सन १८९५ के १२ दिसम्बर की तारीख में [ स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिए जा रहे व्याख्यानों को लिपिबद्ध करने हेतु ] एक स्टेनोग्राफर की नियुक्ति विषयक विज्ञापन अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर स्थित वेदांत सोसाइटी के कर्मियो द्वारा समकालीन '' हेराल्ड '' नामक देनिक समाचारपत्र में प्रकाशित किया गया. विज्ञापन के अंश कुछ इस प्रकार थे, - '' प्रति सप्ताह कुछ घंटे व्याख्यान सुन उसे द्रुतगति से लिपिबद्ध करने हेतु एक श्रुतिलिपिकार की आवयशकता है - २२८ वेस्ट,३९ स्ट्रीट. इस ठिकाने पर आवेदन करे. '' स्वामीजी द्वारा व्यक्त भाव तथा विषयो को लिपिबद्ध करने का अनुपम सोभाग्य प्राप्ति रूपी विज्ञापन पर्चा हाथों में लिए श्रीमान जे.जे.गुडविन नामक एक व्यक्ति उनके निकट पहुचे थे. आज हम स्वामी विवेकानन्द विषयक जो भी विचार सुन पाते है,पढते है उसके मूल में ये ही आशुलिपिक, स्वामीजी के अनन्य सहयोगी शिष्य या अनुगामी श्री जे.जे.गुडविन ही है. श्री गुडविन अपनी २५ वर्ष की उम्र में स्वामी विवेकानन्द से मिले थे तथा उनके परम आत्मीय बन गए थे. उनका आकस्मिक निधन भारत के दक्षिण प्रांत स्थित पर्वतीय स्थल उटकमंड में हुआ था. अपने अंतिम समय तक एक निष्ठावान शिष्य की तरह श्री गुडविन स्वामीजी के दिव्य कार्यो में सर्मर्पित रहे. उनका आकस्मिक मृत्यु संवाद पाकर स्वामी विवेकानन्द को गहरा आघात लगा था. उन्होंने कहा था, '' मेरा दाहिना हाथ चला गया, मेरी अपूरणीय क्षति हो चुकी है.'' विश्वविजयी सन्यासी विवेकानन्द प्रेमपूर्वक गुडविन को - '' मेरा स्नेहभाजन गुडविन '' कहा करते थे. चित्र में - [१] श्री जे.जे.गुडविन [२] न्यूयॉर्क नगर स्थित हेराल्ड समाचारपत्र के कार्यालय की इमारत. [३] उन दिनों प्रचलित टाइपराइटर मशीन.
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