Saturday, 16 November 2013

महाभारतकालीन भारतवर्ष के नगरों के प्राचीन नाम :-

महाभारतकालीन भारतवर्ष के नगरों के प्राचीन नाम :- 

यह आर्यवर्त राष्ट्र उत्तर में हिमालय से दक्षिण श्रिलंका तक फैला था , यहाँ बर्मा से लेकर अफगानिस्तान तक जिसमें आधा भाग ईरान का भी समाविष्ट था । 

जो भीम के हिस्से आया :-

पांचाल (रुहेलखण्ड्, उत्तर प्रदेश के हरितप्रदेश का भाग),गंडक,विदेह (नेपाल का भाग),दशार्ण (छत्तीसगड़),पुलिंद (हरिद्वार के आसपास का स्थान),चेदि (बुंदेलखण्ड),कोशल (अयोध्या),उत्तर कोशल,मल्ल (मलावा),भल्लाट,क्रथ,मत्स्य(जयपुर),मलद (शाहाबाद),बरार,शुक्तिमान् ,वत्सभूमि (कुसुम्भी),निषाद (मारवाड़),दक्षीण मल्ल,मगध (मध्यप्रदेश का कुछ भाग),पुण्ड्र (बंगाल),कौशीकि-कच्छ (पूर्णिया),बंग,ताम्रलिप्त,सुह्म (राढ़ा,बंगाल अौर कलिंग के बीच का स्थान),लौहित्य(ब्रह्मपुत्र) आदि ।

जो अर्जुन के हिस्से आया :-

कुलिन्द (गढ़वाल अौर सहारनपुर), आनर्त (गुजरात जो कि- खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान वाला),कालकूट, शाकल (सियालकोट), प्रागज्योतिष (असम), उलूक, देवप्रस्थ, काशमीर, दार्व, कोकनद, अभिसारी (राजौरी), उरगा (हजारा), सिंहपुर (पिण्डदादनखाँ के पास, पाकिस्तान), बाह्लीक, दरद(दर्दिस्तान जो काशमीर के उत्तर में है), काम्बोज (अफगानिस्तान), किम्पुरुष (नैपाल), हाटक (मानसरोवर के आसपास का प्रांत), उत्तर हरिवर्ष (तिब्बत) आदि ।

जो सहदेव के हिस्से आया :-

पटच्चर (इलाहाबाद अौर बाँदा),कुन्तिभोज (मालवा), चर्मण्वती (चम्बल), सेक (अजमेर के किनारे दक्षिण पूर्व में),झझपुर,अवन्ती(उज्जैन),भोजकट (भीमा नदी के पास), वेण्वाट (उज्जैन के दक्षिण में),खान्तार,नाटकेय (खानदेश),पाण्ड्य (तिन्नावली अौर मदुराई तमिलनाडु), किष्किन्धा, माहिष्मति (महेश्वरम् तमिलनाडु), त्रैपुर (जबलपुर),सुराष्ट्र (काठियावाड़),चेर,दण्डक (महाराष्ट्र),सुरभिपट्टन (मैसूर),सञ्जयन्ति (थाना), कर्णाटक (कराड़ा), द्रविड़ (श्रीलंका के पास का तमिलनाडु जहाँ रामेश्वरम आदि स्थान हैं),केरल(मालाबार),तारवन(चेल, तमिलनाडु), आन्ध्र (तेलंगाना वाला तटवर्तीय भाग),कलिंग (ओड़ीसा),उष्ट्रकर्णिक् (आन्ध्र अौर ओड़ीसा के बीच),सिंहलद्वीप (श्रीलंका) आदि ।

जो नकुल के हिस्से आया :-
रोहतीक (रोहतक),शैरीषक (सिरसा),महेत्थ,शिवि,अम्बष्ठ (अम्बाला), त्रिगर्त (जलन्धर, पञ्जाब),मालव (मालवा),मध्यमकेय, वाटधान(भटनेर), पुष्करारण्य (अजमेर), सिन्धु (सिन्ध, पाकिस्तान), पञ्चनद (पञ्जाब,सिन्धु नदी के आसपास वाला),उत्तरज्योतिष,दिव्यकट,रामठ,हारहूण (चजद्वीप), शाकल (रचनाद्वीप) ,
सौभनगर (अलवर)आदि ।

युधिष्ठिर केवल इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) का राज्य अौर उसके आसपास के गाँव सम्भाल के राज्य करने लगा था ।

जागो अौर वही पुराने संस्कृत नाम अपने राष्ट्र के नगरों के फिर से रखने का संकल्प लो ।

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भावनाओं में इतिहास नही बहता... 

15 अगस्त 1936 को बर्लिन में जब ध्यानचंद ने हिटलर के सामने जर्मनी को 9-1 से ओलिम्पिक फाईनल में पराजित किया तो वो पहले भारतीय ..जी हाँ .. 

पहले खिलाडी ही नही पहले भारतीय नागरिक भी बने जिन्होंने विदेश में सार्वजनिक तौर पर तिरंगा फहराया. उस वक्त तिरंगा अपने मूल रूप में भी नही था ....उस तिरंगे में चक्र की जगह चरखा बना रहता था . ध्यानचंद इस तिरंगे को देश में ब्रिटिश शासन के बावजूद बर्लिन जाते समय अपने बिस्तरबंद में छुपा के ले गए थे .

हिटलर ने इस ऐतिहासिक फ़तह के बाद ध्यानचंद को बुलाया और कहा था कि भारत छोड़कर वो जर्मनी आ जाएँ उन्हें मुँह मांगी कीमत दी जाएगी. इस पर ध्यानचंद ने कहा की वो देश के लिए खेलते हैं पैसों के लिए नही. ध्यानचंद ने लगातार तीन बार ओलिम्पिक में स्वर्ण पदक जीता और वो दुनिया के किसी भी खेल में पहले खिलाडी बने और अबतक है जिन्होंने अपने दो दशक के कैरियर में एक भी अंतर राष्ट्रीय मुकाबला नही हारा.

ध्यानचंद की प्रशंसा में बहुत कुछ लिखा जा सकता है ...लेकिन कड़वा सच ये है कि इस देश में इतिहास के कोई मायने नही है ..उस भव्य इतिहास के भी नही है जिस पर हर भारतीय को गर्व हो.

सचिन क्रिकेट के सबसे बड़े खिलाड़ी के तौर पर हमेशा याद रखे जायेंगे ...उन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए ...लेकिन जिसने भारत को पहली बार दुनिया में खेल के मैदान में अभूतपूर्व सम्मान दिलाया उसे सबसे पहले खिलाडी के तौर पर भारत रत्न मिलना चाहिए. सचिन अगर दादा ध्यानचंद के बाद भारत रत्न लें तो उनका कद और भी बढ़ जायेगा
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