Monday 16 June 2014

:: मैं और मेरे पिताजी ::
(यह पेज मैंने अपने एक मित्र के कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर पढ़ा था)
— जब मैं 5 साल का था (इससे पहले की बातें मुझे याद नहीं) तब सोचता था — मेरे पिताजी दुनियां के सबसे स्मार्ट और सबसे ताकतवर इंसान हैं।
— 10 साल की उम्र में मैंने महसूस किया कि मेरे पिताजी हर चीज का ज्ञान रखने वाले और बेहद समझदार भी हैं।
— जब मैं 15 साल का हुआ तो महसूस करने लगा कि मेरे दोस्तों के पापा तो मेरे पिताजी से भी ज्यादा समझदार हैं।
— 20 साल की उम्र में मेरी यह सोच बनी कि मेरे पिताजी किसी और दुनियां के हैं और वह नये जमाने के साथ नहीं चल सकते।
— 30 साल का हुआ तो महसूस किया कि मुझे किसी भी काम के बारे में उनसे सलाह नहीं लेनी चाहिए क्योंकि उन्हें हर काम में नुक्स निकालने की आदत सी पड़ गई है।
— 35 साल की उम्र में मैंने महसूस किया कि अब पिताजी को मेरे तरीके से चलने की समझ आ गई है, इसलिए छोटी—छोटी बातों पर उनसे सलाह ली जा सकती है।
— जब मैं 40 साल का हुआ तो महसूस किया कि कुछ जरूरी मामलों में पिताजी से सलाह लेना जरूरी है।
— 50 साल की उम्र में मुझे लगा कि पिताजी की सलाह के बिना कुछ नहीं करना चाहिए और 15 साल की उम्र के बाद से मेरी धारणाएं गलत थी। अब तक मेरे बच्चे बड़े हो चुके थे। परन्तु अफसोस इससे पहले कि मैं अपने इस फैसले पर अमल कर पाता, मेरे पिताजी इस संसार को अलविदा कह गये और मैं उनकी हर सलाह और तजुर्बे से वंचित रह गया।
— बेटा समझता है, बाप बनने के बाद !
— बेटी समझती है, माँ बनने के बाद !
— बहू समझती है, सास बने के बाद !

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