Saturday, 28 June 2014

हम राम -कृष्ण की सन्तानें इतनी भीरू एवं कृतघ्न कैसे हों गई ? जिस गीता ज्ञान ने रण सें विमुख अर्जुन के पुरूषत्व को जगा कर कर्त्तव्य पथ पर बढने को उद्यत कर दिया, उन श्री कृष्ण के मूल मन्त्र: -

" सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज: । " को विस्मृत कर हमारे कान पाखण्ड के कोलाहल को सुनने में संलग्न क्यों हो गये ? मित्रों, अभी भी समय है " सत्य सनातन धर्म " रूपी महान वृक्ष की जङों में अपने हाथों सें पाखण्ड रूपी जहर न डालें ।सोचें, समझें, मनन करें । हमने क्या खोया ? हमने क्या पाया ? अपने हृदय मे झाँक कर देखें और आत्म साक्षात्कार करें । आपको अपने सत्य स्वरूप का दर्शन होगा । " धर्मो रक्षति रक्षित: " । जय श्री कृष्ण ।

No comments:

Post a Comment