Monday, 30 June 2014

कभी कभी खाना खाते समय यह सोचता हूँ की जो अन्न मैं खा रहा हूँ, पता नहीं किस किसान ने अपने खून पसीने से उस खेत को सींचा होगा? जिसके खेत से आये ये अन्न या चावल का दाने मैंने खाए उसका आज पेट भरा होगा की नहीं? धन्य हैं वे सभी किसान जो समाज का पेट भरते हैं, हमने तो उसके लिए सिर्फ कुछ रुपये ही दिए हैं परन्तु अगर पेट रुपयों से भरा जा सकता तो रुपये पैसे ही ना खा लेते? सुखी रहे वह किसान जो हमारा सबका पेट भरता है, ईश्वर से हमारी ऐसी कामना है, ....
जय श्रीराम ....
नीरज कौशिक
 
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सिगरेट के बगैर हम जी सकते हैं। फिर भी सिगरेट बनाने वाला अरबपति
शराब के बगैर हम जी सकते हैं, फिर भी शराब बनाने वाला अरबपति...
मोबाइल के बगैर भी हम जी सकते हैं, फिर भी मोबाइल बनाने वाले अरबपति......
कार के बगैर हम जी सकते हैं, फिर भी कार बनाने वाले अरबपति.......
अन्न के बगैर हम कदापि नहीं जी सकते , लेकिन अन्न को पैदा करने वाला किसान गरिब और दरिद्री।
एक भयानक सत्य। इस पर विचार व मणन अवश्य करे।ं


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