Saturday 23 November 2013

* वीर सावरकर

* वीर सावरकर 

पहले ऐसे विद्यार्थी थे , जिन्हें इंग्लैंड में बैरिस्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के बावजूद , ब्रिटिस साम्राज्य के प्रति राजनिष्ठ रहने की शपथ लेने से इन्कार करने के कारण , प्रमाणपत्र नहीं दिया गया ।

* सन् 1909 में जब वीर सावरकर यूरोप में थे , उनके बड़े भाई श्री गणेश दामोदर सावरकर को आजीवन कालापानी की सजा हुई । भारत में ब्रिटिस सरकार ने उनके परिवार की तमाम संपत्ति भी जब्त कर ली । परिवार के लोग सड़क पर खडे रह गये ।

* वीर सावरकर विश्व के प्रथम राजनीतिक बंदी थे जिन्हें विदेशी ( फ्रांस ) भूमि पर बंदी बनाने के कारण जिनका अभियोग हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चला ।

* वीर सावरकर विश्व इतिहास के प्रथम महापुरूष है , जिनके बंदी विवाद के कारण फ्रांस के प्रधानमंत्री एम. बायन को त्याग - पत्र देना पडा था ।


वीर सावरकर के समकालीन कांग्रेसी नेता जब “गाड सेव थे क्वीन” के गीत गाते थे तब १३ वर्षीय सावरकर की देश प्रेम की कवितायेँ पत्रिकायों में छपती थी. महारानी विक्टोरिया की मृत्यु पर देश के बड़े बड़े नेता अपनी राजनिष्ठा प्रदर्शित करने के लिए शोक सभायों का आयोजन कर रहे थे तब इस वीर ने घोषणा की थी- ” इंग्लैंड की रानी हमारे शत्रु की रानी हैं , इसलिए ऐसे अवसर पर राजनिष्ठा व्यक्त करना यह राजनिष्ठा नहीं, यह तो गुलामी की गीता का पाठ पढ़ने सदृश हैं. हम शोक क्यूँ बनायें?
जब नेता एडवर्ड सप्तम के राज्य अभिषेक का उत्सव मना रहे थे तो सावरकर ने इसे गुलामी का उत्सव, विदेशी शासन के प्रति राजभक्ति का प्रदर्शन और देश और जाति के प्रति द्रोह कहा था. ७ अक्तूबर १९०५ को गाँधी जी से करीब १७ वर्ष पहले पूने में एक विशाल जनसभा में दशहरे के दिन विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, तो दक्षिण भारत से गाँधी जी इस कदम की आलोचना कर रहे थे. कांग्रेस के पत्र (इंदु प्रकाश) सावरकर के इस कदम की निंदा कर रहे थे. जबकि इस कार्य की केसरी के माध्यम से प्रशंसा करते हुए तिलक ने लिखा था की लगता हैं की महाराष्ट्र में शिवाजी ने पुन: जन्म ले लिया हैं.
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* भाषाई और सांप्रदायिक एकता के लिए वीर सावरकर का योगदान अमूल्य है । वह मराठी साहित्य परिषद के पहले अध्यक्ष थे । संस्कृतनिष्ट हिंदी के प्रचार का बिगुल बजाया । इसके लिए उन्होंने एक हिन्दी शब्दकोष की भी रचना की । शहीद के स्थान पर हुतात्मा , प्रूप के स्थान पर उपमुद्रित , मोनोपोली के लिए एकत्व , मेयर के लिए महापौर आदि शब्द वीर सावरकर की ही देन है । वह उस समय के प्रथम ऐसे हिन्दू नेता थे जिनका सार्वजनिक सम्मान शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने किया था ।

* 83 वर्ष की आयु में योग की सवौच्च परंपरा के अनुसार 26 दिन तक खाना व दो दिन तक पानी छोड़कर आत्मसमर्पण करते हुए 26 फरवरी , 1966 को मृत्यु का वरण किया , ऐसे अभिनव क्रांतिकारी थे वीर सावरकर ।
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