पहली ख़बर को पढ़िए फिर दूसरी तस्वीर को ध्यान से देखिएगा.।सनथ जयसूर्या जिनका इलाज पूरी दुनिया के डॉक्टर नहीं कर पाए उनका इलाज एमपी के छिन्दवाड़ा जिले में एक आयुर्वेदिक डॉक्टर ने जड़ी बूटियों से किया और महीनों से बैसाखी के सहारे चलने वाले जयसूर्या सिर्फ़ 72 घंटे में अपने पैरों पर खड़े हो गए।
अब दूसरी तस्वीर देखिए,दूसरी तस्वीर आचार्य सुश्रुत द्वारा रचित सुश्रुत संहिता से ली गई है।आचार्य सुश्रुत आज से लगभग 2700 साल पहले अपने आश्रम में चिकित्सा के छात्रों को शल्य क्रिया यानि कि ऑपरेशन करना सिखाते थे और वो शल्य क्रिया का अभ्यास सब्ज़ियों,फलों और मृत देह पर करते थे।
हमारे देश का चिकित्सा सम्बंधी ज्ञान उस समय भी इतना उन्नत था। इसका सबसे पहला नुक़सान किया बख़्तियार ख़िलजी ने जिसने नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी जहाँ ऐसी किताबें रखी थीं उसमें आग लगवा दी थी,वो लाइब्रेरी इतनी बड़ी थी कि पूरे तीन महीने तो वहाँ आग जलती रही और वो आग अपने साथ उस समय तक संचित हमारे देश का अनमोल ज्ञान भी अपने साथ जला ले गई।उसके बाद आए तमाम विदेशी आक्रमणकारियों ने इस देश को हर तरह से नुक़सान पहुँचाया एर जो सबसे बड़ा नुक़सान पहुँचाया वो हमारी सभ्यता और हमारी धरोहरों नष्ट करके पहुँचाया।
बाद में अंग्रेज़ों ने तो हमारी पूरी शिक्षा प्रणाली ही बर्बाद करके हमें अंग्रेज़ी का वैचारिक ग़ुलाम बना दिया।
इसीलिए जो आयुर्वेद आज से ढाई हज़ार साल पहले शल्य क्रिया करना जानता था उसकी पहचान आज सिर्फ़ जड़ी बूटियों तक सिमट गई है...
इसीलिए जो आयुर्वेद आज से ढाई हज़ार साल पहले शल्य क्रिया करना जानता था उसकी पहचान आज सिर्फ़ जड़ी बूटियों तक सिमट गई है...
No comments:
Post a Comment