Wednesday, 31 July 2013

भूख बढाने के कुछ असरदार नुस्खे --------



हमारे शरीर की अग्नि खाये गये भोजन को पचाने का काम करती है,यदि यह अग्नि किसी कारण से मंद पड़ जाये तो भोजन ठीक तरह से नही पचता है, भोजन के ठीक से नही पचने के कारण शरीर में कितने ही रोग पैदा हो जाते है,अनियमित खानपान से वायु पित्त और कफ़ दूषित हो जाते है,जिसकी वजह से भूख लगनी बंद हो जाती है,और अजीर्ण अपच वायु विकार तथा पित्त आदि की शिकायतें आने लगती है,भूख लगनी बंद हो जाती है,शरीर टूटने लगता है, स्वाद बिगड जाता है,पेट में भारीपन महसूस होने लगता है,पेट खराब होने से दिमाग खराब रहना चालू हो जाता है,अथवा समझ लीजिये कि शरीर का पूरा का पूरा तंत्र ही खराब हो जाता है,इसके लिये मंन्दाग्नि से हमेशा बचना चाहिये और तकलीफ़ होने पर इन दवाओं का प्रयोग करना चाहिये।

* भूख नही लगने पर आधा माशा फ़ूला हुआ सुहागा एक कप गुनगुने पानी में दो तीन बार लेने से भूख खुल जाती है।
* काला नमक चाटने से गैस खारिज होती है,और भूख बढती है,यह नमक पेट को भी साफ़ करता है।
* हरड का चूर्ण सौंठ और गुड के साथ अथवा सेंधे नमक के साथ सेवन करने से मंदाग्नि ठीक होती है।
* सेंधा नमक,हींग अजवायन और त्रिफ़ला का समभाग लेकर कूट पीस कर चूर्ण बना लें,इस चूर्ण के बराबर पुराना गुड लेकर सारे चूर्ण के अन्दर मिला दें,और छोटी छोटी गोलियां बना लें,रोजाना ताजे पानी से एक या दो गोली लेना चालू कर दे,यह गोलियां खाना खाने के बाद ली जाती है,इससे खाना पचेगा भी और भूख भी बढेगी।
* हरड को नीब की निबोलियों के साथ लेने से भूख बढती है,और शरीर के चर्म रोगों का भी नाश होता है।
* हरड गुड और सौंठ का चूर्ण बनाकर उसे थोडा थोडा मट्ठे के साथ रोजाना लेने से भूख खुल जाती है।
* छाछ के रोजाना लेने से मंदाग्नि खत्म हो जाती है।
* सोंठ का चूर्ण घी में मिलाकर चाटने से और गरम जल खूब पीने से भूख खूब लगती है।
* रोज भोजन करने से पहले छिली हुई अदरक को सेंधा नमक लगाकर खाने से भूख बढती है।
* लाल मिर्च को नीबू के रस में चालीस दिन तक खरल करके दो दो रत्ती की गोलियां बना लें,रोज एक गोली खाने से भूख बढती है।
* गेंहूं के चोकर में सेंधा नमक और अजवायन मिलाकर रोटी बनवायी जाये,इससे भूख बहुत बढती है।
* मोठ की दाल मंदाग्नि और बुखार की नाशक है।
* डेढ ग्राम सांभर नमक रोज सुबह फ़ांककर पानी पीलें,मंदाग्नि का नामोनिशान मिट जायेगा।
* पके टमाटर की फ़ांके चूंसते रहने से भूख खुल जाती है।
* दो छुहारों का गूदा निकाल कर तीन सौ ग्राम दूध में पका लें,छुहारों का सत निकलने पर दूध को पी लें,इससे खाना भी पचता है,और भूख भी लगती है।
* जीरा सोंठ अजवायन छोटी पीपल और काली मिर्च समभाग में लें,उसमे थोडी सी हींग मिला लें,फ़िर इन सबको खूब बारीक पीस कर चूर्ण बना लें,इस चूर्ण का एक चम्मच भाग छाछ मे मिलाकर रोजाना पीना चालू करें,दो सप्ताह तक लेने से कैसी भी कब्जियत में फ़ायदा देगा।
* भोजन के आधा घंटा पूर्व चुकन्दर गाजर टमाटर पत्ता गोभी पालक तथा अन्य हरी साग सब्जियां व फ़लीदार सब्जियों के मिश्रण का रस पीने से भूख बढती है।
* सेब का सेवन करने से भूख भी बढती है और खून भी साफ़ होता है।
* अजवायन चालीस ग्राम सेंधा नमक दस ग्राम दोनो को कूट पीस कर एक साफ़ बोतल में रखलें,इसमे दो ग्राम चूर्ण रोजाना सवेरे फ़ांक कर ऊपर से पानी पी लें,इससे भूख भी बढेगी और वात वाली बीमारियां भी समाप्त होंगी।
* एक पाव सौंफ़ पानी में भिगो दें,फ़िर इस पानी में चौगुनी मिश्री मिलाकर पका लें,इस शरबत को चाटने से भूख बढती है।
* पकी हुई मीठी इमली के पत्ते सेंधा नमक या काला नमक काली मिर्च और हींग का काढा बनाकर पीने से मंदाग्नि ठीक हो जाती है।
* जायफ़ल का एक ग्राम चूर्ण शहद के साथ चाटने से जठराग्नि प्रबल होकर मंदाग्नि दूर होती है।
* सोंफ़ सोंठ और मिश्री सभी को समान भाग लेकर ताजे पानी से रोजाना लेना चाहिये इससे पाचन शक्ति प्रबल होती है।
* जवाखार और सोंठ का चूर्ण गरम पानी से लेने से मंदाग्नि दूर होती है।
* लीची को भोजन से पहले लेने से पाचन शक्ति और भूख में बढोत्तरी होती है।
* अनार भी क्षुधा वर्धक होता है,इसका सेवन करने से भूख बढती है।
* नीबू का रस रोजाना पानी में मिलाकर पीने से भूख बढती है।
* आधा गिलास अनन्नास का रस भोजन से पहले पीने से भूख बढती है।
* तरबूज के बीज की गिरी खाने से भूख बढती है।
* बील का फ़ल या जूस भी भूख बढाने वाला होता है।
* इमली की पत्ती की चटनी बनाकर खाने से भूख भी बढती है,और खाना भी हजम होता है।
* सिरका सोंठ काला नमक भुना सुहागा और फ़ूला हींग समभाग मे लेकर मिला लें,रोजाना खाने के बाद भूख बढती है।
* सूखा पुदीना बडी इलायची सोंठ सौंफ़ गुलाब के फ़ूल धनिया सफ़ेद जीरा अनारदाना आलूबुखारा और हरड समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें,मंदाग्नि अवश्य दूर हो जायेगी।
* एक ग्राम लाल मिर्च को अदरक और नीबू के रस में खरल कर लें,फ़िर इसकी काली मिर्च के बराबर की गोलिया बना लें, यह गोली चूसने से भूख बढती है। —

मूर्ति पूजक नहीं हो तो फिर इस आकृति की इबादत क्यों

क्या कोई मुस्लिम बताएगा कि यह क्या है? आप लोग तो मूर्ति पूजक नहीं हो तो फिर इस आकृति की इबादत क्यों करते हो? मेरा मकसद सिर्फ अपनी जानकारी बढ़ाना है, कृपया इसे किसी और मतलब में न लेवें।
Firoz Khan Aap ne muslim se pucha tha yaha hindu bhai jawab de rahe hai ... Islam me ibadat sirf aur sirf allah ki hoti hai aur allah ka koi aakaar nahi hai wo niraakar hai'n ...aap ko lagta hai shiv ling hai to khus ho jao isi bahane hindu muslim bhai bhai samajh lo

DaDy MuJsE bOlA tU gAlTi HaI mErI tUj Pe JiNdGaNi GuIlTy HaI mErI Firozallah nirakaar hai jaisa ki aapne bola? to fir aakar ki ibadat kyu? please technically samjhao

Firoz Khan Kaha,n aakar ki ibadat ho rahi hai ? Wo allah ka banaya huwa 1 ghar hai jab se ye duniya bani hai wo tab se hai jab islam bhi nahi tha ...eg jaise masjid me allah ki ibadat hoti hai na ki masjid ki waise h waha bhi ibadat hoti hai allah ki kisi aakar ki nahi

DaDy MuJsE bOlA tU gAlTi HaI mErI tUj Pe JiNdGaNi GuIlTy HaI mErI jab islam nahi tha us time per sirf Sanatan Dharm tha, proof bhi ho chuka hai. aur sanatan ke hisab se yeh ek shivlinga hai. to fir iski puja karne wale musalman kaise?



जोभ्रष्टाचारी नहींवो कांग्रेस नहीं Dekho Bhaiyon Bhagawan sankar ek hi aise hain jo hindu sanskriti main sabke poojniye hain chaahe wo Devta ho, rakshash ho ya fir manav ho ! Aaj tak ka sabse bada shiv bhakt koi hua to wo tha RAVAN OK !ab RAVAN KON THA EK Brahaman Aur Rakh shash KA beta ! Ab Main Ye Poochoon Ke Ke Ghar Main Bada kon Hota Hain Maa Ya Baap! Baap Hi Na !Baap Ka hi Naam Chalata Hain ! To Ravan Ko Bhi Brahmin Hi Mana Gya Hain !Uski Hatya Ke Liye Ram Ji Ko Bhi Pryaschit Karna Pada Tha Ke Nahin !Baaki Ab App khud Soch Lo

Pragnanraj Rout No Offense to any religion... According to Markendaya Purana Of Sanatan Dharm, this is a very powerful shiv ling which is described as Makeshwar. The name of the place Makka is also derived from the name of the shivlinga. Sanatan Dharm main bhi yehi bataya gaya hai ki Ishwar ya Allah ko koi Rup nahin hota..wo Nirakar hote hai.. At the same time he can obtain any Rup and become a Rupkar. It depends on the insight of a specific person. In some religion, people find almighty in every thing (Sakar Rup or Nirakar Rup)..But its sad that some people starts fighting out of nothing.. Study any religion and at last you would realize the almighty without any hatred. Peace to all and every religion.


. शिवलिंग का मतलब क्या होता है ...

. शिवलिंग का मतलब क्या होता है ... 
 शिवलिंग किस चीज का प्रतिनिधित्व करता है......??????

दरअसल कुछ मूर्ख और कुढ़मगज किस्म के प्राणियों ने  परम पवित्र शिवलिंग को जननांग समझ कर  पता नही क्या-क्या और कपोल कल्पित अवधारणाएं फैला रखी हैं

परन्तु शिवलिंग  वातावरण सहित घूमती धरती तथा  सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।

The whole universe rotates through a shaft called ........ shiva lingam.

दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण  और, मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा, अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ ..... हो सकता है

खैर.....

जैसा कि हम सभी जानते है किएक ही शब्द के  विभिन्न भाषाओँ में

 अलग-अलग अर्थ निकलते हैं....!

उदाहरण के लिए.........

यदि हम हिंदी के एक शब्द ""सूत्र''' को ही ले लें तो.......

सूत्र मतलब......... डोरी/धागा........गणितीय सूत्र..........कोई भाष्य......... अथवा लेखन भी हो सकता है.... जैसे कि.... नासदीय सूत्र......ब्रह्म सूत्र इत्यादि....!

उसी प्रकार..... ""अर्थ"" शब्द का भावार्थ ............ : सम्पति भी हो सकता है..... और.... मतलब (मीनिंग) भी....!

ठीक बिल्कुल उसी प्रकार......... शिवलिंग के सन्दर्भ में.......... लिंग शब्द से अभिप्राय .................. चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।

ध्यान देने योग्य बात है कि...........""लिंग"" एक संस्कृत का शब्द है.........

जिसके निम्न अर्थ है :

@@@@ त आकाशे न विधन्ते -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० ५
अर्थात..... रूप, रस, गंध और स्पर्श ........ये लक्षण आकाश में नही है ..... किन्तु शब्द ही आकाश का गुण है ।

@@@@ निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकशस्य लिंगम् -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० २ ०
अर्थात..... जिसमे प्रवेश करना व् निकलना होता है ....वह आकाश का लिंग है ....... अर्थात ये आकाश के गुण है ।

@@@@ अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० ६
अर्थात..... जिसमे अपर, पर, (युगपत) एक वर, (चिरम) विलम्ब, क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है, इसे काल कहते है, और ये .... काल के लिंग है ।

@@@@ इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० १ ०
अर्थात....... जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर व् नीचे का व्यवहार होता है ....उसी को दिशा कहते है....... मतलब कि....ये सभी दिशा के लिंग है ।

@@@@ इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिंगमिति -न्याय० अ ० १ । आ ० १ । सू ० १ ०
अर्थात..... जिसमे (इच्छा) राग, (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, सुख, दुःख, (ज्ञान) जानना आदि गुण हो, वो जीवात्मा है...... और, ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है ।

इसीलिए......... शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने के कारन.......... इसे लिंग कहा गया है...।

स्कन्दपुराण में स्पष्ट कहा है कि....... आकाश स्वयं लिंग है...... एवं , धरती उसका पीठ या आधार है .....और , ब्रह्माण्ड का हर चीज ....... अनन्त शून्य से पैदा होकर..... अंततः.... उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है .........

यही कारन है कि...... इसे कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है ........जैसे कि .....: प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam) ... इत्यादि...!

यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि.....

इस ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ........!

इसमें से....... हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है ........ जबकि आत्मा एक ऊर्जा है.......|

ठीक इसी प्रकार...... शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर......... शिवलिंग कहलाते हैं |

क्योंकि.... ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है.........!

अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की दृष्टि से बोलने की जगह ... शुद्ध वैज्ञानिक भाषा में बोला जाए तो..... ..... हम कह सकते हैं कि..... शिवलिंग.... और कुछ नहीं बल्कि..... हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.)

और.... अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की भाषा में बोला जाए तो..... शिवलिंग ......... भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-अनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है....!

अर्थात........ शिवलिंग हमें बताता है कि...... इस संसार में न केवल पुरुष का..... और न ही केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है ........ बल्कि, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों ही समान हैं..!

शिवलिंग की पूजा को ठीक से समझने के लिए ......

आप जरा आईसटीन का वो सूत्र याद करें...... जिसके आधार पर उसने परमाणु बम बनाया था....!

क्योंकि.... उस सूत्र ने ही .....परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई ...... जो कितनी विध्वंसक थी..... ये सर्वविदित है |

और... परमाणु बम का वो सूत्र था.....

e / c = m c {e=mc^2}

अब ध्यान दें कि .... ये सूत्र एक सिद्धांत है .... जिसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदला जा सकता है .....अर्थात, अर्थात..... पदार्थ और उर्जा ... दो अलग-अलग चीज नहीं... बल्कि , एक ही चीज हैं..... परन्तु.... वे दो अलग-अलग चीज बनकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं....!

और..... जिस बात तो आईसटीन ने अभी बताया ..... उस रहस्य को तो ...हमारे ऋषियो ने हजारो-लाखों साल पहले ही ख़ोज लिया था.

यह सर्वविदित है कि..... हमारे संतों/ऋषियों ने हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है ... परन्तु, उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है.. बल्कि, उन्होंने हर काम के अंत में स्वीकार किया कि....... वे हमें वही बता रहे हैं.... जो, उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है.

और....लगभग १३.७ खरब वर्ष पुराना .... सार्वभौमिक ज्ञान हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में उपलब्ध होता है..... और, भावार्थ बदल जाने के कारण... इसे किसी अन्य भाषा में पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता .... कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही ।

इसके लिए.... एक बहुत ही छोटा सा उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा कि..... आज ""गूगल ट्रांसलेटर"" में ......लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है .....परन्तु... संस्कृत का नही ... क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है ...!

अब मूर्खों और सेकुलरों द्वारा ... एक मूर्खतापूर्ण सवाल यह उठाया जा सकता है कि..... संस्कृत इतनी इम्पोर्टेन्ट नही इसलिए नही होगी....... तो, उसका जबाब यही है कि.... यदि .. संस्कृत इम्पोर्टेन्ट नही तो नासा संस्कृत क्यों अपनाना चाहती है ...???????

अति मूर्ख प्राणी नासा वाली बात का सबूत यहाँ देख सकते हैं.... : http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl

हुआ दरअसल कुछ ऐसा है कि........... जब कालांतर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई तब पाश्चात्य वैज्ञानिको ने वेदों / उपनिषदों तथा पुराणो आदि को समझने में मूर्खता की ...क्योकि, उनकी बुद्धिमत्ता वेदों में निहित प्रकाश से साक्षात्कार करने योग्य नही थी ।

और.... ऐसा उदहारण तो हम हमारे दैनिक जीवन में भी हमेशा देखते ही रहते हैं कि....देखते है जैसे परीक्षा के दिनों में अध्ययन करते समय जब कोई टॉपिक हमें समझ न आये तो हम कह दिया करते है कि ये टॉपिक तो बेकार है .....जबकि, असल में वह टॉपिक बेकार नही.... अपितु , उस टॉपिक में निहित ज्ञान का प्रकाश हमारी बुद्धिमत्ता से अधिक है ।

इसे ज्यादा सरल भाषा में ....इस तरह भी समझ सकते है कि,..... बैटरी चालित 12 वोल्ट धारण कर सकने वाले विद्युत् बल्ब में.., अगर घरों में आने वाले वोल्ट (240) प्रवाहित कर दिया जाये तो उस बल्ब की क्या दुर्गति होगी ??????

जाहिर सी बात है कि.... उसका फिलामेंट तत्क्षण अविलम्ब उड़ जायेगा ।

यही उन बेचारे वैज्ञानिकों के साथ हुआ ... और, वेद जैसे गूढ़ ग्रन्थ पढ़कर .... उनका भी फिलामेंट उड़ गया और..... मैक्स मूलर जैसे गधे के औलदॊन तो ..... वेदों को काल्पनिक तक बता दिया !

खैर..... हम फिर शिवलिंग पर आते हैं.....

शिवलिंग का प्रकृति में बनना.. हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते है जब कि ......

किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है .....तो , उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व नीचे ) होता है.. जिसके फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है

उसी प्रकार.... बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप... एवं, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप .... भी शिवलिंग का निर्माण करते हैं....!

दरअसल.... सृष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ..... जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में इस प्रकार मिलता है कि ........ आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके ।

हमारे पुराणो में कहा गया है कि...... प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार..... इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।

इस तरह........... सामान्य भाषा में कहा जाए तो....उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है ....

और, शिवलिंग का प्रतिरूप ब्रह्माण्ड के हर जगह मौजूद है.... जैसे कि....
1. हमारी आकाश गंगा , हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) , ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ), ब्लैक होल की रचना , संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह ( जो अभी तक रहस्य बने हए है.. और, हजारों की संख्या में है.. तथा , जिनमे से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है । ), समुद्री तूफान , मानव डीएनए, परमाणु की संरचना ... इत्यादि...!

इसीलिए तो.... शिव को शाश्वत एवं.... अनादी, अनत..... निरंतर भी कहा जाता है....!

याद रखो हिन्दुओं..... सही ज्ञान ही आधुनिक युग का सबसे बड़ा हथियार है..... देश और धर्म के दुश्मनों के खिलाफ ......

''स्व मूल्यांकन''



एक चौदह पंद्रह साल का लड़का एक टेलीफोन
बूथ पर जाकर एक नंबर लगाता है और किसी के
साथ बात करता है, बूथ मालिक उस लड़के
की बात को ध्यान से सुनता रहता है ;
लड़का : किसी महिला से कहता है कि, मैंने बैंक से
कुछ क़र्ज़ लिया है और मुझे उसका क़र्ज़
चुकाना है, इस कारण मुझे पैसों की बहुत जरुरत
है, मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की घास
काटने की नौकरी दे सकती हैं..? महिला :
(दूसरी तरफ से) मेरे पास तो पहले से ही घास
काटने वाला माली है..
लड़का : परन्तु मैं वह काम आपके माली से
आधी तनख्वाह पर कर दूंगा..
महिला : तनख्वाह की बात ही नहीं है मैं अपने
माली के काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ..
लड़का : (और निवेदन करते हुए) घास काटने के
साथ साथ मैं आपके घर की साफ़ सफाई भी कर
दूंगा वो भी बिना पैसे लिए..
महिला : धन्यवाद और ना करके फोन काट
दिया..लड़का चेहरे पर विस्मित भाव लिए फोन
रख देता है..
बूथ मालिक जो अब तक लड़के
की सारी बातों को सुन चूका होता है,लड़के
को अपने पास बुलाता है..
दुकानदार : बेटा मेरे को तेरा स्वभाव बहुत
अच्छा लगा, मेरे को तेरा सकारात्मक बात करने
का तरीका भी बहुत पसंद आया..अगर मैं तेरे
को अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र दूं
तो क्या तू मेरे यहाँ काम करेगा..??
लड़का : नहीं, धन्यवाद.
दुकानदार : पर तेरे को नौकरी की सख्त जरुरत है
और तू नौकरी खोज भी रहा है.
लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत
नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने
काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही माली हूँ
जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर
रही थी..!!!

इसे कहते हैं ''स्व मूल्यांकन''

.............................................

एक बार एक शहरी परिवार मेले मेँ घुमने
गया,
मेले मेँ 1 घंटे तक घुमे कि अचानक
उनका बेटा मेले मेँ खो गया,
दोनो पति-पत्नी ने मेले मेँ बहुत ढ़ुढ़ते है,
लेकिन लङका नही मिलता है,
लङके कि माँ जोर-जोर से रोने लगती है,
बाद मेँ पुलिस को सुचना देते है,
आधे घण्टे बाद लङका मिल जाता है,
लङके के मिलते ही उसका पति गाँव
का टिकिट लेकर
आता है, और वो सब बस मेँ बेठकर गाँव
रवाना हो जाते है,
तभी पत्नी ने पुछा: हम गाँव
क्य ो जा रहे है, अपने घर
नही जाना है क्या?
तभी उसका pati बोला:
"तु तेरी औलाद के
बिना आधा घण्टा नही रह सकती,
तो मेरी माँ गाँव मेँ पिछले 10
साल से मेरे बिना कैसे
जी रही होगी..??
माँ-बाप का दिल दु:खाकर आजतक कोई
सुखी नही हुआ।

........................................





Tuesday, 30 July 2013

ganesh ji................

!!!!! ~~~~~~ वक्रतुण्ड महाकाय सुर्य कोटि समप्रभ ~~~~~~ !!!!!
!!!!! ~~~~~~ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ~~~~~~ !!!!!

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये ॥ १॥

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥ २॥

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥ ३॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥ ४॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरः प्रभुः ॥ ५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥ ६॥

जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥ ७॥

अष्टेभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥ ८ !!!
............................................................

"अहिंसा परमो धर्मः".............- नीम तेल

जब खुद में लड़ने का दम नही था तो गीता के श्लोक को आधा करके लोगो को नपुंसक बना दिया ।
"अहिंसा परमो धर्मः"
.
"पूर्ण श्लोक क्यों नही बताया लोगो को??"
.
""अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l"
.
(अर्थात् यदि अहिंसा परम् धर्म है, तो धर्म के लिए हिंसा अर्थात्..{कानून के अनुसार हिंसा} भी परम् धर्म है ।
अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है,और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है..!!।
जब जब धर्म(सत्य) पर संकट आये तब तब तुम शस्त्र उठाना ।

............................................

गांधी v/s सावरकर................

गांधी : भारत वासीयो, शत्रु से प्रेम करो और उसपर विश्वास रखो।
सावरकर : शत्रु पर प्रेम या विश्वास नहीं रखा जाता।
.
.
गांधी :- अहिंसा का मार्ग स्विकारो | किसी ने एक गाल पर थप्पड़ मारा तो दूसरा गाल आगे करो।
सावरकर :- खुद की रक्षा करना मतलब हिंसा नही। मुर्ख हिंदुंओ , एक गला काट दिया तो दूसरा गला आगे करने के लिए बचता ही नहीं।
.
.
गांधी :- मैं एक हिंदुं हु, और हिन्दू धर्म में सारे देवता शान्ति का सन्देश देते है।..
सावरकर :- तुम नकली हिन्दू हो। प्रभु श्रीराम के हाथ में धनुष्य़ है और श्रीक्रुष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र। सज्जन लोगो की रक्षा के लिए भागवान को भी शस्त्र उठाने पड़े है।
.
.
गांधी :- शस्त्र हाथ में लेना गलत है। शत्रु से लड़ना है तो तर्क के आधार पर लड़ो।
सावरकर :- युद्ध में तर्क नहीं बल्कि तलवार टिकती है और जीतती है। देश की सीमा तलवार से बचायी जा सकती है. तर्क से नहीं।
.
.
गांधी :- तलवार नहीं चाहिए। ह्रुदय परिवर्तन पर विश्वास रखो और शत्रु का मन जीतो |
सावरकर :- जिन्होंने हमे मारने की ठान ली है उनका मन जीत नहीं सकते। हे हिंदुंओ, अफजल खान का ह्र्दय परिवर्तन कर ही नहीं सकते, उसका ह्रदय फाड़ना पड़ता है।
आप अहिंसक होकर हिंसको का मुकाबला कभी नहीं कर सक्ते .............!!!
.....................................................................

- नीम का तेल जोकि गंध व स्वाद में कड़वा होता है प्रथम श्रेणी की कीटाणुनाशक होता है।
- यह चर्म रोगों में लाभदायक है.
- यह गर्भ निरोधक के रूप में काम आता है .
- दांतों और मसूड़ों की समस्या में इसके तेल की कुछ बूंदों मंजन में मिला कर मले. 
- कील-मुंहासों के लिए नीम का तेल लगाने से भी लाभ होता है। चेचक के दाग दूर करने के लिए नीम की निबोली का तेल आराम देता है।
- गंजेपन की समस्या है तो सिर में नीम का तेल लगाएं। इससे जूएं-लीखें भी दूर हो जाती हैं।
- बालों को चमकदार, स्वस्थ बाल के लिए,सूखापन दूर करने के लिए कारगर हे। समय से पहले सफ़ेद होने से रोकता है और यहां तक कि बालों के झड़ने के लिए कुछ हद तक मदद कर सकता हैं।
- यह नाखून में स्निग्धता बनाता है, और भंगुर नाखून(टूटने और विकृत होने की समस्या) को हटा कर उन्हें नया-सुन्दर वर्ण प्रदान करता हे।इससे नाखून के कवक(फंगल) से छुटकारा मिल जाता है।
- नीम तेल एक जैविक कीटनाशक के रूप में काम करता है: इससे "यह 'कीड़े हार्मोनल संतुलन को बाधित किये बिना मर जाते हैं।नीम तेल स्प्रे भी एक कीट रिपेलेंट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. नीम मच्छरों को दूर रखता है और यह आपकी त्वचा के लिए अच्छा है.
- किसानों के लिए यह जैविक कीटनाशक का काम करता है. यह पर्यावरण हितैषी है. यह जमीन या पानी की आपूर्ति में कोई हानिकारक पदार्थ नहीं मिलाता .यह बायोडीग्रेडेबल है. यह मधुमक्खियों और केंचुए के रूप में उपयोगी कीड़े को नुकसान नहीं पहुंचाता .
- जोड़ों में दर्द हो तो नीम के तेल की मालिश से लाभ होता है.
- फीलपांव के रोगी को 5 से 10 बूंद नीम का तेल प्रतिदिन 2 बार सेवन करना चाहिए।
- जलने की वजह से शरीर में जख्म बन जाने पर नीम का तेल लगाने से जख्म जल्दी ठीक हो जाते हैं। जीवाणुओं के संक्रमण (फैलने) से भी सुरक्षा होती है।
- आधा चम्मच नीम का तेल दूध में मिलाकर सुबह-शाम को पीने से रक्तप्रदर और सभी प्रकार के प्रदर निश्चित रूप से बन्द हो जाता है।
- नीम के तेल को लगाने से कान की फुंसिया ठीक हो जाती हैं। अगर फुंसियों में जलन भी हो तो नीम के तेल के बराबर ही तिल का तेल मिलाकर फुंसियों पर लगाने से आराम आता है। कान के दर्द और कान बहने में भी नीम का तेल लगाने से लाभ होता है.
- नीम का तेल और शहद बराबर लेकर मिला लें, फिर इसकी 2-2 बूंदे रोजाना 1 से 2 महीने तक कान में डालने से कान के बहने में लाभ मिलता है।
- नीम के तेल में चालमोंगरे का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर शीशी में भरकर रख लें। इस तेल को सफेद दागों पर लगा लें और 5 से 6 बूंद बताशे में डालकर खा लें।
- नीम के तेल को सूंघने मात्र से बाल काले हो जाते हैं। इसकी २ बूँद नाक में डाले .
- नीम के तेल की मालिश करने से सिर के दर्द में आराम आता है।
- नीम तेल और सरसों तेल में थोड़ा कपूर मिला ले. इसका दिया जलाने से कीड़े और मच्छर दूर रहते है.

...................................................










'' मेरा ईनाम ''...............laghu katha

जब महमूद गजनवी ने भगवान शिव के सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था तब उसे एक पुजारी ने ही ईनाम के लालच में बताया था की मन्दिर में किस जगह कितना सोना रखा है 

जब वो सबकुछ लूटकर ले जाने लगा तब उस पुजारी ने कहा की - '' मेरा ईनाम ''

महमूद गजनवी ने कहा - '' तेरा इनाम ,अभी देता हूँ तेरा इनाम ''

ऐसा कहके महमूद गजनवी ने म्यान से अपनी तलवार निकाली और कहा की -

'' तेरे जैसे अपने ही धर्म के गद्दारों को ईनाम नही बल्कि मतलब निकलने के बाद उनका सर कलम किया जाता है क्योकि जो इन्सान अपने धर्म का नही हुआ वो मेरे या किसी ओर के धर्म का क्या होगा ''

और इतना कहकर महमूद गजनवी ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया |

................................................................
सम्राट चंद्रगुप्त ने एक दिन अपने प्रतिभाशाली मंत्री चाणक्य से कहा-
“कितना अच्छा होता कि तुम अगर रूपवान भी होते।“
चाणक्य ने उत्तर दिया,
"महाराज रूप तो मृगतृष्णा है। आदमी की पहचान तो गुण और बुद्धि से ही होती है, रूप से नहीं।“

“क्या कोई ऐसा उदाहरण है जहाँ गुण के सामने रूप फींका दिखे। चंद्रगुप्त ने पूछा।
"ऐसे तो कई उदाहरण हैं महाराज, चाणक्य ने कहा, "पहले आप पानी पीकर मन को हल्का करें बाद में बात करेंगे।"
फिर उन्होंने दो पानी के गिलास बारी बारी से राजा की ओर बढ़ा दिये।

"महाराज पहले गिलास का पानी इस सोने के घड़े का था और दूसरे गिलास का पानी काली मिट्टी की उस मटकी का था। अब आप बताएँ, किस गिलास का पानी आपको मीठा और स्वादिष्ट लगा।"
सम्राट ने जवाब दिया- "मटकी से भरे गिलास का पानी शीतल और स्वदिष्ट लगा एवं उससे तृप्ति भी मिली।"

वहाँ उपस्थित महारानी ने मुस्कुराकर कहा, "महाराज हमारे प्रधानमंत्री ने बुद्धिचातुर्य से प्रश्न का उत्तर दे दिया। भला यह सोने का खूबसूरत घड़ा किस काम का जिसका पानी बेस्वाद लगता है। दूसरी ओर काली मिट्टी से बनी यह मटकी, जो कुरूप तो लगती है लेकिन उसमें गुण छिपे हैं। उसका शीतल सुस्वादु पानी पीकर मन तृप्त हो जाता है। अब आप ही बतला दें कि रूप बड़ा है अथवा गुण एवं बुद्धि?".

.................................

Sunday, 28 July 2013

खाने पीने कि चीजों में के पेकटो पर

अगर खाने पीने कि चीजों में के पेकटो पर निम्न कोड लिखे है तो उसमें ये चीजें मिली हुई है l
E 322 - गाये का मास
E 422 - एल्कोहोल तत्व
E 442 - एल्कोहोल तत्व ओर कमिकल
E 471 - गाय का मास ओर एल्कोहोल तत्व
E 476 - एल्कोहोल तत्व
E 481 - गाय ओर सुर के मास ए संगटक
E 627 - घातक केमिकल
E 472 - गाय + सुर + बकरी के मिक्स मास के संगटक
E 631 - सुर कि चर्बी का तेल
नोट - ये सभी कोड आपको ज्यादातर विदेशी कम्पनी एवम्‌ निम्न जेसे :-
चिप्स , बिस्कुट , च्युंगम , टॉफी , कुरकुरे ओर मैगी आदि में दिखेगे l
ध्यान दे ये अफवह नही बिलकुल सच है अगर यकीन नही हो तो इंन्टरनेट गुगल पर सर्च कर लो

..............................................................................
संविधान की धारा ३० (अ ) के अनुसार किसी भी हिन्दू विद्यालय में गीता या रामायण पढ़ाने पर प्रतिबन्ध है पर किसी भी उर्दू स्कूल में कुरान पढ़ाने की छूट है.

हिन्दू मंदिर में जमा होने वाले दान पर 70 % हक़ सरकार का होता है , पर मस्जिद में चढ़ाये जाने वाले दान पर पूरा का पूरा हक मस्जिद वालों का होता है.

हिन्दू की अमरनाथ यात्रा पर टैक्स लगता है औरहज यात्रा पर सबसिडी दी जाती है।
यह कैसा प्रजातंत्र है?

मेरे विचार से सभी धर्मों को समान स्वतंत्रता और हक मिलनी चाहिए।

जब तक समाज में ऐसे गंदे असमानता फ़ैलाने वाले कानून रहेगे तो भाईचारा कैसे बढेगा ?

................................................

Friday, 26 July 2013

नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।

अरबों साल पहले ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था। अचानक एक बिंदु की उत्पत्ति हुई। फिर वह बिंदु मचलने लगा। फिर उसके अंदर भयानक परिवर्तन आने लगे। इस बिंदु के अंदर ही होने लगे विस्फोट। शिव पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात प्रकाश। इसे अनाहत या अनहद (जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं) की ध्वनि कहते हैं जो आज भी सतत जारी है इसी ध्वनि को हिंदुओं ने ॐ के रूप में व्यक्त किया है। ब्रह्म प्रकाश स्वयं प्रकाशित है। परमेश्वर का प्रकाश। 'सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से साँस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।' -ऋग्वेद ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा- यह तीन तत्व हैं। ब्रह्म शब्द ब्रह् धातु से बना है, जिसका अर्थ 'बढ़ना' या 'फूट पड़ना' होता है। ब्रह्म वह है, जिसमें से सम्पूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्ति हुई है, या जिसमें से ये फूट पड़े हैं। विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है।- उपनिषद जिस तरह मकड़ी स्वयं, स्वयं में से जाले को बुनती है, उसी प्रकार ब्रह्म भी स्वयं में से स्वयं ही विश्व का निर्माण करता है। ऐसा भी कह सकते हैं कि नृत्यकार और नृत्य में कोई फर्क नहीं। जब तक नृत्यकार का नृत्य चलेगा, तभी तक नृत्य का अस्तित्व है, इसीलिए हिंदुओं ने ईश्वर के होने की कल्पना अर्धनारीश्वर के रूप में की जो नटराज है। इसे इस तरह भी समझें 'पूर्व की तरफ वाली नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं और पश्चिम वाली पश्चिम की ओर बहती है। जिस तरह समुद्र से उत्पन्न सभी नदियाँ अमुक-अमुक हो जाती हैं किंतु समुद्र में ही मिलकर वे नदियाँ यह नहीं जानतीं कि 'मैं अमुक नदी हूँ' इसी प्रकार सब प्रजा भी सत् (ब्रह्म) से उत्पन्न होकर यह नहीं जानती कि हम सत् से आए हैं। वे यहाँ व्याघ्र, सिंह, भेड़िया, वराह, कीट, पतंगा व डाँस जो-जो होते हैं वैसा ही फिर हो जाते हैं। यही अणु रूप वाला आत्मा जगत है।-छांदोग्य महाआकाश व घटाकाश :ब्रह्म स्वयं प्रकाश है। उसी से ब्रह्मांड प्रकाशित है। उस एक परम तत्व ब्रह्म में से ही आत्मा और ब्रह्मांड का प्रस्फुटन हुआ। ब्रह्म और आत्मा में सिर्फ इतना फर्क है कि ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। घटाकाश अर्थात मटके का आकाश। ब्रह्मांड से बद्ध होकर आत्मा सीमित हो जाती है और इससे मुक्त होना ही मोक्ष है।

NDउत्पत्ति का क्रम :परमेश्वर (ब्रह्म) से आकाश अर्थात जो कारण रूप 'द्रव्य' सर्वत्र फैल रहा था उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश (खाली स्थान) के प्रकृति और परमाणु कहाँ ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहाँ हो। अवकाश अर्थात जहाँ कुछ भी नहीं है और आकाश जहाँ सब कुछ है। पदार्थ के संगठित रूप को जड़ कहते हैं और विघटित रूप परम अणु है, इस अंतिम अणु को ही वेद परम तत्व कहते हैं जिसे ब्रह्माणु भी कहा जाता है और श्रमण धर्म के लोग इसे पुद्‍गल कहते हैं। भस्म और पत्थर को समझें। भस्मीभूत हो जाना अर्थात पुन: अणु वाला हो जाना। आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्न‍ि, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औ‍षधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है।- तैत्तिरीय उपनिषद इस ब्रह्म (परमेश्वर) की दो प्रकृतियाँ हैं पहली 'अपरा' और दूसरी 'परा'। अपरा को ब्रह्मांड कहा गया और परा को चेतन रूप आत्मा। उस एक ब्रह्म ने ही स्वयं को दो भागों में विभक्त कर दिया, किंतु फिर भी वह अकेला बचा रहा। पूर्ण से पूर्ण निकालने पर पूर्ण ही शेष रह जाता है, इसलिए ब्रह्म सर्वत्र माना जाता है और सर्वत्र से अलग भी उसकी सत्ता है। त्रिगुणी प्रकृति : परम तत्व से प्रकृति में तीन गुणों की उत्पत्ति हुई सत्व, रज और तम। ये गुण सूक्ष्म तथा अतिंद्रिय हैं, इसलिए इनका प्रत्यक्ष नहीं होता। इन तीन गुणों के भी गुण हैं- प्रकाशत्व, चलत्व, लघुत्व, गुरुत्व आदि इन गुणों के भी गुण हैं, अत: स्पष्ट है कि यह गुण द्रव्यरूप हैं। द्रव्य अर्थात पदार्थ। पदार्थ अर्थात जो दिखाई दे रहा है और जिसे किसी भी प्रकार के सूक्ष्म यंत्र से देखा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है या अनुभूत किया जा सकता है। ये ब्रहांड या प्रकृति के निर्माणक तत्व हैं। प्रकृति से ही महत् उत्पन्न हुआ जिसमें उक्त गुणों की साम्यता और प्रधानता थी। सत्व शांत और स्थिर है। रज क्रियाशील है और तम विस्फोटक है। उस एक परमतत्व के प्रकृति तत्व में ही उक्त तीनों के टकराव से सृष्टि होती गई। सर्वप्रथम महत् उत्पन्न हुआ, जिसे बुद्धि कहते हैं। बुद्धि प्रकृति का अचेतन या सूक्ष्म तत्व है। महत् या बुद्ध‍ि से अहंकार। अहंकार के भी कई उप भाग है। यह व्यक्ति का तत्व है। व्यक्ति अर्थात जो व्यक्त हो रहा है सत्व, रज और तम में। सत्व से मनस, पाँच इंद्रियाँ, पाँच कार्मेंद्रियाँ जन्मीं। तम से पंचतन्मात्रा, पंचमहाभूत (आकाश, अग्न‍ि, वायु, जल और ग्रह-नक्षत्र) जन्मे। इसे इस तरह समझें : उस एक परम तत्व से सत्व, रज और तम की उत्पत्ति हुई। यही इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन्स का आधार हैं। इन्हीं से प्रकृति का जन्म हुआ। प्रकृति से महत्, महत् से अहंकार, अहंकार से मन और इंद्रियाँ तथा पाँच तन्मात्रा और पंच महाभूतों का जन्म हुआ। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृति के आठ तत्व हैं। जब हम पृत्वी कहते हैं तो सिर्फ हमारी पृथ्वी नहीं। प्रकृति के इन्हीं रूपों में सत्व, रज और तम गुणों की साम्यता रहती है। प्रकृति के प्रत्येक कण में उक्त तीनों गुण होते हैं। यह साम्यवस्था भंग होती है तो महत् बनता है। प्रकृति वह अणु है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता, किंतु महत् जब टूटता है तो अहंकार का रूप धरता है। अहंकारों से ज्ञानेंद्रियाँ, कामेद्रियाँ और मन बनता है। अहंकारों से ही तन्मात्रा भी बनती है और उनसे ही पंचमहाभूत का निर्माण होता है। बस इतना समझ लीजिए क‍ि महत् ही बुद्धि है। महत् में सत्व, रज और तम के संतुलन टूटने पर बुद्धि निर्मित होती है। महत् का एक अंश प्रत्येक पदार्थ या प्राणी में ‍बुद्धि का कार्य करता है।‍ बुद्धि से अहंकार के तीन रूप पैदा होते हैं- पहला सात्विक अहंकार जिसे वैकारी भी कहते हैं विज्ञान की भाषा में इसे न्यूट्रॉन कहा जा सकता है। यही पंच महाभूतों के जन्म का आधार माना जाता है। दूसरा तेजस अहंकार इससे तेज की उत्पत्ति हुई, जिसे वर्तमान भाषा में इलेक्ट्रॉन कह सकते हैं। तीसरा अहंकार भूतादि है। यह पंच महाभूतों (आकाश, आयु, अग्नि, जल और पृथ्वी) का पदार्थ रूप प्रस्तुत करता है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार इसे प्रोटोन्स कह सकते हैं। इससे रासायनिक तत्वों के अणुओं का भार न्यूनाधिक होता है। अत: पंचमहाभूतों में पदार्थ तत्व इनके कारण ही माना जाता है। सात्विक अहंकार और तेजस अहंकार के संयोग से मन और पाँच इंद्रियाँ बनती हैं। तेजस और भूतादि अहंकार के संयोग से तन्मात्रा एवं पंच महाभूत बनते हैं। पूर्ण जड़ जगत प्रकृति के इन आठ रूपों में ही बनता है, किंतु आत्म-तत्व इससे पृथक है। इस आत्म तत्व की उपस्थिति मात्र से ही यह सारा प्रपंच होता है। अब इसे इस तरह भी समझें : 'अनंत-महत्-अंधकार-आकाश-वायु-अग्नि-जल-पृथ्वी'

NDयह ब्रह्मांड अंडाकार है। यह ब्रह्मांड जल या बर्फ और उसके बादलों से घिरा हुआ है। इससे जल से भी दस ‍गुना ज्यादा यह अग्नि तत्व से ‍आच्छादित है और इससे भी दस गुना ज्यादा यह वायु से घिरा हुआ माना गया है। वायु से दस गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश जहाँ तक प्रकाशित होता है, वहाँ से यह दस गुना ज्यादा तामस अंधकार से घिरा हुआ है। और यह तामस अंधकार भी अपने से दस गुना ज्यादा महत् से घिरा हुआ है और महत् उस एक असीमित, अपरिमेय और अनंत से घिरा है। उस अनंत से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है। प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं। प्रलय की धारणा : पुराणों में प्रलय के चार प्रकार बताए गए हैं- नित्य, नैमित्तिक, द्विपार्थ और प्राकृत। प्राकृत ही महाप्रलय है। 'जब ब्रह्मा का दिन उदय होता है, तब सब कुछ अव्यक्त से व्यक्त हो जाता है और जैसे ही रात होने लगती है, सब कुछ वापस आकर अव्यक्त में लीन हो जाता है।' -भगवद्गीता-8.18 सात लोक हैं : भूमि, आकाश और स्वर्ग, इन्हें मृत्युलोक कहा गया है, जहाँ उत्पत्ति, पालन और प्रलय चलता रहता है। उक्त तीनों लोकों के ऊपर महर्लोक है जो उक्त तीनों लोकों की स्थिति से प्रभावित होता है, किंतु वहाँ उत्पत्ति, पालन और प्रलय जैसा कुछ नहीं, क्योंकि वहाँ ग्रह या नक्षत्र जैसा कुछ भी नहीं है। उसके भी ऊपर जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं। अर्थात जिनका उत्पत्ति, पालन और प्रलय से कोई संबंध नहीं, न ही वो अंधकार और प्रकाश से बद्ध है, वरन वह अनंत असीमित और अपरिमेय आनंदपूर्ण है।श्रेष्ठ आत्माएँ पुन: सत्यलोक में चली जाती हैं, बाकी सभी त्रैलोक्य में जन्म और मृत्य के चक्र में चलती रहती हैं। जैसे समुद्र का जल बादल बन जाता है, फिर बादल बरसकर पुन: समुद्र हो जाता है। जैसे बर्फ जमकर फिर पिघल जाती है।

भरतवंशी हजारों साल पहले ही विमान बना चुके थे,

महाभारत काल में विमान होने
का .......प्रमाणित सबूत मिला ..

रोमानिया में एक छोटा सा शहर है Aiud , यहाँ से कुछ मील की दुरी पर Mures नदी के पास खुदाई ...के दौरान लगभग
चतुर्भुज आकृति तथा मिश्र धातु की एक कील मिली।

शोधकर्ता Boczor Iosif जांच की और बताया कि कील रेत में 35 फीट नीचे से निकली गयी है

Lars Fischinger और उनके एक सहयोगी, डा. Niederkorn, ने इस पर रिपोर्ट पेश की तथा Institute for Research and
Design संस्थान में कील का विश्लेषण किया।

उन्होंने बताया की ये कील मिश्र धातु अर्थात 12 अलग-अलग धातुओं से बनी है।
उनकी रिपोर्ट के अनुसार उस कील में एल्यूमीनियम 89% "6.2% तांबा /
सिलिकॉन 2.84% / 1.81% /
जस्ता 0.41% का नेतृत्व / टिन 0.33% /
zirconium 0.2% / 0.11% / कैडमियम
0.००२४% निकल / / 0, 0023%
कोबाल्ट / विस्मुट ०.०,००३% /
0.0002% चांदी और Galium के निशान." हैं

परीक्षण के परिणामस्वरुप शोधकर्ताओं हैरान थे की रोमानिया में एल्यूमीनियम
को बनाना 1800 के बाद सिखा और इसे बनाने की लिए 1000 डिग्री फेरनहाइट तापमान की जरूरत भी पड़ती है फिर ये
चीज है कहाँ से .....

और जब ये कील मिली तो इसकी उम्र लगभग
400 वर्ष पुरानी आकी जा रही थी लेकिन जब इसका कार्बन 14 परिक्षण किया गया तो पता चला की ये कील तो 11,000 B.C.E. तक साल पुरानी है।
जो विमान युग समय से मेल खाता है।
तथा इसकी पहचान विमान के गियर के रूप
में हुई जब विमान नीचे उतरता था तो ये
कील उसे सपोर्ट देती थी।

1995 रोमानिया के एक और
शोधकर्ता Florian Gheorghita,
दो अलग प्रयोगशालाओं the
Archaeological Institute of Cluj-
Napoca and an independent
Swiss lab में द्वारा दुबारा फिर इस
कील की जांच की गयी और वही परिणाम
सामने आये।
Gheorghita अपनी पुस्तक Ancient
Skies में लिखा है की कि यह एक विमान
लैंडिंग गियर का हिस्सा था।Aiud की रहस्यमय कील एक विमान लैंडिंग गियर का एक टुकड़ा है जो कि कुछ 11,000 साल पहले एक विमान गिर गया था।

जानिये अपनी गौरवशाली सभ्यता और संस्कृति को.......................

एक और प्रमाण मिला है 5,000 साल पुराना विमान मिला, जैसा की मैं पहले भी साबित कर चूका हूँ, की भरतवंशी हजारों साल पहले ही विमान बना चुके थे, अब इसकी कई और अधिकारिक रिपोर्ट्स आई हैं, नीचे लिंक दिए हैं, अफगानिस्तान मेंअमेरिका का मिलट्री केम्प जहाँ से अमेरिकी सैनिकों के गायब होने की लगातार खबरे आ रहीं थीं, इसकी खोजबीन करते अमेरिकी एक गुफा थक पहुंचे, जहाँ उन्हें एक विमानके अवशेष मिले, जब वो उसेको निकालने प्रयास कर रहे थे। तभी वो अचानक गायब हो गए। इस बारे में Russian Foreign Intelligence Service (SVR) report द्वारा 21 December 2010 को एक रिपोर्ट पेश की गयी की जिसमे बताया ये विमान द्वारा उत्पन्न एक रहस्यमयी Time Well क्षेत्र है जिसकी खतरनाक electromagnetic shockwave से ये जवान मारे गये या गायब हो गये। इसी की वजह से कोई गुफा में नहीं जा पा रहा। US Military scientists ने इसकी ने बताया की ये विमान ५००० हज़ार पुराना है और जब कमांडो इसे निकालने का प्रयास कर रहे थे तो ये सक्रिय हो गया जिससे इसके चारों और Time Well क्षेत्र उत्पन्न हो गया यही क्षेत्र विमान को पकडे हुए थे। इसी क्षेत्र के सक्रिय होने के बाद 8 सील कमांडो गायब हो गए। TimeWell क्षेत्र विद्युत चुम्बकीये क्षेत्र होता है जो सर्पिलाकार होता है हमारी आकाशगंगा की तरह। Russian Foreign Intelligence ने साफ़ साफ़ बताया की ये वही विमान है जो संस्कृत रचित महाभारत में वर्णित है। और जब इसका इंजन शुरू होता है तो बड़ी मात्र में प्रकाश का उत्सर्जन होता है। SVR report का कहना है यह क्षेत्र 5 August को फिर सक्रिय हुआ था electromagnetic shockwave यानि खतरनाक किरणें उत्पन्न हुई ये इतनी खतरनाक थी की इससे 40 सिपाही तथा trained German Shepherd dogs इसकी चपेट में आ गए। US Army CH-47F Chinook हेलीकाप्टर जो ओसामा बिन लादेन को मरने के बाद बापस लौट रहा था ये हेलीकाप्टर इसी विमान की shockwaves चपेट में आ गया था.....

http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache%3Ahttp%3A%2F%2Freinep.wordpress.com%2F2011%2F10%2F09%2F5000-year-old-viamana-craft-was-found-in-afghanistan%2F
 —

भारतीय काल गणना की वैज्ञानिक पद्धति



भारतीय काल गणना की वैज्ञानिक पद्धति
यह अति सूक्ष्म से लेकत अति विशाल
है .यह एक सेकण्ड के ३००० वे भाग त्रुटी से शुरू
होता है तो युग जो कई लाख वर्ष का होता है | ब्रिटिश केलेंडर रोमन कलेण्डर कल्पना पर
आधारित था। उसमें कभी मात्र 10 महीने हुआ
करते थे। जिनमें कुल 304 दिन थे। बाद में
उन्होने जनवरी व फरवरी माह जोडकर 12 माह
का वर्ष किया। इसमें भी उन्होने वर्ष के
दिनो को ठीक करने के लिये फरवरी को 28 और 4 साल बाद 29 दिन की। कुल मिलाकर
ईसवी सन् पद्धति अपना कोई वैज्ञानिक
प्रभाव है।भारतीय पंचाग में यूं तो 9 प्रकार के
वर्ष बताये गये जिसमें विक्रम संवत् सावन
पद्धति पर आधारित है। उन्होने
बताया कि भारतीय काल गणना में समय की सबसे छोटी इकाई से लेकर ब्रम्हांड
की सबसे बडी ईकाई तक
की गणना की जाती है। जो कि ब्रहाण्ड में
व्याप्त लय और
गति की वैज्ञानिकता को सटीक तरीके से
प्रस्तुत करती है।आज कि वैज्ञानिक पद्धति कार्बन आधार पर पृथ्वी की आयु 2
अरब वर्ष के लगभग बताती है। और
यहीं गणना भारतीय पंचाग करता है।
जो कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर पूरी तरह
से प्रमाणिकता के साथ खडा हुआ है।
हमारी पृथ्वी पर जो ऋतु क्रम घटित होता है। वह भारतीय नववर्ष की संवत पद्धति से
प्रारम्भ होता है। हमारे मौसम और विविध
प्राकृतिक घटनाओं पर ग्रह
नक्षत्रो का प्रभाव पडता है। जिसका गहन
अध्ययन भारतीय काल गणना पद्धति मे हुआ
है भारतीय ज्योतिष
ग्रहनक्षत्रों की गणना की वह पद्धति है
जिसका भारत में विकास हुआ है। आजकल
भी भारत में इसी पद्धति से पंचांग बनते हैं,
जिनके आधार पर देश भर में धार्मिक कृत्य
तथा पर्व मनाए जाते हैं। वर्तमान काल में अधिकांश पंचांग सूर्यसिद्धांत, मकरंद
सारणियों तथा ग्रहलाघव की विधि से
प्रस्तुत किए जाते हैं। विषुवद् वृत्त में एक समगति से चलनेवाले
मध्यम सूर्य (लंकोदयासन्न) के एक उदय से दूसरे
उदय तक एक मध्यम सावन दिन होता है। यह
वर्तमान कालिक अंग्रेजी के 'सिविल
डे' (civil day) जैसा है। एक सावन दिन में 60
घटी; 1 घटी 24 मिनिट साठ पल; 1 पल 24 सेंकेड 60 विपल तथा 2 1/2 विपल 1 सेंकेंड
होते हैं। सूर्य के किसी स्थिर बिंदु
(नक्षत्र) के सापेक्ष पृथ्वी की परिक्रमा के
काल को सौर वर्ष कहते हैं। यह स्थिर बिंदु
मेषादि है। ईसा के पाँचवे शतक के आसन्न तक
यह बिंदु कांतिवृत्त तथा विषुवत् के संपात में था। अब यह उस स्थान से लगभग 23 पश्चिम
हट गया है, जिसे अयनांश कहते हैं।
अयनगति विभिन्न ग्रंथों में एक
सी नहीं है। यह लगभग प्रति वर्ष 1
कला मानी गई है। वर्तमान सूक्ष्म
अयनगति 50.2 विकला है। सिद्धांतग्रथों का वर्षमान 365 दिo 15 घo
31 पo 31 विo 24 प्रति विo है। यह
वास्तव मान से 8।34।37 पलादि अधिक है।
इतने समय में सूर्य की गति 8.27 होती है।
इस प्रकार हमारे वर्षमान के कारण
ही अयनगति की अधिक कल्पना है। वर्षों की गणना के लिये सौर वर्ष का प्रयोग
किया जाता है। मासगणना के लिये चांद्र
मासों का। सूर्य और चंद्रमा जब राश्यादि में
समान होते हैं तब वह अमांतकाल तथा जब 6
राशि के अंतर पर होते हैं तब वह
पूर्णिमांतकाल कहलाता है। एक अमांत से दूसरे अमांत तक एक चांद्र मास होता है, किंतु शर्त
यह है कि उस समय में सूर्य एक राशि से
दूसरी राशि में अवश्य आ जाय। जिस चांद्र
मास में सूर्य की संक्रांति नहीं पड़ती वह
अधिमास कहलाता है। ऐसे वर्ष में 12 के स्थान
पर 13 मास हो जाते हैं। इसी प्रकार यदि किसी चांद्र मास में दो संक्रांतियाँ पड़
जायँ तो एक मास का क्षय हो जाएगा। इस
प्रकार मापों के चांद्र रहने पर भी यह
प्रणाली सौर प्रणाली से संबद्ध है। चांद्र दिन
की इकाई को तिथि कहते हैं। यह सूर्य और
चंद्र के अंतर के 12वें भाग के बराबर होती है। हमारे धार्मिक दिन तिथियों से संबद्ध है1
चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है उसे चांद्र
नक्षत्र कहते हैं। अति प्राचीन काल में वार के
स्थान पर चांद्र नक्षत्रों का प्रयोग होता था।
काल के बड़े मानों को व्यक्त करने के लिये युग
प्रणाली अपनाई जाती है। वह इस प्रकार है: कृतयुग (सत्ययुग) 17,28,000 वर्ष द्वापर 12,96,000 वर्ष त्रेता 8, 64,000 वर्ष कलि 4,32,000 वर्ष योग महायुग 43,20,000 वर्ष कल्प 1000 महायुग 4,32,00,00,000 वर्ष सूर्य सिद्धांत में बताए आँकड़ों के अनुसार
कलियुग का आरंभ 17 फरवरी, 3102 ईo पूo
को हुआ था। युग से अहर्गण (दिनसमूहों)
की गणना प्रणाली, जूलियन डे नंबर के
दिनों के समान, भूत और भविष्य
की सभी तिथियों की गणना में सहायक हो सकती है। वायु पुराण में दिए गए विभिन्न काल खंडों के
विवरण के अनुसार , दो परमाणु मिलकर एक
अणु का निर्माण करते हैं और तीन अणुओं के
मिलने से एक त्रसरेणु बनता है। तीन
त्रसरेणुओं से एक त्रुटि , 100 त्रुटियों से एक
वेध , तीन वेध से एक लव तथा तीन लव से एक निमेष (क्षण) बनता है। इसी प्रकार तीन
निमेष से एक काष्ठा , 15 काष्ठा से एक लघु ,
15 लघु से एक नाडिका , दो नाडिका से एक
मुहूर्त , छह नाडिका से एक प्रहर तथा आठ
प्रहर का एक दिन और एक रात बनते हैं। दिन
और रात्रि की गणना साठ घड़ी में भी की जाती है। तदनुसार प्रचलित एक घंटे
को ढाई घड़ी के बराबर कहा जा सकता है। एक
मास में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं। शुक्ल
पक्ष और कृष्ण पक्ष। सूर्य
की दिशा की दृष्टि से वर्ष में भी छह-छह
माह के दो पक्ष माने गए हैं- उत्तरायण तथा दक्षिणायन। वैदिक काल में वर्ष के 12
महीनों के नाम ऋतुओं के आधार पर रखे गए थे।
बाद में उन नामों को नक्षत्रों के आधार पर
परिवर्तित कर दिया गया , जो अब तक
यथावत हैं। चैत्र , वैशाख , ज्येष्ठ , आषाढ़
श्रावण , भाद्रपद , आश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष , पौष , माघ और फाल्गुन।
इसी प्रकार दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर रखे
गए- रवि , सोम (चंद्रमा) , मंगल , बुध , गुरु ,
शुक्र और शनि। इस प्रकार काल
खंडों को निश्चित आधार पर निश्चित
नाम दिए गए और पल-पल की गणना स्पष्ट की गई। सृष्टि की कुल आयु 4320000000 वर्ष
मानी गई है। इसमें से वर्तमान आयु निकालकर
सृष्टि की शेष आयु 2,35,91,46,895 वर्ष है

Thursday, 25 July 2013

कंकोड़ा या खेखसा या कर्टूल

कंकोड़ा या खेखसा या कर्टूल 
बड़ी बेर जैसे गोल एवं बेलनाकार एक से डेढ़ इंच के, बारीक काँटेदार, हरे रंग के खेखसे केवल वर्षा ऋतु में ही उपलब्ध होते हैं। ये प्रायः पथरीली जमीन पर उगते हैं एवं एक दो महीने के लिए ही आते हैं। अंदर से सफेद एवं नरम बीजवाले खेखसों का ही सब्जी के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
खेखसे स्वाद में कड़वे-कसैले, कफ एवं पित्तनाशक, रूचिकर्त्ता, शीतल, वायुदोषवर्धक, रूक्ष, मूत्रवर्धक, पचने में हल्के, जठराग्निवर्धक एवं शूल, पित्त, कफ, खाँसी, श्वास, बुखार, कोढ़, प्रमेह, अरूचि, पथरी तथा हृदयरोगनाशक हैं।
औषधि-प्रयोग---
- बुखार में खेखसे (कंकोड़े) के पत्तों के काढ़े में शहद डालकर पीने से लाभ होता है।
- खेखसे के कंद का 5 ग्राम चूर्ण एवं 5 ग्राम मिश्री के चूर्ण को मिलाकर सुबह शाम लेने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
- आधासीसीः खेखसे की जड़ को थोड़े से घी में तल लें। उस घी की दो-तीन बूँदें नाक में डालने से आधासीसी के दर्द में लाभ होता है।
- अत्यधिक पसीना आने परः खेखसे के कंद का पावडर बनाकर, रोज स्नान के वक्त वह पावडर शरीर पर मसलकर नहाने से शरीर से दुर्गन्धयुक्त पसीना बंद होता है एवं त्वचा मुलायम बनती है।
- खाँसीः खेखसे के कंद का 3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
- खेखसे के जड़ की दो से तीन रत्ती (250 से 500 मिलीग्राम) भस्म को शहद एवं अदरक के रस के साथ देने से भयंकर खाँसी एवं श्वास में राहत मिलती है।
- पथरीः खेखसे की जड़ का 10 ग्राम चूर्ण दूध अथवा पानी के साथ रोज लेने से किडनी एवं मूत्राशय में स्थित पथरी में लाभ होता है।
- शिरोवेदनाः खेखसे की जड़ को कालीमिर्च, रक्तचंदन एवं नारियल के साथ पीसकर ललाट पर उसका लेप करने से पित्त के कारण उत्पन्न शिरोवेदना में लाभ होता है।
- विशेषः खेखसे की सब्जी में वायु प्रकृति की होती है। अतः वायु के रोगी इसका सेवन न करें। इस सब्जी को थोड़ी मात्रा में ही खाना ठीक है।
- खेखसे की सब्जी बुखार, खाँसी, श्वास, उदररोग, कोढ़, त्वचा रोग, सूजन एवं डायबिटीज के रोगियों के लिए ज्यादा हितकारी है। - श्लीपद (हाथीपैर) रोग में भी खेखसे की सब्जी का सेवन एवं उसके पत्तों का लेप लाभप्रद है।
- जो बच्चे दूध पीकर तुरन्त उल्टी कर देते हों, उनकी माताओं के लिए भी खेखसे की सब्जी का सेवन लाभप्रद है।

इंडोनेशिया सभी मुस्लिम देशों में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है

 इंडोनेशिया सभी मुस्लिम देशों में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है, फिर भी वहाँ अमन और शांति है, कोई दंगा फसाद या जेहाद नहीं है, इसका पता है क्या कारण है ? इसका कारण है कि जब वहाँ पर मुस्लिम्स के यहाँ बच्चे पैदा होते हैं, तो और देशों की तरह उनके कान में जेहादी बनने के मन्त्र ना मार कर उनके यहाँ पर रामायण का पाठ करवाया जाता है, जो बच्चों के कान के माध्यम से सीधे उनके मन में उतर जाता है..

उनकी मुद्रा पर भगवान श्री गणेश जी का चित्र अंकित हैं, (जैसा आप चित्र में देख रहे हैं)

और इंडोनेशिया के सबसे बड़े एयरपोट पर समुद्र मंथन करते हुए, एक पत्थर की शानदार झाँकी लगाई हुई है, जो एयरपोट में प्रवेश करते ही दिखाई देती है, समय- समय पर मुस्लिम्स अपने यहाँ पर कथा करवाते हैं, मंदिरों को वहाँ पर तोडा नहीं जाता है, बल्कि मंदिरों को वहाँ पर मुस्लिम समाज द्वारा पूजा जाता है, भगवान राम की कहीं बातों को वहाँ पर बच्चों को पढाया जाता है..

आप रोज सुनते होंगे कि फलां- फलां मुस्लिम देश में ब्लास्ट हुआ तो इतने मर गए, फलां- फलां मुस्लिम देश में जेहादिओं ने ब्लास्ट किया तो उतने मर गए, पर आपने शायद ही कभी खबर पढ़ी या सुनी होगी कि इंडोनेशिया में ब्लास्ट हुआ या जेहादिओं ने लोगों को मार दिया.. आखिर जिस बच्चे के पैदा होते ही उसके कान में 'प्रभु श्री राम की कथा' का प्रवाह कर दिया जाएगा फिर वो बच्चा आंतकवादी या जेहादी कैसे बन सकता है ?  

इंडोनेशिया के मुस्लिम और वहाँ की सरकार समझदार हैं उनको पता है कि जिन- जिन मुस्लिम देशों में से हिंदुओं को खत्म किया गया, वहाँ- वहाँ पर अल्ला भी उनसे नाराज हो गया, और आज वो देश खत्म होने की कगार पर खड़े हैं, खाने को रोटी नहीं नहीं तन ढकने को कपडा नहीं है, और पडौसी देश दुश्मन बने हुए हैं वो अलग.. इंडोनेशिया एक मात्र ऐसा मुस्लिम देश है जिसका कोई बुरा करना नहीं चाहता या उसका कोई दुश्मन नही है, इसके विपरीत कोई भी मुस्लिम देश उठा कर देख लो जिसका कोई दुश्मन देश ना हो..

एक लाइन में कहूँ तो इंडोनेशिया के मुस्लिम्स को पता है कि उनका धर्म कहाँ से पैदा हुआ और उनके पूर्वज कौन है, और वो इसको मानने में कोई शर्म महसूस नहीं करते हैं कि हमारे पूर्वज हिंदू थे,

इसके विपरीत हमारे भारत के मुस्लिम्स हैं जिनको पता है कि अरब के मुस्लिम्स से हमारा कुछ लेना- देना नहीं है, हमारे पूर्वज हिंदू थे, और वैज्ञानिक भी इस चीज़ को DNA के आधार पर सिद्ध कर चुके हैं कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुस्लिम्स का अरब के मुस्लिम्स से कोई लेना- देना नहीं है, और सबके पूर्वज हिंदू थे, पर पता नहीं फिर क्यों हमारे यहाँ के मुस्लिम अरब के मुस्लिम्स का नाम ले- लेकर अपनी छातियाँ फुलाते रहते हैं ?

अपने पूर्वजों को पहचानो और उनको सम्मान देना सीखो, क्योंकि अपने पूर्वजों का दिल दुखाकर बच्चे कभी सुखी नहीं रह सकते, और ऐसा ही आज हरेक मुस्लिम देश में हो रहा है..(इंडोनेशिया को छोडकर)..

क्योंकि मित्रों पेड चाहे जितना मर्जी बड़ा हो जाए, पर यदि वो अपनी जड़ों को गाली देने लगेगा या उसको ही काटने बैठ जाएगा, तो पेड ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पाएगा, और सुख कर गिर पड़ेगा, ऐसा ही कुछ सनातन धर्म भी इस्लाम की जड़ों में है.. 

...............................................................
कुछ तथ्य –

1 - एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया , बलात धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू ओरतों के बलात्कार हुए) और यह सब हुआ गाँधी के खिलाफत आन्दोलन के कारण |

2 – 1920 तक तिलक की जिस कोंग्रेस का लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति था गाँधी ने अचानक उसे बदलकर आन्तरिक विरोध के बाद भी एक दूर देश तुर्की के खलीफा के सहयोग और मुस्लिम आन्दोलन में बदल डाला

3 - गाँधी जी अपनी निति के कारण इसके उत्तरदायी थे,मौन रहे।”
”उत्तर में यह कहना शुरू कर दिया कि - मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया सिर्फ मारा गया जबकि उनके मुस्लिम मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है।

4 – इतने बड़े दंगो के बाद भी गांधी की अहिंसा की दोगली नीत पर कोई फर्क नहीं पड़ा मुसलमानों को खुश करने के लिए इतने बड़े दंगो के दोषी मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया। “

5 - गाँधी ने “खिलाफत आन्दोलन” का समर्थन करके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने का काम किया |

6 - श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि राष्ट्रवादी नेताओं ने कांग्रेस की बैठक मैं खिलाफत के समर्थन का विरोध किया , किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान मैं गाँधी जीत गए |

7 - महामना मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ एनी नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु गांधीजी ने कहा ‘ मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को स्वराज से भी ज्यादा महत्व देता हूँ ‘ |

8 - महान स्वाधीनता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था , ‘ गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुस्त करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चलके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने मैं सहायक सिद्ध होगी ‘

9 – खिलाफत आन्दोलन का समर्थ कर गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुस्लिम कट्टरवाद तथा अलगावबाद को बढ़ावा दिया था |

10 - डा. एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को दिल्ली मैं जारी अपने वक्तब्य मैं कहा था था – “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन का भाग बनाकर गांधीजी था कुछ कंग्रेस्सी नेताओं ने मजहवी हिंसा को पनपने का अवसर दिया | एक ओर खिलाफत आन्दोलनकारी मोपला मुस्लिम मौलानाओं द्वारा मस्जिदों मैं भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे और दूसरी और असहयोग आन्दोलनकारी हिन्दू जनता से यह अपील कर रहे थे की हिन्दू – मुस्लिम एकता को पुस्त करने के लिए खिलाफत वालों को पूर्ण सहयोग दिया जाए ”
.............................................................................................