Friday, 27 June 2014

मकान चाहे कच्चे थे, रिश्ते सारे सच्चे थे....चारपाई पर बैठते थे, पास पास रहते थे...सोफे और डबल बेड आ गए, दूरियां हमारी बढा गए,...छतों पर अब न सोते हैं, बात बतंगड अब न होते हैं...आंगन में वृक्ष थे, सांझे सुख दुख थे...दरवाजा खुला रहता था, राही भी आ बैठता था...कौवे भी कांवते थे, मेहमान आते जाते थे...इक साइकिल ही पास था, फिर भी मेल जोल था...रिश्ते निभाते थे, रूठते मनाते थे....पैसा चाहे कम था, माथे पे ना गम था...मकान चाहे कच्चे थे, रिश्ते सारे सच्चे थे..अब शायद कुछ पा लिया है, पर बहुत कुछ गंवा दिया है।...
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जिस देश मे मनोरंजन के नाम पर ....
अश्लील किताबे ,गाने ,फिल्मे और विज्ञापन " टनो " में परोसे जाते हो ,
वंहा बलात्कार नहीं होंगे तो क्या ......सुन्दर कांड के पाठ पढ़े जायेंगे ???
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शब्दकोश में असंख्य शब्द होते हुए भी
मौन होना सब से बेहतर है।
दुनिया में हजारों रंग होते हुए भी
काला और सफेद रंग सब से बेहतर है।
खाने के लिए दुनिया भर की चीजें होते हुए भी
उपवास शरीर के लिए सबसे बेहतर है।
पर्यटन के लिए रमणीक स्थल होते हुए भी
पेड़ के नीचे ध्यान लगाना सबसे बेहतर है।
देखने के लिए इतना कुछ होते हुए भी
बंद आँखों से भीतर देखना सबसे बेहतर है।
सलाह देने वाले लोगों के होते हुए भी
अपनी आत्मा की आवाज सुनना सबसे बेहतर है ।
जीवन में हजारों प्रलोभन होते हुए भी
सिद्धांतों पर जीना सबसे बेहतर है।

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