मुन्नावती कुमारी के हौसले और जज्बे की हमारी तरफ से सलाम और उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामना
मुन्नावती कुमारी मिसाल हैं, उनके लिए जो गरीबी के नाम पर शिक्षा से दूर हो जाते हैं। मुन्नावती मजदूरी यानी रेजा का काम करती हैं, लेकिन उन्होंने पीजी संस्कृत में यूनिवर्सिटी टॉप किया है। सत्र 2010-12 में उन्होंने कुल 1600 अंक में से 1046 यानी 65.35 फीसदी अंक लेकर रांची यूनिवर्सिटी में टॉप किया और गोल्ड मेडल पर कब्जा जमा लिया। करीब एक सप्ताह पहले रांची विश्वविद्यालय ने विभिन्न विभागों के टॉपरों की घोषणा की है। उन्हें नवंबर में होने वाले 28वें दीक्षांत समारोह में मेडल दिया जाएगा।मुन्नावती ने बताया कि उनका सपना एमफिल की पढ़ाई कर लेक्चरर बनने का है। इस साल राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) दूंगी और पूरा भरोसा है कि इसमें सफल भी रहूंगी।उनका अब तक का पूरा सफर चुनौतीपूर्ण रहा है। जब मैट्रिक पास किया, तब तीन भाई बेरोजगार थे। मां देव कुंवर देवी किडनी की बीमारी से ग्रस्त। उनका इलाज रांची के करमटोली चौक स्थित डॉ. अशोक कुमार वैद्य से अब भी चल रहा है। घर का गुजारा जैसे-तैसे चल रहा था। इस बीच 2010 में पिता देवी दयाल साहू की मृत्यु हो गई। लेकिन, मुन्नावती ने कभी हिम्मत नहीं हारी। और अब उनकी मेहनत रंग लाई।
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मुन्नावती कुमारी मिसाल हैं, उनके लिए जो गरीबी के नाम पर शिक्षा से दूर हो जाते हैं। मुन्नावती मजदूरी यानी रेजा का काम करती हैं, लेकिन उन्होंने पीजी संस्कृत में यूनिवर्सिटी टॉप किया है। सत्र 2010-12 में उन्होंने कुल 1600 अंक में से 1046 यानी 65.35 फीसदी अंक लेकर रांची यूनिवर्सिटी में टॉप किया और गोल्ड मेडल पर कब्जा जमा लिया। करीब एक सप्ताह पहले रांची विश्वविद्यालय ने विभिन्न विभागों के टॉपरों की घोषणा की है। उन्हें नवंबर में होने वाले 28वें दीक्षांत समारोह में मेडल दिया जाएगा।मुन्नावती ने बताया कि उनका सपना एमफिल की पढ़ाई कर लेक्चरर बनने का है। इस साल राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) दूंगी और पूरा भरोसा है कि इसमें सफल भी रहूंगी।उनका अब तक का पूरा सफर चुनौतीपूर्ण रहा है। जब मैट्रिक पास किया, तब तीन भाई बेरोजगार थे। मां देव कुंवर देवी किडनी की बीमारी से ग्रस्त। उनका इलाज रांची के करमटोली चौक स्थित डॉ. अशोक कुमार वैद्य से अब भी चल रहा है। घर का गुजारा जैसे-तैसे चल रहा था। इस बीच 2010 में पिता देवी दयाल साहू की मृत्यु हो गई। लेकिन, मुन्नावती ने कभी हिम्मत नहीं हारी। और अब उनकी मेहनत रंग लाई।
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