दशरथ मांझी, एक आदमी जिसने एक पर्वत को हटा दिया !!!
"जब मैं पहाड़ पर हतोड़ा चलाना शुरू कर दिया, लोगों ने कहा यह पागल है, लेकिन उससे मेरा संकल्प और दृड़ हो गया" - दशरथ मांझी ।
लगभग पांच दशक पहले गया के गहलोर घाटी (बिहार का एक जिला) की एक भूमिहीन किसान दशरथ मांझी ने अपने ग्रामीणों की कठिनाइयों को समाप्त करने के लिए 300 फुट ऊंची एक पहाड़ को काट के एक किलोमीटर मार्ग बनाने जैसा एक असंभव कार्य करने का संकल्प किया।
उनके गांव चट्टानी पहाड़ों की गोद में बसता है जिसके लिए ग्रामीणों को अक्सर अत्री और वजीरगंज के बीच छोटी दूरी को पार करने के लिए विशाल मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। उन्होंने पहाड़ पर हतोड़ा चलाना शुरू किया 1959 में अपने पत्नी की स्मृति में जिन्हें तत्काल उपचार के लिए समय पर निकटतम स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में नहीं लिया जा सका क्योंकि सहर से जोड़ने वाला सबसे निकटतम रस्ता 50 Km लम्बा है जो पहाड़ को घूम के जाती है।
वह जानता था कि उसकी आवाज सरकार के कान में कोई प्रतिक्रिया नहीं पैदा करेगा, इसलिए, दशरथ अकेले इस अत्यंत कठिन कार्य को पूरा करने के लिए चुना। उन्होंने अपनी बकरियों को बेचके छेनी, रस्सी, और एक हथौड़ा खरीदा। लोग उनको पागल और सनकी उत्साही कहने लगे और इनकी विचार का कोई योजना नही है ऐसा बोलने लगे। अपने आलोचकों के हतोत्साहित टिप्पणी से बेफिक्र होके दशरथ ने लगातार 22 साल तक हतोड़ा चलाता रहा जिससे अत्री और वजीरगंज के बीच की दूरी 50 किलोमीटर से घटके 10 किलोमीटर हो गयी। एक दिन आया जब अपना सपना 'पहाड़ी के दूसरी ओर' जाने के लिए वे एक सपाट मार्ग के माध्यम से कदम बडाये जो एक किलोमीटर लंबी और 16 फुट चौड़ी थी।
यह असंभव उपलब्धि के बाद, दशरथ मांझी 'माउंटेन मैन' (पहाड़ मानव) के रूप में लोकप्रिय हो गया। 18 अगस्त, 2007 को वह नई दिल्ली में कैंसर से लड़ने के बाद ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के अपने अंतिम सांस ली।
"जब मैं पहाड़ पर हतोड़ा चलाना शुरू कर दिया, लोगों ने कहा यह पागल है, लेकिन उससे मेरा संकल्प और दृड़ हो गया" - दशरथ मांझी ।
लगभग पांच दशक पहले गया के गहलोर घाटी (बिहार का एक जिला) की एक भूमिहीन किसान दशरथ मांझी ने अपने ग्रामीणों की कठिनाइयों को समाप्त करने के लिए 300 फुट ऊंची एक पहाड़ को काट के एक किलोमीटर मार्ग बनाने जैसा एक असंभव कार्य करने का संकल्प किया।
उनके गांव चट्टानी पहाड़ों की गोद में बसता है जिसके लिए ग्रामीणों को अक्सर अत्री और वजीरगंज के बीच छोटी दूरी को पार करने के लिए विशाल मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। उन्होंने पहाड़ पर हतोड़ा चलाना शुरू किया 1959 में अपने पत्नी की स्मृति में जिन्हें तत्काल उपचार के लिए समय पर निकटतम स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में नहीं लिया जा सका क्योंकि सहर से जोड़ने वाला सबसे निकटतम रस्ता 50 Km लम्बा है जो पहाड़ को घूम के जाती है।
वह जानता था कि उसकी आवाज सरकार के कान में कोई प्रतिक्रिया नहीं पैदा करेगा, इसलिए, दशरथ अकेले इस अत्यंत कठिन कार्य को पूरा करने के लिए चुना। उन्होंने अपनी बकरियों को बेचके छेनी, रस्सी, और एक हथौड़ा खरीदा। लोग उनको पागल और सनकी उत्साही कहने लगे और इनकी विचार का कोई योजना नही है ऐसा बोलने लगे। अपने आलोचकों के हतोत्साहित टिप्पणी से बेफिक्र होके दशरथ ने लगातार 22 साल तक हतोड़ा चलाता रहा जिससे अत्री और वजीरगंज के बीच की दूरी 50 किलोमीटर से घटके 10 किलोमीटर हो गयी। एक दिन आया जब अपना सपना 'पहाड़ी के दूसरी ओर' जाने के लिए वे एक सपाट मार्ग के माध्यम से कदम बडाये जो एक किलोमीटर लंबी और 16 फुट चौड़ी थी।
यह असंभव उपलब्धि के बाद, दशरथ मांझी 'माउंटेन मैन' (पहाड़ मानव) के रूप में लोकप्रिय हो गया। 18 अगस्त, 2007 को वह नई दिल्ली में कैंसर से लड़ने के बाद ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के अपने अंतिम सांस ली।
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