बोतल का पानी सेहत का दुश्मन है ।
आप को लगता होगा कि बोतलबंद पानी स्वाथ्य के लिए अच्छा होगा, लेकिन आप गलत हो । एक नए अभ्यास से पता चला है कि पानी के साथ साथ आदमी जहर भी पीता है ।
हाल ही में, एक अनुसंधान अंतरगत मुंबई की 18 कंपनियों की 5-5 बोतल के नमूने का अभ्यास भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर द्वारा किया गया था और बोतलबंद पानी के नमूनों में हानिकारक रसायनों की मौजूदगी का पता लगाया था । पता चला कि 1 लीटर पानी में 27% ब्रोमेट पाया गया है ।
ब्रोमेट की उच्च मात्रा के साथ पैक पानी पीने से कैंसर, पेट के संक्रमण और बाल गिरने जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है । अभी तक माना जाता था कि केवल 10% ब्रोमेट ही पानी की बोतल में होता है ।
WHO के अनुसार, पानी की पॅक में केवल चार मिलीग्राम ब्रोमेट ही चल सकता है ।
खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने कहा है कि हम इस रिपोर्ट को देखेन्गे और पानी को सुरक्षित बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे ।
अमरिका के एक राज्य में बोतल के पानी पर रोक लगाई गई है । ऑस्ट्रेलिया की एक जगह भी रोक है, भारत के मणीपूर के एक गांव में तो पानी की बोतल बेचना भी गुनाह माना जाता है ।
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ब्रोमेट तो आज नया नाम सुना । कंपनी और उसके गोडाउन से, रोड पर ट्रकों में माल पहुंचाने में लगता समय, रिटेल दुकानों में बेचने में लगता समय । काफी दिन लग सकते हैं । एक भी बोतल व्यर्थ नही जानी चाहिए । और इसलिए पानी को ताजा रखने के लिए, उसमें किटाणु ना पड जाए इसलिए जहरिले पदार्थ या क्लोरिज जैसे गॅस का उपयोग होता है ।
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ब्रोमेट तो आज नया नाम सुना । कंपनी और उसके गोडाउन से, रोड पर ट्रकों में माल पहुंचाने में लगता समय, रिटेल दुकानों में बेचने में लगता समय । काफी दिन लग सकते हैं । एक भी बोतल व्यर्थ नही जानी चाहिए । और इसलिए पानी को ताजा रखने के लिए, उसमें किटाणु ना पड जाए इसलिए जहरिले पदार्थ या क्लोरिज जैसे गॅस का उपयोग होता है ।
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बोतल का पानी पीना जेब और सेहत के लिए भी बूरा होगा ही लेकिन यहां सवाल खडे होते है । WHO और एफडीए अमरिकन फंडा है तो सवाल गहरा जाते है ।
"पानी पर मनवजात का मौलिक अधिकार नही है, पानी मानव को फ्री में नही मिलना चाहिए" पानी को प्राइवेटाईज करने के लिए युनो को ऐसा सुत्र देनेवाली कंपनी नेसले और उस ऐसी बडी कंपनियों के लिए रास्ता तो नही बनाया जा रहा है, भारत की छोटी कंपनियों को हटाकर, खूद का एकाधिकार तो नही बनाना चाहते?
नयी सरकार बनी है तब से पानी के आसपास बहुत कुछ हो रहा है ।
प्रथम तो मोदी को माता गंगा ने बुलाया । पानी !
फिर जाडू चला । जाडू शौचालय पर केंद्रित हुआ । गांवों में लोग शौचालय तो बना रहे हैं पर आदत या पानी की कमी के कारण उसका उपयोग बराबर नही होता है । तो पंचायत के मकान में माइक लगाए और महिलाओं को बैठा दिया अगर कोइ लोटा लेकर दिखाई दे तो उसका नाम माईक में बोले और पूरे गांव को सुनाए और आदमी को शर्मिन्दा करे । फिर पानी ! पानी का कंजप्शन बढाना ।
अचानक टीवी में एक सिरियल शुरु हो जाता है । कुंभ मेला और गंगापुत्रों को बदनाम करे ऐसे शैतानी खेल खेलते पंडाओं और उनका पोलिटिक्स बताया जाने लगा । देशवासियों के मन शंकाएं पैदा कर मानसिक रूप से गंगाघाट से दूर करना....
अमरिका में रहकर भारत की संस्कृति के विरुध्ध, हिन्दु धर्म के विरुध्ध लिखनेवाले एक बुढे गद्दार नास्तिक गुजराती ने "राम तेरी गंगा मैली" लेख लिखा था । उस में लगभग बीस साल का फोटो कलेक्शन उस लेख में डाला था । असल में वो लेख नही आल्बम था । मानव सहित अनेक प्राणीयों की सडी हुई तैरती लाशें, पानी में बहाए फुलों के ढेर, घाट पर जलती चिताएं, पानी में नहाते लोग । ये सब अचानक एक साथ नजर में आ जए तो जरूर झटका लगेगा और गंगा मैली लगेगी । लेकिन वो हकिकत में एक साथ नही था । अलग अलग समय और सालों में ली गई फोटो थी ।
ऐसा ही झटका दो दिन पहले लगाया गया । आजादी के बाद कभी नही और अभी इस माहोल में पहलीबार सौ सवासौ मुर्दे एक साथ गंगा नदी में दिखा दिए । ऐसा भी नही किया गया के मुर्दों के बीच कुछ किलोमिटर का फासला रख्खें । किसी ट्रक में लाकर एक जगह डाल दिए हो ऐसा लगा । हेतु? नागरिक के मन में ठसा देना कि वाकई में गंगाके साथ प्रोब्लेम है । सरकार जो करती है बराबर करती है । और सरकार ने बराबर कर भी लिया । फतवा आ गया है कि गंगा में लाशें ना बहाई जाए ।
ऐसा ही झटका दो दिन पहले लगाया गया । आजादी के बाद कभी नही और अभी इस माहोल में पहलीबार सौ सवासौ मुर्दे एक साथ गंगा नदी में दिखा दिए । ऐसा भी नही किया गया के मुर्दों के बीच कुछ किलोमिटर का फासला रख्खें । किसी ट्रक में लाकर एक जगह डाल दिए हो ऐसा लगा । हेतु? नागरिक के मन में ठसा देना कि वाकई में गंगाके साथ प्रोब्लेम है । सरकार जो करती है बराबर करती है । और सरकार ने बराबर कर भी लिया । फतवा आ गया है कि गंगा में लाशें ना बहाई जाए ।
यमुना में तो फुल बहाने के लिए पांच हजार का जुर्माना लगा दिया है ।
आम जनता को पता नही होता है कि नदियों की भी अपनी अलग दुनिया है, उनको भी अपनी जीव सृष्टि है । छोटे जंतु से लेकर बडे बडे मगर मच्छ तक नदी में बहती सडन पर तो जिन्दा रहते हैं । प्राणीजन्य या वनस्पतिजन्य कचरा नदी में बहता है वो सेन्दिय कचरा है और वो सडता है और वो नदी के जीवों का खाद्य पदार्थ है, उसे खा कर तो सब जीव जीते हैं । और नदी को भी उस हिसाब से साफ करते रहते हैं । गांवों में कुएंका पानी साफ रखने के लिए कुएं में कछुए डाले जाते हैं । गंगा नदी पर वन विभाग का कछुए का संरक्षित एरिया है, झाडूधारियों को वहां से भगाया गया था और सरकार का उस मामले में विरोध भी किया था, लेकिन वो मामला दब गया ।
रासायणिक कचरा जीवों का खाद्यपदार्थ नही पर जहर है तो वैसे कचरे के कारण जीव मर जाते हैं ।
देश की प्रमुख प्राथमिकताएं, मेहंगाई, लाकाबाजारी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्षलवाद और देश की सुरक्षा को साईड कर के बडे बडे वीआईपीओं को मोडेल बनाकर झाडू उठाना, माता गंगा को याद करना और माता गाय का कतल करना, राजकाज छोड एक गद्दार एनजीओ की तरह रोडपर आ जाना क्या साबित करता है?
यही कि दानवों ने बताए अगले कदम पर देश चल पडा है ।
यही कि दानवों ने बताए अगले कदम पर देश चल पडा है ।
उनके आनेवाले कदम यह है कि नागरिक को पानी के मूलभूत अधिकार से वंचित कर दे । पानी के सभी संसाधन नागरिक से छीन कर उसका कबजा कर लिया जाए । नदी तालाब मल्टिनेशनल कंपनियों को बेच दें । वो कंपनियां ही नागरिकों को पानी देगी, नेहर से, पाईप से या बोटल और ड्रम से । आदमी ने कुआं भी खोदा तो परमीशन लेनी पडेगी और रोयल्टी देनी पडेगी । एकाधिकार ! जैसे आदमी नोट नही छाप सकता, इकोनोमी खराब होती है, जेल में जाना पडता है । ऐसे ही फोगट में कुआं नही खोदा जा सकेगा, पानी की व्यवस्था तुटती है, जेल जाना पडेगा ।
Beware! Packaged water harmful to health
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