Monday 15 July 2013

बिजली बना रहा है नैनीताल का 'आठवीं फेल इंजीनियर' ---



राजीव भाई कहते थे की हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था ऐसी है की यहाँ फेल विद्यार्थी का मतलब ये नहीं की वो एकदम ही मूर्ख है. उलटे वो किसी भी एक विषय में बहुत ज़्यादा प्रतिभावान हो सकता है.
इसे साबित किया है 32 साल के कुबेर सिंह डोगरा ने. नैनीताल के बैलपड़ाव गांव के रहने वाले आठवी पास कुबेर अपनी काबिलियत से इंजीनियर बने हैं.वॉटरमिल (पनचक्की) के जरिये बिजली बनाने की वजह से वह इलाके में मशहूर हो गए हैं. खराब माली हालत की वजह से वह आठवीं क्लास से आगे नहीं पढ़ पाए. लेकिन अब यह बात उनकी कामयाबी के आड़े नहीं आती.

वह अभी पड़ोस के छह परिवारों को बिजली मुहैया करा रहे हैं. प्यार से गांव वाले उन्हें 'आठवीं फेल इंजीनियर' बुलाते हैं. साल भर पहले तक कुबेर उनके लिए एक मामूली कार मैकेनिक था, जो वॉटरमिल चलाता था और अपने खाली समय में अनाज पीसता था.

लेकिन कुबेर की जिंदगी ने छह महीने पहले अहम मोड़ लिया. उत्तराखंड नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (यूरेडा) के कुछ लोग गांव के दौरे पर आए थे. उन्होंने डोगरा परिवार की वॉटरमिल देखी तो उससे बिजली बनाने की सलाह दी. कुबेर को आइडिया जंच गया और उन्होंने कोशिश करने की ठानी.

उन्होंने बताया, 'मैंने सुना था कि पहाड़ी इलाकों में लोग वॉटरमिल से बिजली बनाते हैं. इस बारे में कुछ जानकारी जुटाने के बाद मैंने सोचा कि मैं भी कोशिश करता हूं.'

कुबेर ने परिवार के लोगों और दोस्तों से उधार लेकर हल्द्वानी की बाजार से 3केवीए ऑल्टरनेटर खरीदा. शुरुआती कोशिशें नाकाम रहीं. उन्होंने बताया, 'फिर मैंने पानी का दबाव बढ़ाया और आखिरकार सफलता मिल गई. अब मैं पड़ोस के छह परिवारों को मुफ्त बिजली देता हूं.'

कुबेर का प्रयोग सामान्य, पर कारगर है. वॉटरमिल के टर्बाइन को एक बेल्ट ऑल्टरनेटर से जोड़ती है जो बिजली बनाने में मदद करता है.

कुबेर की वॉटरमिल दिन में अब अनाज पीसती है और रात में बिजली बनाती है. मशहूर कार्बेट पार्क से सटे बैलपड़ाव गांव में बिजली सप्लाई खस्ता रहती है. खास तौर पर मानसून और ऐसे समय में जंगली जानवर बिजली के तारों को नुकसान पहुंचा देते हैं. लेकिन डोगरा परिवार और उनके छह पड़ोसी नियमित बिजली का आनंद ले रहे हैं.

कुबेर के पूर्वज चार-पांच दशक पहले जम्मू-कश्मीर के पठानकोट के एक गांव से उत्तराखंड चले आए थे. कुबेर के परिवार ने सिंचाई विभाग से लीज पर वॉटरमिल ले ली, जिससे अपना गुजर-बसर करने लगे.

कुबेर बताते हैं, 'पैसों की कमी और मां-बाप की मौत की वजह से पढ़ाई छोड़नी पड़ी. आठवीं क्लास में फेल होने के बाद मैंने मैकेनिक की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था.'

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