Monday 29 December 2014

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मकर संक्राति

संस्कृत प्रार्थना के अनुसार "हे सूर्यदेव, आपका दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत की आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी आप ही हो।" सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। वैदिक युग में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी। पितामह भीष्म ने भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपना प्राणत्याग किया था। हमारे मनीषी इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थस्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
रंग-बिरंगा त्योहार मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष जनवरी महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी खाई जाती है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।

सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व
माघ मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को 'मकर संक्रान्ति' पर्व मनाया जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "सौर वर्ष" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस "परिधि चक्र" को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकरसंक्रान्ति" कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था । इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है।

आभार प्रकट करने का दिन
पंजाब, बिहार व तमिलनाडु में यह समय फ़सल काटने का होता है। कृषक मकर संक्रान्ति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। पके हुए गेहूँ और धान को स्वर्णिम आभा उनके अथक मेहनत और प्रयास का ही फल होती है और यह सम्भव होता है, भगवान व प्रकृति के आशीर्वाद से। विभिन्न परम्पराओं व रीति–रिवाज़ों के अनुरूप पंजाब एवं जम्मू–कश्मीर में "लोहड़ी" नाम से "मकर संक्रान्ति" पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज एक दिन पूर्व ही मकर संक्रान्ति को "लाल लोही" के रूप में मनाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति पोंगल के नाम से मनाया जाता है, तो उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी के नाम से मकर संक्रान्ति मनाया जाता है। इस दिन कहीं खिचड़ी तो कहीं चूड़ादही का भोजन किया जाता है तथा तिल के लड्डु बनाये जाते हैं। ये लड्डू मित्र व सगे सम्बन्धियों में बाँटें भी जाते हैं।

खिचड़ी संक्रान्ति
चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है।

पंजाब में लो़ढ़ी
मकर संक्रान्ति भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब में इसे लो़ढ़ी कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहन्दी रचती हैं।

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बच्चों को योग सिखाने के लाभ---
- इससे बच्चें शांत होते है.
- आज के दौर में बच्चें भी बहुत तनाव में होते है. योग से उनका तनाव दूर होता है.
- योग बच्चों की एकाग्रता और संतुलन को बढाता है.
- योग करने से बच्चें सक्रीय और बेहतर जीवन शैली की ओर कदम बढाते है.
- योग करने से बच्चों की नींद और अच्छी होती है.
- योग करने से बच्चों की कार्य प्रवीणता यानी मोटर स्किल में वृद्धि होती है. वे बारीक से बारीक और भारी से भारी काम ज़्यादा अच्छे से करते है.
- योग करने से बच्चों का पाचन अच्छा होता है . इससे उनके मुंह का स्वाद और भूख खुलने से वे सब कुछ खाना पसंद करते है. वे जंक फ़ूड से दूर रह पाते है.
- योग से बच्चों में लचीलापन और शक्ति बढती है.
- योग से बच्चें बेहतर तरीके से अपने विचार लिख-बोल पाते है. उनका आत्मविश्वास बढ़ता है.
- योग से बच्चें अपने शरीर , मन , विचार और बुद्धि के प्रति जागरूक होते है.
- योग करने से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास होता है.
- इससे बच्चों में रोग प्रतिकारक शक्ति का विकास होता है. बार बार सर्दी खांसी , अस्थमा और पेट की गड़बड़ी नहीं होती.
- बच्चों में किसी प्रकार की एलर्जी नहीं होती.
- बचपन में शरीर हल्का और लचीला होता है. कई आसन बचपन से ही करना चाहिए जैसे शिर्षासन. इससे बड़े हो कर भी वे अच्छे से सभी आसन कर पाते है.
- योग भारत का गौरव है इसे हर भारतीय को करते आना चाहिए. इससे देश के प्रति अभिमान में वृद्धि होती है.
- योग सीख लेने पर एक शैली में बच्चा निपुण हो जाता है. यह उसे अपने आगे के जीवन में बहुत काम आयेगा.
- योग से प्राप्त लचीलापन , शारीरिक और मानसिक क्षमता अन्य खेल और कला सीखने में काम आएँगी.
- स्वामी रामदेवजी ने बच्चों के लिए बहुत मनोरंजक शैली में योग कार्यक्रम बनाए है. इस लिंक पर जाकर बच्चों के साथ इन कार्यक्रमों को देखें -दिखाए. इससे बच्चें योग की ओर आकर्षित होंगे.

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बच्चों को योग सिखाने के लाभ -
- उनका बेहतर शारीरिक , मानसिक और बौद्धिक विकास होता है.
- रोग प्रतिरोधक शक्ति बढती है और बच्चें बार बार बीमार नहीं होते .
- बच्चों की बुद्धि और एकाग्रता का विकास होता है.
- बच्चों में भारतीय संस्कृति के संस्कार पडते है. उन्हें आज की अपसंस्कृति से दूर रहने की आत्म शक्ति मिलती है. 
- बच्चों में मार पीट और गुस्से की प्रवृत्ति कम होते होते धीरे धीरे समाप्त हो जाती है.
- आजकल बच्चों को भी सिरदर्द रहने लगा है. योग करने से ये समस्या दूर होती है.
- कुछ बच्चें एक क्षण भी स्थिर बैठ नहीं पाते . यह वृत्ति भी योग से सुधर जाती है और बच्चें आराम से एक जगह स्थिर बैठ सकते है.
- अच्छी और शांत नींद आती है.
- बच्चों को कक्षा के शुरू में ॐ बोलकर दो मिनिट तक आँख बंद कर ध्यान करना पर्याप्त होता है.
- छोटे बच्चों को पंद्रह मि. प्राणायाम करना पर्याप्त होता है. हफ्ते में एक दिन उन्हें विभिन्न आसन सिखाये जा सकते है.
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परीक्षा के लिए योग --
अब मुख्य परीक्षा का समय आ गया है।कई बच्चों की बोर्ड परीक्षा होगी। परीक्षा में अच्छे अंक पाने के लिए पढ़ाई तो सभी करते है पर याद करने के लिए और समय पर पढ़ा हुआ याद आने के लिए योग और आयुर्वेद आपकी सहायता करता है।----
- त्राटक करने से आँखों का व्यायाम तो होता ही है , एकाग्रता और याददाश्त भी बढती है।
- अनुलोम - विलोम जितनी देर हो सके करे।
- जब भी तनाव हो , परीक्षा हॉल में भी , उज्जाई श्वास ले , यानी गले से श्वास गुज़रते हुए महसूस करे। हलकी सी आवाज़ जो खुद तक ही सुनाई दे ,गले से निकाले।
- अगर पढ़ा हुआ याद ना आये तो जीभ को तालू से लगा दे।
- परीक्षा से पहले परीक्षा हॉल में बैठ कर गहरी श्वास ले। हो सके तो ॐ का उच्चारण करे या मन में करे।
- सूर्योदय का त्राटक ,सूर्य नमस्कार , सुबह की हवा जैसा टॉनिक कोई नहीं होता।
- बादाम , जौ का आटा , गाय का घी आदि बुद्धिवर्धक आहार ले।
- रात में तनाव से नींद ना आये तो यौगिक निद्रा ले।सीधे लेट कर जब श्वास ले पेट बाहर निकाले और जब श्वास छोड़े तो पेट अन्दर गया ; ऐसा देखते हुए एक एक अंग तक प्राण वायू पहुंच कर उसे ताज़ा कर रही है। ऐसा महसूस करे। इस प्रक्रिया में नींद आ जाए तो अच्छा है , ना आये तो भी आधे घंटे ये प्रक्रिया करने मात्र से हम तरो -ताज़ा हो जाते है।
- समय पर रोज़ नियमित अभ्यास करने से अच्छा कुछ नहीं।
- परीक्षा की तैयारी के दौरान भी आधा घंटा कोई मन पसंद काम करे।


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त्राटक 
एकाग्रता बढ़ाने की यह प्राचीन पद्धति है। पतंजलि ने 5000 वर्ष पूर्व इस पद्धति का विकास किया था। योगी और संत इसका अभ्यास परा-मनोवैज्ञानिक शक्ति के विकास के लिये भी करते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने भी यह सिद्ध कर दिया है। इससे आत्मविश्वास पैदा होता है, योग्यता बढ़ती है, और आपके मस्तिष्क की शक्ति का विकास कई प्रकार से होता है। यह विधि आपकी स्मरण-शक्ति को तीक्ष्ण बनाती है । प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रयोग की गई यह बहुत ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पद्धति है।

समय- अच्छा यह है कि इसका अभ्यास सूर्योदय के समय किया जाए। किन्तु यदि अन्य समय में भी इसका अभ्यास करें तो कोई हानि नहीं है।

स्थान- किसी शान्त स्थान में बैठकर अभ्यास करें। जिससे कोई अन्य व्यक्ति आपको बाधा न पहुँचाए।

प्रथम चरण- स्क्रीन पर बने पीले बिंदु को आरामपूर्वक देखें।

दूसरा चरण - जब भी आप बिन्दु को देखें, हमेशा सोचिये – “मेरे विचार पीत बिन्दु के पीछे जा रहे हैं”। बिना पलकें झपकाए एक टक देखते रहे।इस अभ्यास के मध्य आँखों में पानी आ सकता है, चिन्ता न करें। आँखों को बन्द करें, अभ्यास स्थगित कर दें। यदि पुनः अभ्यास करना चाहें, तो आँखों को धीरे-से खोलें। आप इसे कुछ मिनट के लिये और दोहरा सकते हैं।

अन्त में, आँखों पर ठंडे पानी के छीटे मारकर इन्हें धो लें। एक बात का ध्यान रखें, आपका पेट खाली भी न हो और अधिक भरा भी न हो।

यदि आप चश्में का उपयोग करते हैं तो अभ्यास के समय चश्मा न लगाएँ। यदि आप पीत बिन्दु को नहीं देख पाते हैं तो अपनी आँखें बन्द करें एवं भौंहों के मध्य में चित्त एकाग्र करें । इसे अन्तःत्राटक कहते है । कम-से-कम तीन सप्ताह तक इसका अभ्यास करें। परन्तु, यदि आप इससे अधिक लाभ पाना चाहते हैं तो निरन्तर अपनी सुविधानुसार करते रहें।

त्राटक के लिए ॐ या अन्य चित्र का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
त्राटक के लिए दीपक की लौ को भी देखा जा सकता है। जब आँखें थक जाए तो आँखें बंद कर आज्ञा चक्र में दीपक के लौ की कल्पना करे।
उगते हुए या अस्त होते हुए सूर्य का त्राटक चर्म रोगों और कई अन्य रोगों से छुटकारा दिलाता है।
जिनकी नजर कमजोर है या जिनके चश्मे का नंबर दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। उन्हें अपनी आँखों की रोशनी बढ़ाने के लिए योग में त्राटक की सलाह दी जाती है, जिन्हें हाई पावर का चश्मा लगा हो, उन्हें यह सप्ताह में तीन बार जरूर करना चाहिए। जिनकी नजर कमजोर नहीं है और चाहते हैं कि उनकी नजरें कमजोर न हो। उन्हें यह हफ्ते में एक बार आवश्यक रूप से करना चाहिए।
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बुजुर्गों के चरण क्यों दबाने चाहिए ?
बुढापे में शरीर में वात तत्व प्रधान हो जाता है .शरीर में वात का स्थान है घुटने से नीचे के पैर . इन्हें दबाने से , उनमे तेल मलने से कुपित वात निकल जाता है और वात रोगों में आराम मिलता है . जब हम पैरों को बहुत उपयोग में लाते है ; यानी के बहुत भाग दौड़ हो जाने से भी वात बहुत बढ़ जाता है . तब पैरों को दबाने से और तेल मालिश से बहुत आराम मिलता है . वज्रासन में भी घुटने से नीचे के पैरों पर दबाव पड़ता है और अधिक वात का निष्कासन होता है . कई बार अत्याधिक गर्मी से और मौसम परिवर्तन से भी शरीर में वात बढ़ जाता है . तब कई बार शरीर में सूजन महसूस होती है या अचानक से वजन बढ़ जाता है या अन्य वात रोग हमें घेर लेते है तब पैरों को दबाने से और तेल लगाने से लाभ मिलता है .



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कभी कभी ऐसा होता है की कोई लड़का एक ऐसी लड़की से मिलता है जो आकर्षक तो है पर जिसे वह अपने परिवार से और माँ से नहीं मिलवा सकता , वहीँ कोई लड़की ऐसी होती है जिसे वह आराम से अपनी माँ से मिलवा सकता है जो परिवार के रीती रिवाजों को समझ कर उसमे घुल मिल जायेगी. 
यहीं हाल अंग्रेजी का है. जो बात हम आँख मिला कर अपने परिवार से नहीं कर सकते हम अंग्रेजी में बड़े आराम से कर देते है.जैसे......
- इंग्लिश में Sorry या Thank You रोज थोक के भाव बोल देते है , इसकी जगह "कृपया मुझे माफ या क्षमा करों" या फिर "आपका धन्यवाद" जुबान आसानी से बोल ही नही पाती । क्योंकि आप ये शब्द तभी बोलोगे जब सच में कोई बहुत बडी गलती हो गई है या फिर सच में किसी ने बहुत अच्छा काम कर दिया हो ।
- यही बात I love you बोलने पर भी लागू होती है ।
३) Credit Card का हिंदी में मतलब होता है "उधार पत्र", स्वाभीमानी लोग भूखा सोना पसंद करेंगे लेकिन १ रूपया भी किसी से उधार लेना पसंद नही करेंगे , लेकिन ऐसे लोग भी क्रेडिट कार्ड उपयोग करते मिल जायेंगे, वजह साफ है कार्ड के उपर "Credit Card" लिखा होता है । अगर "उधार पत्र" लिखा हो तो आधे से ज्यादा लोग उपयोग करना ही छोड देंगे ।
- रास्ते में आते जाते कुछ गाडियों पर या टीशर्ट पर FUCK लिखा होता है, लेकिन इसका मैने हिंदी लिख दिया तो....
- हमारे भारत में कोई आदमी के साथ कोई महिला विना शादी के रहती है तो उसको रखैल कहते है उसकी कोई इज्जत नही होती है । पर वहीँ अगर लिव इन कहा जाए तो खराब नहीं लगता ; इसलिए किसी को अगर इसका बुरा असर समझाना हो तो हिंदी शब्द इस्तेमाल करना होगा.
- इसी तरह बीयर को दारु और सिगरेट को धूंआ कहने से उसका असली स्वरूप प्रकट होता है.
Special discount for ladies on beer", इसकी जगह ये लिखा हो तो - "महिलाओं के लिये दारू में विशेष छूट" ??
- अगर पोर्न स्टार के लिए हिंदी का शब्द इस्तेमाल किया तो ये बहुत अपमान जनक लगता है.भारत का दलाल मीडीया - "Sensation Power of Words" को बखूबी समझता है । इसके लिये कभी इंग्लिश का इस्तेमाल करता है कभी हिंदी के ।
- जैसे अभी कोर्ट ने बोल दिया है की "समलैंगिता कानूनन गलत है" । इसके लिये "उल्टी बुद्धी के" लोग चर्चा भी कर रहे है । अब खास बात ये है की "समलैंगिक" जैसा शब्द हमारे समाज में ज्यादा प्रचलित नही है । इसलिये हम लोगो को बोलना चाहिये की -- "गे लेस्बीयन कानूनन गलत है और सही फैसला आया" ।
मीडीया वाले वो ही शब्द चुनते है जिससे उनका काम हो ।
- तो हमें भी वही शब्द चुनना चाहिये जो सही हो और मातृभाषा का हो ताकी मुद्दा सही से पकड में आ सके ।
- हम हिंदी को हथियार बनाकर काफी लडाई लड सकते है ।
- पूर्ण हिंदी में आप काम करोगे तो आप ऐसे गंदे शब्दो से बच जायेंगे । ये बात आपकी अपनी मातृभाषा पर भी लागू होती है ।
- सिर्फ शब्दो के हेरफेर से कितनी बुराईयों बच सकते है ।

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पृथ्वी का भोगोलिक मानचित्र: वेद व्यास द्वारा

महाभारत में पृथ्वी का पूरा मानचित्र हजारों वर्ष पूर्व ही दे दिया गया था। महाभारत में कहा गया है कि यह पृथ्वी चन्द्रमंडल में देखने पर दो अंशों मे खरगोश तथा अन्य दो अंशों में पिप्पल (पत्तों) के रुप में दिखायी देती है-

उपरोक्त मानचित्र ११वीं शताब्दी में रामानुजचार्य द्वारा महाभारत के निम्नलिखित श्लोक को पढ्ने के बाद बनाया गया था-

“ सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।

—वेद व्यास, भीष्म पर्व, महाभारत

अर्थात

हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश) दिखायी देता है। अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाता है।

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स्वास्तिक का महत्व............
स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि.
स्वास्तिक भारतीयों में चाहे वे वैदिक हो या सनातनी हो या जैनी ,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह आदि संस्कार घर के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और स्वातिक का दोनो का अथवा एक एक का प्रयोग किया जाता है।
हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है,बच्चे
का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर बनाया जाता है,स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योगात्मक रूप सिर पर हमेशा प्रभावी रहे,स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे,चारों तरफ़ भटके
नही,वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित दिशा से सम्पूर्ण इनर्जी को एकत्रित करने के बाद बिन्दु की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है,स्वास्तिक का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है,उसे सिर के बिलकुल बीच में चुना जाता है,बीच का स्थान बच्चे के सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है और एक तरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह हड्डी से ढक जाता है,के स्थान पर बनाया जाता है। स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है,पाणिनीय व्याकरण के अनुसार इसे वैयाकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’ उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१) के संयोग से बना है,इसलिये ’सु+अस्ति=स्वास्ति’ इसमें ’इकोयणचि’सूत्र से उकार के स्थान में वकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी ’अस्ति’
को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ ’कल्याण’ ’मंगल’ ’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’ का नाम दे दिया जाता है।
स्वास्तिक का निशान भारत के अलावा विश्व में अन्य देशों में भी प्रयोग में लाया जाता है,जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से शोभायमान किया गया है,अन्ग्रेजी के क्रास में भी स्वास्तिक का बदला हुआ रूप मिलता है,हिटलर का यह फ़ौज का निशान था,कहा जाता है कि वह इसे अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग करता था,लेकिन उसके अंत के समय भूल से बर्दी के बेज में उसे टेलर ने उल्टा लगा दिया था,जितना शुभ अर्थ सीधे स्वास्तिक का लगाया जाता है,उससे भी अधिक उल्टे स्वास्तिक का अनर्थ भी माना जाता है। स्वास्तिक की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर वह सौम्य माना जाता है,बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है। काला स्वास्तिक शमशानी शक्तियों को बस में करने के लिये किया जाता है,लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के
प्रति भी माना जाता है,डाक्टरों ने भी स्वास्तिक का प्रयोग आदि काल से किया है,लेकिन वहां सौम्यता और दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में और संस्कार के मामलों में किया जाता है,विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता है

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भारत मेँ INDIA
आइये आज आपको एक नए देश से परिचित कराते हैं-
इस देश का नाम है इण्डिया l हमारे देश भारत के बीच में एक छोटा सा देश और है शायद आपकी जानकारी में नहीं होगा, पर नाम तो सुना ही होगा l इसका नाम है इण्डिया और यहाँ के निवासी कहलाते हैं इंडियन. भारत तो अंग्रेजों की गुलामी से सन १९४७ में ही आज़ाद हो गया था, पर बदकिस्मती से इण्डिया अभी भी अंग्रेजों का गुलाम है. यहाँ की मातृभाषा इंग्लिश है, हिंदी और अंग्रेजी की एक मिश्रित भाषा हिंगलिश भी ये लोग निपुणता से उपयोग करते हैं.
यहाँ के निवासी अपने आपको कूल डूड कहते हैं. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ये लोग भारत के ही निवासी हैं, पर भारत की ही जड़ें खोदने में इन्हें अपार आनंद की प्राप्ति होती है. इनके आदर्श सचिन तेंदुलकर, सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख खान जैसे लोग हैं; सरदार भगत सिंह, स्वामी विवेकानंद, सुभाषचंद्र बोस जैसे छोटे-मोटे लोगों का तो ये लोग नाम भी नहीं जानते. इस देश का राष्ट्रीय खेल क्रिकेट है, देश के लिए ज़रूर एक बूँद पसीने की न बहाए पर क्रिकेटर्स की बुराई कर देने पर अपनी जान भी देने को सदैव तत्पर रहते हैं. इस देश का राष्ट्रीय त्यौहार क्रिसमस डे और वैलेंटाइन डे है, नया साल भी ये लोग ३१ दिसंबर और १ जनवरी की मध्यरात्रि को बड़े हर्षोल्लास के साथ दारू के नशे में झूमते हुए मनाते हैं. दशहरा, दिवाली और रामनवमी जैसे पुराने त्यौहार ये लोग मनाना पसंद नहीं करते. बात-बात पर ya, yo और lol इनके
प्रसिद्द तकिया-कलाम हैं. क्रिकेट धर्म का प्रसार यहाँ बहुत है, मूल रूप से ये लोग सचिन तेंदुलकर को भगवान मानकर पूजते हैं, कुछ लोग आमिर खान को सच्चाई का देवता मानकर पूजते हैं. कुंवारे लोग सलमान खान को भी देवता मानते हैं. करीना और कैटरीना नामक देवियाँ तो हर कूल डूड की कुलदेवी हैं. और अगर आप भी कुछ जानते हों, तो कृपया साझा कीजिए......

हमें भारतीय होने का गर्व है l




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