लीला सैमसन की सेकुलर एवं आर्थिक लीलाएँ...
आजकल पीके फिल्म की वजह से सेंसर बोर्ड की वर्तमान अध्यक्षा लीला सैमसन ख़बरों में हैं. पीके फिल्म में हिन्दू धर्म और भगवान शिव की खिल्ली उड़ाने जैसे कुछ दृश्यों पर मचे बवाल और कई संगठनों के विरोध के बावजूद लीला सैमसन ने स्पष्ट कर दिया है कि वे पीके फिल्म से एक भी सीन नहीं काटेंगी. ये बात और है कि कुछ समय पहले ही रिलीज़ हुई एक और फिल्म “कमाल धमाल मालामाल” में एक ईसाई पादरी (असरानी) के नृत्य पर चर्च की आपत्ति के बाद उस दृश्य को हटा दिया गया था. इससे पहले कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम के कुछ दृश्यों पर मुस्लिम संगठनों की आपत्ति और हिंसक विरोध के बाद कुछ दृश्यों को हटाया गया था. लीला सैमसन की ऐसी “सेकुलर मेहरबानियाँ” कोई नई बात नहीं है. बहरहाल एक यहूदी पिता और कैथोलिक माता की संतान, लीला सैमसन का विवादों और काँग्रेस से पुराना गहरा नाता रहा है.
चेन्नई स्थित अंतर्राष्ट्रीय भरतनाट्यम संस्थान “कलाक्षेत्र” के छात्रा रही लीला सैमसन इसी संस्थान में एकल नृत्यांगना, सदस्य एवं अध्यक्ष पद तक पहुँची थीं. महान नृत्यांगना रुक्मणी देवी अरुंडेल द्वारा 1936 में स्थापित यह संस्थान एक महान परंपरा का वाहक है. स्वयं रुक्मिणी जी के शब्दों में, “जब लीला को यहाँ भर्ती के लिए लाया गया, तब उसकी कैथोलिक/यहूदी पृष्ठभूमि के कारण उसे प्रवेश देने में मुझे कुछ आपत्तियां थीं, हालाँकि बाद में लीला को भर्ती कर लिया गया, वह नृत्यांगना तो अच्छी सिद्ध हुई, परन्तु भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं के प्रति उसकी समझ एवं बौद्धिक विकास समुचित नहीं हुआ, बल्कि कई बार दुर्भावनापूर्ण ही था”. तरक्की करते-करते सन 2005 में लीला सैमसन को कलाक्षेत्र का निदेशक बना दिया गया. जल्दी ही, अर्थात 2006 में सैमसन ने भरतनाट्यम नृत्य कथानकों में से “आध्यात्मिक जड़ों” को हटाना शुरू कर दिया. सैमसन के “एवेंजेलिस्ट इरादे” तब ज़ाहिर होने शुरू हुए, जब श्रीश्री रविशंकर ने कलाक्षेत्र के छात्रों को उनके “आर्ट ऑफ लिविंग” के स्वास्थ्य एवं आशीर्वाद संबंधी एक कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण दिया. तमिल साप्ताहिक “आनंद विकतन” के अनुसार लीला सैमसन ने छात्रों को इसमें भाग लेने से इसलिए मना कर दिया, क्योंकि यह श्रीश्री का यह समारोह हिन्दू धर्म को महिमामंडित करता था. लीला सैमसन का अगला “सेकुलर कृत्य” था कलाक्षेत्र संस्थान में स्थित सभी गणेश मूर्तियों को हटाने का फरमान. “तमिल हिन्दू वॉईस” अखबार के अनुसार जब इस निर्णय का कड़ा विरोध हुआ एवं छात्रों ने भूख हड़ताल की धमकी दी, तब लीला सैमसन ने सिर्फ एक गणेश मूर्ति को पुनः लगाने की अनुमति दी, लेकिन बाकी की मूर्तियां दोबारा नहीं लगने दीं. लीला सैमसन का कहना था कि कलाक्षेत्र में सिर्फ दीप प्रज्ज्वलन करके कार्यक्रम की शुरुआत होनी चाहिए, किसी देवी-देवता की पूजा से नहीं. लीला सैमसन ने अपनी ही गुरु रुक्मिणी अरुंडेल की उस शिक्षा की अवहेलना की, जिसमें उन्होंने कहा था कि जिस प्रकार भगवान नटराज जीवंत नृत्य का प्रतीक हैं, उसी प्रकार भगवान गणेश भी प्रत्येक “शुभारंभ” के आराध्य हैं. लेकिन लीला सैमसन को इन सबसे कोई मतलब नहीं था.
“कलाक्षेत्र” में होने वाली प्रभात प्रार्थनाओं के बाद लीला सैमसन अक्सर छात्र-छात्राओं को मूर्तिपूजा अंधविश्वास है, एवं इस परंपरा को कलाक्षेत्र संस्था में खत्म किया जाना चाहिए, इस प्रकार की चर्चाएँ करती थीं एवं उनसे अपने विचार रखने को कहती थीं. उन्हीं दिनों लीला सैमसन के “चमचे” किस्म के शिक्षकों ने “गीत–गोविन्द” नामक प्रसिद्ध रचना को बड़े ही अपमानजनक तरीके से प्रस्तुत किया था, जिसे बाद में विरोध होने पर मंचित नहीं किया गया. छात्राओं को भरतनाट्यम में पारंगत होने के बाद जो प्रमाणपत्र दिया जाता है, उसमें रुक्मिणी अरुंडेल द्वारा भगवान शिव का “प्रतीक चिन्ह” लगाया था, जो लीला सैमसन के आने के बाद हटा दिया गया. अभी जो सर्टिफिकेट दिया जाता है, उसमें किसी भगवान का चित्र नहीं है. हिन्दू कथानकों एवं पौराणिक चरित्रों की भी लीला सैमसन द्वारा लगातार खिल्ली उड़ाई जाती रही, वे अक्सर छात्रों के समक्ष प्रसिद्ध नाट्य“कुमार-संभव” को समझाते समय, हनुमान जी, पार्वती एवं भगवान कृष्ण की तुलना वॉल्ट डिज्नी के “बैटमैन” तथा स्टार वार्स के चरित्रों से करती थीं. तात्पर्य यह है कि लीला सैमसन के मन में हिंदुओं, हिन्दू धर्म, हिन्दू आस्थाओं, भगवान एवं संस्कृति के प्रति “मिशनरी कैथोलिक” दुर्भावना शुरू से ही भरी पड़ी थी, ज़ाहिर है कि ऐसे में पद्मश्री और सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष पद के लिए एंटोनिया माएनो उर्फ सोनिया गाँधी की पहली पसंद लीला सैमसन ही थी. ऐसे में स्वाभाविक ही है कि फिल्म “कमाल धमाल मालामाल” में नोटों की माला पहने हुए पादरी का दृश्य तो लीला को आपत्तिजनक लगा लेकिन फिल्म पीके में भगवान शिव के प्रतिरूप को टायलेट में दौड़ाने वाले दृश्य पर उन्हें कोई दुःख नहीं हुआ. यहाँ भी लीला सैमसन अपनी दादागिरी दिखाने से बाज नहीं आईं, सेंसर बोर्ड के अन्य सदस्यों द्वारा अपना विरोध करवाने के बावजूद उन्होंने फिल्म PK को बिना किसी कैंची के जाने दिया. अपुष्ट ख़बरों के अनुसार इस काम के लिए राजू हीरानी ने लीला सैमसन को चार करोड़ रूपए की रिश्वत दी है, इसलिए इस आरोप की जाँच बेहद जरूरी हो गई है.
ऐसा भी नहीं कि लीला सैमसन ने सिर्फ “सेकुलर लीलाएँ” की हों, काँग्रेस की परंपरा के अनुसार उन्होंने कुछ आर्थिक लीलाएँ भी की हैं. इण्डिया टुडे पत्रिका में छपे हुए एक स्कैंडल की ख़बरों के अनुसार 2011 में लीला सैमसन ने “कलाक्षेत्र” संस्थान में बिना किसी टेंडर के, बिना किसी सलाह मशविरे के कूथाम्बलम ऑडिटोरियम में आर्किटेक्चर तथा ध्वनि व्यवस्था संबंधी बासठ लाख रूपए के काम अपनी मनमर्जी के ठेकेदार से करवा लिए और उसका कोई ठोस हिसाब तक नहीं दिया. उन्हीं के सताए हुए एक कर्मचारी टी थॉमस ने जब एकRTI लगाई, तब जाकर इस “लीला” का खुलासा हुआ. पाँच वर्ष के कार्यकाल में लीला सैमसन ने लगभग आठ करोड़ रूपए के काम ऐसे ही बिना किसी टेंडर एवं अनुमति के करवाए गए, जिस पर तमिलनाडु के CAG ने भी गहरी आपत्ति दर्ज करवाई थी, परन्तु“काँग्रेस की महारानी” का वरदहस्त होने की वजह से उनका बाल भी बाँका नहीं हुआ. इसके अलावा कलाक्षेत्र फाउन्डेशन की निदेशक के रूप में सैमसन ने एक निजी कम्पनी मेसर्स मधु अम्बाट को अपनी गुरु रुक्मिणी अरुंडेल के नृत्य कार्यों का समस्त वीडियो दस्तावेजीकरण करने का ठेका तीन करोड़ रूपए में बिना किसी से पूछे एवं बिना किसी अधिकार के दे दिया और ताबड़तोड़ भुगतान भी करवा दिया. शिकायत सही पाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एस मोहन ने सभी अनियमितताओं की जाँच की तब यह पाया गया कि जिस कंपनी को वीडियो बनाने का ठेका दिया गया था, उसे ऐसे किसी काम का कोई पूर्व अनुभव भी नहीं था.
(अपनी गुरु रुक्मिणी अरुंडेल की मूर्ति के पास बैठीं लीला सैमसन)
दोनों ही घोटालों के बारे में जब CAG ने लीला सैमसन से पूछताछ एवं स्पष्टीकरण माँगे, तब उन्होंने पिछली तारीखों के खरीदे हुए स्टाम्प पेपर्स पर उस ठेके का पूरा विवरण दिया, जिसमें सिर्फ छह नाटकों का वीडियो बनाने के लिए नब्बे लाख के भुगतान संबंधी बात कही गई. “दैनिक पायनियर” ने जब इस सम्बन्ध में जाँच-पड़ताल की तो पता चला कि ये स्टाम्प पेपर 03 सितम्बर 2006 को ही खरीद लिए गए थे, जिस पर 25अक्टूबर 2006 को रजिस्ट्रेशन नंबर एवं अनुबंध लिखा गया, ताकि जाँच एजेंसियों की आँखों में धूल झोंकी जा सके. (यह कृत्य गुजरात की कुख्यात सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड से मेल खाता है, उसने भी ऐसे ही कई कोरे स्टाम्प पेपर खरीद रखे थे और गवाहों को धमकाने के लिए उनसे हस्ताक्षर लेकर रखती थी).
बहरहाल, तमाम आर्थिक अनियमितताओं की शिकायत जस्टिस मोहन ने केन्द्रीय संस्कृति मंत्री अम्बिका सोनी को लिख भेजी, परन्तु लीला सैमसन पर कोई कार्रवाई होना तो दूर रहा, उनसे सिर्फ इस्तीफ़ा लेकर उन्हें और बड़ा पद अर्थात संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद से नवाज़ दिया गया. जैसा कि सभी जानते हैं, अम्बिका सोनी एवं लीला सैमसन पक्की सखियाँ हैं, और दोनों ही एक “खुले रहस्य” की तरह सोनिया गाँधी की करीबी हैं.ज़ाहिर है कि लीला सैमसन का कुछ बिगड़ना तो बिलकुल नहीं था, उलटे आगे चलकर उन्हें सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष पद भी मिला...
तो मित्रों, अब आप समझ गए होंगे कि PK फिल्म के बारे में इतना विरोध होने, सेंसर बोर्ड के सदस्यों द्वारा विरोध पत्र देने के बावजूद लीला सैमसन इतनी दादागिरी क्यों दिखाती आई हैं, क्योंकि उन्हें भरोसा है कि प्रशासन एवं बौद्धिक(?) जगत में शामिल “सेकुलर गिरोह”उनके पक्ष में है. मोदी सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती प्रशासन के हर स्तर पर फ़ैली हुई ऐसी ही “प्रगतिशील कीचड़युक्त गाद” को साफ़ करना है. देखना है कि नरेंद्र मोदी में यह करने की इच्छाशक्ति और क्षमता है या नहीं.... वर्ना तब तक आए-दिन हिंदुओं एवं हिन्दू संस्कृति का अपमान होता रहेगा और हिन्दू संगठन सिर्फ विरोध दर्ज करवाकर “अगले अपमान” का इंतज़ार करते रहेंगे
No comments:
Post a Comment