Thursday 8 February 2018



लिथुआनिया हिन्दू राष्ट्र है, भारत भी हमारी मातृभूमि : इनिजा ट्रिंकुनेइने

वनवासी विकास समिति का भारतीय संस्कृति का वैश्विक परिदृश्य एक अनुभूति पर हुआ आयोजन

रायपुर | लिथुआनिया की रोमवा जनजाति ने बाल्टिक महाद्वीप में अपनी पूर्वजों की धर्म व संस्कृति बचाने के लिए 300 सालों तक संघर्ष किया है | 14वीं शताब्दी में लिथुआनिया यूरोप का सबसे बड़ा देश हुआ करता था | राजनीतिक उतार-चढ़ाव के दौर में कभी यहां रूसी साम्राज्य रहा, कभी जर्मनी तो कभी सोवियत संघ ने इसे अपने अधिकार में लिया | अंधाधुंध ईसाईकरण व हिटलर के तानाशाही के दौर मेंं भी हमने अपने धर्म को बचाए रखा है | वहां के रीति-रिवाज और परम्पराएं हिन्दू धर्म से मिलते-जुलते हैं | हमारे यहां भी देश को माता का दर्जा प्राप्त है | भारतीय भले ही लिथुआनिया को नहीं जानते होंगे लेकिन हर लिथुआनी भारत को जानता हैं , ये हमारी दूसरी मातृभूमि है |
ये बातें लिथुआनिया की गुरूमाता इनिजा ट्रिंकुनेइने ने वनवासी विकास समिति द्वारा आयोजित भारतीय संस्कृति का वैश्विक परिदृश्य विषय पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कहीं | उन्होंने आगे कहा कि
अपने धर्म को बचाने के लिए हमने रात के अंधेरों में भी पूजा की है लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ा | यूरोप के ईसाईकरण के कारण आज मूल धर्म संस्कृति पूरी तरह लूट चुकी है | मूल परंपराओं को हमने संभालकर रखा है | हम भारत में अपने देवी-देवताओं व परंपराओं को खोजने आते हैं | उन्होंने बताया कि लिथुआनिया में वैदिक विधान से शादियां होती हैं | देवी-देवताओं की पूजा के बाद अग्नि को साक्षी मानकर जोड़े गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं | भारत के आत्मीय मार्गदर्शन से हम अपनी धर्म, संस्कृति व परम्पराओं को मजबूत बनाएंगे इसके लिए हमारा सदैव साथ रहेगा |
प्रस्ताविक भाषण देते हुए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकारिणी सदस्य मेजर सुरेन्द्र नारायण माथुर ने कहा कि लिथुआनिया के कैलेण्डर में हर महीने अमावस्या के दिन पितृ श्राद्ध मनाते हैं | वहां की न्यूज एजेंसी का नाम अलका है | अब तक वहां की भाषा में संस्कृत के 10,000 शब्द खोजे जा चुके हैं | वहां के ईसाई भी वैदिक पद्धति से विवाह के लिए आने लगे हैं इस लिए भारतीय पुरोहितों के लिए वहां रोजगार के अच्छे अवसर हैं | स्वस्तिक व भगवान कल्कि राष्ट्रीय चिन्ह है |वहां के राष्ट्र ध्वज, सिक्कों पर यही चित्र छपे होते हैं | यह पहले भी हिन्दूराष्ट्र था और आज भी है | श्रीमती इनिजा पहली महिला गुरूमाता है | इनके पति का तर्पण उनकी इच्छानुसार केरल में पूरे विधि विधान से हुआ था |
आदिमजाति विकास एवं शिक्षा मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि सभी देशों की भाषा अलग होती है लेकिन प्रेम की भाषा सभी समझते हैं | भारत की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है | लिथुआनिया से सीख लेकर हमें भी अपनी वनवासी संस्कृति को बचाने के प्रयास करने चाहिए | कार्यक्रम को लिथुआनिया संसद के पूर्व नेता प्रतिपक्ष जिन्टारक सोंगैला व इंडिजिनस ट्रेडिशन टुडे के संपादक जोनास वैस्कुनस ने भी संबोधित किया |
कार्यक्रम का प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन से हुआ | समिति के पदाधिकारियों ने अतिथियों का स्वागत किया | शबरी कन्या आश्रम की कु. वन्ना द्वारा व्यक्तिगत गीत प्रस्तुत किया गया | कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनुराग जैन ने किया | आभार प्रदर्शन हरिनारायण मोहता ने किया | इस अवसर पर मंत्री महेश गागड़ा, रतनलाल अग्रवाल, बिसराराम यादव, सुनील कुलकर्णी, वैभव सुरंगे,चंद्रभूषण शर्मा, विकास मरकाम, निशिकांत जोशी,माधवी जोशी सुमन मुथा सहित सैकड़ों गणमान्य नागरिक उपस्थित थे |
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भवदीय
डॉ . हीरेश सोनकर
9406072812

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