Saturday, 31 January 2015

मानव इतिहास के 10 लाख सालों में एक ही समय पर इतना सारे महान वैज्ञानिक कैसे पैदा हो गए..न इससे पहले न इसके बाद कोई नया मौलिक सूत्र या नया नियम नहीं आया!!
--( ये सवाल बिलकुल बाजिब है । हमारे मनमें भी यह सवाल उठा था लेकिन आगेकी बात पढी तो किस्सा समज में आ गया ।)----
ऐसा लगता है जैसे उस समय ब्रिटिश, पड़ोसी व मित्र देशों में विज्ञान की लौटरी लग गई हो ! ये सवाल तो कोई हिन्दुस्तानी ही उठा सकता है... समझदार लोग अपने ऊपर गर्व करें ..बाकी पुरातन भारत का इतिहास पढ़े ...कुछ प्रारंभिक तथ्य प्रस्तुत है -
जिस समय न्यूटन के पूर्वज जंगली लोग थे, उस समय महर्षि भाष्कराचार्य ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर एक पूरा ग्रन्थ रच डाला था किन्तु आज हमें सिखाया जाता है कि ब्रिटेन के उस वैज्ञानिक ने ये बनाया जरमनी के उस वैज्ञानिक ने वो बनाया ....
जबकि सच ये है कि भारत से चुरा कर ले जाए ग्रन्थ इन लोगो के हाथ लग गए थे ..और ये उन पर टूट पड़े थे ..हमारे विज्ञान में कोई पेटेंट कराने की जरूरत नहीं थी क्यूंकि तब ब्रहम्मांड के रहस्य हम ही जानते थे किन्तु चोर ने जब चोरी कर ली ...तो चोरी के माल को अपना बताने के लिए वो कागजी रजिस्ट्रेशन का सहारा लेने लगा ....
पिता भारत, मां भारती का कोमेन्ट
आप को अचरज हुआ लेकिन ये सच्चाई है । वो रेनेसां पिरियड था, युरोप में नव जागृति काल । प्रिन्टिंग टेक्नोलोजी और प्रिन्ट मिडिया आ जाने से सामान्य मानवी तक ज्ञान पहुंचने लगा । पढाई लिखाई पर ध्यान गया, बडे बडे पुस्तक छपने लगे, बडे बडे विचारक पैदा होने लगे, बुध्धिजीवियों के क्लब खूलने लगे । आज की तरह ऐसा नही होता था की मायकल दारू पी के दंगा करते थे । वो सब आपस में मिल के ज्ञान की, अपने नए विचार की, अपनी नयी खोज की बातें करते थे । नया ज्ञान था ना, तो उत्साह था । उस युग को ज्ञान का विस्फोट युग भी कहा जाता है । आज की दुनिया को जो भी अच्छा बूरा मिला उस समय का परिणाम है ।
भारत के विज्ञान के लिए इस तरह इतराना ठीक नही । उन लोगों के पूरखें भी सनातनी हिन्दु ही थे, हिन्दु ज्ञान उनकी लाइब्रेरी में पहले से ही मौजुद था, उन की युरोपिय भाषा में ही था सब । ग्रीस का हिन्दुत्व सायन्स पर ज्यादा भार देता था, भगवान कृष्ण का हिन्दुत्व था । द्वारिका डुबने से पहले भगवान के वारिस यादव सेना लेकर ग्रीस तक अश्वमेध का घोडा लेकर चले गए थे । भारत के धनपतियों ने इजराईल के धनपतियों की संगत में आकर सोने के सिक्कों के बल पर भारत के हिन्दुत्व को आसमान की सैर करने को भेज दिया, योग और जुठे चमत्कारों में डाल दिया । जब की जमीनी काम के लिए ग्रीस और युरोप के हिन्दुत्व को खतम करने के बाद धनपतियों के प्यादे इसाईयों ने हिन्दुओं का सायन्सवाला हिस्सा अपने पास रख लिया और बाकी बहुत सा ज्ञान एलेक्जांड्रिया लाईब्रेरी में था वो पूरी लायब्रेरी ही जला डाली ।
पता नही कब भारत के लोग आसमान से जमीन पर आएन्गे । अपना संभाल नही सके और दुसरे लोग करते हैं तो अपना होने का दावा ठोक देते हैं । वो भी सनातनी लोगों के वारिस है, धनपति राक्षसों ने उनकी आस्था बदल दी है और हिन्दुओं के दुश्मन बनाकर अपने पक्ष में कर लिए हैं ।
ये सत्य है उस नव जागृतिकाल में बडे बडे विज्ञानिक और विचारक पैदा हो गए थे लेकिन तुरंत ही धनपति राक्षस डर गए थे और हरकत में आ गए थे । अच्छे अच्छों को खरीद लिया और मिडिया को अपने कंट्रोल में कर लिया था । विज्ञानिकों को अपने नौकर बना कर अपने व्यापार हेतु खोजबीन करवाने लगे जो आज तक जारी है । बुध्धिजीवियों को खरीद कर हिन्दुत्व खतम करने के काम में लगा दिया ।
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दोनो की बात अपने अपने हिसाब से सही है । साला कुछ ही समय में इतने विज्ञानिक पैदा कैसे हो सकते थे !
महान विज्ञानिक निकोला टेस्ला प्रेरणा के लिए एक ग्रंथ हाथ में लेकर बैठा रहता था । वो कोइ इसाई का लिखा ग्रन्थ नही था, हिन्दु ग्रंथ था । हमारा हिन्दुत्व या उनका हिन्दुत्व कहने का कोइ मतलब नही है । हिन्दुत्व सनातन है और सर्वव्यापी था । आज उसका व्याप घटकर आधे भारत में भी नही रहा है ।
हिटलर का स्वस्तिक भी उसके पूरखों का था । उस के पूरखे इसाई बन गए थे वो उसका दुर्भाग्य था । 
हिन्दुस्थान वालों को समजना चाहिए कि चिजें भारत की ना कह कर हिन्दुत्व की है ऐसा मानना चाहिए । युरोप और मिडल इस्ट भी कभी हिन्दुओं का स्थान था । अगर आज भी नही संभले, जमीन पर नही आए तो ये व्यापारियों का दानव समाज हमारे बचे हुए हिन्दुंओं का स्थान भी छीन लेंगे ।

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