Monday, 29 September 2014

दुनिया भर का विज्ञान यँहा आकर हर गया
इसे पुरातन भारत का चमत्कार कहे या आविष्कार 
ये है राजस्थान के आभानेरी गाँव स्थित 1000 वर्ष पुराना सीढियों वाला कुआँ 
जो विश्व का सबसे सबसे बड़ा कूआ है
इसमें 3500 सीढिया का निर्माण किया गया ..
आज की 1000 हॉर्स पावर की ड्रिलिंग रिग या मशीन और कोई भी भीमकाय अर्थिंग मशीन भी ऐसा नहीं कर सकती ...अचरज की बात ये है कि फावड़े से खोद कर ऐसा सिमेट्रिकल निर्माण आसानी से नहीं किया जा सकता !!
विज्ञानिक व इंजीनीयर आज तक इस निर्माण के पीछे की तकनीक का अंदाजा नहीं लगा पाए हैं !!

भारत जैसे देश में जहां सोने की कीमत आसमान छूती है वहीं इस जगह पर सोना कौड़ियों के भाव पर खरीदा जाता है.
आप यकीन नहीं कर पा रहे होंगे लेकिन झारखंड के रत्नगर्भा क्षेत्र में बड़े-बड़े व्यापारी आदिवासियों से तुच्छ कीमतों पर सोना खरीद रहे हैं,
पर आखिरकार आदिवासियों के पास इतना सोना आया कहां से?
इसके पीछे बहुत बड़ा राज छिपा है जिसे यहां की एक पवित्र नदी ने अपने भीतर समेटा हुआ है.
यहां है सोने की नदीजी हां, झारखंड की राजधानी रांची से करीब 15 से 16 किलोमीटर दूरी पर है रत्नगर्भा. 
यह एक आदिवासी क्षेत्र है जहां से स्वर्ण रेखा नाम की नदी बहकर निकलती है. यह कोई आम नदी नहीं है
बल्कि इस इकलौती नदी में सोने का इतना भंडार समाया है
जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते.
कहा जाता है कि स्वर्णरेखा या फिर आदिवासियों के बीच नंदा के नाम से जानी जानेवाली इस नदी में सोने के कण पाए जाते हैं,
इसीलिए इसका नाम स्वर्णरेखा पड़ा है.
यहां की आदिवासी दिन रात इन कणों को एकत्रित करते हैं व स्थानीय व्यापारियों को बेचकर रोजी रोटी कमाते हैं.
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प्रकृति का निराला खेल है स्वर्णरेखा नदी इस नदी की रेत से निकलने वाले सोने के कणों का अपना ही रहस्य है. यह प्रकृति का ऐसा अद्भुत खेल है
जिसका पता अभी तक कोई भी लगा ना पाया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि आजतक कितनी ही सरकारी मशीनों द्वारा इस नदी पर शोध किया गया है लेकिन वे इस बात का पता लगाने में असमर्थ रहे हैं कि आखिरकार यह कण जमीन के किस भाग से विकसित होते हैं.
इतना ही नहीं, राज्य सरकार व केंद्र सरकारों द्वारा इस तथ्य से मुंह फेरा जा रहा है व कोई भी इस नदी या फिर इससे निकलने वाले कणों के लिए दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है.
इस नदी से सम्बंधित एक और आश्चर्यचकित तथ्य यह है कि रांची स्थित यह नदी अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद उस क्षेत्र की किसी भी अन्य नदी में जाकर नहीं मिलती बल्कि यह नदी सीधे बंगाल की खाडी में गिरती है.
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कैसे मिलता है सोना?
जिस प्रकार किसी नहीं में जाल बिछाकर मछलियां पकड़ी जाती हैं ठीक उसी तरह यहां के आदिवासी स्वर्ण कणों को छानने के लिये नदी में जाल की भांति टोकरे फेंकते हैं. इन टोकरों में कपड़ा लगा होता है जिसमें नदी की भूतल रेत फंस जाती है. इस रेत को आदिवासी घर ले जाते हैं व दिनभर उस रेत में से सोने के कण व रेत को अलग-अलग करते रहते हैं.सोने के कणों को अलग कर स्थानीय व्यापारियों को औने पौने दाम पर बेचा जाता है.यहां के आदिवासी इस व्यापार से तो इतनी कमाई नहीं कर पाते हैं लेकिन क्षेत्रीयदलाल इस नदी के दम पर करोड़ों की कमाई कर रहे हैं.जो देते हैं सोना उन्हीं पर हो रहा अत्याचाररांची से बहने वाली यह नदी यहां के आदिवासियों के लिए आय का एकमात्र स्रोत है.उनकी नजाने कितनी ही पीढ़ियां इस नदी से सोने के कणों को निकालकर अपना पेट भर रही हैं, लेकिन वो कहते हैं ना कि जब आपको किसी वस्तु की पूर्ण जानकारी ना हो तो पूरी दुनिया आपका फायदा उठाने आ जाती है. कुछ ऐसा ही हो रहा है यहां के आदिवासियों के साथ भी. इतनी महंगी धातु के बदले में उन्हें कौड़ियों के दाम मिलते हैं जिनसे मुश्किल से ही उनका पेट भरता है. इस क्षेत्र के आदिवासियों कीआर्थिक स्थिति सालों से ही ऐसी ही रही है.


अकबर जेसे हरामी को भारत के इतिहास में महान का दर्ज दिलाने वाले गाँधी और नेहरू ने उसकी असलियत पर पर्दा डाल कर नई पीढी को बर्बाद करने का काम किया इस पढ़ कर आप भी अकबर नाम के सुनवर की असलियत जाने
अकबर की पहली शादी उसके चाचा हिन्दल की बेटी रुकैया बेगम से हुई थी
अकबर ने अपने अभिभाभक और विक्रमादित्य हेमू को हराने वाले बहराम खाँ को इसलिये हाँथियोँ से कुचलकर मरवा दिया था क्योँकि उसकी शादी अकबर की बुआ की लड़की सलीमा बेगम से तय हुई थी जिस पर अकबर की नजर थी ...बहराम खां को मरवाने के बाद अकबर ने सलीमा बेगम(अब्दुल रहीम खानखाना की माता) अपने हरम में रखा ....
इतिहास कहता हैँ कि फतेहपुर सीकरी का निर्माण अकबर ने कराया ??
अपने संरक्षक बैहराम खाँ से विवाद के बाद जब अकबर को गुप्तचरोँ ने सूचित किया कि बैहराम खाँ उसे कैद करना चाहता है तो उसने तुरन्त अपनी राजधानी आगरे से हटाकर
फतेहपुर सीकरी स्थानान्तरित कर ली इससे स्वत: ही सिद्ध होता है कि फतेहपुर सीकरी का आसतित्व पहले से था फतेहपुर सीकरी तब भी था जब अकबर का दादा बाबर.. महाराणा संग्राम सिंह(रांणा सांगा) से लडने गया..उनकी लडाई फतेहपुर सीकरी से 10
कि.मी. दूर खानवा(भरतपुर) के मैदान में हुई... वहां जनश्रुति है कि फतेहपुर सीकरी को देवों ने बसाया.. और मात्र एक रात में बुलंद दरवाजा तैयार हो गया... आज भी उसके अंदर एक स्थान है.. जिसे सीता रसोई कहा जाता है....
अकबर ने खान देश के शासक मिर्जा मुबारक शाह की बेटी को हरम में डाला था सितम्बर १५६४ इसवी)
23 फरवरी १५६७ को अकबर ने चित्तोड़ में कत्लेआम करवाया ;... जिसमे करीब ३० हज़ार लोग मारे गए और कई हज़ार बंदी बनाये गए ... राजपूत वीरांगनाओ ने अपने सतीत्व
की रक्षा के लिए सामूहिक जौहर किया ...
अकबर के तृतीय पुत्र दानियाल का जन्म उसकी एक रखैल स्त्री से हुआ १५ सितम्बर १५७२ ..अकबर का एक दूसरी रखैल से मुराद नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ .. अगर वाकई अकबर जोधा को प्रेम करता था तो उसके हरम १० हज़ार से ज्यादा रूपसिया क्यों थी ,,, कई रखैलो से उसके पुत्र भी हुए ....
२६ अप्रैल १५८५ को दरबार में नवरत्नों का दर्जा प्राप्त महान संगीतज्ञ तानसेन की मृत्यु हो गई लेकिन उन्हें लाहोर में दफनाया गया जबकि वो हिन्दू थे
भारतवर्ष में वैश्यावृत्ति की शुरुआत करने का श्रेय अकबर को ही जाता है जोधा अकबर की प्रेम कहानी पर टीवी सीरियल दिखाया जा रहा ....जिसमे अकबर को नायक की छवि में प्रस्तुत किया जा रहा ........
इस बिहारी ने बिहार का मतलब बदल दिया
हिंदुस्तान में बड़े बड़े कद की तो बहुत सी हस्तियाँ है ...लेकिन दिल किसी का भी अनिल अग्रवाल से बड़ा नही है.
दुनिया में मेटल किंग के नाम से मशहूर वेदांता ग्रुप के मालिक अनिल अग्रवाल ने जीवन की सारी कमाई का 75 प्रतिशत धन देश के गरीबों को दान करने का एलान किया है. लन्दन मे बसे अग्रवाल
का ये दान भारतीय करेंसी के अनुसार 21000 करोड़ रूपए है. ये अब तक किसी भी भारतीय के हाथों दान की जाने वाली सबसे बड़ी रकम है.
अनिल अग्रवाल बिहार से हैं और कबाड़ के धंधे से छोटा व्यापार शुरू करके माइंस और मेटल के सबसे बड़े कारोबारी बने. उन्होंने कल लन्दन में अपने परिवार की सहमति के बाद एलान किया कि वो अपनी कमाई की 75 फीसदी रकम यानि 21 हज़ार करोड़ रूपए भारत में निशुल्क शिक्षा के कई बड़े प्रोजेक्ट में दान देना चाहते है. वे भारत में ऑक्सफ़ोर्ड से बड़ी कई यूनिवर्सिटी बनाना चाहते है जो "नो प्रॉफिट नो लॉस" के नियम पर चलेंगी. अग्रवाल ने कहा की वो कई सालों से चैरिटी की दिशा में बढ़ रहे थे और आखिरकार अपने परिवार की सहमति के बाद ये रकम देश को समर्पित करने में सफल हुए.
कलमाड़ीयों, चौटालाओ, राजाओं, लालुओं और ललिताओं के इस दौर में अनिल अग्रवाल को प्रणाम. देश के नेताओं और संपादकों के लिए ये खबर भले ही छोटी हो लेकिन एफबी के मित्रों से गुजारिश है कि इस खबर को देश दुनिया तक पहुंचा दें.

Sunday, 28 September 2014

इज़राइल एक छोटा सा देश है, जो रेगिस्तान से सटा है। यहां की आबादी करीब 70 लाख है। इसका सकल घरेलू उत्पाद 120 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास है यानी प्रति व्यक्ति जीडीपी 25,000 अमेरिकी डॉलर। इस्राइल की कुल भूमि का क्षेत्रफल 21,000 वर्ग किलोमीटर है। इसमें सिफ‍र् 4,40,000 हेक्टेयर यानी 20 फीसदी भूमि ही खेती लायक है। असल में खेती 3 लाख 60 हजार हेक्टेयर भूमि पर होती है, जिसमें 1 लाख 80 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इज़राइल की आधी से ज्यादा भूमि बंजर है। इस देश में मौसम की कठिन परिस्थतियों और जल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद यहां कृषि में सकारात्मक नतीजे देखने को मिले हैं। यह सफलता खेती में सृजनात्मकता व उद्यमिता की भावना के कारण और कृषि व कृषि–टेक्नोलॉजी उद्योगों के बीच तालमेल के कारण मिली है।

इज़राइली अर्थव्यवस्था का मूल अौर शुरुआती आधार खेती अौर खाद्य पदार्थों का उत्पादन रहा है। 1948 में जब इस्राइल की राष्ट्र के रूप में स्थापना हुई तो निर्यात किए जाने वाले मुख्य उत्पाद नींबू जाति के फल थे, जो जाफा लेबल के तहत बाहर भेजे जाते थे।

इस तरह शुरुआत सामूहिक आर्थिक व्यवस्था से हुई, जो कृषि उत्पादों अौर पारंपरिक उत्पादों पर आधारित थी। अब इसमें बदलाव आया है, जहां खुला बाजार है अौर विभिन्न प्रकार के निर्मित उत्पादों की विश्व भर में बिक्री हमारे सामने है। यह सफलता बेहद कम समय में ाप्त की गई है।
इज़राइल में कृषि, डेयरी व मांस उत्पादन के लिए अब आम पारंपरिक तरीकों की जगह ज्यादा आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है। यह खोजपरक शोध अौर विकास का नतीजा है, जो हमने अपने बूते पर किया है। जिन नए तरीकों का आविष्कार किया गया है उनमें सिंचाई की क्रांतिकारी तकनीक, भूमि को उपजाऊ बनाने, रेगिस्तान के उपयोग के लिये खारे पानी का इस्तेमाल बढ़ाना शामिल है। इज़राइल का कृषि–तकनीक उद्योग अपनी खोजपरक व्यवस्थाअों के गहन शोध और विकास के लिये जाना जाता है। देश में प्राकृतिक संसाधनों की कमी से निपटने की जरूरत के कारण ही आम तौर पर ऐसा हो पाता है। ये जरूरतें खास तौर से खेती योग्य भूमि अौर जल से संबंधित हैं। कृषि तकनीकों के लगातार आगे बढ़ने का कारण है शोधकर्ताओं, उसे विस्तार देने वाले एजेंटों, किसानों और कृषि पर आधारित उद्योगोंं के बीच करीबी सहयोग। ये मिले–जुले प्रयास कृषि के सभी क्षेत्रों में नई–नई सफलताअों अौर तरीकों को जन्म दे रहे हैं। इससे बाजारोन्मुखी कृषि व्यापार को मजबूती मिली है, जो अपनी कृषि तकनीक का निर्यात पूरे विश्व को कर रहा है। जिस देश में आधी से ज्यादा भूमि रेगिस्तान हो, वहां आधुनिक कृषि विधियां, व्यवस्थाएं और उत्पाद देखने को मिल रहे हैं।

कुछ उदाहरण

– इज़राइल में कृषि योग्य भूमि का आधा हिस्सा सिंचित है, लेकिन देश में कृषि योग्य भूमि में सिंचित क्षेत्र का यह अनुपात सबसे ज्यादा है। इस्राइल में विकसित कम्प्यूटर नियंत्रित ड्रिप्स सिंचाई णाली बड़ी मात्रा में पानी बचाती है और सिंचाई के जरिये ही खाद की आपूर्ति संभव बनाती है।

इज़राइल ने ऐसी अत्याधुनिक ग्रीनहाउस तकनीकों का विकास किया है, जो खास तौर से गर्म मौसम वाले इलाकों के लिये हैं। इसका योग उन फसलों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जिनकी ऊंची कीमत पर मांग है। ग्रीनहाउस सिस्टम में विशिष्ट प्लास्टिक फिल्म और हीटिंग, वेन्टिलेशन और कनातनुमा ढांचों की मदद सेे इस्राइल के किसानों को हर सीजन में 35 से 40 लाख गुलाब प्रति हेक्टेयर उगाने में मदद मिलती है। साथ ही अौसतन प्रति हेक्टेयर 400 टन टमाटर भी इस तरीके से उगाया जाता है। खुले खेतों में होने वाले उत्पादन के मुकाबले यह मात्रा चार गुनी है।

– इज़राइल के दुग्ध उत्पादन ने भी आधुनिक तकनीकों का विकास अौर इस्तेमाल किया है। इससे इस उद्योग में काफी बदलाव आया है। 1950 के मुकाबले अब दूध का उत्पादन ढाई गुना ज्यादा हो गया है। यानी तब डेयरी में प्रति गाय सालाना उत्पादन औसतन 4,000 किलो था, जो अब 11,000 किलो हो गया है।

यूं तो कृषकों की संख्या में कमी आई है और सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान घटा है। वर्ष 2002 में यह योगदान महज 2फीसदी था। इसके बावजूद स्थानीय बाजारों में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिए कृषि की भूमिका अब भी महत्वपूर्ण है। साल 2004 के आंकड़ों के मुताबिक, जो लोग कृषि कार्य में सीधे रोजगार पाते हैं, वे देश के कुल श्रम संसाधन का 2 फीसदी हैं। पचास के दशक की शुरुआत में एक कृषि कार्मिक 17 लोगों के अनाज की आपूर्ति करता था। जबकि वर्ष 2003 में एक पूर्णकालिक कृषि कार्मिक 90 लोगों के लिये खाद्या की आपूर्ति कर रहा था।

इज़राइल की ज्यादातर कृषि सहकारी व्यवस्था पर आधारित है, जिसका विकास बीसवीं सदी के शुुरुआत में किया गया था। यहां के किबुत्ज एक बड़ी सामूहिक उत्पादन इकाई है। किबुत्ज के सदस्य संयुक्त रूप से उत्पादन के साधन अपनाते हैं। वे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी मिल–जुल कर हिस्सा लेते हैं। फिलहाल किबुत्ज की आय का ज्यादातर हिस्सा उन अौद्योगिक उद्यमों से आता है, जिनका स्वामित्व सामूहिक रूप से होता है। एक अन्य व्यवस्था है जिसका नाम है मोशाव। यह निजी पारिवारिक खेती पर आधारित है, जिनको कोआॅपरेटिव सोसाइटियों के रूप में संगठित किया गया है। दोनों प्रकार की व्यवस्थाओं में निवासियों को म्यूनिसिपल सेवाओं के पैकेज दिए गए हैं। तीसरी तरह की व्यवस्था मोशावा है। यह पूरी तरह से निजी तौर पर खेती करने वालों का गांव है। देश के कृषि उत्पाद में किबुत्ज ओर मोशाव का हिस्सा फिलहाल करीब 83 प्रतिशत है।

सिंचाई और जल प्रबंधन

जल को राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है और उसका संरक्षण कानून द्वारा किया जाता है। जल आयोग हर साल प्रयोगकर्ताओं को जल का आवंटन करता है। जलापूर्ति का पूरी तरह से मापन किया जाता है और भुगतान भी खपत अौर जल की गुणवाा के हिसाब से किया जाता है। किसान पेयजल के लिये अलग मूल्य देते हैं, ताकि जल की बचत को बढ़ावा दिया जा सके। इज़राइल की कृषि में पानी की कमी एक बड़ी बाधा है। कृषि योग्य भूमि में सिफ‍र् आधी ही सिंचित है, क्योंकि पानी की कमी है। इज़राइल में उत्तर से दक्षिण 500 किलोमीटर की दूरी तक सालाना वर्षा 800 मिलीमीटर से 25 मिलीमीटर तक बारिश होती है। वर्षा ऋतु अक्टूबर से अप्रैल तक होती है, जबकि गर्मी के मौसम में कोई बारिश नहीं होती। प्रति हेक्टेयर पानी का सालाना इस्तेमाल औसतन 8,000 मीटर क्यूब से गिरकर 5,000 मीटर क्यूब रह गया है, जबकि पिछले 50 सालों में कृषि उत्पादन 12 गुना बढ़ा है। 2004 में यहां का कृषि उत्पादन 3.9 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के बराबर था।

सिंचाई तकनीक

50 के दशक की शुरुआत से कृषि में शोध के लिए गहन प्रयास किए गए। यह देखा गया कि सतह पर सिंचाई के बजाय दबावीकृत सिंचाई में जल का इस्तेमाल ज्यादा प्रभावी है। फिर सिंचाई उपकरण उद्योग की स्थापना हुई, जिसने तरह–तरह की तकनीकें और उपकरण विकसित किए। जैसे ड्रिप इरिगेशन (सरफेस और सब सरफेस), आॅटोमैटिक वॉल्वस और कंट्रोलर्स, सिंचाई जल ले जाने वाले माध्यम अौर स्वचलित छनना, लो डिस्चार्ज स्प्रेयर्स और मिनी सि्ंक्लर्स, कम्पनसेटेड ड्रिपर्स और सि्ंकलर्स। इनमें फर्टिगेशन (सिंचाई के साथ खाद का इस्तेमाल) आम है। खाद उत्पादकों ने अत्यंत घुलनशील और द्रव रूप वाले खाद का विकास किया है, जो इस तकनीक में काम आते हैं। सिंचाई का ज्यादातर नियंत्रण आॅटोमैटिक वॉल्व और कम्प्यूटराइज्ड कंट्रोलर के हाथों में होता है। सिंचाई उद्योग के इस विकास को पूरे विश्व में प्रतिष्ठा हासिल है और इसका 80 फीसदी से ज्यादा उत्पाद निर्यात किया जाता है।

सिंचाई व्यवस्था

इज़राइल के किसान इस बात को भलीभांति जानते हैं कि जल अमूल्य है अौर एक सीमित संसाधन है। इसका संरक्षण करने के साथ–साथ इसका सबसे प्रभावी और किफायती उपयोग किया जाना चाहिये। सिंचाई के ज्यादातर आधुनिक उपकरण सिंचाई पर नजर रखने और नियंत्रण रखने में मदद करते हैं, ताकि जल के इस्तेमाल की बेहतर क्षमता प्राप्त हो सके। देश भर में कृषि मौसम स्टेशनों का नेटवर्क है, जो मौसम के बारे में किसानों को तात्कालिक आंकड़े उपलब्ध कराते हैं। इन आंकड़ों के जरिये सिंचाई णाली का इस्तेमाल किया जाता है।

भविष्य का रुख

शहरी आबादी में बढ़ोतरी अौर राजनीतिक घटनाक्रम की संभावित दिशा से खेती के लिए ताजा पानी की सप्लाई घटने की आशंका है। समाधान यही है कि खारे पानी को खारेपन से मुक्त किया जाए और उससे बढि़या क्वॉलिटी का पानी ाप्त किया जाए। इस तरह पूरे साल की फसलों को कवर किया जा सकेगा अौर रिसाइकलिंग लगातार चलती रहेगी।

शोध और विकास

आज इज़राइल की खेती काफी हद तक शोध और विकास पर आधारित है। आधुनिक कृषि के सामने कई चुनौतियां हैं। जैसे बाजार में तियोगिता, जल की घटती उपलब्धता और गुणवाा, पर्यावरण संबंधी चिंताएं, मानव श्रम की लागत और उपलब्धता। इसके लिए जरूरत है लगातार खोज और वैज्ञानिक समुदाय के बीच करीबी सहयोग की। इज़राइल की कृषि कुछ खास चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे कृषि योग्य भूमि अौर जल की सीमित उपलब्धता, मानव श्रम की उंची लागत। ये चुनौतियां भी शोध और विकास की जरूरत को आगे बढ़ाती हैं। शोध और विकास के लिये विाीय आवंटन इज़राइल में काफी ज्यादा है। इसमें हर साल 9 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश किया जाता है। यह रकम कृषि के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का तीन फीसदी है। शोध प्रयासों के कारण इज़राइली खेती पानी, भूमि अौर मानव श्रम के सक्षम इस्तेमाल का आदर्श नमूना बन गई है। इसके साथ ही रेकॉर्ड उत्पादन अौर उच्च गुणवाा के उत्पाद भी देखने को मिल रहे हैं।

बायोटेक्नोलॉजी

बायोटेक्नोलॉजी जैसे उभरते क्षेत्र का पिछले बीस सालों में यहां अदभुत विकास हुआ है। इससे पारंपरिक तरीकों की बाधाअों को खत्म करने का भरोसा मिलता है। बायोटेक्नोलॉजी हमें नई तकनीक अौर सामग्री उपलब्ध करा रही है।
यहां हम बात करेंगे कुछ मौजूदा अध्ययनों की, जो कृषि बायोटेक्नोलॉजी के प्रमुख क्षेत्रों में किये गये हैं।
– प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, जिसमें मुख फसलों पर फोकस रखा गया है।
– माइक्रोबायल एग्रीबायोटेक्नोलॉजी : पौधों में कीट नियंत्रण, लाभकारी माइक्रो आॅर्गनिज्म (सूक्ष्म जीवाणुअों) का इस्तेमाल (जड़ों के विकास और बायोफर्टिलाइजेशन के लिए)
– पर्यावरण बायोटेक्नोलॉजी : जैविक तथा पर्यावरणीय उपचार के लिये पौधों का इस्तेमाल।
– लाइवस्टॉक (पशुधन ) बायोटेक्नोलॉजी : जनन अौर जेनेटिक फेरबदल (बेहतर विकास, दुग्ध अौर अंडों के उत्पादन के लिए), डीएनए मार्कर के जरिये चयन में सहयोग।
– जलीय व समुद्री बायोटेक्नोलॉजी।
कृषि बायोटेक्नोलॉजी अपनी राह बना रही हैं, जिससे वह जनन अौर खेती की परंपरागत विधियों से जुड़ी बाधाअों को खत्म कर रही है और नई विधियां प्रदान कर रही है।
कृषि विस्तार सेवा

कृषि अौर ग्रामीण विकास मंत्रालय की कृषि विस्तार सेवा ने इज़राइल में कृषिगत विकास के शुरुआती दौर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अंतर्गत गैरअनुभवी किसानों को प्रशिक्षण दिया गया, ताकि वे कृषि की आधुनिक विधियों का इस्तेमाल सीमित संसाधनों के बीच अपनी क्षमता के अनुसार कर सकें। साल बीतते गए अौर कृषि का तेजी से विकास हुआ, क्योंकि शोध में मिली जरूरी सूचनाएं तेजी से खेतों अौर किसानों तक पहुंचीं। देश में इस दिशा में काम करने वाली टीमों की स्थापना की गई, जिन्होंने देश भर में कुशल और सक्षम शिक्षण दिया। बाजार में तियोगिता का दौर होने के बावजूद कृषि के पेशेवर विकास में प्रशिक्षण की केंीय भूमिका रही। इससे गुणवाा वाले कृषि पैदावारों के उत्पादन को बढ़ावा मिला। देश के विभिन्न क्षेत्रों में जहां जो लाभ हासिल हैं, उनका दोहन करने की क्षमता बढ़ाई गई। इसका इस्तेमाल निर्यात करने और स्थानीय बाजार, दोनों के लिए किया गया। नतीजा यह है कि कृषि विस्तार और शोध, इज़राइली कृषि ढांचे का अहम हिस्सा बन गए हैं।

फसल कटाव के बाद प्रयुक्त तकनीकें

कृषि बाजारों में उच्च गुणवाा वाले उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे उत्पाद जो कीटों, रोगाणुअों अौर कीटनाशकों से मुक्त हों। एग्रीकल्चरल रिसर्च आॅर्गनाइजेशन में इंस्टिट्यूट फॉर टेक्नोलॉजी एंड स्टोरेज आॅफ एग्रीकल्चरल ॉड्क्ट्स का मुख्य मकसद यह है कि इज़राइल में फसल कटाई के बाद के कामों की मौजूदा और भावी समस्याओं का हल निकाला जाए, ताकि इस प्रकार के उच्च गुणवाा वाले उत्पादों की मार्केटिंग हो सके। स्थानीय खाद्य पदार्थ उद्योग और इससे संबंधित संस्थाओं की मांग पर फसल कटाई के बाद के कामों के मामले में विकास हुआ है। इससे अलग जो विकास हुआ, वह इस उद्योग के भविष्य की जरूरतों का नतीजा है। कुछ विकास स्थानीय तौर पर उत्पादित अौर आयातित सूखे कृषि उत्पादों के संरक्षण और पशुधन के लिए चारे को सुरक्षित ढंग से रखने में भी हुआ है।

फसल कटाई के बाद के कामों से जुड़ा शोध इस बात पर केंद्रित होता है कि ताजा, सूखे या संस्कृत खाद्य पदार्थों की हिफाजत, बचाव, उपचारण, संस्करण, भंडारण और परिवहन कैसे किया जाये। ताजा उत्पादों के मामलों में फसल कटाई के बाद के कामों से संबंधित शोध गतिविधियां एक खास दिशा में केंद्रित होती हैं। वह यह कि ताजे फलों, सब्जियों, फूलों और साज–सज्जा वाले अन्य उत्पादोंं की उनके खेत से बाहर निकलने के बाद गुणवाा कैसे सुनिश्चित की जाए ताकि उनके निर्यात द्वारा बेहतर कमाई की जा सके।

खाद और फर्टिगेशन ;सिंचाई मेें खाद का इस्तेमालद्ध

इज़राइल के दक्षिणी क्षेत्र में और खास तौर पर मृत सागर क्षेत्र में ऐसी कई खदानें हैं, जिनसे कृषि क्षेत्र को पोटाशियम, फॉस्फोरस, मैग्नेशियम मिलता है। खुदाई से ाप्त मटीरियल को कच्चे माल के तौर पर पूरी दूनिया में खाद उत्पादकों को निर्यात किया जाता है। कुछ की प्रोसेसिंग इज़राइल में ही की जाती है ताकि इज़राइल में खेती के लिये तैयार खाद मिल सके और निर्यात किया जा सके।
इज़राइल दुनिया में पोटाशियम नाइट्रेट के बड़े उत्पादकों में से एक है। यह अत्यंत घुलनशील खाद है, जो कई प्रकार के पौधों और फसलों के लिए उपयुक्त होता है। पोटाशियम नाइट्रेट को फर्टिगेशन सिस्टम या फोलियर अप्लीकेशन (पौधों के पाों को पोषक तत्वों की आपूर्ति) के जरिये पौधों को दिया जा सकता है। इस खाद को पाउडर या दानेदार आकार में बेचा जाता है। अत्यंत घुलनशील अन्य खादों, जिनका उत्पादन जिनमें होता है उनमें एमएपी यानि मोनो अमोनियम फॉस्फेट और एमकेपी यानि मोनो पोटाशियम फॉस्फेट शामिल हैं।

खाद बनाने वाले कंट्रोल्ड रिलीज फर्टिलाइजर्स यानी सीआरएफ का भी विकास और उत्पादन करते हैं। इन पर पोलिमर्स का आवरण चढ़ाया जा है, ताकि वे धीरे–धीरे देरी से मुक्त हों और जिनकी आपूर्ति डिफ्यूजन के जरिये हो। सीआरएफ से खाद का अच्छा इस्तेमाल होता है अौर इनसे भूमिगत जल का प्रदूषण भी कम होता है।

बहुत सी फसलों में विकास के समय में ये खाद काफी प्रभावी होते हैं। आम यौगिक खादों के मुकाबले सीआरएफ कुछ कारणों से ज्यादा महंगे होते हैं, लेकिन उनमें यह क्षमता होती है कि वे ग्रीनहाउस ोडक्शन के मामले में परंपरागत खादों की भूमिका खत्म कर सकें। ऐसा इसलिये है कि उनमें मौजूदा तरीके से फर्टिगेशन के दौरान पोषक तत्वों के भारी नुकसान को कम करने की क्षमता होती है। फर्टिगेशन के कारण भूमिगत जल का प्रदूषण वहां होता है, जहां फर्टिगेशन के पानी का दोबारा इस्तेमाल नहीं होता है।

अंतरराष्ट्रीय कृषि सहयोग

इज़राइल विकासशील देशों के साथ विभि क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर काफी जोर देता है। जैसे विशेषज्ञों के मेल–जोल, जानकारी बांटना, संयुक्त शोध और परियोजनाअों के विकास के दर्शन तथा शिक्षण के क्षेत्र में। अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम में इज़राइल की खासियत है पेशेेवर अौर संचालन संबंधित उसकी अपनी उपलब्धियों, कृषि के अनुभव, ग्रामीण विकास अौर मानव क्षमता का विकास अंतरराष्ट्रीय सहयोग का काम विभि देशों के साथ उनकी सरकारों के स्तर पर तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों अौर सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थाअों के साथ मिलकर भी किया जाता है।

इस संदर्भ में पिछले पांच दशकों में इज़राइल विदेश मंत्रालय के अंतरराष्ट्रीय सहयोग अनुभाग (माशाव) तथा कृषि अौर ग्रामीण विकास मंत्रालय क सेंटर फॉर इंटरनैशनल एग्रीकल्चरल डिवेलपमेंट कोआॅपरेशन अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम बनाने अौर चलाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। ये कार्यक्रम इज़राइल में अंतरराष्ट्रीय कृषि शिक्षण पाठ्यक्रम पर अौर विदेशों में आॅन द स्पॉट पाठ्यक्रम पर आधारित होते हैं। संयुक्त कृषि शोध परियोजनाअों अौर विभि दर्शनोन्मुखी परियोजनाअों के विकास में भी ये कार्यक्रम चलाये जाते हैं।

इज़राइल में कृषि क्षेत्र के उपरोक्त पहलू उपलब्धियों के साथ–साथ इस क्षेत्र के भविष्य के विकास में आने वाली बाधाअों को भी रेखांकित करते हैं। कृषि कार्य महज खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं है, इसका राष्ट्रीय योगदान काफी ज्यादा है। ताजा कृषि उत्पादों, दु्ग्ध अौर अंडा उत्पादन के क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने की हमारी क्षमता का महत्व इसके आर्थिक मूल्य से ज्यादा है। इज़राइल की कुल भूमि का आधा हिस्सा रेगिस्तान है अौर इसका विकास करना, रहने योग्य बनना अौर बसने के लिए लोगों को आकर्षित करना देश का मुख राष्ट्रीय लक्ष्य है।




!! व्यथा !!
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किसी पेड़ के कटने से 
सर्प्रथम उजड़ते हैं 
पक्षियों के घोंसले
फल और फूल खतम होने से
अन्य पक्षी रंग बिरंगे
तितलियाँ कीट पतंगे
चील कव्वे गिद्ध
फिर भी नहीं छोड़ रहे
हम अपनी अपनी जिद्द
तड़फकर मर रहे
पत्तियाँ खाने वाले
जंगल के साथी
हिरण जिराफ हाथी
देर सवेर
चीता और शेर
लैकिन
इतनी मौतों से भी नहीं डरा
अब क्या डरेगा,
आदमी सबसे बड़ा जानवर है
सबसे आख़िरी मे मरेगा...!!

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Arab हिन्दुओं के खिलाफ !
ISI हिन्दुओं के खिलाफ !
PAK हिन्दुओं के खिलाफ !
Congress हिन्दुओं के खिलाफ !
JDU हिन्दुओं के खिलाफ !
BSP हिन्दुओं के खिलाफ !
SP हिन्दुओं के खिलाफ !
CPI हिन्दुओं के खिलाफ !
CPIM हिन्दुओं के खिलाफ !
AAP हिन्दुओं के खिलाफ !
सारे गद्दार हिन्दुओं के खिलाफ !
सारे देश द्रोही हिन्दुओं के विरोध में!
सारी कायनात लगी है एक धर्म को झुकाने में... परमात्मा भी सोचता होगा,
जाने किस मिटटी का इस्तेमाल किया मैंने "हिन्दुओं" को बनाने में!! 
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लडकियाँ हर मोड़ पे डरती हैं,
अकेली हो तो सुनसान राहों का डर,
भीड़ में हो तो लोगों का डर,
हवा चले तो दुपट्टा उड़ने का डर,
कोई देखे तो उसकी आँखों का डर,
बचपन हो तो माँ बाप का डर,
जवान हो तो भाइयों का डर,
वो डरती हैं और तब तक डरती हैं,
जब तक इन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिल जाता,
.
.
.
और यही वो शख्स होता है,
,
जिससे वो सबका बदला लेती है ।

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बीच सडक पर रास्ता रोककर नमाज पढ़ते नमाजियों को पैरो तले कुचलते जाती ये लडकी अब फ्रांस ही नही बल्कि पुरे यूरोप में हीरो बन चुकी है ...
आखिर इन शांतिदूतो की आराधना कैसी है जो ये हजारो लोगो का रास्ता रोककर करते है ?
हजारो लोगो को उनके मंजिल पर जाने से रोककर, मरीजो को अस्पताल जाने से रोककर यदि तुम सडक पर नमाज पढ़ रहे हो तो क्या तुम्हारा अल्लाह तुम्हारी इबादत को स्वीकार कर सकता है ?

जुक़ाम (COLD)-
जुक़ाम होना एक आम समस्या है | जुक़ाम का रोग किसी मौसम में हो सकता है परन्तु यह अक्सर दो मौसमों के बीच में होता है जैसे गर्मी और सर्दी | जुक़ाम प्रदूषण के कारण भी हो सकता है | किसी गर्म जगह से एकदम ठंडी जगह पर चले जाने के कारण,पेट में कब्ज,गर्म के ऊपर एकदम ठंडी वस्तुओं का सेवन,बारिश में अधिक भीगने तथा कसरत करने के तुरंत बाद नहाने से जुक़ाम हो जाता है |
जुक़ाम का विभिन्न औषधियों से उपचार -
१- दस तुलसी के पत्ते तथा पांच काली मिर्च पानी में चाय की भांति उबालें तथा थोड़ा सा गुड़ डालें | इसे छानकर पीने से जुक़ाम में बहुत लाभ होता है |
२- अजवायन को पीसकर एक पोटली बना लें ,उसे दिन में कई बार सूंघने से बंद नाक खुल जाती है|
३- एक कप गर्म पानी में नींबू और चुटकी भर सेंधानमक डालकर सुबह खालीपेट और शाम को पीने से जुक़ाम ठीक हो जाता है |
४- लगभग १०० मिली पानी में तीन लौंग डालकर उबाल लें | उबलने पर जब पानी आधा रह जाए तब इसके अंदर थोड़ा सा नमक मिलाकर पीने से जुक़ाम दूर होता है |
५- पांच ग्राम अदरक के रस में पांच ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन ३-४ बार चाटने से जुक़ाम में बहुत आराम मिलता है |

Friday, 26 September 2014


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नाइजर ने जारी किया भगवान गणेश पर टिकट

पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजर की सरकार ने त्योहारों के मौके पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी पर विशेष टिकट जारी किया है।
भारत में इन टिकटों के एकमात्र अधिकृत डीलर आलोक के गोयल ने बताया कि ये टिकट भारतीय बाजार में उपलब्ध हैं। ऐसे केवल 1500 टिकट उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि पहला टिकट षट्कोणीय है जिसे गणेश के रूप में तस्वीर की शीट पर रखा गया है। दूसरा लक्ष्मी और गणेश का स्मारिका सीट पर रखा टिकट है। यह खुले कमल फूल के आकार का है। इन टिकटों को भारत में 1001 रुपये में बेचा जा रहा है।

Thursday, 25 September 2014

अपनी शादी के पहले दिन पति और पत्नी के बीच शर्त रखी जाती है कि किसी के लिए भी दरवाजा नहीं खोला जायेगा !

उसी दिन उस लड़के के माता पिता आये और अन्दर जाने के लिए दरवाजा खट खटाया !

पति पत्नी एक दुसरे की तरफ देखते है।

पति अपने माता पिता के लिए दरवजा खोलना चाहता है लेकिन उसे शर्त याद आ जाती है। वह दरवाज़ा नहीं खोलता है ओर उसके माता पिता चले जाते है ।

कुछ समय के बाद उसी दिन लड़की के माता पिता आते है और अन्दर जाने के लिए दरवाजा ख़त खटाते है ।

पति पत्नी फिर एक दुसरे की तरफ देखते है और उस समय भी वो शर्त याद करते है ।

पत्नी की आँखों में आंसू आ जाते हे वो अपने आंसू पूछते हुए कहती हे : मै अपने माता पिता के लिए ऐसा नहीं कर सकती और दरवाजा खोल देती है ।

पति कुछ नहीं कहता है ।।

कुछ समय के बाद उनके दो पुत्र जन्म लेते है ।

इसके बाद उनको तीसरा बच्चा होता है जो एक लड़की (बेटी) होती है ।।

वह पति अपनी पुत्री के जन्म लेने के अवसर पर एक बहुत बड़ी और शानदार पार्टी का आयोजन करता है और अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाता है ।

फिर उसकी पत्नी उससे पूछती है कि क्या कारण था जो उसने बेटी के जन्म पर इतनी बड़ी पार्टी का आयोजन किया जबकि इससे पहले दोनों दोनों भाइयो के जन्म पर ऐसा कुछ
नहीं किया ।।

पति अपने साधारण से शब्दों में बड़े प्यार से उत्तर देता है :
क्योकि यही वो है जो एक दिन मेरे लिए दरवाजा खोलेगी ।।

"बेटिया बहुत स्पेशल होती है,
आपकी छोटी सी बेटी भले ही आपके साथ कुछ समय के लिए ही रहे .... लेकिन उसका दिल और प्यार जीवन भर अपने माता पिता के लिए रहता है ।।"
1. कितने हिन्दू भाइयों को ही क्या मुसलमानो को भी ये न
पता होगा की पैगम्बर सिकंदर के 500 साल बाद पैदा हुए था।
2. भारत को छोड़ पूरे संसार में रमजान को"रामदान"कहते है, आप गूगल पर भी देख सकते हैं । भारत में अपनी नक़ल छुपाने को इन्होने इसे "रमजान" कर दिया | इस्लाम के पवित्र महीना रमजान संस्कृत शब्द"रामज्ञान"का अपभ्रंस है । और मक्का में विश्वप्रसिद्ध शिव लिंग भी था और अभी भी है और ये मुस्लिम हज के समय इस शिवलिंग को ही सज़दा करते हैं।
3. मुहम्मद के चाचा एक हिन्दू थे और अरब में भी आर्य संस्कृति का प्रभाव बहुत
था। मुहम्मद के चाचा ने एक पुस्तक भी लिखी थी"शायर उल
ओकुल "जिसमें हिन्दू संस्कृति की भूरी भूरी प्रसंसा थी |
बाद में मुहम्मद के बदमाशों ने उन्हें मार दिया था |
4-"मुसलमानो का "नमाज"भी संस्कृत के नमत शब्द से बना है जिसका अर्थ है झुकना | 
5- मुसलमानो की दिन में ५ बार नमाज हमारे वेदों के"पञ्च महा यज्ञ"की ही नक़ल है |
6-मुसलामानों का त्यौहार "शब्बेरात"शिवरात्री का ही अपभ्रंस है |
7-*नमाज के पहले ५ अंगों को धुलना वेदों के"शरीर शुद्ध्यर्थं पंचांग
न्यासः"का ही नियम है |
8-ईद उल फितर भी हिन्दुओं के पित्री पक्ष
की नक़ल है और ईद उल फ़ित्र में मुसलमान अपने
पुरखों को ही याद करते हैं |
9-नक़ल यहीं बंद नहीं हुई : गर्भा बना काबा, पुराण
बना कुराण, संगे अश्वेत बना संगे अस्वाद, हमारा मलमास बना सफ़र मास, रवि से उनका रबी महिना, उनका ग्यारहवी शरीफ हमारे एकादशी की ही नक़ल है| गृह से ही उनका गाह शब्द बना ईदगाह , दरगाह
*********** बस नक़ल करने वाले बंदर निकले और सब गड़बड़ हो गया!!
प्रभु श्री राम के पुत्र लव द्वारा बसाया गया ''लवपुर'' अर्थात लाहौर !!
श्रीराम पुत्र लव द्वारा बसाया गया सर्वश्रेष्ठ संस्कृत व्याकरणकार पाणिनी का 
जन्मस्थान एवं राजा जयपाल की राजधानी लवपुर (लाहौर)। 
लाहौर का प्राचीन नाम लवपुर था। 
रामायण में श्रीराम पुत्र लव ने रावी नदी के किनारे के यह नगर बसाया ।
आगे यह लोहावर नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
अब लाहौर नाम से प्रचलित है ।
यह सर्वश्रेष्ठ संस्कृत व्याकरणकार पाणिनी का जन्मस्थान है एवं दसवें शतक में राजा
जयपाल की राजधानी थी।
लाहौर सैकडों हिन्दू एवं अत्यंत अद्भुत मंदिरों का नगर !
लाहौर में न्यूनतम लगभग सौ विद्यालय थे ।
काशी समान ही वह वेदविद्या एवं शास्त्रविद्या का मायका था ।
वहां बडे-बडे पंडित थे ।
उनके नित्य नैमित्तिक आचरण में कभी खंड नहीं होता था ।
वहां सर्वत्र वैदिक ब्राह्मण एवं मीमांसक थे ।
उनके श्रौत यज्ञ संपन्न होते रहते थे ।
स्मार्त यज्ञ यत्र-तत्र भारी मात्रा में होते थे ।
लवपुर में (लाहौर में) श्रीराम मंदिर ! लाहौर में सैकडों मंदिर हैं ।
सहस्रों वर्षों से ये मंदिर जैसे पूर्व में थे वैसे ही थे ।
सर्वत्र नित्य नैमित्तिक पूजन वेदमंत्रों से होता था ।
लाहौर का श्रीराम मंदिर तो मुग्ध करने वाला था ।
उसका प्रवेशद्वार अप्रतिम था ।
आर्यावर्त की समृद्ध प्राचीन शिल्पकलाएं एवं रामायण के अपूर्व प्रसंग रेखांकित की गई
दीवारें,गोपुर एवं नगारखाना था ।
वेदमंत्रों से त्रिकाल रामप्रभू का पूजन होता था ।
श्रीरामचंद्र की कालावधि से लवपुर में सनातन संस्कृति के सैकडों हिन्दू मंदिर हैं तथा
अनेक स्थानों पर प्राचीन सनातन संस्कृति के अवशेष हैं ।
सनातन संस्कृति के प्राचीन अवशेषों के लिए लाहौर पूरे विश्व में प्रसिद्ध था।
सुंदरतम मूर्तिवाले इस श्रीराम मंदिर के कारण संपूर्ण लवपुर रामभक्ति में डूब गया था ।
राममंदिर का कलश,अपितु मुग्ध करने वाला था ।
उसका सौंदर्य देखते ही बनता है ।
वह महाद्वार,वे गोपुर,कलश एवं वे सुंदरतम मूर्तियां,संपूर्ण लाहोर रामभक्त थे।
रामभक्ति में लीन हो रहे थे।
कटास राज मंदिर, चकवाल (लाहौर)
पाकिस्तान के पंजाब के चकवाल में स्थित कटास राज मंदिर की अपनी महिमा है।
यह भगवान शिव का मंदिर है।
कहा जाता है कि यह मंदिर महाभारत काल से अस्तित्व में था।
पांडवों ने निर्वासन के दौरान यहां कुछ समय बिताया था।
कहा तो यह भी जाता है कि माता सती के वियोग में शिव इतना रोए कि उनके
आंसुओं से नदी बह गई।
-----प्रत्यंचा सनातन संस्कृति
===============
स्पष्टतया सिद्ध होता है कि इस्लाम के पूर्व सकल विश्व में सनातन संस्कृति
विद्यमान थी एवं इस्लाम पंथ को मानने वाले भी सनातन संस्कृति एवं धर्म
के ही अनुयायी थे।


मैत्रिणींनो 
ह्या फोटो मधे दिसत असलेल्या महिला तुम्हाला वाटत असेल की कोणी ग्रामीण भागातील असतील पण तैसे नाही. ह्या महिला आहेत मंगल मोहिमेत इस्रो च्या शास्त्रज्ञ.
प्रगती , आधुनिक विचार यासाठी टाईट जीन, तोंडाला स्कार्फ , दिवसभर मोबाईल वर गप्पा , रात्री मुलांसोबत चाटिंग ई ची गरज नसते .

भारतीय संस्कारासोबत सुद्धा स्वताची आणि देशाची प्रगती करता येते .
त्यामुळे प्रगती करण्यासाठी परदेशी विचार आणि परदेशी राहणीमान ची गरज असते हा तुमचा भ्रम दूर झाला असेल .


450 करोड़ रूपए के मंगल मिशन की सफलता के पीछे है इसरो के इन 11 वैज्ञानिकों की दि‍न-रात की मेहनत...
इंडियन स्‍पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के लिए बुधवार का दिन ऐतिहासिक बन गया। इसके द्वारा भेजा गया यान 65 करोड़ किमी का सफर करके मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक स्‍थापित हो गया। भारत पहली ही कोशिश में ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। दुनिया का कोई दूसरा देश पहली कोशिश में मंगल ग्रह पर भेजे मिशन में कामयाबी हासिल नहीं कर पाया है। अमेरिका तक की पहली 6 कोशिशें नाकाम रही हैं। (ये भी पढ़ें- दुनिया के वो 10 सबसे महंगे अंतरिक्ष मिशन, जो हो गए फेल )

अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में भारत की यह कामयाबी इसरो के वैज्ञानिकों के दिन-रात के मेहनत का नतीजा है। आइए जानते हैं उन 11 वैज्ञानिकों के बारे में, जिसके कारण मंगल यान को सफलता मिली है। 

2- एम. अन्नादुरई (55)

एम. अन्नादुरई इसरो के मंगल मिशन के प्रोग्राम डायरेक्टर हैं। 1982 में इसरो से जुड़ने के बाद अन्नादुरई ने कई रिमोट सेंसिंग और साइंस मिशन का नेतृत्व किया है। इन्होंने चंद्रयान-1 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में काम किया था। इसके साथ ही वे चंद्रयान-2 के भी प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं। 

अन्नादुरई ने मंगल मिशन के लिए बजट मैनेजमेंट, अंतरिक्ष यान बनाने और संसाधन जुटाने जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई हैं।
3- एस. रामाकृष्णन (64)

एस. रामाकृष्णन विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर और लॉन्च ऑथोराइजेशन बोर्ड के सदस्य हैं। 
1972 में इसरो से जुड़ने के बाद इन्होंने PSLV के विकास में महत्वपूर्ण रोल निभाया है। इसके साथ ही इन्होंने लिक्विड प्रोपलशन स्टेज के विकास और अंतरिक्ष यान में उसके इस्तेमाल पर भी काम किया है।

एस. रामाकृष्णन ने ही PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) रॉकेट को मंगल मिशन के लिए तैयार किया है।
4 एस.के. शिव कुमार (60)

शिव कुमार इसरो सेटेलाइट सेंटर के डायरेक्टर हैं। 1976 में इसरो से जुड़ने के बाद से इन्होंने भारत के कई सेटेलाइट मिशन को सफलता पूर्वक पूरा करने में भूमिका निभाई है। उन्होंने भारत के पहले डीप स्पेस नेटवर्क एंटीना प्रोजेक्ट के डायरेक्टर के रूप में भी काम किया है।

शिव कुमार ने मंगल मिशन के लिए सेटेलाइट टेक्नोलॉजी के विकास और उसे मिशन के लिए लागू करने की जिम्मेदारी भी निभाई है।
5. पी. कुन्हिकृष्णन (52) 

पी. कुन्हिकृष्णन ने PSLV प्रोग्राम के डायरेक्टर के रूप में काम किया है। डायरेक्टर के रूप में यह उनका नौवा मिशन था। 

1986 में इसरो से जुड़े कुन्हिकृष्णन PSLV के आठ सफल मिशनों के डायरेक्टर रहे हैं। इन्होंने PSLV-C25/ मार्स ऑर्बिट मिशन के डायरेक्टर के रूप में भी कार्य किया है। इसी मिशन के तहत 5 नवंबर को मंगल यान को रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में पहुंचाया गया था।

रॉकेट द्वारा मंगल यान को मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित करने की जिम्मेदारी कुन्हिकृष्णन ने निभाई है।
6. चंद्रदाथन 

चंद्रदाथन लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम के डायरेक्टर हैं। 

1972 में इसरो से जुड़ने के बाद इन्होंने SLV-3 प्रोजेक्ट के लिए काम किया है। इसके साथ ही इन्होंने SLV-3 रॉकेट के लिए ठोस प्रणोदक (propellant) बनाने पर काम किया है। SLV-3, ASLV और PSLV रॉकेटों के इंजन के विकास में भी इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
7. एएस किरण कुमार (61) 

एएस किरण कुमार सेटेलाइट एप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर हैं। 
1975 में इसरो से जुड़ने के बाद इन्होंने इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इमेजिंग सेंसर के विकास के लिए काम किया है। 
किरण कुमार ने मंगल यान के साथ गए तीन पेलोड मार्स कलर कैमरा, मिथेन सेंसर और थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर बनाया है। 
8- एम.वाइ.एस प्रसाद (60) 

एम.वाइ.एस प्रसाद सतीश धवन स्पेस सेंटर के डायरेक्टर और लॉन्च ऑथोराइजेशन बोर्ड के चेयरमैन है। 
1975 में इसरो के साथ जुड़ने के बाद इन्होंने इसरो के रॉकेट के विकास के लिए काम किया है। इन्होंने भारत द्वारा बनाए गए रॉकेट SLV-3 के विकास से लिए भी काम किया है। 
प्रसाद को मंगल मिशन के कार्यक्रम को तय समय पर पूरा करने और लॉन्चिंग रेंज की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी दी गई थी। इसके साथ ही वह रॉकेट पोर्ट के ओवरऑल इंजार्ज भी थे।

9- एस अरुण (50) 

एस अरुण मार्स ऑर्बिटर मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं। इनके नेतृत्व में टीम ने मंगल यान को बनाया है। 
10- बी जयकुमार

बी जयकुमार ने PSLV प्रोजेक्ट के एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में काम किया है। जयकुमार रॉकेट सिस्टम की जांच के लिए जिम्मेदार थे।
11- एमएस पर्न्निसेलवम (59)

पर्न्निसेलवम रॉकेट लॉन्चिंग केंद्र श्रीहरिकोटा के रेंज ऑपरेशन डायरेक्टर और चीफ जनरल मैनेजर है। इनकी जिम्मेदारी मंगल यान के तय समय पर लॉन्च करने की थी।




लव जिहादियो का काल बना बजरंग दल।

 मुज़फ्फरनगर से आये दो लव जिहादी देहरादून से दो स्कूल की बच्चियों को टैक्सी से लेकर मसूरी जा रहे । बजरंग दल ने कोलू खेत में गाडी रोकी तो कार्यकर्ता सन्न रह गए। 16 साल की दो बच्चियों के साथ दोनों मुल्ला पीछे की सीट पर बैठे थे। लव जिहादियो का उचित उपचार करने के बाद जब पुछा गया तो पता चला की दोनों पेशेवर जिहादी है जो पलटन बाज़ार की एक जूतों की दुकान में सेल्समेन है। टैक्सी चालक ने बताया के मात्र 4 घंटो के लिए उसे 2200 रूपये दिए गए थे जबकि मुल्लो का वेतन मात्र 3000 है। लडकियों के बैग की जांच की तो स्कूल यूनिफार्म और किताबे मिली। दोनों बच्चिय एक प्रतिष्ठित स्कूल में पड़ती है। लडकियों के परिजन भी शीघ्र आ गए और दोनों लडकियों के साथ दोनों लव जिहादियों की जमकर धुनाई की। परिजन अपनी बेटियों को घर ले गए लेकिन दोनों जिहादी जेल पहुँच गए।
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एक बार एक वाल्मीकि बस्ती में मंदिर में गाँधी जी कुरान का पाठ करा रहे थे. तभी भीड़ में से एक औरत ने उठकर गाँधी से ऐसा करने को मना किया.
गाँधी ने पूछा .. क्यों?
तब उस औरत ने कहा कि ये हमारे धर्म के विरुद्ध है.
गाँधी ने कहा.... मै तो ऐसा नहीं मानता ,
तो उस औरत ने जवाब दिया कि हम आपको धर्म में व्यवस्था देने योग्य नहीं मानते.
गाँधी ने कहा कि इसमें यहाँ उपस्थित लोगों का मत ले लिया जाय.
औरत ने जवाब दिया कि क्या धर्म के विषय में वोटो से निर्णय लिया जा सकता है.
गाँधी बोला कि आप मेरे धर्म में बांधा डाल रही हैं.
औरत ने जवाब दिया कि आप तो करोडो हिन्दुओ के धर्म में नाजायज दखल दे रहे हैं.
गाँधी बोला ..मै तो कुरान सुनुगा .
औरत बोली ...मै इसका विरोध करुँगी.
और तभी औरत के पक्ष में सैकड़ो वाल्मीकि नवयुवक खड़े हो गए.और कहने लगे कि मंदिर में कुरान पढवाने से पहले किसी मस्जिद में गीता और रामायण का पाठ करके दिखाओ तो जाने.
विरोध बढ़ते देखकर गाँधी ने पुलिस को बुला लिया. पुलिस आई और विरोध करने वालों को पकड़ कर ले गयी .और उनके विरुद्ध दफा १०७ का मुकदमा दर्ज करा दिया गया .और इसके पश्चात गाँधी ने पुलिस सुरक्षा में उस मंदिर में कुरान पढ़ी.

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Wednesday, 24 September 2014

अतिअवास्यक सूचना ::::::::::::::::::::::::::::::

P.F.R.D.A. / भारत सरकार की स्वावलम्बन योजना 
यह योजना भारत सरकार द्वारा संचालित है, जिसमे शामिल होने के लिए आप को निर्धारित प्रपत्र में आवेदन फॉर्म भरना होता है जिसके साथ २ पासपोर्ट साइज़ कलर फोटोग्राफ एवं पहचान और पते के दस्तावेज जैसे वोटर कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, या राशन कार्ड का प्रयोग कर सकते है। आवेदन करने के पश्चात १५ दिन से १ माह में डाक द्वारा आपके पते पर पैन कार्ड की तरह का ही एक कार्ड आ जाता है। उस कार्ड को लेकर अपने बैंक में जाये अगर किसी भी बैंक मे आप का खाता नहीं है तो इस कार्ड के आधार पर किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में जीरो बैलेंस पर आप का खाता खुल जाएगा. अपने खाते को इस कार्ड से लिंक करवाये और प्रतिवर्ष न्यूनतम १००० रुपये और अधिकतम १२००० रुपये तक आप जमा करे। आप की जमा राशि पर व्याज के अतिरिक्त १००० प्रतिवर्ष भारत सरकार उस खाते में जमा करवाएगी। ६० वर्ष की आयु पूर्ण होने पर आप को एक निश्चित इनकम पेंशन के रूप में आजीवन प्राप्त होगी। योजना में शामिल होने की आयु सीमा १८ से ५५ वर्ष है।
अधिक जानकारी के लिए  अपने नजदीकी P.F.R.D.A. केंद्र पर संपर्क करे।
नोट :- यह योजना केवल गैर संगठित छेत्र (अशासकीय) में काम कर रहे महिलाओं और पुरुषो के लिए है। शासकीय या अर्धशासकीय कर्मचारी आवेदन ना करे।
पुलिस थाने के अंदर खुलेआम इस्लाम का प्रचार...


शुरू में एक सच्ची घटना जान लीजिए, ताकि आप आसानी से समाझ सकें कि “सेकुलरिज़्म” किस तरह से इस देश को तोड़ने और देशद्रोहियो की मदद कर रहा है. कुछ दिनों पहले की ही घटना है उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर से भगाकर लाई गई एक लड़की के बारे में उसके माता-पिता को जानकारी मिली कि वह कर्नाटक के मंगलोर शहर में है. यह जानकारी भी उन्हें तब मिली, जब उसे भगाकर लाने वाले अली मोहम्मद नामक आदमी ने उनसे फिरौती माँगना शुरू किया. लड़की के परिवार ने उसका पता लगाया और कर्नाटक के पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाई. कर्नाटक पुलिस ने लड़की को बरामद किया और थाने में लाकर सभी के सामने उसे पुनः हिन्दू धर्म में शामिल करवाया. लेकिन जैसा कि हमेशा से होता आया है, तथाकथित सेकुलर मीडिया ने अपनी घृणित हताशा और मंदबुद्धि के चलते इस बात पर हंगामा खड़ा कर दिया कि पुलिस के संरक्षण में “सेकुलरिज़्म खतरे में है” (ठीक उसी प्रकार जैसे मस्जिदों से अक्सर नारा दिया जाता है, इस्लाम खतरे में है). इस सेकुलर मीडिया ने अपना दबाव इतना अधिक बढ़ाया कि सरकार को इस मामले में चार पुलिसकर्मियों को निलंबित करना पड़ा. ये तो सिर्फ एक घटना है, ऐसी कई घटनाएँ हो चुकी हैं, जहाँ पुलिस का मनोबल तोड़ने की सोची-समझी चालें चली जा रही हैं.

अब एक नया मामला सामने आया है, जिसमें पुलिस के जवानों का ही इस्लामीकरण शुरू किया जा रहा है. कर्नाटक में नवनिर्वाचित कांग्रेस सरकार की नाक के नीचे, धर्म परिवर्तन की कोशिशें खुलेआम शुरू हो चुकी हैं. ऐसी ही एक असंवैधानिक घटना को कर्नाटक के एक स्थानीय अखबार ने “लाईव” कैमरों पर पकड़ा. इस्लामिक गतिविधियों का बड़ा केन्द्र बन चुके कर्णाटक के मैंगलोर शहर में एक संगठित जेहादी गिरोह ने समाज, व्यवस्था और विशेषकर पुलिस सिस्टम को प्रदूषित करने का अभियान चलाया हुआ है, ताकि खाड़ी से मिलने वाले पैसों के जरिये भारत में भी उनकी देशद्रोही गतिविधियाँ चलती रहें.


प्रस्तुत चित्र उसी मीडिया वेबसाइट से लिए गए हैं. चित्र में दिखाई दे रहा शख्स है मोहम्मद ईशाक, जो स्वयं को हिन्दू धर्म से इस्लाम में धर्म परिवर्तित कहता है और अपना पूर्व नाम गिरीश बताता है. ये व्यक्ति अपनी मीठी-मीठी बातों से न सिर्फ सामाजिक संगठनों में बल्कि कुछ हिन्दू संगठनों में भी अपनी घुसपैठ बना चुका है. हिंदुओं के भोलेपन और उदारता का फायदा उठाते हुए, इसे जहाँ भी मौका मिलता है, ये कुरान बाँटने लगता है और धर्म प्रचार शुरू कर देता है. इशाक मोहम्मद “स्ट्रीट-दावाह” नामक संस्था की मैंगलोर शाखा का प्रमुख है. स्ट्रीट-दावाह नामक संस्था, सड़क पर आते-जाते राहगीरों को कुरआन बाँटने का कार्य करती है तथा सड़कों पर ही रहने वाले गरीबों और बच्चों को इस्लाम का ज्ञान देती है.पिछले कुछ माह में मोहम्मद ईशाक ने कर्नाटक के सैकड़ों थानों में दिनदहाड़े जाकर सभी के सामने इस्लाम का प्रचार किया, थाने में ऑन-ड्यूटी पुलिस अधिकारियों को कुरान और हदीस बाँटी. लेकिन हमारे तथाकथित सेकुलर मीडिया ने इस पर चूं भी नहीं की. अक्सर श्रीराम सेना और बजरंग दल को गरियाने वाले, रोटी और टोपी जैसे फालतू मुद्दों पर दिन-रात छाती पीटने वालों तथा संघ को कोसने वाले मीडिया में बैठे कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों को इसमें कोई आपत्ति नज़र नहीं आई.

तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल के कई थानों में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी धर्म-परिवर्तित हो चुके हैं. हिन्दू जनजागृति समिति ने सबूतों के साथ ऐसे पुलिसकर्मियों की शिकायत की तो उन्हीं के कार्यकर्ताओं को फर्जी धाराओं में फंसाकर अंदर कर दिया गया.कथित मुख्यधारा का मीडिया लगातार ऐसे मुद्दों को छिपा जाता है, सोशल मीडिया पर गाहे-बगाहे ऐसे मुद्दों बाकायदा तस्वीरों सहित दिखाए जाते हैं. कर्नाटक सरकार को पुलिस थानों में ऐसे खुलेआम जारी धर्म प्रचार और कुरआन बाँटने की जाँच करनी चाहिए, तथा जो पुलिसकर्मी इसमें सहयोगी हैं उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए.


सन्दर्भ :- http://www.covertwires.com/index.php/articles/the-islamization-of-karnataka-police-and-silence-of-vigilant-media#sthash.KLzrWb8l.12p8Wqc6.dpuf