Saturday, 30 November 2013

इतिहास के गौरवपूर्ण तथ्य

भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण तथ्य (गर्व से SHARE करें )
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1. जब कई संस्कृतियों 5000 साल पहले ही घुमंतू वनवासी थे, भारतीय सिंधु घाटी (सिंधु घाटी सभ्यता) में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की।
2. भारत के इतिहास के अनुसार, आखिरी 100000 वर्षों में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।
3. भारत का अंग्रेजी में नाम ‘इंडिया’ इंडस नदी से बना है, जिसके आस पास की घाटी में आरंभिक सभ्यताएं निवास करती थी। आर्य पूजकों में इस इंडस नदी को सिंधु कहा।
4. पर्शिया के आक्रमकारियों ने इसे हिन्दु में बदल दिया। नाम ‘हिन्दुस्तान’ ने सिंधु और हीर का संयोजन है जो हिन्दुओं की भूमि दर्शाता है।
5. शतरंज की खोज भारत में की गई थी।
6. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का अध्ययन भारत में ही आरंभ हुआ था।
7. ‘स्थान मूल्य प्रणाली’ और ‘दशमलव प्रणाली’ का विकास भारत में 100 बी सी में हुआ था।
8. विश्व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बनें हैं यह भव्य मंदिर राजा राज चोल के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 ए डी और 1009 ए डी के दौरान) निर्मित किया गया था।
9. भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्व का छठवां सबसे बड़ा देश तथा प्राचीन सभ्यताओं में से एक है।
10. सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्दी में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्छे काम लोगों को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम दोबारा जन्म के चक्र में डाल देते हैं।
11. दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बना कर 1893 में तैयार किया गया था।
12. भारत में विश्व भर से सबसे अधिक संख्या में डाक खाने स्थित हैं।
13. विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता भारतीय रेल है, जिसमें सोलह लाख से अधिक लोग काम करते हैं।
14. विश्व का सबसे प्रथम विश्वविद्यालय 700 बी सी में तक्षशिला में स्थापित किया गया था। इसमें 60 से अधिक विषयों में 10,500 से अधिक छात्र दुनियाभर से आकर अध्ययन करते थे। नालंदा विश्वविद्यालय चौथी शताब्दी में स्थापित किया गया था जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है।
15. आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्सा शाखा है। शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक ने 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।
16. भारत 17वीं शताब्दी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्य आने से पहले सबसे सम्पन्न देश था। क्रिस्टोफर कोलम्बस ने भारत की सम्पन्नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजा, उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।
17. नौवहन की कला और नौवहन का जन्म 6000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्कृत शब्द नव गति से उत्पन्न हुआ है। शब्द नौ सेना भी संस्कृत शब्द नोउ से हुआ।
18. भास्कराचार्य ने खगोल शास्त्र के कई सौ साल पहले पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।
19. भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा ‘पाई’ का मूल्य ज्ञात किया गया था और उन्होंने जिस संकल्पना को समझाया उसे पाइथागोरस का प्रमेय करते हैं। उन्होंने इसकी खोज छठवीं शताब्दी में की, जो यूरोपीय गणितज्ञों से काफी पहले की गई थी।
20. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का उद्भव भी भारत में हुआ था। चतुष्पद समीकरण का उपयोग 11वीं शताब्दी में श्री धराचार्य द्वारा किया गया था। ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसे बड़ी संख्या 106 थी जबकि हिन्दुओं ने 10*53 जितने बड़े अंकों का उपयोग (अर्थात 10 की घात 53), के साथ विशिष्ट नाम 5000 बीसी के दौरान किया। आज भी उपयोग की जाने वाली सबसे बड़ी संख्या टेरा: 10*12 (10 की घात12) है।
21. वर्ष 1986 तक भारत विश्व में हीरे का एक मात्र स्रोत था (स्रोत: जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका)
22. बेलीपुल विश्व में सबसे ऊंचा पुल है। यह हिमाचल पवर्त में द्रास और सुरु नदियों के बीच लद्दाख घाटी में स्थित है। इसका निर्माण अगस्त 1982 में भारतीय सेना द्वारा किया गया था।
23. सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। लगभग 2600 वर्ष पहले सुश्रुत और उनके सहयोगियों ने मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों को लगना, शल्य क्रिया द्वारा प्रसव, अस्थिभंग जोड़ना, मूत्राशय की पथरी, प्लास्टिक सर्जरी और मस्तिष्क की शल्य क्रियाएं आदि की।
24. निश्चेतक का उपयोग भारतीय प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में भली भांति ज्ञात था। शारीरिकी, भ्रूण विज्ञान, पाचन, चयापचय, शरीर क्रिया विज्ञान, इटियोलॉजी, आनुवांशिकी और प्रतिरक्षा विज्ञान आदि विषय भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पाए जाते हैं।
25. भारत से 90 देशों को सॉफ्टवेयर का निर्यात किया जाता है।
26. भारत में 4 धर्मों का जन्म हुआ – हिन्दु धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म ओर सिक्ख धर्म, जिनका पालन दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा करता है।
27. जैन धर्म और बौद्ध धर्म की स्थापना भारत में क्रमश: 600 बी सी और 500 बी सी में हुई थी।
28. इस्लाम भारत का और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।
29. भारत में 3,00,000 मस्जिदें हैं जो किसी अन्य देश से अधिक हैं, यहां तक कि मुस्लिम देशों से भी अधिक।
30. भारत में सबसे पुराना यूरोपियन चर्च और सिनागोग कोचीन शहर में है। इनका निर्माण क्रमश: 1503 और 1568 में किया गया था।
31. ज्यू और ईसाई व्यक्ति भारत में क्रमश: 200 बी सी और 52 ए डी से निवास करते हैं।
32. विश्व में सबसे बड़ा धार्मिक भवन अंगकोरवाट, हिन्दु मंदिर है जो कम्बोडिया में 11वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था।
33. तिरुपति शहर में बना विष्णु मंदिर 10वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था, यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक गंतव्य है। रोम या मक्का धामिल स्थलों से भी बड़े इस स्थान पर प्रतिदिन औसतन 30 हजार श्रद्धालु आते हैं और लगभग 6 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति दिन चढ़ावा आता है।
34. सिक्ख धर्म का उद्भव पंजाब के पवित्र शहर अमृतसर में हुआ था। यहां प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर की स्थापना 1577 में गई थी।
35. वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है जब भगवान बुद्ध ने 500 बी सी में यहां आगमन किया और यह आज विश्व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।
36. भारत द्वारा श्रीलंका, तिब्बत, भूटान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के 3,00,000 से अधिक शरणार्थियों को सुरक्षा दी जाती है, जो धार्मिक और राजनैतिक अभियोजन के फलस्वरूप वहां से निकल गए हैं।
37. माननीय दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के निर्वासित धार्मिक नेता है, जो उत्तरी भारत के धर्मशाला से अपने निर्वासन में रह रहे हैं।
38. युद्ध कलाओं का विकास सबसे पहले भारत में किया गया और ये बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा पूरे एशिया में फैलाई गई।
39. योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यहां 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद हैं।

"मालाबार राज्य" बनाने की मांग

"सेक्यूलरिज्म और गाँधीवाद" एक बार पुनः बधाई का पात्र बना है... इस बार उनके लिए खुशखबरी आई है केरल से, जहाँ मुस्लिम लीग की युवा शाखा ने कासरगौड़, मलप्पुरम, त्रिसूर, कालीकट सहित अन्य तीन जिलों को मिलाकर एक नया राज्य "मालाबार राज्य" बनाने की मांग की है...

मुस्लिम लीग की युवा शाखा की विज्ञप्ति के अनुसार, इस राज्य के बनने से इलाके के मुसलमानों की स्थिति में सुधार होगा... उल्लेखनीय है कि इन जिलों में मुस्लिम आबादी २० प्रतिशत से लेकर ४० प्रतिशत के बीच है.

मुझे पता है कि "सेक्यूलरिज्म" के एड्स से पीड़ित रोगी यही कहेंगे कि "...क्या फर्क पड़ता है? एक राज्य की ही तो माँग कर रहे हैं ना? इसमें क्या गलत है?..."

मैं ऐसे लोगों के लिए "मूर्ख" शब्द का उपयोग कतई नहीं करूँगा, क्योंकि पाकिस्तान बनने से लेकर, देश में आए दिन होने वाले दंगों, असम और पश्चिम बंगाल की हालत ने पहले ही सिद्ध कर दिया है...कि ये लोग मूर्ख नहीं, बल्कि "उस" टाईप के शतुरमुर्ग हैं....

by Suresh Chiplunkar

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आप उर्दू को अपनी भाषा कहते हैं. हमें भी पसंद है ये जुबान. लेकिन आप सभी उर्दू अखबारो पर कभी नजर डालिए. फर्क नहीं पता चलेगा कि आप भारत का अखबार पढ़ रहे हैं या पाकिस्तान का. 'इंडिया पालिसी फाउन्डेशन' पाक्षिक रूप से उर्दू अखबारों की समीक्षा करता है. उसके बुलेटिन पढ़ लीजिए..रोंगटे खड़े हो जायेंगे आपके. ऐसे कुछ उर्दू अखबारों के अनुसार 'पटना धमाके संघ ने ही कराये थे.' 6 नवंबर के अंक में एक कठमुल्ले का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है जिसमें ये बात कही गयी है. मुंबई से प्रकाशित 'दैनिक उर्दू टाइम्स' अपने 10 नवंवर के अंक में यह दावा करता है कि 'देश में हो रहे बम धमाके में 'भगवा आतंकियों' का हाथ है.' जरा सोचिये.
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सत्य के चमत्कार
{1}फर्जी सेक्स सीडी के कारण बदनाम हुए नित्यानंद स्वामी कोर्ट से बाइज्जत बरी, कोर्ट द्वारा उन्हेँ बदनाम करने वाले न्यूज चैनलोँ को माफी माँगने के आदेश।
{2}शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वतीजी कोर्ट द्वारा बाइज्जत बरी।
{3}उड़ीसा के वनवासी क्षेत्रोँ मेँ सेवाकार्य करने वाले हिन्दू संत स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या करने वाले सात ईसाई मिशनरियोँ को उम्रकैद।
{4}गुजरात मेँ त्रिवेदी जाँच आयोग द्वारा आसारामजी बापू को क्लीनचिट।
{5}गुजरात महिला आयोग द्वारा आसारामजी आश्रम को क्लिनचिट।
{6}तेजपाल के कुकर्मोँ से मीडिया सेन्टरोँ मेँ चल रहे अय्याशी के कारनामोँ का भण्डाफोड़।

Friday, 29 November 2013

श्रीनगर का नाम "शहर-ए खास"


फैसबुक पर केन्द्र सरकार का सबसे बड़ा खुलासा :

अब श्रीनगर कहलायेगा "शहर-ए-खास" तो अनंतनाग बनेगा 'इस्लामाबाद' जरूर पढ़े यह Report कश्मीर में क्या-क्या बदल गया और क्या बदलने वाला है :--

1. श्री नगर में गोपाद्री पहाड़ी है। कश्मीर की यात्रा के समय आधशंकराचार्य ने इस पहाड़ी पर कुछ दिनो तक तपस्य की थी। अतः लोगो ने सैंकड़ो वर्ष ही इस पहाड़ी का नाम शंकराचार्य पहाड़ी रख दिया था जो सरकारी दस्तावेजो में भी मौजुद है।

लेकिन अब इस पहाड़ी का नाम 'सुलेमान टापु' रख दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि भारत सरकार के ASI ने भी अब वहां बोर्ड बदल दिया है जिस पर लिखा हुआ है - सुलेमान टॉपु।

2. श्रीनगर में हरि पर्वत है। अब इसका नाम बदलकर "कोह महारन" रख दिया गया है।

3. कश्मीर घाटी में एक अनंतनाग जिला है। वहां के लोग अब अनंतनाग को इस्लामाबाद कहने लगे हैं। वे लोग अपने
दुकानो के उपर इस्लामाबाद लिखने लगे है।

नाम बदलने के लिये वहां के लोग आंदोलन कर रहे हैं। सरकारी आश्वासन भी मिल चुका है।

4. अनंतनाग जिले में एक प्रसिद्ध तिर्थस्थान है-उमानगरी।

इसका भी नाम बदलकर 'शेखपुरा' कर दिया गया है।

5. जम्मुकश्मीर सरकार को अब श्रीनगर नाम भी हजम नही हो रहा है।

राज्य सरकार
श्रीनगर का नाम "शहर-ए खास" रखने पर कई बार विचार कर चुकी है।

6. श्रीनगर में जिस चौक पर जामा मस्जिद स्थित है उस चौक का हिंदू नाम से बदलकर इस्लामीक नाम 'मदीना चौक' रख दिया गया है।

7. घाटी में बहने वाली किशनगंगा नदी को अब "दरिया-ए-नीलम कहा जाने लगा है।

ये इस्लामिक कट्टरपंथियों की विकृततम मानसिकता का एक नमूना भर 

"सेक्यूलरिज्म और गाँधीवाद" एक बार पुनः बधाई का पात्र बना है..


Following · 8 minutes ago 

"सेक्यूलरिज्म और गाँधीवाद" एक बार पुनः बधाई का पात्र बना है... इस बार उनके लिए खुशखबरी आई है केरल से, जहाँ मुस्लिम लीग की युवा शाखा ने कासरगौड़, मलप्पुरम, त्रिसूर, कालीकट सहित अन्य तीन जिलों को मिलाकर एक नया राज्य "मालाबार राज्य" बनाने की मांग की है...

मुस्लिम लीग की युवा शाखा की विज्ञप्ति के अनुसार, इस राज्य के बनने से इलाके के मुसलमानों की स्थिति में सुधार होगा... उल्लेखनीय है कि इन जिलों में मुस्लिम आबादी २० प्रतिशत से लेकर ४० प्रतिशत के बीच है
मुझे पता है कि "सेक्यूलरिज्म" के एड्स से पीड़ित रोगी यही कहेंगे कि "...क्या फर्क पड़ता है? एक राज्य की ही तो माँग कर रहे हैं ना? इसमें क्या गलत है?..."

मैं ऐसे लोगों के लिए "मूर्ख" शब्द का उपयोग कतई नहीं करूँगा, क्योंकि पाकिस्तान बनने से लेकर, देश में आए दिन होने वाले दंगों, असम और पश्चिम बंगाल की हालत ने पहले ही सिद्ध कर दिया है...कि ये लोग मूर्ख नहीं, बल्कि "उस" टाईप के शतुरमुर्ग हैं... 

नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था..?

नालंदा विश्वविद्यालय
को क्यों जलाया गया था..? जानिए
सच्चाई ...??

एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मियां लूटेरा था ....बख्तियार खिलजी. इसने
११९९ इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था. एक बार वह बहुत बीमार पड़ा उसके हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली ...
मगर वह ठीक नहीं हो सका. किसी ने उसको सलाह दी... नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के
प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय
उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई भारतीय वैद्य ... उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और
वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाए फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए उनको बुलाना पड़ा उसने वैद्यराज के सामने शर्त रखी... मैं तुम्हारी दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा... किसी भी तरह मुझे ठीक करों ... वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो. बेचारे वैद्यराज को नींद नहीं आई... बहुत उपाय सोचा... अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए.. कहा...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...! उसने पढ़ा और ठीक हो गया .. जी गया...
उसको बड़ी झुंझलाहट हुई...उसको ख़ुशी नहीं हुई उसको बहुत गुस्सा आया कि ... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...! बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ... उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ...पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया...! वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले.
आज भी बेशरम सरकारें...उस नालायक बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... !
उखाड़ फेंको इन अपमानजनक नामों को... मैंने यह तो बताया ही नहीं... कुरान पढ़ के वह कैसे ठीक हुआ था. हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते... थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते मिएँ ठीक उलटा करते हैं..... कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के पलटते हैं...! बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था...
वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट गया...ठीक हो गया और उसने इस एहसान का बदला नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया

आईये अब थोड़ा नालंदा के बारे में भी जान लेते है यह प्राचीन भारत में उच्च्शि क्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शती में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था। स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानिए शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला। स्वरूप यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब १०,००० एवं अध्यापकों की संख्या २००० थी। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। परिसर अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी। प्रबंधन समस्त विश्वविद्यालय का प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे जो भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित होते थे।
कुलपति दो परामर्शदात्री समितियों के परामर्श से सारा प्रबंध करते थे। प्रथम समिति शिक्षा तथा पाठ्यक्रम संबंधी कार्य देखती थी और द्वितीय समिति सारे विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था तथा प्रशासन की देख--भाल करती थी। विश्वविद्यालय को दान में मिले दो सौ गाँवों से प्राप्त उपज और आय
की देख--रेख यही समिति करती थी। इसी से सहस्त्रों विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े तथा आवास का प्रबंध होता था। आचार्य इस विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम,
द्वितीय और तृतीय श्रेणी में आते थे। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे। 7वीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है, प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे। उनके लिखे जिन तीन ग्रंथों की जानकारी भी उपलब्ध है वे हैं: दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। ज्ञाता बताते हैं, कि उनका एक अन्य ग्रन्थ आर्यभट्ट सिद्धांत भी था, जिसके आज मात्र ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ का ७वीं शताब्दी में बहुत उपयोग होता था। प्रवेश के नियम प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी और
उसके कारण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। उन्हें तीन कठिन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था। यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है। शुद्ध आचरण और संघ के नियमों का पालन
करना अत्यंत आवश्यक था। अध्ययन-अध्यापन पद्धति इस विश्वविद्यालय में आचार्य छात्रों को मौखिक व्याख्यान द्वारा शिक्षा देते थे। इसके अतिरिक्त पुस्तकों की व्याख्या भी होती थी। शास्त्रार्थ होता रहता था। दिन के हर पहर में अध्ययन तथा शंका समाधान चलता रहता था।
अध्ययन क्षेत्र
यहाँ महायान के प्रवर्तक नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की रचनाओं का सविस्तार अध्ययन होता था। वेद, वेदांत और सांख्य भी पढ़ाये जाते थे। व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे। नालंदा कि खुदाई में मिलि अनेक
काँसे की मूर्तियोँ के आधार पर कुछ विद्वानों का मत है कि कदाचित् धातु की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान
का भी अध्ययन होता था। यहाँ खगोलशास्त्र अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। पुस्तकालय
नालंदा में सहस्रों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था जिसमें ३ लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था।
'रत्नोदधि' पुस्तकालय में अनेक अप्राप्य हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत थी। इनमें से अनेक पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।
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संत तुलसी दास रचित रामचरित मानस के बालकांड से उद्धृत
गुरु वंदना

* बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥
भावार्थ:-मैं उन श्रीगुरु के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥

चौपाई :
* बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥
भावार्थ:-मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥

* सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥
भावार्थ:-वह रज सुकृति (पुण्यवान्‌ पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥

* श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥
भावार्थ:-श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥

* उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥
भावार्थ:-उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं- ||
दोहा :
* जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1॥
भावार्थ:-जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं॥1॥
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।उत्तम प्रकार का नमक सेंधा नमक है,

सेंधा नमक कितना फायदेमंद है जानिए –
प्रसिद्धा वैज्ञानिक और समाज सेवी राजीव भाई दीक्षित का कहना है की समुद्री नमक तो अपने आप मे बहुत खतरनाक है लेकिन उसमे आयोडिन नमक मिलाकर उसे और जहरीला बना दिया जाता है ,आयोडिन की शरीर मे मे अधिक मात्र जाने से नपुंसकता जैसा गंभीर रोग हो जाना मामूली बात है


प्रकृतिक नमक हमारे शरीर के लिये बहुत जरूरी है। इसके बावजूद हम सब घटिया किस्म का आयोडिन मिला हुआ समुद्री नमक खाते है। यह शायद आश्चर्यजनक लगे , पर यह एक हकीकत है ।

नमक विशेषज्ञ एन के भारद्वाज का कहना है कि भारत मे अधिकांश लोग समुद्र से बना नमक खाते है जो की शरीर के लिए हानिकारक और जहर के समान है ।उत्तम प्रकार का नमक सेंधा नमक है, जो पहाडी नमक है ।

प्रख्यात वैद्य मुकेश पानेरी कहते है कि आयुर्वेद की बहुत सी दवाईयों मे सेंधा नमक का उपयोग होता है।आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप ,डाइबिटीज़,लकवा आदि गंभीर बीमारियो का भय रहता है । इसके विपरीत सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप पर नियन्त्रण रहता है । इसकी शुद्धता के कारण ही इसका उपयोग व्रत के भोजन मे होता है ।

ऐतिहासिक रूप से पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को 'सेंधा नमक' या 'सैन्धव नमक' कहा जाता है जिसका मतलब है 'सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ'। अक्सर यह नमक इसी खान से आया करता था। सेंधे नमक को 'लाहौरी नमक' भी कहा जाता है क्योंकि यह व्यापारिक रूप से अक्सर लाहौर से होता हुआ पूरे उत्तर भारत में बेचा जाता था।

भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनीया भारत मे नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है ,उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है

सिर्फ आयोडीन के चक्कर में ज्यादा नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि आयोडीन हमें दूध, आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।

यह सफ़ेद और लाल रंग मे पाया जाता है । सफ़ेद रंग वाला नमक उत्तम होता है।

यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं।

रक्त विकार आदि के रोग जिसमे नमक खाने को मना हो उसमे भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

यह पित्त नाशक और आंखों के लिये हितकारी है ।

दस्त, कृमिजन्य रोगो और रह्युमेटिज्म मे काफ़ी उपयोगी होता है ।



सेंधा नमक के विशिष्ठ योग

हिंगाष्ठक चूर्ण, लवण भास्कर और शंखवटी इसके कुछ विशिष्ठ योग हैं ।

edhur-udhur...

RBI के नय गवर्नर बने world bank IMF एजेंट रघुराम राजन ने अपनी औकात दिखनी शुरू कर दी है !!
Retail sector,Telecom sector,insurance sector के बाद अब जल्दी ही भारत का सारा banking sector भी विदेशियों के कब्जे मे जाने वाला है !!

बहुत जल्दी आपको ऐसी खबरे सुनने को मिलेंगी की इस विदेशी बैंक ने भारत के इस बैंक को take over किया !
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उत्तराखंड आपदा के बाद उत्तराखंड सरकार ने मंदिरों के रास्ते खोलने में बडी तत्परता दिखाई....और जितना पैसा सरकार ने इन रास्तों को खोलने में लगाया उससे कहीं ज्यादा उसने इस काम के "प्रचार" में खर्च कर दिये इस प्रचार-प्रसार में वो ये भूल गयी कि प्रदेश के कई स्कूलों के रास्ते अभी तक बन्द पडे हैं................
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लोगो को जानकारी तो हुई
की आखिर ये कौन सी बला है ...?? मिडिया में खुजली शुरू ..??
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धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI लागु नहीं है ....??
धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTE लागू नहीं है ...??
धारा 370 की वजह से कश्मीर में CAG लागू नहीं होता ..??
धारा 370 की वजह से कश्मीर में भारत का कोई भी कानून लागु
नहीं होता ?
धारा 370 की वजह से कश्मीर में महिलावो पर शरियत कानून लागु
है ..?
धारा 370 की वजह से कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं ...?
धारा 370 की वजह से कश्मीर में चपरासी को 2500 ही मिलते है ?
धारा 370 की वजह से कश्मीर में अल्पसंख्यको को 16 % आरक्षण
नहीं मिलता ?
धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते आदि. .............................................................................................

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम ने जनहित याचिका डाली थी कि पडोसी मुल्क में हज करने के लिए सब्सिडी मिलती है तो हमें भी मिलनी चाहिए..

पाकिस्तान कोर्ट ने जनहित याचिका रिजेक्ट करते हुये कहा कि कुरान और हदीसे के हिसाब से हज पसीने की कमाई से करना पड़ता है ! दूसरों की कमाई से नहीं !
सब्सिडी इस्लाम के खिलाफ है !

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के हिसाब से भारतीय मुसलमानों को मिल रही सब्सिडी हराम है क्या नेता इस पर कुछ टिप्पणी देंगे ??..

अजीब कानून है भैया, गाय का चारा खाया तो जेल भेज दिया और जो गाय को खा रहा है उसको हज के लिए भेजते हो...

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सुबह उठते ही सबसे पहले हल्का गर्म पानी पिये !!

सुबह उठते ही सबसे पहले हल्का गर्म पानी पिये !! 2 से 3 गिलास जरूर पिये !
पानी हमेशा बैठ कर पिये !
पानी हमेशा घूट घूट करके पिये !!

घूट घूट कर इसलिए पीना है ! ताकि सुबह की जो मुंह की लार है इसमे ओषधिए गुण बहुत है ! ये लार पेट मे जानी चाहिए ! वो तभी संभव है जब आप पानी बिलकुल घूट घूट कर मुंह मे घूमा कर पिएंगे !

इसके बाद दूसरा काम पेट साफ करने का है ! रोज पानी पीकर सुबह शोचालय जरूर जाये !पेट का सही ढंग से साफ न होना 108 बीमारियो की जड़ है !

खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है !
हमेशा डेड घंटे बाद ही पानी पीएं !

खाना खाने के बाद अगर कुछ पी सकते हैं उसमे तीन चीजे आती हैं !!

1) जूस
2) छाज (लस्सी) या दहीं !
3) दूध

सुबह खाने के बाद अगर कुछ पीना है तो हमेशा जूस पिये !
दोपहर को दहीं खाये ! या लस्सी पिये !
और दूध हमेशा रात को पिये !!

इन तीनों के क्रम को कभी उल्टा पुलटा न करे !!


इसके इलावा खाने के तेल मे भूल कर भी refine oil का प्रयोग मत करे !(वो चाहे किसी भी कंपनी का क्यू न हो dalda ,ruchi,gagan)को भी हो सकता है !
अभी के अभी घर से निकाल दें ! बहुत ही घातक है !
सरसों के तेल का प्रयोग करे ! या देशी गाय के दूध का शुद्ध घी खाएं ! ! (पतंजलि का सरसों का तेल एक दम शुद्ध है !(शुद्ध सरसों के तेल की पहचान है मुंह पर लगाते ही एक दम जलेगा ! और खाना बनाते समय आंखो मे हल्की जलन होगी !


चीनी का प्रयोग तुरंत बंद कर दीजिये ! गुड खाना का प्रयोग करे ! या शक्कर खाये !! चीनी बहुत बीमारियो की जड़ ! slow poison है !)

खाने बनाने मे हमेशा सेंधा नमक या काला नमक का ही प्रयोग करे !! आयोडिन युक्त नमक कभी न खाएं !!


सुबह का भोजन सूर्य उद्य ! होने के 2 से 3 घंटे तक कर लीजिये ! (अगर 7 बजे आपके शहर मे सूर्य निकलता है ! तो 9 या 10 बजे तक सुबह का भोजन कर लीजिये ! इस दौरान जठर अग्नि सबसे तेज होती है ! सुबह का खाना हमेशा भर पेट खाएं ! सुबह के खाने मे पेट से ज्यादा मन संतुष्टि होना जरूरी है ! इसलिए अपनी मनपसंद वस्तु सुबह खाएं !!

खाना खाने के तुरंत बाद ठीक 20 मिनट के लिए बायीं लेट जाएँ और अगर शरीर मे आलस्य ज्यादा है तो 40 मिनट मिनट आराम करे ! लेकिन इससे ज्यादा नहीं !

इसी प्रकार दोपहर को खाना खाने के तुरंत बाद ठीक 20 मिनट के लिए बायीं लेट जाएँ और अगर शरीर मे आलस्य ज्यादा है तो 40 मिनट मिनट आराम करे ! लेकिन इससे ज्यादा नहीं !

रात का खाना सोने से २-३ घण्टे पहले खा ले, रात को खाना खाने के तुरंत बाद नहीं सोना ! रात को खाना खाने के बाद बाहर सैर करने जाएँ ! कम से कम 500 कदम सैर करे !

ब्रह्मचारी है (विवाह के बंधन मे नहीं बंधे ) तो हमेशा सिर पूर्व दिशा की और करके सोएँ ! ब्रह्मचारी नहीं है तो हमेशा सिर दक्षिण की तरफ करके सोएँ ! उत्तर और पश्चिम की तरफ कभी सिर मत करके सोएँ !

मैदे से बनी चीजे पीज़ा ,बर्गर ,hotdog,पूलड़ोग , आदि न खाएं ! ये सब मेदे को सड़ा कर बनती है !! कब्ज का बहुत बड़ा कारण है !!


इन सब नियमो का अगर पूरी ईमानदारी से प्रयोग करेंगे ! 1 से 2 महीने मे ऐसा लगेगा पूरी जिंदगी बदल गई है ! मोटापा है तो कम हो जाएगा ! hihgh BP,cholesterol,triglycerides,सब level पर आना शुरू हो जाएगा ! HDL बढ्ने लगेगा ! LDL ,VL DL कम होने लगेगा !! और भी बहुत से बदलाव आप देखेंगे !!

सिमेन्ट की जिन्दगी 5 साल भी नही है

क्या आप को पता है सिमेन्ट की अधिकतम जिन्दगी सिर्फ 100 साल है ? और कुछ वैगानिको का कहना है अगर क्रेक्स को आधार बनाया जाये तो सिमेन्ट की जिन्दगी 5 साल भी नही है | भारत के सारे पुराने किले चुने से बना है और चुने की नुन्यतम जिन्दगी 500 साल है और अधिकतम जिन्दगी 2000 से 2500 साल | चुना और सिमेन्ट की raw मटेरिअल एक ही है | आज से 150 साल पहले तक भारत के जादातर घर चुने से बनते थे नही तोह मिटटी से | लिकिन पिछले हजारो साल में चुना बनाने की जो तकनीक विकसित हुई अंग्रेजो ने उसे ban किया | और एक कानून बना दिया गया के चुने का काम करना गैरकानूनी है और सिमेन्ट से घर बनाना क़ानूनी है | कारन अंग्रेजो को अंपने देश का सिमेन्ट बिकवाना था और चुने की इंडस्ट्री को ख़तम करना था | भारत मे पहले चुना बनाने के छोटे छोटे केंद्र होते थे लगभग हर गाँव में एक | सिमेन्ट बनाने की जो तकनीक है वो इतना जटिल है के कोइ गाँव में नही बन सकता इसके लिए बहुत energy चाहिए पर चुना बनाने के लिए कुछ नही चाहिए | सिमेन्ट बनाने के लिए बिजली चाहिए , बिजली के लिए कोयला निकलना है , कोयले के साथ पानी भी चाहिए , पानी हमको खेती और पिने के लिए चाहिए लेकिन वो कहते है पहले बिजली के लिए चाहिए, पानी एकाठा करने के लिए नदी में बांध देना चाहिए, और बांध टूट जाये तो बाड़ ही बाड़ | इससे अच्छा तोह भारत की तकनीक है जिसमे lime stone , दूध और एक बैल चाहिए बस |
अधिक जानकारी के लिए ये विडियो देखे :
http://www.youtube.com/watch?v=f0jRLlQvCBk

पत्तों की बनी पत्तलों का प्रयोग

भारत में बहुत सारे लँगर लगते हैं। आजकल देखा गया है कि अधिकतर लंगरों में भी थर्मोकोल की प्लेटें आदि प्रयोग होती हैं।
मेरी प्रार्थना है कि थर्मोकोल की प्लेटों का प्रयोग बन्द कर के पत्तों की बनी पत्तलों का प्रयोग करने के लिए हर व्यक्ति अपने स्तर पर एक जन जागृति करें। इससे एक तरफ तो हम अपने इर्द गिर्द प्रदूषण को कम करेंगे और दूसरा पत्तलें शत प्रतिशत स्वदेशी हैं। ये पत्तल अपने आप मिट्टी में मिल कर खत्म हो जाते है और खाद का भी काम करते है, इससे हमारे भारतवासियों को ही काम मिलेगा। जबकि थर्मोकोल (ये चीनी उत्पाद है) का प्रयोग करके हम अपने आपको और देश को ही लुटवाएँगे।

स्वदेशी अपनाओ भारत को विदेशी लूट से बचाओ, अपना स्वाभिमान जगाओ स्वदेशी से स्वावलम्बी भारत बनाओ...

Thursday, 28 November 2013

वीर सावरकर

Veer Savarkar
विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र मुंबई प्रान्त में नासिक के निकट भागुर गाँवमें हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् १८९९में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे। इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला । दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से १९०१ में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे ही अपितु उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी। सन् १९०१ में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। १९०२ में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी०ए० किया।
१९०४ में उन्हॊंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। १९०५ में बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर १९०६ में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली। इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवारनामक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख प्रकाशित हुये, जो बाद में कलकत्ता के युगान्तर पत्र में भी छपे। सावरकर रूसी क्रान्तिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे।
 १० मई, १९०७ को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई। इस अवसर पर विनायक सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण में प्रमाणों सहित १८५७ के संग्राम को गदर नहीं, अपितु भारत के स्वातन्त्र्य का प्रथम संग्राम सिद्ध किया। जून, १९०८ में इनकी पुस्तक द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस : १८५७ तैयार हो गयी परन्त्तु इसके मुद्रण की समस्या आयी। इसके लिये लन्दन से लेकर पेरिस और जर्मनी तक प्रयास किये गये किन्तु वे सभी प्रयास असफल रहे। बाद में यह पुस्तक किसी प्रकार गुप्त रूप से हॉलैंड से प्रकाशित हुई और इसकी प्रतियाँ फ्रांस पहुँचायी गयीं। इस पुस्तक में सावरकर ने १८५७ के सिपाही विद्रोह को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई बताया। मई १९०९ में इन्होंने लन्दन से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली।

वीर सावरकर को कला पानी की सजा के दोरान भयानक सैल्यूलर जेल मैं रखा गया| उन्हें दूसरी मंजिल की कोठी नंबर २३४ मैं रखा गया और उनके कपड़ो पर भयानक कैदी लिखा गया| कोठरी मैं सोने और खड़े होने पर दीवार छू जाती थी| उन्हें नारियल की रस्सी बनाने और ३० पोंड तेल प्रतिदिन निकलने के लिए बैल की तरह कोल्हू मैं जोता जाता था| इतना कष्ट सहने के बावजूद भी वह रत को दिवार पर कविता लिखते, उसे याद करते और मिटा देते| १३ मार्च १९१० से लेकर १० मई १९३७ तक २७ वर्षो की अमानवीय पीडा भोग कर उच्च मनोबल, ज्ञान और शक्ति साथ वह जेल से बाहर निकले जैसे अँधेरा चीर कर सूर्य निकलता है|
आजादी के बाद भी पंडित जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस ने उनसे न्याय नहीं किया|
 देश का हिन्दू कहीं उन्हें न अपना नेता मन बैठे इसलिए उन पर महात्मा गाँधी की हत्या का आरोप लगा कर लाल किले मैं बंद कर दिया गया| बाद मैं न्यायालय ने उन्हें ससम्मान रिहा कर दिया| पूर्वाग्रह से ग्रसित कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें इतिहास मैं यथोचित स्थान नहीं दिया| स्वाधीनता संग्राम मैं केवल गाँधी और गांधीवादी नेताओं की भूमिका का बढा-चढ़ाकर उल्लेख किया गया|
वीर सावरकर की मृत्यु के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें नहीं छोडा| सन २००३ मैं वीर सावरकर का चित्र संसद के केंद्रीय कक्ष मैं लगाने पर कांग्रेस ने विवाद खडा कर दिया था| २००७ मैं कांग्रेसी नेता मणि शंकर अय्यर ने अंडमान के कीर्ति स्तम्भ से वीर सावरकर के नाम का शिलालेख हटाकर महात्मा गाँधी के नाम का पत्थर लगा दिया| जिन कांग्रेसी नेताओ ने राष्ट्र को झूठे आश्वासन दिए, देश का विभाजन स्वीकार किया, जिन्होंने शेख से मिलकर कश्मीर का सोदा किया, वो भले ही आज पूजे जाये पर क्या वीर सावरकर को याद रखना इस राष्ट्र का कर्तव्य नहीं है???आजादी केवल गांधीवादियों की देन नहीं है बल्कि भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद,राजगुरु,सुखदेव,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और वीर सावरकर जैसे कर्न्तिकारियों के बलिदानों के चलते ही मिली है|| राष्ट्र इन सभी के बलिदानों को याद रखे और इन्हें सम्मान दे|

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Wednesday, 27 November 2013

शिवाजी धन्य हैं।

धन्य हैं ऐसे गुरुभक्त

अपने सदगुरु की प्रसन्नता के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान करने का सामर्थ्य रखने वाले शिवाजी धन्य हैं।


"भाई शिवाजी राजा हैं, छत्रपति हैं इसीलिए गुरुजी हम सबसे ज्यादा उन पर प्रेम बरसाते हैं।" शिष्यों का यह वार्तालाप अनायास ही समर्थ रामदास स्वामी जी के कानों में पड़ गया। समर्थ ने सोचा कि ʹउपदेश से काम नहीं चलेगा, इनको प्रयोगसहित समझाना पड़ेगा।ʹ

एक दिन समर्थ ने लीला की। वे शिष्यों को साथ लेकर जंगल में घूमने गये। तब अचानक समर्थ को पेटदर्द शुरु हुआ। शिष्यों के कंधे के सहारे चलते हुए किसी तरह समर्थ एक गुफा में प्रवेश करते ही जमीन पर लेट गये एवं पीड़ा से कराहने लगे। सभी ने मिलकर गुरुदेव से उस पीड़ा का इलाज पूछा।

समर्थ ने कहाः "इस रोग की एक ही औषधि है – शेरनी का दूध !" सब एक दूसरे का मुँह ताकते हुए सिर पकरड़कर बैठ गये।

उसी समय शिवाजी अपने गुरुदेव के दर्शन करने आश्रम पहुँचे। यह पता चलने पर कि गुरुदेव शिष्यों के साथ जंगल की ओर गये हैं, शिवाजी जंगल की ओर निकल पड़े। खोजते-खोजत मध्यरात्रि हो गयी किन्तु उन्हें गुरु जी के दर्शन नहीं हुए। इतने में एक करुण स्वर वन में गूँजाः "अरे भगवान ! हे रामरायाઽઽઽ.... मुझे इस पीड़ा से बचाओ।"

ʹयह तो गुरु जी की वाणी है !ʹ शिवाजी घोड़े से उतरे और अपनी तलवार से कँटीली झाड़ियों को काटकर रास्ता बनाते हुए गुफा तक पहुँच गये।

उन्होंने गुरुजी को पीड़ा से कराहते और लोटपोट होते देखा। शिवाजी की आँखें आँसुओं से छलक उठीं और वे उनके चरणों में गिर पड़े। शिवाजी से पूछाः "गुरुदेव ! आपको यह कैसी पीड़ा हो रही है ? कृपा करके मुझे इसकी औषधि का नाम बताइये। शिवा आकाश-पाताल एक करके भी वह औषधि ले आयेगा।"

"शिवा ! इस रोग की एक ही औषधि है – शेरनी का दूध ! लेकिन उसे लाना माने मौत को निमंत्रण देना।"

"गुरुदेव ! जिनकी कृपादृष्टिमात्र से हजारों शिवा तैयार हो सकते हैं, ऐसे समर्थ सदगुरु की सेवा में एक शिवा की कुर्बानी हो भी जाय तो कोई बात नहीं। नश्वर देह को तो एक बार जला ही देना है। ऐसी देह का मोह कैसा ? गुरुदेव ! मैं अभी शेरनी का दूध लेकर आता हूँ।"

शिवाजी गुरु को प्रणाम करके पास में पड़ा हुआ पात्र लेकर चल पड़े। सत्शिष्य की कसौटी करने प्रकृति ने भी मानो कमर कसी और आँधी तूफान के साथ जोरदार बारिश शुरु हुई।

जंगल में बहुत दूर जाने पर शिवा को अँधेरे में चमकती हुई चार आँखें दिखीं। वे समझ गये कि ये शेरनी के बच्चे हैं, अतः शेरनी भी कहीं पास में ही होगी। शिवा के कदमों की आवाज सुनकर पास में ही बैठी शेरनी क्रोधित हो उठी। उसने शिवा पर छलाँग लगायी परंतु कुशल योद्धा शिवा ने अपने को शेरनी के पंजे से बचा लिया। परिस्थितियाँ विपरीत थीं। शेरनी क्रोध से जल रही थी।

शिवा शेरनी से प्रार्थना करने लगे कि ʹहे माता ! मैं तेरे बच्चों का अथवा तेरा कुछ बिगाड़ने नहीं आया हूँ। मेरे गुरुदेव को हो रहे पेटदर्द में तेरा दूध ही एकमात्र इलाज है। मेरे लिए गुरुसेवा से बढ़कर इस संसार में दूसरी कोई वस्तु नहीं। हे माता ! मुझे मेरे सदगुरु की सेवा करने दे। तेरा दूध दुहने दे।ʹ

पशु भी प्रेम की भाषा समझते हैं। शिवाजी की प्रार्थना से एक महान आश्चर्य घटित हुआ – शिवाजी के रक्त की प्यासी शेरनी उनके आगे गौमाता बन गयी ! शिवाजी ने शेरनी के शरीर पर प्रेमपूर्वक हाथ फेरा और वे शेरनी का दूध निकालने लगे। दूध लेकर शिवा गुफा में आये।

समर्थः "आखिर तू शेरनी का दूध भी ले आया शिवा ! जिसका शिष्य गुरुसेवा में अपने जीवन की बाजी लगा दे, प्राणों को हथेली पर रखकर मौत से जूझे, उसके गुरु का पेटदर्द कैसे रह सकता है ? मेरा पेटदर्द तो जब तू शेरनी का दूध लेने गया, तभी अपने-आप शांत हो गया था। शिवा तू धन्य है ! धन्य है तेरी गुरुभक्ति !" ऐसा कहकर समर्थ ने शिवाजी के प्रति ईर्ष्या रखने वाले शिष्यों के सामने अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। ʹगुरुदेव शिवाजी को अधिक क्यों चाहते हैं ?ʹ - इसका रहस्य उनको समझ में आ गया।

धन्य हैं ऐसे सत्शिष्य ! जो सदगुरु के हृदय में अपना स्थान बनाकर अमर पद प्राप्त कर लेते हैं... धन्य है भारत माता ! जहाँ ऐसे सदगुरु और सत्शिष्य पाये जाते हैं।

महर्षि कणाद

महर्षि कणाद


हजारों वर्ष पूर्व महर्षि कणाद ने सर्वांगीण उन्नति की व्याख्या करते हुए कहा था ‘यतो भ्युदयनि:श्रेय स सिद्धि:स धर्म:‘ जिस माध्यम से अभ्युदय अर्थात्‌ भौतिक दृष्टि से तथा नि:श्रेयस याने आध्यात्मिक दृष्टि से सभी प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है, उसे धर्म कहते हैं।

भारत में प्रथम परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन के १०वें अध्याय में कहते हैं ‘दृष्टानां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोगोऽभ्युदयाय‘ अर्थात्‌ प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के उद्देश्य से अथवा स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किए गए प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है।

इसी प्रकार महर्षि कणाद कहते हैं पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, दिक्‌, काल, मन और आत्मा इन्हें जानना चाहिए। इस परिधि में जड़-चेतन सारी प्रकृति व जीव आ जाते हैं।

ईसा से ६०० वर्ष पूर्व ही कणाद मुनि ने परमाणुओं के संबंध में जिन धारणाओं का प्रतिपादन किया, उनसे आश्चर्यजनक रूप से डाल्टन की संकल्पना मेल खाती है। कणाद ने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं बल्कि ऐसी इकाई को ‘परमाणु‘ नाम भी उन्होंने ही दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु स्वतंत्र नहीं रह सकते।

कणाद की परमाणु संबंधी यह धारणा उनके वैशेषिक सूत्र में निहित है। कणाद आगे यह भी कहते हैं कि एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर ‘द्विणुक‘ का निर्माण कर सकते हैं। यह द्विणुक ही आज के रसायनज्ञों का ‘वायनरी मालिक्यूल‘ लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि भिन्न भिन्न पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं। यहां निश्चित रूप से कणाद रासायनिक बंधता की ओर इंगित कर रहे हैं। वैशेषिक सूत्र में परमाणुओं को सतत गतिशील भी माना गया है तथा द्रव्य के संरक्षण (कन्सर्वेशन आफ मैटर) की भी बात कही गई है। ये बातें भी आधुनिक मान्यताओं के संगत हैं।

हमारे यहां प्राचीन काल से व्रह्मांड क्या है और कैसे उत्पन्न हुआ, क्यों उत्पन्न हुआ इत्यादि प्रश्नों का विचार हुआ। पर जितना इनका विचार हुआ उससे अधिक ये प्रश्न जिसमें उठते हैं, उस मनुष्य का भी विचार हुआ। ज्ञान प्राप्ति का प्रथम माध्यम इन्द्रियां हैं। इनके द्वारा मनुष्य देखकर, चखकर, सूंघकर, स्पर्श कर तथा सुनकर ज्ञान प्राप्त करता है। बाह्य जगत के ये माध्यम हैं। विभिन्न उपकरण इन इंद्रियों को जानने की शक्ति बढ़ाते हैं।

कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे जाता है। महर्षि कणाद कहते हैं, द्रव्य को छोटा करते जाएंगे तो एक स्थिति ऐसी आएगी जहां से उसे और छोटा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि उससे अधिक छोटा करने का प्रत्यन किया तो उसके पुराने गुणों का लोप हो जाएगा। दूसरी बात वे कहते हैं कि द्रव्य की दो स्थितियां हैं- एक आणविक और दूसरी महत्‌। आणविक स्थिति सूक्ष्मतम है तथा महत्‌ यानी विशाल व्रह्माण्ड। दूसरे, द्रव्य की स्थिति एक समान नहीं रहती है। अत: कणाद कहते हैं-

‘धर्म विशेष प्रसुदात द्रव्य
गुण कर्म सामान्य विशेष समवायनां
पदार्थानां साधर्य वैधर्यभ्यां
तत्वज्ञाना नि:श्रेयसम वै.द.-४

अर्थात्‌ धर्म विशेष में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय के साधर्य और वैधर्म्य के ज्ञान द्वारा उत्पन्न ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।

Tuesday, 26 November 2013

जिसने एक पर्वत को हटा दिया !!!

दशरथ मांझी, एक आदमी जिसने एक पर्वत को हटा दिया !!!
"जब मैं पहाड़ पर हतोड़ा चलाना शुरू कर दिया, लोगों ने कहा यह पागल है, लेकिन उससे मेरा संकल्प और दृड़ हो गया" - दशरथ मांझी ।

लगभग पांच दशक पहले गया के गहलोर घाटी (बिहार का एक जिला) की एक भूमिहीन किसान दशरथ मांझी ने अपने ग्रामीणों की कठिनाइयों को समाप्त करने के लिए 300 फुट ऊंची एक पहाड़ को काट के एक किलोमीटर मार्ग बनाने जैसा एक असंभव कार्य करने का संकल्प किया।

उनके गांव चट्टानी पहाड़ों की गोद में बसता है जिसके लिए ग्रामीणों को अक्सर अत्री और वजीरगंज के बीच छोटी दूरी को पार करने के लिए विशाल मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। उन्होंने पहाड़ पर हतोड़ा चलाना शुरू किया 1959 में अपने पत्नी की स्मृति में जिन्हें तत्काल उपचार के लिए समय पर निकटतम स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में नहीं लिया जा सका क्योंकि सहर से जोड़ने वाला सबसे निकटतम रस्ता 50 Km लम्बा है जो पहाड़ को घूम के जाती है।

वह जानता था कि उसकी आवाज सरकार के कान में कोई प्रतिक्रिया नहीं पैदा करेगा, इसलिए, दशरथ अकेले इस अत्यंत कठिन कार्य को पूरा करने के लिए चुना। उन्होंने अपनी बकरियों को बेचके छेनी, रस्सी, और एक हथौड़ा खरीदा। लोग उनको पागल और सनकी उत्साही कहने लगे और इनकी विचार का कोई योजना नही है ऐसा बोलने लगे। अपने आलोचकों के हतोत्साहित टिप्पणी से बेफिक्र होके दशरथ ने लगातार 22 साल तक हतोड़ा चलाता रहा जिससे अत्री और वजीरगंज के बीच की दूरी 50 किलोमीटर से घटके 10 किलोमीटर हो गयी। एक दिन आया जब अपना सपना 'पहाड़ी के दूसरी ओर' जाने के लिए वे एक सपाट मार्ग के माध्यम से कदम बडाये जो एक किलोमीटर लंबी और 16 फुट चौड़ी थी।

यह असंभव उपलब्धि के बाद, दशरथ मांझी 'माउंटेन मैन' (पहाड़ मानव) के रूप में लोकप्रिय हो गया। 18 अगस्त, 2007 को वह नई दिल्ली में कैंसर से लड़ने के बाद ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के अपने अंतिम सांस ली।


गिरिजाघरमें होनेवाला लैंगिक शोषण


कैथलिक गिरिजाघरमें होनेवाला लैंगिक शोषण तथा समलिंगी संभोगसे ऊबकर ६० वर्ष आयुकी सिस्टर मेरी नामकी ननने अपने पदसे त्यागपत्र दिया । अब उसने कैथलिक गिरिजाघरमें चलनेवाले अपप्रकारोंकी संपूर्ण जानकारी देनेवाला आत्मचरित्र मलयालम भाषामें लिखा है, तथा शीघ्र ही वह प्रकाशित होगा । 

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• हल्दी के प्रयोग....

• हल्दी : Turmeric इस दृव्य को सभी भारतीय , भोज्य पदार्थ के रूप में प्रयोग करते हैं आयुर्वेद में इसे औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं घरेलू उपचार में इसे प्रयोग करते हंर बाहरी उपचार में इसे प्रयोग करते हैं सूखी हल्दी का चूर्ण
• . हल्दी के विभिन्न भाषाओं में नाम संस्कृत : हरिद्रा , कांचनीं , वरवर्णिनीं , पीता बंगला : हलुद , हरिद्रा मराठी : हलद गुजराती : हलदर कन्नड़ : अरसीन तेलुगू : पासुपु फारसी : जरदपोप अरबी : डरूफुस्सुकुर English : Turmeric Latin : Curcuma Longa, Curcuma Domestica • हल्दी के प्रकार हल्दी दो प्रकार की होती है , एक लम्बी तथा दूसरी गोल
लम्बी हल्दी गोल हल्दी
• हल्दी परिचय :1 यह खेतों में बोई जाती है , लेकिन कई स्थानों में यह स्वयमेव उतपन्न हो जाती है जमीन के नीचे कन्द के रूप में इसकी जड़ें होती है ये कन्द रूपी जड़ें हरी अथवा ताजी अथवा कच्ची हल्दी होती है
• हल्दी परिचय : 2 कच्ची हल्दी की सब्जी बनाकर खाते हैं कच्ची हल्दी को सुखा लेते हैं या उबालकर सुखा लेते हैं , ऐसी हल्दी सूखने के बाद रंग परिवर्तन होकर पीला रंग ग्रहण कर लेती है
• हल्दी के रासायनिक तत्व हल्दी में कई प्रकार के रासायनिक तत्व पाये जाते हैं एक प्रकार का सुगंधित उडंनशील तैल 1 प्रतिशत एक प्रकार का गोंद जैसा पदार्थ एक प्रकार का पीले रंग का रंजक पदार्थ एक प्रकार का गाढा तेल
• कुछ आधुनिक तथ्य वैज्ञानिकों का कहना है कि हल्दी में लौह तत्व पाया गया है इसमें विटामिन बी ग्रुप के कुछ तत्व पाये गये हैं
• विश्लेषण में पाये गये तत्व - 1 हल्दी में पाये गये आवश्यक तत्व निम्न प्रकार हैं जल 13.1 % ग्राम प्रोटीन 6.3 % ग्राम वसा 5.1 % ग्राम खनिज पदार्थ 3.5 % ग्राम रेशा 2.6 % ग्राम कारबोहाइड्रेट 69.4 % ग्राम • विश्लेषण में पाये गये तत्व - 2 कैल्शियम 150 मिलीग्राम प्रतिशत फासफोरस 282 मिलीग्राम प्रतिशत लोहा 15 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन ए 50 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन बी 03 मिलीग्राम प्रतिशत कैलोरियां प्रति 100 ग्राम में : 349 कैलोरी
• हल्दी के गुण -1 आयुर्वेद में हल्दी के गुणों का वर्णन कई ग्रंथों में मिलता है हल्दी स्वाद में चरपरी , कड़वी प्रभाव में रूखी और गर्म होती है यह कफ तथा पित्त दोषों को दूर करती है • हल्दी के गुण -2 इसे त्वचा के रोग , वर्ण , प्रमेह , रक्त विकार , सूजन , पान्डु रोग और घावों के इलाज के लिये प्रयोग करते हैं आधुनिक शोधों से पता चला है कि हल्दी तमाम प्रकार के रोगों को दूर करनें में सहायक है • हल्दी के बारे में आयुर्वेद विचार हल्दी तिक्त , कटु , उष्णवीर्य , रूक्ष , वर्ण्य , लेखन , कुष्टघ्न , विषघ्न , शोधन गुण युक्त है इसके प्रयोग से कफ , पित्त , पीनस , अरूचि , कुष्ठ , कन्डू , विष , प्रमेह , व्रण , कृमि , पान्डु रोग , अपची आदि रोंग दूर होते हैं
• हल्दी के बारे में आधुनिक विचार हल्दी के बारे में आधुनिक वैज्ञानिकों नें परीक्षण करके सिद्ध किया है कि यह कैंसर को बढ़नें से रोकती है यह गठिया जैसे रोंगों की पीड़ा को दूर करती है
• हल्दी की औषधीय मात्रा कच्ची हल्दी का रस : 1 से 3 चाय चम्मच तक सूखी हल्दी का चूर्ण : 1 ग्राम से 4 ग्राम तक यह वयस्क व्यक्ति के लिये निश्चित की गयी मात्रा है किशोंरों के लिये 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक बच्चों के लिये 50 मिलीग्राम से 100 मिली ग्राम तक
• हल्दी की मात्रा इसके कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं और हल्दी पूर्ण रूप से सुरक्षित औषधि है इसे आवश्यकतानुसार गुनगुनें पानीं , गरम चाय अथवा दूध के साथ दिन मे , तकलीफ के हिसाब से , एक बार से लेकर चार या पांच बार तक ले सकते हैं
• हल्दी के बाहरी प्रयोग - 1 त्वचा के रोगों में हल्दी का बाहरी प्रयोग करते हैं हल्दी का चूर्ण 1 ग्राम और आवश्कतानुसार दूध मिलाकर बनाया हुआ पेस्ट मुहासों , युवान पीडिका , सफेद दागों या काले दागों , रूखी त्वचा , काले रंग के त्वचा के धब्बे , खुजली , खारिश आदि तकलीफों में लगानें से आरोग्य प्राप्त होता है घाव , कटे एवं पके हुये , पीब से भरे घावों में हल्दी का चूर्ण छिड़कनें से घाव शीघ्र भरते हैं
• हल्दी के बाहरी प्रयोग -2 चाकू या धारदार अस्त्र से शरीर का कोई अंग कट जानें पर हल्दी का चूर्ण छिड़कनें से लाभ प्राप्त होता है बवासीर के मस्सों का दर्द अथवा जलन ठीक करनें के लिये हल्दी का चूर्ण मस्सों पर छिड़कना चाहिये
• हल्दी के बाहरी प्रयोग -3 चेहरे का सौंदर्य , त्वचा का सौंदर्य निखारनें के लिये हल्दी का उबटन प्रयोग करना चाहिये एलर्जी , शीतपित्ती , जलन का अनुभव , ददोरे आदि पड़ जानें की तकलीफ में हल्दी को पानी के साथ पेस्ट जैसा बनाकर लगानें से आराम मिलता है
• हल्दी के बाहरी प्रयोग -4 फोड़ा फुन्सी पकानें के लिये हल्दी की पुल्टिस रखनें से फोड़ा फुंसी शीघ्र पक जाते हैं शरीर के किसी भी स्थान की सूजन के साथ दर्द और जलन हो तो हल्दी के पेस्ट का बाहरी प्रयोग करनें से इन तकलीफों में आम मिल जाती है
• आंतरिक प्रयोग - जुखाम , खांसी , बुखार सभी प्रकार के बुखार , जुखामों और खांसियों में हल्दी का चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक गरम पानीं से दिन में दो बार , सुबह शाम , खानें से आरोग्य प्राप्त होता है जुकाम , बुखार अथवा खांसी कैसी भी हो , नया हो अथवा पुराना , उक्त प्रकार से हल्दी का सेवन करनें से सभी अवश्य ठीक हो जाते हैं
• आंतरिक प्रयोग - साइनुसाइटिस नाक से संबंधित सभी तरह की तकलीफों , पुराना जुकाम , पीनस , नाक का गोश्त बढ़ जानें , साइनुसाइटिस में हल्दी का चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार खाने से आरोग्य प्राप्त होता है उक्त तकलीफों से होनें वाले सिर दर्द , बुखार , बदन दर्द आदि लक्षण ठीक हो जाते हैं
• आंतरिक प्रयोग - एलर्जी एलर्जी , शीतपित्ती या इसी तरह के लक्षणों और तकलीफों से परेशान रोगी हल्दी का चूर्ण , 1 से 2 ग्राम , सुबह और शाम , दिन में दो बार , आधा कप दूध और आधा कप पानी मिलाकर , इस प्रकार से पकाये दूध के साथ खानें से आरोग्य प्राप्त होता है दूध में यदि चाहें तो थोड़ी शक्कर स्वाद के लिये मिला सकते हैं
• इस्नोफीलिया इस्नोफीलिया में हल्दी का प्रयोग बहुत सटीक है 2 से 3 ग्राम हल्दी चूर्ण गुनगुनें पानीं से , दिन में तीन बार , खानें से इस रोग में आराम मिलती है कुछ दिनों तक लगातार खानें से रोग समूल नष्ट हो जाते हैं जैसे जैसे इसनोफीलिया का काउन्ट कम होता जाये , वैसे हल्दी की मात्रा अनुपात में घटाते जाना चाहिये
• दमा और अस्थमा में इस रोग में हल्दी का चूर्ण 2 से 3 ग्राम तक अदरख के एक या दो चम्मच रस और शहद मिलाकर दिन में चार बार खानें से आरोग्य प्राप्त होता है कुछ दिनों तक यह प्रयोग लगातार काना चाहिये अगर रोगी एलापैथी की दवायें खा रहा है , तो भी यह प्रयोग कर सकते हैं जैसे जैसे आराम मिलता जाय , एलापैथी दवाओं की मात्रा कम करते जांय
• यकृत प्लीहा की बीमारियों में यकृत की बीमारियों में हल्दी का उपयोग आदि काल से किया जा रहा है यकृत के सभी विकारों में , पीलिया , पान्डु रोग इत्यादि में हल्दी का चूर्ण 1 ग्राम , कुटकी का चूर्ण 500 मिलीग्राम मिलाकर दिन में तीन बार सादे पानीं के साथ खाना चाहिये प्लीहा की सभी बीमारियों में उक्त चूर्ण मिश्रण खाना चाहिये
• प्रमेह प्रमेह रोग से संबंधित सभी विकारों में हल्दी का उपयोग बहुत सटीक है बहुमूत्र , गंदा पेशाब , पेशाब में जलन , पेशाब की कड़क , पेशाब में एल्बूमेंन जाना , पेशाब में रक्त , पीब के कण आदि आदि रोगों में हल्दी चूर्ण 1 ग्राम दिन में चार बार सादे पानीं से सेवन करें अगर इन बीमारियों में कोई एलोपैथी की दवा खा रहे हों , तो उनके साथ हल्दी का उपयोग करें , शीघ्र लाभ होगा
• मधुमेह हल्दी 2 ग्राम , जामुन की गुठली का चूर्ण 2 ग्राम , कुटकी 500 मिलीग्राम मिलाकर दिन में चार बार सादे पानीं से खायें पथ्य , परहेज करें , कई हफ्तों तक औषधि प्रयोग करें मधुमेह के साथ जिनको पैंक्रियाटाइटिस , यकृत प्लीहा विकार , गुर्दे के विकार , आंतों से संबंधित विकार हों , ये सभी तकलीफें दूर होंगी
• शास्त्रोक्त प्रयोग हल्दी के शास्त्रोक्त प्रयोग बड़ी संख्या में आयुर्वेद के चिकित्सा ग्रंथों में मिलते हैं इनमें से बहुत से प्रयोग तमाम प्रकार की बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल किये जाते हैं
• सलाह अगर आप कोंई एलोपैथी की दवा खा रहे हैं या होम्योपैथिक या कोई अन्य उपचार कर रहे हैं , तो भी , आप हल्दी का प्रयोग कर सकते हैं हल्दी के प्रयोग करनें से , उपचार पर , कोई असर नहीं पड़ता है हल्दी के प्रयोग से , किये जा रहे उपचार , अधिक प्रभावकारी हो जाते हैं