~~~~ चर्च हैवानो की मंडी है ~~~~
अमरीका के पादरी "एड्स' से अधिक प्रभावित चर्च द्वारा मामले को छुपाने की कोशिश आदर्श और नैतिकता की शिक्षा देने वाले पादरियों के स्वयं का आचरण कितना निम्न है इसका पर्दाफाश अमरीका के प्रसिद्ध समाचार पत्र "द केनसास सिटी स्टार' ने किया है।
पत्र ने पादरियों को एक प्रश्नावली भेज कर उनके व्यवहार का सर्वेक्षण किया जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। उस सर्वेक्षण के अनुसार अमरीका में आम लोगों की अपेक्षा चार गुना पादरी "एड्स' से प्रभावित हैं। "एड्स' के कारण सैकड़ों रोमन कैथोलिक पादरियों की मृत्यु भी हो चुकी है। मृत्यु प्रमाणपत्रों के परीक्षण और विशेषज्ञों के साक्षात्कारों से पता चलता है कि 1980 के दशक के मध्य से अब तक सैकड़ों पादरी "एड्स' से प्रभावित हैं। इस सम्बंध में जब अमरीका और वेटिकन के चर्च अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया।
केनसास सिटी-सेंट जोसेफ डायोसिस के बिशप रेमण्ड बोलैण्ड ने कहा कि "एड्स के कारण हुई मौतों से पता चलता है कि बिशप भी "मानव' थे। उनके प्रति जितना अधिक दु:ख व्यक्त करेंगे उतनी अधिक यह बात प्रदर्शित होगी कि मानव व्यवहार की कुछ कमजोरियां भी हैं। समाचार पत्र "द स्टार' ने गत वर्ष अमरीका के 46 हजार पादरियों में से तीन हजार पादरियों को एक गोपनीय प्रश्नावली भेजकर "एड्स' और अन्य सम्बंधित विषयों पर उनके उत्तर प्राप्त किए थे। लेकिन तीन हजार में से केवल 27 प्रतिशत (801) पादरियों ने ही उत्तर भेजे। प्राप्त उत्तरों के विश्लेषण से पता चला कि दस में छह पादरी किसी एक ऐसे पादरी को जानते थे जिसकी मृत्यु "एड्स' के कारण हुई, और एक तिहाई पादरी कम से कम ऐसे एक पादरी को जानते हैं जो "एड्स' का मरीज है और तीन चौथाई का कहना था कि चर्च द्वारा पादरियों को यौन शिक्षा दी जानी चाहिए। "द केनसास सिटी स्टार' के अनुसार "एड्स' के कारण मरने वाले या "एच.आई.वी.' से प्रभावित पादरियों की वास्तविक संख्या ज्ञात नहीं है क्योंकि अनेक पादरी एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
जब पादरियों के वरिष्ठ अधिकारियों से इस संदर्भ में बात की गई तो मामले को गुपचुप तरीके से दबाने की कोशिश की गई। इस सम्बंध में पत्र ने बिशप इमर्शन मूर का उल्लेख किया है। बताया गया है कि 1995 में बिशप मूर न्यूयार्क के आर्च डायोसिस को छोड़कर नेसोटा चले गए। जहां "एड्स' रोगियों के एक आश्रम में उनकी मृत्यु हुई थी। उनके मृत्यु प्रमाणपत्र में मृत्यु का कारण "प्राकृतिक' लिखा था और उनका व्यवसाय उत्पादन उद्योग का एक मजदूर बताया गया। जब एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इसकी शिकायत की तो अधिकारियों ने मृत्यु का कारण बदलकर "एड्स' लिख दिया लेकिन व्यवसाय नहीं बदला। "
ह्रूमन विरोलाजी' संस्थान के चिकित्सक फारले क्लेगार्न ने बताया कि उन्होंने लगभग बीस पादरियों और पांथिक नेताओं की चिकित्सा की है जो "एड्स' से प्रभावित हैं। डा. क्लेगार्न का कहना है कि चर्च को यह स्वीकार करना चाहिए कि पादरी यौन व्यवहारों में लिप्त हैं और वे एड्स सहित अनेक यौन संक्रमित रोगों के संभाश्ववित रोगी हो सकते हैं।
("टाइम्स आफ इंडिया' के 3 फरवरी, 2000 के अंक में प्रकाशित समाचार से अनुदित)
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एक बार स्वामी विवेकानंद विदेश गए जहाँ उनके स्वागत के लिए कई लोग आये हुए थे उन लोगों ने स्वामी विवेकानंद की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढाया और इंग्लिश में HELLO कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते कहा. उन लोगो को लगा की शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है तो उन लोगो में से एक ने हिंदी में पूछा "आप कैसे हैं"? तब स्वामी जी ने कहा "आई एम् फ़ाईन थैंक यू"
उन लोगो को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उन्होंने स्वामी जी से पूछा की जब हमने आपसे इंग्लिश में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिंदी में पूछा तो आपने इंग्लिश में कहा इसका क्या कारण है ? तब स्वामी जी ने कहा जब आप अपनी माँ का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी माँ का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी माँ का सम्मान किया तब मैंने आपकी माँ का सम्मान किया ।
यदि किसी भी भाई बहन को इंग्लिश बोलना या लिखना नहीं आता है तो उन्हें किसी के भी सामने शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है बल्कि शर्मिंदा तो उन्हें होना चाहिए जिन्हें हिंदी नहीं आती है क्योंकि हिंदी ही हमारी राष्ट्र भाषा है हमें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए की हमें हिंदी आती है.
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अमरीका के पादरी "एड्स' से अधिक प्रभावित चर्च द्वारा मामले को छुपाने की कोशिश आदर्श और नैतिकता की शिक्षा देने वाले पादरियों के स्वयं का आचरण कितना निम्न है इसका पर्दाफाश अमरीका के प्रसिद्ध समाचार पत्र "द केनसास सिटी स्टार' ने किया है।
पत्र ने पादरियों को एक प्रश्नावली भेज कर उनके व्यवहार का सर्वेक्षण किया जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। उस सर्वेक्षण के अनुसार अमरीका में आम लोगों की अपेक्षा चार गुना पादरी "एड्स' से प्रभावित हैं। "एड्स' के कारण सैकड़ों रोमन कैथोलिक पादरियों की मृत्यु भी हो चुकी है। मृत्यु प्रमाणपत्रों के परीक्षण और विशेषज्ञों के साक्षात्कारों से पता चलता है कि 1980 के दशक के मध्य से अब तक सैकड़ों पादरी "एड्स' से प्रभावित हैं। इस सम्बंध में जब अमरीका और वेटिकन के चर्च अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया।
केनसास सिटी-सेंट जोसेफ डायोसिस के बिशप रेमण्ड बोलैण्ड ने कहा कि "एड्स के कारण हुई मौतों से पता चलता है कि बिशप भी "मानव' थे। उनके प्रति जितना अधिक दु:ख व्यक्त करेंगे उतनी अधिक यह बात प्रदर्शित होगी कि मानव व्यवहार की कुछ कमजोरियां भी हैं। समाचार पत्र "द स्टार' ने गत वर्ष अमरीका के 46 हजार पादरियों में से तीन हजार पादरियों को एक गोपनीय प्रश्नावली भेजकर "एड्स' और अन्य सम्बंधित विषयों पर उनके उत्तर प्राप्त किए थे। लेकिन तीन हजार में से केवल 27 प्रतिशत (801) पादरियों ने ही उत्तर भेजे। प्राप्त उत्तरों के विश्लेषण से पता चला कि दस में छह पादरी किसी एक ऐसे पादरी को जानते थे जिसकी मृत्यु "एड्स' के कारण हुई, और एक तिहाई पादरी कम से कम ऐसे एक पादरी को जानते हैं जो "एड्स' का मरीज है और तीन चौथाई का कहना था कि चर्च द्वारा पादरियों को यौन शिक्षा दी जानी चाहिए। "द केनसास सिटी स्टार' के अनुसार "एड्स' के कारण मरने वाले या "एच.आई.वी.' से प्रभावित पादरियों की वास्तविक संख्या ज्ञात नहीं है क्योंकि अनेक पादरी एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
जब पादरियों के वरिष्ठ अधिकारियों से इस संदर्भ में बात की गई तो मामले को गुपचुप तरीके से दबाने की कोशिश की गई। इस सम्बंध में पत्र ने बिशप इमर्शन मूर का उल्लेख किया है। बताया गया है कि 1995 में बिशप मूर न्यूयार्क के आर्च डायोसिस को छोड़कर नेसोटा चले गए। जहां "एड्स' रोगियों के एक आश्रम में उनकी मृत्यु हुई थी। उनके मृत्यु प्रमाणपत्र में मृत्यु का कारण "प्राकृतिक' लिखा था और उनका व्यवसाय उत्पादन उद्योग का एक मजदूर बताया गया। जब एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इसकी शिकायत की तो अधिकारियों ने मृत्यु का कारण बदलकर "एड्स' लिख दिया लेकिन व्यवसाय नहीं बदला। "
ह्रूमन विरोलाजी' संस्थान के चिकित्सक फारले क्लेगार्न ने बताया कि उन्होंने लगभग बीस पादरियों और पांथिक नेताओं की चिकित्सा की है जो "एड्स' से प्रभावित हैं। डा. क्लेगार्न का कहना है कि चर्च को यह स्वीकार करना चाहिए कि पादरी यौन व्यवहारों में लिप्त हैं और वे एड्स सहित अनेक यौन संक्रमित रोगों के संभाश्ववित रोगी हो सकते हैं।
("टाइम्स आफ इंडिया' के 3 फरवरी, 2000 के अंक में प्रकाशित समाचार से अनुदित)
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एक बार स्वामी विवेकानंद विदेश गए जहाँ उनके स्वागत के लिए कई लोग आये हुए थे उन लोगों ने स्वामी विवेकानंद की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढाया और इंग्लिश में HELLO कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते कहा. उन लोगो को लगा की शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है तो उन लोगो में से एक ने हिंदी में पूछा "आप कैसे हैं"? तब स्वामी जी ने कहा "आई एम् फ़ाईन थैंक यू"
उन लोगो को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उन्होंने स्वामी जी से पूछा की जब हमने आपसे इंग्लिश में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिंदी में पूछा तो आपने इंग्लिश में कहा इसका क्या कारण है ? तब स्वामी जी ने कहा जब आप अपनी माँ का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी माँ का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी माँ का सम्मान किया तब मैंने आपकी माँ का सम्मान किया ।
यदि किसी भी भाई बहन को इंग्लिश बोलना या लिखना नहीं आता है तो उन्हें किसी के भी सामने शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है बल्कि शर्मिंदा तो उन्हें होना चाहिए जिन्हें हिंदी नहीं आती है क्योंकि हिंदी ही हमारी राष्ट्र भाषा है हमें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए की हमें हिंदी आती है.
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