Friday 23 February 2018

sanskar-apr--18

अफ्रीका के अमेज़न नदी में दुनिया का सबसे बड़ा सांप एनाकोंडा मिला । उसने 257 मनुष्यों और 2325 जानवरों को मार डाला है । यह 134 फीट लंबा और 2067 किलोग्राम है । अफ्रीका के रॉयल ब्रिटिश कमांडो ने इसे मारने के लिए 37 दिन ले लिया ।
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सदियों पुराने कंसकिले के नीचे बने इस मार्ग को यमुना मिशन द्वारा खोला गया था । यह मार्ग कचरे-मलवे से पूर्णतः अवरुद्ध था । और किसी को यह ज्ञात भी नहीं था कि यहाँ कोई मार्ग हो सकता है । यमुना मिशन ने इसको साफ कराया । अब इसकी सीढ़ियों की लघु मरम्मत कराई जा रही है ।

यमुना मिशन, कंस किला, मथुरा ।
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मनीषा सिंह बाईसाकुमार अवधेश सिंह और 97 अन्य लोगों के साथ है.
नमस्कार अभिवादन:- सर्वप्रथम अनुरोध यह कि इस पोस्ट की रीचेबिल्टी बढ़ाने के लिये कृपया इस पोस्ट पर ज़्यादा से ज़्यादा Love रिएक्शन से लाइक करें तथा अपने मित्रों के साथ शेयर कर दें।
©Copyright मनीषा सिंह बाईसा जगह मेवाड़ / मेड़ता , राजपुताना राजस्थान की कलम से :
"क्या क्षत्रिय मांसाहार करते थे ????"
आज मांसाहारी मांस सेवन को सही और युक्तियुक्त ठहराने के लिए प्रमाणहीन तर्क देते हैं । क्षत्रिय कभी मांसाहारी नहीं थे वास्तविक में परंतु मैकॉले शिक्षा में एवं वामपंथी इतिहास में क्षत्रियों को मांसाहारी ठहराने के लिए तर्क देते हैं महाराजा दशरथ की शिकार का तो इस कुतर्क का खंडन करते हुए आगे क्षत्रिय धर्म से भी अवगत करवाऊंगी ।
प्रथम शङ्का का खंडन
वाल्मीकि रामायण अयोध्याकांड के 64 वें अध्याय में कथा मिलती है। श्रीराम के वनगमन पर दुखी दशरथ अपनी मृत्यु से पहले रानी कौशल्या को यह कथा बताते हैं। इसके अनुसार दशरथ शब्द भेदी बाण चलाते थे यानी शब्द व ध्वनि सुनकर बाण चलाने में समर्थ थे।
एक दिन हिंसक पशु के आक्रमण के भ्रम में उन्होंने श्रवण कुमार जिनके माता-पिता वृद्ध और नेत्रहीन थे, उनपर बाण चला दिया था । तो इससे यह सिद्ध होता है कि महाराजा दशरथ जी ने किसी पशु के हत्या की मंशा से बाण नहीं चलाया था , और इन्ही महाराज दशरथजी के परदादा महाराज दिलीप ने गौ माताके प्राण बचाने के लिये , स्वयं को सिंह का भोजन बना दिया था , वो किसी अन्य जानवर को मारकर भी सिंहका पेट भर सकते थे ।
चंद्रवंशी राजपूत आनव कुल में पुरुवंशी नरेश शिबि उशीनगर देश के महाराजा की त्याग की गाथा सुनकर इंद्र और आग
शिबि की त्याग की भावना तात्कालिक और अस्थायी है या उनके स्वभाव का स्थायी गुण, इसकी परीक्षा करने के लिए इंद्र और अग्नि ने एक योजना बनायी। अग्नि ने एक कबूतरका रूप धारण किया और इन्द्र ने एक बाज का। कबूतर को अपना आहार बनाने के लिए बाज ने उसका शिकार करने के लिए पीछा किया। कबूतर तेजी से उड़ता हुआ राजा शिबि के चरणों में जा पड़ा और बोला- मेरी रक्षा कीजिए। शिबि ने उसे रक्षा का आश्वासन दिया। पीछे-पीछे बाज भी आ पहुंचा। उसने शिबि से कहा, महाराज! मैं इस कबूतर का पीछा करता आ रहा हूं और इसे अपना आहार बना कर अपनी भूख मिटाना चाहता हूं, यह मेरा भक्ष्य है। आप इसकी रक्षा न करें।
शिबि ने बाज से कहा, मैंने इस पक्षी को अभय प्रदान किया है। इसे कोई मारे यह मैं कभी सह नहीं सकता। तुम्हें अपनी भूख मिटाने के लिए मांस चाहिए, सो मैं तुम्हें अपने शरीर से इस कबूतर के वजन के बराबर मांस काटकर देता हूं। उन्होंने एक तराजू मंगवाई और उसके एक पलड़े में कबूतर को रख दिया। दूसरे पलड़े में महाराज शिबि अपने शरीर से मांस काटकर डालने लगे। काफी मांस काट डाला किंतु कबूतर वाला पलड़ा तनिक भी नहीं हिला और अंत में महाराज शिबि स्वयं उस पलड़े पर जा बैठे और बाज से बोले, मेरा पूरा शरीर तुम्हारे सामने है, आओ भोजन करो।
महाराज शिबि की त्याग बुद्धि को स्वीकार करते हुए अग्नि और इंद्र अपने स्वाभाविक रूप में प्रकट हुए और महाराज शिबि को भी उठा कर खड़ा कर दिया। उन्होंने शिबि की त्याग भावना की बड़ी प्रशंसा की, आशीर्वाद दिया और फिर चले गए।
निष्कर्ष तो यही निकलता है क्षत्रिय मांसाहारी नहीं थे क्योंकि उनके मुख में गंगा और कंठ में वेद होते थे और भुजाओं में महादेव विराजते थे सर कटने के बाद भी धर निरंतर युद्ध करता था ऐसे अशीर्वादित देह को किसी निर्दोष पशुओं का वक्षण कर भोजन कर के दुषित नहीं करना चाहते थे । अगर क्षत्रिय मांसाहारी होते तो खुद की बलि देकर हिंसक पशुओं का पेठ नही भरते दूसरे जानवर को बलि चढ़ा देते त्याग, दया और स्नेह विनम्रता किसी भी मांसाहारी व्यक्ति में ना के बराबर मिलेगी । क्षत्रिय अगर शिकार कर के पशुओं की मांस का भोजन करता था तो उन्हें गौ-ब्राह्मण प्रति पालक क्यों कहा गया ??? क्यों महाराजा दिलीप और शिबि ने अपनी मांस की जगह किसी अन्य पशु का शिकार करके मांस नहीं खिलाया ?

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