हमारे भीतर विद्यमान शक्तियां
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एक बार एक किसान जंगल में लकड़ी बिनने गया तो उसने एक अद्भुत बात देखी।
एक लोमड़ी के दो पैर नहीं थे, फिर भी वह खुशी खुशी घसीट कर चल रही थी।
यह कैसे ज़िंदा रहती है जबकि किसी शिकार को भी नहीं पकड़ सकती, किसान ने सोचा ।
तभी उसने देखा कि एक शेर अपने दांतो में एक शिकार दबाए उसी तरफ आ रहा है । सभी जानवर भागने लगे, वह किसान भी पेड़ पर चढ़ गया ।
उसने देखा कि शेर, उस लोमड़ी के पास आया, उसे खाने की जगह, प्यार से शिकार का थोड़ा हिस्सा डालकर चला गया।
दूसरे दिन भी उसने देखा कि शेर बड़े प्यार से लोमड़ी को खाना देकर चला गया ।
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किसान ने इस अद्भुत लीला के लिए भगवान का मन में नमन किया। उसे अहसास हो गया कि
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किसान ने इस अद्भुत लीला के लिए भगवान का मन में नमन किया। उसे अहसास हो गया कि


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यह जानकर वह भी एक निर्जन स्थान चला गया और वहां पर चुपचाप बैठ कर भोजन का रास्ता देखता। कई दिन गुज़र गए, कोई नहीं आया। वह मरणासन्न होकर वापस लौटने लगा।
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तभी उसे एक विद्वान महात्मा मिले। उन्होंने उसे भोजन पानी कराया, तो वह किसान उनके चरणों में गिरकर वह लोमड़ी की बात बताते हुए बोला, "महाराज, भगवान ने उस अपंग लोमड़ी पर दया दिखाई पर मैं तो मरते मरते बचा । ऐसा क्यों हुआ कि भगवान् मुझ पर इतने निर्दयी हो गए ?"
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महात्मा जी उस किसान के सर पर हाथ फिराकर मुस्कुराते हुए बोले, "तुम इतने नासमझ हो गए कि तुमने भगवान का इशारा भी नहीं समझा इसीलिए तुम्हें इस तरह की मुसीबत उठानी पड़ी । तुम ये क्यों नहीं समझे कि भगवान् तुम्हे उस शेर की तरह मदद करने वाला बनते देखना चाहते थे, निरीह लोमड़ी की तरह नहीं।
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