिसके बाद दिल्ली की सत्ता पर बाबर का अधिकार हो गया और उसने सन 1526 में मुगलवंश की नींव डाली।

परन्तु.... उस समय राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूत काफी संगठित तथा शक्तिशाली हो चुके थे... और, राजपूतों ने एक बड़ा-सा क्षेत्र स्वतंत्र कर लिया था तथा वे दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होना चाहते थे.... साथ ही, इब्राहिम लोदी से लड़ते-लड़ते बाबर की सेना को बहुत क्षति पहुँची थी..... जिस कारण , बाबर की सेना राजपूतों की आधी भी नहीं थी....जिस कारण.... राजपूतों से लड़ने के नाम पर ही बाबर के हाथ पैर कांपने लगते थे....!

जैसे -तैसे मार्च 1527 ईस्वी में खानवा की लड़ाई राजपूतों तथा बाबर की सेना के बीच लड़ी गई.. जिसमे , राजपूतों का जीतना निश्चित लग रहा था.. परन्तु, युद्ध के दौरान अं मौके पर तोमरों ने राणा सांगा का साथ छोड़ दिया और बाबर से जा मिले.. जिस कारण एक आसान-सी लग रही जीत उसके हाथों से निकल गई।
इसके एक साल के बाद किसी मंत्री द्वारा ज़हर खिलाने कारण राणा सांगा की मौत हो गई और बाबर का सबसे बड़ा डर उसके माथे से टल गया...... और, बाबर दिल्ली की गद्दी का अविवादित अधिकारी बन गया।

जहाँ तक बाबर के चाल-चलन की बात है तो..... बाबर एक ""गे"" और, उसे औरतों में कोई दिलचस्पी नहीं थी...!

हालाँकि, बाबर की शादी १५०० ईस्वी में ही आयशा से हो गयी थी.... फिर भी बाबर खुद ही लिखता है कि.... मैं उसके पास... 10 -15 या बीस दिनों में जाता था... और, मेरी माँ खानम मुझे बहुत दांत पर बीस पच्चीस दिनों में एक बार उसके पास भेजती थी...!
बल्कि... बाबर को कैम्प बाजार के एक सुन्दर से लड़के ""बाबरी"" से प्यार हो गया था...... और बाबर आगे लिखता है कि.... मैं उसका दीवाना था और उसके पीछे पागल था (बाबर नामा पृष्ठ 125 -126 ) ....

खैर... आगे बढ़ते हैं....

11 जुलाई 1526 ईस्वी को बाबर आगरा पहुंचा.... और वो लिखता है कि.... "" ईद के कुछ दिन पश्चात् एक बहुत बड़ी आलीशान दावत एक ऐसे विशाल कक्ष में हुई जो ....पाषण खम्भों के स्तम्भ पंक्ति से सुसज्जित है..और, जो सुल्तान इब्राहीम के पाषण प्रासाद के मध्य गुम्बद के नीचे है... ( जाहिर सी बात है कि.... वो मुमताज के 104 साल पहले ही .... ताजमहल का जिक्र कर रहा है ) { पृष्ठ 192 & 251 }

बाबर... हिन्दुस्थान में कितना लोकप्रिय था.... ये उसने खुद ही लिख छोड़ा है....

वो कहता है कि....मेरे ख़राब खानदान के कारण यहाँ के लीगों में मेरे प्रति पारंपरिक गुस्सा और विद्वेष है तथा... मुझे या मेरे लोगों को यहाँ के लोग देखना तक पसंद नहीं करते हैं जिस कारण मेरे लोगों और मेरे घोड़ों को खाना तक नहीं मिल पा रहा है.... . क्योंकि, लोगों ने बाबर के डर से पूरा आगरा ही खाली कर दिया था.. ( पृष्ठ 247 )

हालत ऐसी हो गयी थी कि.....बाबर के संगी साथी.... तेज धुप और भूख प्यास से व्याकुल होकर मरने लगे थे.... और, वापस जाने की सोचने लगे थे...

स्थिति के बारे में बाबर के साथ आये ख्वाजा कलां लिखता है....

""अगर मैं ठीक ठाक ढंग से सिंध पार कर सका तो... फिर यदि मैं हिन्द की चाहत करूँ तो मुझ पर लानत है...!""

खैर..... वे लोग वापस नहीं गए ... और, आस-पास के गाँव से खाना और जानवर लूट कर जैसे-तैसे अपना काम चलाते रहे ..

और... अंततः... अत्यधिक शराब पीने और, लौंडेबाजी के कारण ( शायद कोई गुप्त रोग भी हो ) ..... उस बाबर की 1530 ईस्वी में ... 48 साल साल की छोटी सी उम्र में आगरे की उस ताजमहल में ही मौत हो गई.... और, उसे वहीँ आगरे में ही दफना दिया गया... जिसके नौ बर्षों के बाद ... एक दूसरा कटुआ ... शेरशाह सूरी ने बाबर की इच्छानुसार उसे कब्र से निकाल कर.... उसे काबुल में दफनाया ...!

क्या आपको अभी भी लगता है कि.... बाबर जैसे नस्ल का आदमी किसी का आदर्श हो सकता है.... जिसे मुस्लिम अपना आदर्श बताते नहीं थकते हैं.... और, सेकुलर किस्म के मनहूस हिन्दू उनकी हाँ में हाँ मिलाते हैं...!

जागो हिन्दुओं .... और, अपनी अक्ल से काम से लो....

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