Saturday 21 June 2014

जन गन मन गुलामी का प्रतीक........!!
1911 मे जॉर्ज पंचम जब भारत आए तब उनके स्वागत में ये गीत गाया गया था ।।
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जन-गण-मन की पूरी कहानी
* जॉर्ज पंचम का भारत मे आगमन“
सन1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था , सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया ,पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये ,इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया “
* टागोर के परिवार का पैसा “ ईस्ट इंडिया कंपनी” मे लगा हुवा था“ रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा , उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक(Director) रहे, उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता" ...
इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था
“इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है"
भारत के नागरिक,भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है ... हे अधिनायक(Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो | तुम्हारी जय हो ! जय हो! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात,मराठा मतलब महारास्त्र,द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है, तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है , तुम्हारी ही हम गाथा गाते है | हे भारत के भाग्य विधाता(सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो | "*
जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया ,जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया , क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है ,जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की ,वह बहुत खुश हुआ ओर उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके(जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये , रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए ..
जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था | “* नोबल एवार्ड की बात इस तरहा थी“ उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है ,जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया |*
एक हत्याकांड ओर गांधी का खत“
रविन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों के प्रति ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलियावाला कांड हुआ और गाँधी जी ने उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधीजी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और कहा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली| इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया|
रबीन्द्रनाथ टागोर ने लिखा खत ओर किया इकरार
सन1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे | रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई,सुरेन्द्रनाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे| अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) | इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है ,इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है ,इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है ,लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे |
7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया,और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये|...........
जन-गन-मन गाकर देश को अपमानित ना करे
लेकिन हमारी आज तक की सारी सरकारें..... इस गीत पर ban नहीं लगा पाई........
इसे क्या समझा जाये.......

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