Wednesday 6 November 2013

हम बड़ो के पैर क्यों छूते हैं ?

हम बड़ो के पैर क्यों छूते हैं ?
हिन्दू संस्कृति जीवन का आंतरिक सौन्दर्य है। अपने बड़ों का सम्मान करना हमारी सांस्कृतिक परंपरा है। आशीर्वाद एक अच्छा अहसास है जिससे जीवन रूपांतरित होता है I माता-पिता के आशीर्वाद से श्रवण कुमार की कीर्ति अमर हो गई। श्रीराम रोजाना सुबह उठकर सबसे पहले मां-पिता और गुरु के चरणों में सिर-झुकाकर आशीर्वाद प्राप्त करते थे। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य का अधिकारी भी माता-पिता के आशीर्वाद ने ही बनाया
भारत में बड़े बुजुर्गों के पांव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है। अच्छे भावः से किए हुए सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक उर्जा होती है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वेस्ट इंडीज के त्रिनिदाद एंड टोबेगो स्थित हनुमान जी की विशाल मूर्ती....
यह 85 फीट ऊँची मूर्ती भारत के बाहर हनुमान जी की सबसे ऊँची मूर्ती है...
....................................................................
मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में जो चक्र स्थित होते हैं उनकी संख्या कहीं छ: तो कहीं सात बताई गई है। इन चक्रों के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण एवं गोपनीय जानकारी यहां दी गई है। यह जानकारी शास्त्रीय, प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक है-

(1) मूलाधार चक्र - गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। वहाँ वीरता और आनन्द भाव का निवास है ।

(2) स्वाधिष्ठान चक्र - इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुरियाँ हैं । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है ।

(3) मणिपूर चक्र - नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं ।

(4) अनाहत चक्र - हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है । यह सोता रहे तो लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा । जागरण होने पर यह सब दुर्गुण हट जायेंगे ।

(5) विशुद्धख्य चक्र - कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है

(6) आज्ञाचक्र - भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ '?' उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है । इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं ।

(7) सहस्रार चक्र - सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है । शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है । वहाँ से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है ।

कुण्डलिनी जागरण: विधि और विज्ञान
कुंडलिनी जागरण का अर्थ है मनुष्य को प्राप्त महानशक्ति को जाग्रत करना। यह शक्ति सभी मनुष्यों में सुप्त पड़ी रहती है। कुण्डली शक्ति उस ऊर्जा का नाम है जो हर मनुष्य में जन्मजात पायी जाती है। यह शक्ति बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य को प्राप्त है। इसे जगाने के लिए प्रयास या साधना करनी पड़ती है। जिस प्रकार एक नन्हें से बीज में वृक्ष बनने की शक्ति या क्षमता होती है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य में महान बनने की, सर्वसमर्थ बनने की एवं शक्तिशाली बनने की क्षमता होती है। कुंडली जागरण के लिए साधक को शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्तर पर साधना या प्रयास पुरुषार्थ करना पड़ता है। जप, तप, व्रत-उपवास, पूजा-पाठ, योग आदि के माध्यम से साधक अपनी शारीरिक एवं मानसिक, अशुद्धियों, कमियों और बुराइयों को दूर कर सोई पड़ी शक्तियों को जगाता है। अत: हम कह सकते हैं कि विभिन्न उपायों से अपनी अज्ञात, गुप्त एवं सोई पड़ी शक्तियों का जागरण ही कुंडली जागरण है। योग और अध्यात्म की भाषा में इस कुंडलीनी शक्ति का निवास रीढ़ की हड्डी के समानांतर स्थित छ: चक्रों में माना गया है। कुण्डलिनी की शक्ति के मूल तक पहुंचने के मार्ग में छ: फाटक है अथवा कह सकते हैं कि छ: ताले लगे हुए है। यह फाटक या ताले खोलकर ही कोई जीव उन शक्ति केंद्रों तक पहुंच सकता है। इन छ: अवरोधों को आध्यात्मिक भाषा में षट्-चक्र कहते हैं। ये चक्र क्रमश: इस प्रकार है: मूलधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धाख्य चक्र, आज्ञाचक्र। साधक क्रमश: एक-एक चक्र को जाग्रत करते हुए। अंतिम आज्ञाचक्र तक पहुंचता है। मूलाधार चक्र से प्रारंभ होकर आज्ञाचक्र तक की सफलतम यात्रा ही कुण्डलिनी जागरण कहलाता है।
 —
........................................
सिर पर चोटी क्यो रखी जाती है?? इसका वैज्ञानिक महत्व जानिए ::

एक सुप्रीप साइंस जो इंसान के लिये सुविधाएं जुटाने का ही नहीं, बल्कि उसे शक्तिमान बनाने का कार्य करता है। ऐसा परम विज्ञान जो व्यक्ति को प्रकृति के ऊपर नियंत्रण करना सिखाता है। ऐसा विज्ञान जो प्रकृति को अपने अधीन बनाकर मनचाहा प्रयोग ले सकता है। इस अद्भुत विज्ञान की प्रयोगशाला भी बड़ी विलक्षण होती है। एक से बढ़कर एक आधुनिकतम मशीनों से सम्पंन प्रयोगशालाएं दुनिया में बहुतेरी हैं, किन्तु ऐसी सायद ही कोई हो जिसमें कोई यंत्र ही नहीं यहां तक कि खुद प्रयोगशाला भी आंखों से नजर नहीं आती। इसके अदृश्य होने का कारण है- इसका निराकार स्वरूप। असल में यह प्रयोगशाला इंसान के मन-मस्तिष्क में अंदर होती है।

सुप्रीम सांइस- विश्व की प्राचीनतम संस्कृति जो कि वैदिक संस्कृति के नाम से विश्य विख्यात है। अध्यात्म के परम विज्ञान पर टिकी यह विश्व की दुर्लभ संस्कृति है। इसी की एक महत्वपूर्ण मान्यता के तहत परम्परा है कि प्रत्येक स्त्री तथा पुरुष को अपने सिर पर चोंटी यानि कि बालों का समूह अनिवार्य रूप से रखना चाहिये।

सिर पर चोंटी रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को हिन्दुत्व की पहचान तक माना लिया गया। योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।

चमत्कारी रिसीवर- असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोंटी रखने की परंपरा है, वहा पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्रा नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्रा नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को केच यानि कि ग्रहण भी करती है

क्यों रखी जाती है सिर पर शिखा??

सिर पर शिखा ब्राह्मणों की पहचान मानी जाती है। लेकिन यह केवल कोई पहचान मात्र नहीं है। जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।

आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।

शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।

..................................................................



No comments:

Post a Comment