शिवलिंग क्या है ?
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।
स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है . सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ,अग्नि स्तंभ, उर्जा स्तंभ, ब्रह्माण्डीय स्तंभ (cosmic pillar/lingam)
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ |
हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है|इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है ।
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है|
अब जरा आइंसटाईन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत
ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है |e / c = m c {e=mc^2}
इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है ।
हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था ।
हमारे ऋषियों ने जो हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है । वे हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें बता रहे हैं जो उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है. यह सार्वभौमिक ज्ञान लगभग १३.७ खरब वर्ष पुराना हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में उपलब्ध होता है .यह किसी अन्य भाषा में पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता ... कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही ।
एक छोटा सा उदहारण :
आज गूगल ट्रांसलेटरhttp://translate.google.com/ में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है किन्तु संस्कृत का नही ।
क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है ।आप कहेंगे की संस्कृत इतनी इम्पोर्टेन्ट नही इसलिए नही होगी, यदि इम्पोर्टेन्ट नही तो नासा संस्कृत क्यों अपनाना चाहती है ? अपने नवयुवकों को संस्कृत सिखने पर जोर क्यू दे रही है ?
http://hindi.ibtl.in/news/ international/1978/article.ibtlऔर अधिक जानकारी हेतु आप Google Search कर सकते हैं 'NASA MISSION SAMSKRIT'
जब कालांतर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई तब पाश्चात्य वैज्ञानिको ने वेदों /
उपनिषदों तथा पुराणो आदि को समझने में मुर्खता की क्योकि उनकी बुद्धिमत्ता वेदों में निहित प्रकाश से साक्षात्कार करने योग्य नही थी ।ऐसा उदहारण हम हमारे दैनिक जीवन में भी देखते है जैसेपरीक्षा के दिनों में अध्ययन करते समय जब कोई टॉपिक हमें समझ न आये तो हम कह दिया करते है की ये टॉपिक तो बेकार है !!जब की असल में वह टॉपिक बेकार नही अपितु उस टॉपिक में निहित ज्ञान का प्रकाश हमारी बुद्धिमत्ता से अधिक है ।
इसे इस तरह भी समझ सकते है की 12 वोल्ट धारण कर सकने वाले विधुत बल्ब में अगर घरों में आने वाले वोल्ट (240)
प्रवाहित कर दिया जाये तो उस बल्बकी क्या दुर्गति होगी ? उसका फिलामेंट तत्क्षण अविलम्ब उड़ जायेगा । यही उन बेचारे वैज्ञानिकों के साथ हुआ । मैक्स मुलर जैसो ने तो वेदों को काल्पनिक कहा ।
हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व नीचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि ।
स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ ।जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके ।पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।
उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/
सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है
1. हमारी आकाश गंगा ।
2. हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) ।
3. ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ)।
4.ब्लैक होल की रचना ।
5. संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह । ये अभी तक रहस्य बने हए है, हजारों की संख्या में है, जिनमे से
अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है ।
6. समुद्री तूफान ।
7. मानव डीएनए।
8. मानव कुण्डलिनी (सर्पिलाकार /गोलाकार/ कुंडल के समान ) शक्ति का प्रतिरूप ।
9.जल धारा
10.जीवाश्म
11परमाणु की संरचना
12.शंख की संरचना ।
13.समुद्री जिव की गति
14.मकड़ी का जाला
15.वायु तूफान
16. प्रकृति
17.घोंघा
18.बम विस्फोट से निकली उर्जा की प्रतिरूप ।
19 ब्रह्माण्ड में होने वाले देनिक स्व विष्फोट ।
20.सरोवर में गिरी जल की बूंद का प्रतिरूप ।
21.लट
22. पुष्प
23. डीएनए की
न्युक्लियोटाइड संरचना
24.शिवलिंग
शिवलिंग विज्ञान है जिसे सनातन धर्म करोड़ साल पहले धरती को दे चुका है आज के विज्ञान का कोस्मिक पिलर कल का शिवलिंग ही है ।
हर हर महादेव ...
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शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।
स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है . सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ,अग्नि स्तंभ, उर्जा स्तंभ, ब्रह्माण्डीय स्तंभ (cosmic pillar/lingam)
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ |
हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है|इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है ।
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है|
अब जरा आइंसटाईन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत
ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है |e / c = m c {e=mc^2}
इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है ।
हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था ।
हमारे ऋषियों ने जो हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है । वे हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें बता रहे हैं जो उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है. यह सार्वभौमिक ज्ञान लगभग १३.७ खरब वर्ष पुराना हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में उपलब्ध होता है .यह किसी अन्य भाषा में पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता ... कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही ।
एक छोटा सा उदहारण :
आज गूगल ट्रांसलेटरhttp://translate.google.com/ में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है किन्तु संस्कृत का नही ।
क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है ।आप कहेंगे की संस्कृत इतनी इम्पोर्टेन्ट नही इसलिए नही होगी, यदि इम्पोर्टेन्ट नही तो नासा संस्कृत क्यों अपनाना चाहती है ? अपने नवयुवकों को संस्कृत सिखने पर जोर क्यू दे रही है ?
http://hindi.ibtl.in/news/
जब कालांतर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई तब पाश्चात्य वैज्ञानिको ने वेदों /
उपनिषदों तथा पुराणो आदि को समझने में मुर्खता की क्योकि उनकी बुद्धिमत्ता वेदों में निहित प्रकाश से साक्षात्कार करने योग्य नही थी ।ऐसा उदहारण हम हमारे दैनिक जीवन में भी देखते है जैसेपरीक्षा के दिनों में अध्ययन करते समय जब कोई टॉपिक हमें समझ न आये तो हम कह दिया करते है की ये टॉपिक तो बेकार है !!जब की असल में वह टॉपिक बेकार नही अपितु उस टॉपिक में निहित ज्ञान का प्रकाश हमारी बुद्धिमत्ता से अधिक है ।
इसे इस तरह भी समझ सकते है की 12 वोल्ट धारण कर सकने वाले विधुत बल्ब में अगर घरों में आने वाले वोल्ट (240)
प्रवाहित कर दिया जाये तो उस बल्बकी क्या दुर्गति होगी ? उसका फिलामेंट तत्क्षण अविलम्ब उड़ जायेगा । यही उन बेचारे वैज्ञानिकों के साथ हुआ । मैक्स मुलर जैसो ने तो वेदों को काल्पनिक कहा ।
हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व नीचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि ।
स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ ।जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके ।पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।
उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/
सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है
1. हमारी आकाश गंगा ।
2. हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) ।
3. ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ)।
4.ब्लैक होल की रचना ।
5. संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह । ये अभी तक रहस्य बने हए है, हजारों की संख्या में है, जिनमे से
अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है ।
6. समुद्री तूफान ।
7. मानव डीएनए।
8. मानव कुण्डलिनी (सर्पिलाकार /गोलाकार/ कुंडल के समान ) शक्ति का प्रतिरूप ।
9.जल धारा
10.जीवाश्म
11परमाणु की संरचना
12.शंख की संरचना ।
13.समुद्री जिव की गति
14.मकड़ी का जाला
15.वायु तूफान
16. प्रकृति
17.घोंघा
18.बम विस्फोट से निकली उर्जा की प्रतिरूप ।
19 ब्रह्माण्ड में होने वाले देनिक स्व विष्फोट ।
20.सरोवर में गिरी जल की बूंद का प्रतिरूप ।
21.लट
22. पुष्प
23. डीएनए की
न्युक्लियोटाइड संरचना
24.शिवलिंग
शिवलिंग विज्ञान है जिसे सनातन धर्म करोड़ साल पहले धरती को दे चुका है आज के विज्ञान का कोस्मिक पिलर कल का शिवलिंग ही है ।
हर हर महादेव ...
..........................................................................................
संस्कृत के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य —–
1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा। संदर्भ: – फोर्ब्स पत्रिका 1987.
2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है) संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी.
3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति… स्वस्थ और बीपी, मधुमैह , कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद).
4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी (Technology) रखती है।संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी.
नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं. असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं.
दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।
5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है। संदर्भ: – यूएनओ
6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।
7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985.
8. संस्कृत भाषा वर्तमान में “उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी” तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज “सरल किर्लियन फोटोग्राफी” भी नहीं है )
9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरत नाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है ).
10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है.
1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा। संदर्भ: – फोर्ब्स पत्रिका 1987.
2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है) संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी.
3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति… स्वस्थ और बीपी, मधुमैह , कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद).
4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी (Technology) रखती है।संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी.
नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं. असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं.
दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।
5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है। संदर्भ: – यूएनओ
6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।
7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985.
8. संस्कृत भाषा वर्तमान में “उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी” तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज “सरल किर्लियन फोटोग्राफी” भी नहीं है )
9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरत नाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है ).
10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है.
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