Saturday, 17 January 2015

“चैरियट्स ऑफ गॉड्स

एरिक वॉन डेनिकन अपनी बेस्टसेलर पुस्तक “चैरियट्स ऑफ गॉड्स (पृष्ठ 56-60) में लिखते हैं, “उदाहरण के तौर पर लगभग पाँच हजार वर्ष पुरानी महाभारत के तत्कालीन कालखण्ड में कोई योद्धा किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानता था, जिसे चलाने से बारह साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके?”
इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ ना कुछ तो था, जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया, अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया. यदि कुछ देर के लिए हम इसे “काल्पनिक” भी मान लें, तब भी महाभारत काल में कोई योद्धा किसी ऐसे रॉकेटनुमा यंत्र के बारे में ही कल्पना कैसे कर सकता है, जो किसी वाहन पर रखा जा सके और जिससे बड़ी जनसँख्या का संहार किया जा सके? महाभारत के ही एक प्रसंग में ऐसे अस्त्र का भी उल्लेख है, जिसे चलाने के बाद धातु की ढाल एवं वस्त्र भी पिघल जाते हैं, घोड़े-हाथी पागल होकर इधर-उधर दौड़ने लगते हैं, रथों में आग लग जाती है और शत्रुओं के बाल झड़ने लगते हैं, नाखून गिरने लगते हैं. यह किस तरफ इशारा करता है? क्या इसके बारे में शोध नहीं किया जाना चाहिए था?
आखिर वेदव्यास को यह कल्पनाएँ(?) कहाँ से सूझीं. आखिर संजय किस तकनीक के सहारे धृतराष्ट्र को युद्ध का सीधा प्रसारण सुना रहा था? अभिमन्यु ने सुभद्रा के गर्भ में चक्रव्यूह भेदने की तकनीक सुभद्रा के जागृत अवस्था में रहने तक ही क्यों सुनी? (यह तो अब वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हुआ है कि गर्भस्थ शिशु सुन-समझ सकता है, फिर प्राचीन ग्रंथों की खिल्ली उड़ाने का हमें क्या अधिकार है?
पेश है कल के ब्लॉग की दूसरी और अंतिम किस्त... http://blog.sureshchiplunkar.com/…/hawaizaada-and-vaimaniki…
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आज के पश्चिम प्रेरित भारतीय बुद्धिजीवी पश्चिम के वैज्ञानिकों की ही बात सुनते-मानते हैं तो उनके लिए चार्ल्स बर्लित्ज़ का नाम नया नहीं होगा. प्रसिद्ध पुस्तक “द बरमूडा ट्राएंगल” सहित अनेक वैज्ञानिक पुस्तकें लिखने वाले चार्ल्स बर्लित्ज़ लिखते हैं कि, “यदि आधुनिक परमाणु युद्ध सिर्फ कपोल कल्पना नहीं वास्तविकता है, तो निश्चित ही भारत के प्राचीन ग्रंथों में ऐसा बहुत कुछ है जो हमारे समय से कहीं आगे है”. 400 ईसा पूर्व लिखित “ज्योतिष” ग्रन्थ में ब्रह्माण्ड में धरती की स्थिति, गुरुत्वाकर्षण नियम, ऊर्जा के गतिकीय नियम, कॉस्मिक किरणों की थ्योरी आदि के बारे में बताया जा चुका है. इसी प्रकार “वैशेषिका ग्रन्थ” में भारतीय विचारकों ने परमाणु विकिरण, इससे फैलने वाली विराट ऊष्मा तथा विकिरण के बारे में अनुमान लगाया है.
(स्रोत :- Doomsday 1999 – By Charles Berlitz, पृष्ठ 123-124).

इसी प्रकार कलकत्ता संस्कृत कॉलेज के संस्कृत प्रोफ़ेसर दिलीप कुमार कांजीलाल ने 1979 में Ancient Astronaut Society की म्यूनिख (जर्मनी) में सम्पन्न छठवीं काँग्रेस के दौरान उड़ सकने वाले प्राचीन भारतीय विमानों के बारे में एक उदबोधन दिया एवं पर्चा प्रस्तुत किया था (सौभाग्य से उस समय वहाँ सतत खिल्ली उड़ाने वाले, प्रगतिशील-सेकुलर भारतीय बुद्धिजीवी नहीं थे).... विस्तार से पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारिए... लेख चूँकि लंबा है, इसलिए दो भागों में है, यह पहला भाग आपकी सेवा में...

http://blog.sureshchiplunkar.com/2015/01/hawaizaada-and-vaimaniki-shastra.html 

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