Sunday 28 October 2018

dec-srijan




सीएम मोदी को फंसाने में फेल हुए तो अब पीएम मोदी को फंसाने की साजिश!

पीएम मोदी को एक बार फिर फंसाने का चौसर तैयार किया गया है। 2002 गुजरात दंगे में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी ने एक बार फिर मोदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है। उन्होंने एसआईटी द्वारा मोदी को दी गई क्लिन चिट को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अर्जी को मंजूर करते हुए इस मामले की सुनवाई 19 नवंबर को करने की तारीख भी तय कर दी है। इस मामले को देखते हुए वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने सही लिखा है कि 2014 के आम चुनाव की पूर्व संध्या से लेकर 2019 के चुनाव की पूर्व संध्या तक चुनावी खेल की किताब में कुछ भी नहीं बदला है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संयोग कहें या दुर्योग यह बात बाद में लेकिन जिस प्रकार देश में कुछ लोग उनके पीछे पड़े हैं वह कम से कम देश के लिए कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता है। नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक देश का एक खास तबका उन्हें किसी प्रकार फंसाने के पीछे पड़ा हुआ है। मैथिली में एक कहावत है कि लोक लागे भगवंता के और दैव लागे अभगला के। यह कहावत मोदी पर बिल्कुल सटीक बैठती है। इन लोगों ने जब से मोदी के पीछे पड़े है उनका यश और शौर्य देश से लेकर विदेश तक में फैलता चला गया। इसके बाद भी इन लोगों को अक्ल नहीं आ रहा है।मालूम हो कि जाकिया जाफरी 2002 गुजरात दंगा मामले में गठित विशेष जांच दल द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर वरिष्ठ राजनेताओं तथा नौकरशाहों को मिली क्लिन चिट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अर्जी दायर की है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, 2014 में हुए आम चुनाव से पहले भी नरेंद्र मोदी को फंसाने का यह गंदा खेल चला था। उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। लेकिन उन्होंने इसका डटकर मुकाबला किया और बाइज्जत बरी होकर बाहर आए। इतना ही नहीं साजिशकर्ताओं के पीछे पड़ने के बाद भी वे देश के प्रधानमंत्री बने।
लेकिन अब जब 2019 का चुनाव होने ही वाला है तो एक बार फिर साजिशकर्ताओं ने मोदी को फंसाने का खेल शुरू कर दिया है। वही मामला वही केस मगर इस बार लड़ाई का मैदान अहमदाबाद से बदलकर दिल्ली कर दिया गया है। इस घिसे-पिटे मामले पर सुप्रीम कोर्ट भी सुनवाई करने को तैयार हो गया है। इससे सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर संदेह होना लाजिमी है। सुप्रीम कोर्ट को समझना चाहिए या फिर पूछना चाहिए कि जो मामला 2014 में खत्म हो चुका है, साल 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने भी एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को सही मान चुका है, तो फिर उस मामले को 2018 में उठाने का क्या औचित्य है?
जहां तक जाकिया जाफरी को न्याय दिलाने की बात है तो आज तक इच्छा के अनुरूप नहीं हुए फैसले से कोई संतुष्ट हो पाया है। दूसरी बात यह कि आखिर बीते साढ़े चार साल तक वह क्या कर रही थीं? इतने दिनों पहले उन्होंने एसआईटी के फैसले को चुनौती क्यों नहीं दी? ये वही सवाल हैं जिससे सुप्रीम कोर्ट की मंशा भी जाहिर हो जाती है और साजिशकर्ताओं की साजिश भी।
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नरेंद्र मोदी को सीबीआई द्वारा जान से मारने की 6 बड़ी साज़िशों का हुआ पर्दाफाश !
1. अलोक वर्मा पीएमओ ऑफिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झूठे केस में फ़साना चाहते थे।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का फ़ोन टेप कराया था।
3. पी चिताम्बरम पूरे गिरोह का मुखिया।
4. अजित डोवाल ने किया कांग्रेस की इस गहरी साज़िश का पर्दाफाश।
कहते है अगर बहुत दिनों बाद राजपाठ चला जाय तो नयी ज़िन्दगी बहुत मुश्किल से बीतता है क्यूंकि हमें पुरानी ज़िन्दगी की आदत हो जाती है और हम नए ज़िन्दगी को मान नहीं पाते है ! और उस पुराने ऐश ओ आराम की ज़िन्दगी को वापस पाने के लिए हम कभी कभी सारे हदें पार कर देते है ! राजनितिक पार्टी कांग्रेस का भी अब यही हाल हो चूका है ! इतने सालों की गद्दी में बैठने की ज़िन्दगी अब न सिर्फ खतम बल्कि उनका अस्तित्व ही संकट में पड़ चूका है और इसलिए उनके दिमाग में सिर्फ एक ही बात आये दिन चलते रहती है मोदी हटाओ !
सूत्रों के खबर मुताविक कांग्रेस के इशारे पर अलोक वर्मा सीबीआई की छापा मारना चाहते थे ! और उनका असली मकसद था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झूठे केस में फ़साना ! जी हां एक और कांग्रेस की बड़ी साज़िश का पर्दाफाश हुआ है जिससे भारतीय राजनीती में महा भूकंप आ गया है ! दरअसल कांग्रेस पिछले चुनाव में 30 में सिमट गयी थी लेकिन 5 साल बाद सारे साम वेद दंड सब कुछ अपनाने के बाद भी जब उनकी संख्या 100 भी छू नहीं पा रही है सारे एग्जिट पोल के अनुसार तो कांग्रेस को अब ये समझ में आ गया है की वो सत्ता में वापस आना तो दूर उनका राजनितिक सिंबल ही अब अस्तित्व में है ! और इन सबके लिए ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी है ! तो क्यों न उनको ही रस्ते से हटा दिया जाय !
नरेंद्र मोदी के खिलाफ साज़िश
1. अलोक वर्मा पीएमओ ऑफिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झूठे केस में फ़साना चाहते थे
दरअसल अलोक वर्मा सीबीआई के लिए नहीं बल्कि सोनिया गाँधी के पार्टी ऑफिस के लिए काम करता था ! उनका मकसद था किसी भी तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसी झूठे केस में फसाकर उसकी छवि को खतम कर दिया जाय ! ताकि मोदी सरकार संकट में आ जाये और देश में एक अराजकता का वातावरण फ़ैल जाए !
2. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का फ़ोन टेप कराया था
सूत्रों के मुताबिक अलोक वर्मा कांग्रेस के दलाली का काम करते थे ! ये अपने पद का दुरूपयोग करके सोनिया गाँधी समेत सारे कांग्रेस दिग्गजों के केस को जानबूझकर लटकाना चाहते थे ताकि कांग्रेस की छवि क्लीन और क्लियर रहे ! ये राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के लिए दानवीर कर्ण के कवज और कुण्डल का काम कर रहे थे ! इतना ही नहीं इन्होने सोनिया गाँधी के इशारे पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल के बेटे शर्या डोवाल का फ़ोन भी टेप करना चाहते थे ! यहाँ आपको बता दे की राकेश अस्थाना भी अलोक वर्मा के साथ कांग्रेस से मिला हुआ था !
3. पी चिताम्बरम पूरे गिरोह का मुखिया
इस पूरी गैंग का मुखिया एक ऐसा शख्स है जिसे आप सब जानते है ! जी हां ये और कोई नहीं कांग्रेस के दिग्गज बागड़बिल्ले पी चिताम्बरम ! अलोक वर्मा चिताम्बरम के गिरोह के सदस्य थे जबकि राकेश अस्थाना अहमद पटेल के ग्रुप के सदस्य है ! वैसे आपके जानकारी के लिए बता दे की कांग्रेस का इस गिरोह का बहुत दूर तक पहुंच है और ये एक लम्बी शाखा है जहा पर पुलिस से लेकर वकील तक, सीबीआई से लेकर सरकारी अमला से लेकर न्यायपालिका से जज तक शामिल है !
4. अजित डोवाल ने किया कांग्रेस की इस गहरी साज़िश का पर्दाफाश
इसी गिरोह को ज़र से ख़तम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक द्वारा अलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को बाहर का रास्ता दिखा दिया जो एक प्रकार से कांग्रेस के खेमे पर मायूसी ला दी है ! इसलिए अजित डोवाल आये है जिसने इस कांग्रेस की भयानक साज़िश को किया नाकाम !
5. अलोक वर्मा सीबीआई की सारी गोपनीयं फाइल कोर्ट के बदले राहुल गाँधी को पहुँचता था
आपको जानकर हैरानी होगी की सीबीआई के समस्त गोपनीय फाइल और जानकारियां कोर्ट से पहुंचने के पहले चिताम्बरम के हाथ में होता था ! यहाँ तक की राहुल गाँधी को सीबीआई के हर बात की खबर आराम से पहुंचाई जाती थी ! इसका सबसे बड़ा उदहारण आपको राफेल के घटना से मिलेगी ! राफेल के सारे कागजात राहुल गाँधी को पहले से मिल जाती थी ! और तो और अलोक वर्मा राफेल के कागजात से नरेंद्र मोदी को फ़साना चाहते थे और इसीलिए राहुल गाँधी बार बार राफेल की ज़िक्र करते है ! गौर से देखिये राहुल बाबा के इस ट्वीट को –
Rahul Gandhi ✔@RahulGandhi
CBI चीफ आलोक वर्मा राफेल घोटाले के कागजात इकट्ठा कर रहे थे। उन्हें जबरदस्ती छुट्टी पर भेज दिया गया।
प्रधानमंत्री का मैसेज एकदम साफ है जो भी राफेल के इर्द गिर्द आएगा- हटा दिया जाएगा, मिटा दिया जाएगा।
देश और संविधान खतरे में हैं।
41.1K  1:45 PM - Oct 24, 2018
सोचिये कैसे राहुल गाँधी को ये पता चल गया की सीबीआई अधिकारी क्या काम कर रहा है ? इस ट्वीट से ये साफ़ हो गया की अलोक वर्मा एक बहुत ही भ्रष्ट सीबीआई अफसर है जो सिर्फ राहुल गाँधी और कांग्रेस की कठपुतली बन चूका था और उनके इशारे पे काम करता था !
6. अलोक वर्मा और उनके कुकर्म
वैसे अलोक वर्मा का पास्ट रिकॉर्ड भी कीचड़ से चमकीले है ! ऐसे प्रमुख केस जो कोर्ट में जान बूझकर लटकाया गया है जैसे की अगुस्ता वेस्टलैंड मामला जहा पर चार्जशीट अभी तक फाइल नहीं हुयी ! दुबई में गिरफ्तार आरोपी मिशेल की मामला को लटकाना हो, चिताम्बरम के खिलाफ एयरसेल मैक्सिस घोटाला मामला में चार्ज शीट जमा न देना ! या फिर लालू प्रसाद के रेलवे घोटाले में राकेश अस्थाना को रोकना या फिर वीकानेर ज़मीन घोटाला मामले में रबार्ट बदरा के मामले को रफा दफा करना ! ये सब मामले को लटकाने के पीछे अलोक वर्मा का बड़ा हाथ है !
इतने बड़े बड़े घोटाले और अभी तक सब लटका हुआ है ! आप भी ये सोचते है की आखिर इस देश में नेताओं की सज़ा क्यों नहीं होती ? अब आपको पता चल गया होगा की कैसे नेताओं अपना रास्ता आसनी से बना लेते है ! लेकिन इस बार उनका पाला नरेंद्र मोदी से पड़ा है जो सीधे तौर पर सिर्फ अपना राजधर्म पालन करते है ! और इस बार उसने असली ज़र अलोक वर्मा को ही छुट्टी में भेज दिया ! कांग्रेस ने बहुत अच्छी तरीका से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ साज़िश रची थी लेकिन वो एक कहावत है जिसके सर के ऊपर भगवान का हाथ हो ऊपर से जनता का आशीर्वाद फिर भला उसे कौन क्या हानि पंहुचा सकता है ! नरेंद्र मोदी के एक और सर्जिकल स्ट्राइक ने कांग्रेस के इस खतरनाक साज़िश को पर्दाफाश कर दिया !
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अदालत की चौखट पर बार-बार पटखनी –
सत्ता में रहते हुए कांग्रेस ने बार-बार संघ के कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया| दो-दो बार प्रतिबंध लगाकर हजारों स्वयंसेवकों को जेलों में यातनाएं दीं| पर हर बार प्रतिबंध हटाना पड़ा। फिर उसने संघ में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर निशाना साधा, लेकिन न्यायालय ने हर बार उसे बैरंग लौटाया| इसके कुछ उदाहरण देखें -
1. इंदौर स्थित मध्य भारत उच्च न्यायालय (1955): ‘कृष्ण लाल बनाम मध्य भारत राज्य ’ –
फैसला - “किसी भी अस्थायी सरकारी कर्मचारी को यह कह कर सेवा से हटाया नहीं जा सकता की वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य है।”
2. पटना उच्च न्यायालय (1961): ‘मा. स. गोलवलकर बनाम बिहार राज्य ’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समारोह पर दिया गया भाषण भारतीय दंड संहिता की धारा 153क के अधीन अपराध नहीं है।”
3. बम्बई उच्च न्यायालय नागपुर न्यायपीठ (1962): ‘चिंतामणि नुरगांवकर बनाम पोस्ट मास्टर जनरल कें.म. , नागपुर ’ –
फैसला - “किसी सरकारी कर्मचारी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेना ‘विध्वंसक कार्य’ नहीं है तथा उसे इस आधार पर सरकारी सेवा से हटाया नहीं जा सकता। ”
4. उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय (1963): ‘जयकिशन महरोत्रा बनाम महालेखाकार, उत्तर प्रदेश’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मात्र सदस्य होने के कारण किसी सरकारी कर्मचारी को अनिवार्य रूप से सेवा-निवृत्त नहीं किया जा सकता।”
5. जोधपुर स्थित राजस्थान उच्च न्यायालय (1964): ‘केदारलाल अग्रवाल बनाम राजस्थान राज्य तथा अन्य ’ – फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भाग लेने के आधार पर सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी न टिक सकने वाली है।”
6. दिल्ली स्थित पंजाब उच्च न्यायालय (1965): ‘मनोहर अम्बोकर बनाम भारत संघ तथा अन्य ’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकलाप में भाग लेना न तो ‘विध्वंसक कार्य’ ही कहा जा सकता है और न ही गैर कानूनी है | सरकारी कर्मचारी को इस आधार पर दण्डित नहीं किया जा सकता ।”
7. बेंगलूर स्थित मैसूर उच्च न्यायालय (1966): ‘रंगनाथाचार अग्निहोत्री बनाम मैसूर राज्य तथा अन्य ’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य होना न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति से वंचित रखने के लिए वैध कारण नहीं है।”
8. चंडीगढ़ स्थित पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (1967): ‘रामफल बनाम पंजाब राज्य तथा अन्य ’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में भाग लेने के आधार पर किसी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जा सकता ।”
9. जबलपुर स्थित मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय (1973): ‘भारत प्रसाद त्रिपाठी बनाम मध्यप्रदेश सरकार तथा अन्य ’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के किसी कार्यक्रम में भाग लेने के आधार पर किसी कर्मचारी की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती | किसी अन्तरस्थ हेतु से जारी किया गया (इस आशय का) कोई आदेश वैध नहीं ठहराया जा सकता।”
10. उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय (1971) : ‘शिक्षा निदेशक, उत्तर प्रदेश तथा अन्य बनाम रेवत प्रकाश पांडे’ –
फैसला - “सरकारी सेवा के दौरान किसी नागरिक का ‘संगम का अधिकार’ निलंबित नहीं हो जाता ।”
11. गुजरात उच्च न्यायालय, अहमदाबाद (1970) : ‘डी. बी. गोहल बनाम जिला न्यायाधीश, भावनगर तथा अन्य ’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्बन्ध में यह सिद्ध नहीं है की वह एक राजनैतिक आन्दोलन है, अतः (इस आधार पर) सरकारी कर्मचारी को सेवा से हटाया नहीं जा सकता | ”
12.अर्नाकुलम स्थित केरल उच्च न्यायालय (1981): ‘टी. बी. आनंदन तथा अन्य बनाम केरल राज्य तथा अन्य ’ – फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को किसी सरकारी विद्यालय के भवन का उपयोग अपने कार्यक्रमों के लिए करने की विशेष सुविधा से वंचित नहीं किया जा सकता। ”
13. अर्नाकुलम स्थित केरल उच्च न्यायालय (1982) : ‘श्रीमती थाट्टुम्कर बनाम महाप्रबंधक, टेलिकम्युनिकेशंस, केरल मंडल ’ –
फैसला - “किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य होने के आधार पर सरकारी नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। ”
14.भारतीय उच्च न्यायालय (1983) : ‘मध्यप्रदेश राज्य बनाम राम शंकर रघुवंशी तथा अन्य ’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने के आधार पर किसी कर्मचारी की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती। ”
15. अवैध गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (1993) : ‘केंद्रीय सरकार बनाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ’ –
फैसला - “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गैर-कानूनी घोषित करने के लिए कारण पर्याप्त नहीं हैं। ”
कांग्रेस के नेता  अतीत से सबक सीखना नहीं चाहते और न ही जनभावनाओं का आदर करना जानते हैं। कभी विदेशियों के सामने तथाकथित ‘हिन्दू आतंकवाद” का हौआ खडा कर चुके उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष अब खुद को आस्थावान हिन्दू साबित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं, और दूसरी तरफ हिंदू संगठनों के प्रति अपनी नफरत को छिपा भी नहीं पा रहे हैं।




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भारत विश्व का तीसरा सबसे धनी देश बनने की राह पर
 देश के सबसे अमीर मुकेश अंबानी ने  कहा कि भारत विश्व का तीसरा सबसे धनी देश बनने की राह पर है।  पहली तीन औद्योगिक क्रांतियों से चूक जाने के बाद भारत प्रौद्योगिकी पसंद युवा आबादी के दम पर अब चौथी औद्योगिक क्रांति की अगुवाई करने की स्थिति में है।
अंबानी ने 24वें मोबीकैम सम्मेलन में कहा कि भारत का डिजिटल बदलाव अतुल्य  है।  देश ने वायरलेस ब्राडबैंड के मामले में महज 24 महीने में 155वें स्थान से शीर्ष तक का सफर तय किया है। 1990 के दशक में जब रिलायंस तेल परिशोधन  परियोजनाएं बना रही थी, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) करीब 350 अरब डॉलर था और  आज हमारी जीडीपी करीब तीन हजार अरब डॉलर की हो गई है और हम विश्व के तीसरे सबसे अमीर देश बनने की राह पर हैं।
अंबानी ने कहा कि मोबाइल कंप्यूटिंग वृहद स्तर पर डेटा की खपत के लिए उत्प्रेरक है और इसने युवा भारतीयों को व्यापक बदलाव वाली सोच के लिये उर्वर जमीन दी है। 'मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि अगले दो दशक में भारत विश्व की अगुवाई करेगा ।' पहली व दूसरी औद्योगिक क्रांतियों में भारत हाशिये पर रहा। कंप्यूटर केंद्रित तीसरी क्रांति में भारत ने दौड़ में भाग लेना शुरू किया।
 'चौथी औद्योगिक क्रांति अब हमारे ऊपर है। जिसने भौतिक, डिजिटल और जीववैज्ञानिक विश्व को दोफाड़ कर दिया है। मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि भारत के पास न सिर्फ चौथी क्रांति में भाग लेने का मौका है बल्कि देश इसकी अगुवाई कर सकता है।'
 'ऐसा इस कारण संभव है, क्योंकि आज का भारत पहले के भारत से बिल्कुल अलग है। भारत की बड़ी प्रौद्योगिकी केंद्रित आबादी इसकी मुख्य ताकत है। यह उद्यमिता के लिए समृद्ध एवं उर्वर जमीन है और देश, दुनिया भर में स्टार्टअप के सबसे तेज विकास की जमीन बनकर उभरा है। 
'आज देश में प्रौद्योगिकी आधारित स्टार्टअप की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है। इससे पहले भारत ने कभी भी इस कदर उद्यमिता का उभार नहीं देखा था।'
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मोदी जी क्या कर रहे हैं ?
भारत - रूस और ईरान के बीच एक मीटिंग हो रहा है .. इस मीटिंग में India - Pacific Connectivity को अंतिम रूप दिया जा रहा है .. इस मीटिंग के बाद कभी भी ईरान चाबहार पोर्ट भारत को सौंप देगा .. इस मीटिंग के बाद मुम्बई से St. Petersberg तक का रास्ता खुल जाएगा ... इस माह ये पूरा होने की उम्मीद है ..
जब से चाबहार की ओपनिंग हुई है तबसे भारत 110 मीट्रिक टन गेहूँ और लगभग 2000 टन चना, मटर, मूँग, उड़द, अरहर आदि अफगानिस्तान को भेज चुका है ... चावल की खेप ईरान में भी उतारी जा चुकी है ..
एक मीटिंग भारत और अमेरिका की भी चल रही है .. इस मीटिंग के बाद ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबन्ध के दायरे से चाबहार पोर्ट और ईरान से भारत को तेल सप्लाई पर प्रभावी नहीं होंगे ऐसी पूरी उम्मीद है ... चाबहार को अमेरिका ने पहले ही प्रतिबन्ध के दायरे मुक्त कर दिया है .. तेल सप्लाई पर बात चल रही है .. IOCL और मंगलौर रिफाइनरी ने पहले ही ईरान को क्रूड आयल का आर्डर दे दिया है ...
अभी भारत ने पहली रेल भारत से नेपाल में चला कर ट्रायल कर लिया ... उधर भारत से म्यांमार - थाईलैंड - कम्बोडिया - वियतनाम - मलेशिया - इंडोनेशिया का सड़क रूट फाइनल हो चुका है ... जापान भारत के पूर्वोत्तर में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए हर सहायता देने को तैयार जिससे ये रूट जल्द से जल्द शुरू हो सके ... ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
क्या  भारत के सुप्रीम कोर्ट में भी महत्वाकांक्षा पनप रही है ?
क्या होगा जब किसी देश के सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए सरकारी मामलों में दखल देकर अपनी स्वंय की देख रेख में सरकारी कार्य का मुखिया बन जायेगा?
इसका सीधा सपाट उत्तर है पाकीस्तान के मुख्य न्यायाधीश जैसा जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश के पद के नाम का बैंक में खाता खुलवाकर गिलगित बाल्टिस्तान में सिंधू नदी पर भाशा डैम के लिए विदेश में काम कर रहे पैकिस्तानियो और देश के पाकिस्तानियो से चंदा जमा करवाने का आदेश दिया है. इसका नयीजा यह निकला कि विदेश में बसे किसी भी पाकीस्तानी ने एक भी $डालर नही भेजा जबकि पाकिस्तान के अंदर रहने वाले कुछ एक पाकिस्तानी ₹10-10 का चंदा जरूर जमा कर रहे है.

क्या कुछ ऐसी ही महत्वाकांक्षा भारत के सुप्रीम कोर्ट में भी पनप रही है? यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन जैसा कि राफेल डील मामले में दाखिल की गई अनेको PIL पर जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ही कही गई बातों के विरूद्ध जाकर देश की सुरक्षा को ताक में रखते हुए भारत एंव फ्रांस सरकार के मध्य हुए समझौते को नकारते हुए मोदी सरकार से जानकारी प्राप्त करने का आदेश दिया है एंव टिप्पणी कर रहा है उससे तो इसी की प्रतिध्वनि निकलती है.

राफेल डील का मामला हर रूप में देश की सुरक्षा से सीधा जुड़ा मामला है. फ्रांस सरकार और भारत सरकार के मध्य समझौता हुआ था कि इस डील की जानकारी सरकार से बाहर नही जानी चाहिए क्योंकि इससे दोनों देशों की सुरक्षा एंव आक्रामक क्षमता प्रभावित होगी. राहुल गांधी, उसकी पार्टी एंव सम्पूर्ण विपक्ष को यह मालूम है कि इसकी जानकारी लोक सभा को भी जब लीक नही हुई तो किसी को भी नही बताई जा सकती . इसीलिए राहुल गांधी ने ढफली बजाना शुरू किया कि इस डील में मोदी ने चोरी की है.
राहुल की ढफली की आवाज पर मनोहर लाल शर्मा नाम के एक एडवोकेट जो दिल्ली गैंग रेप मामले में 5 बलात्कारियों की ओर से वकील थे और जिन्होंने महिलाओ के विरूद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी भी की थी, के द्वारा एक PIL डाली गई जिसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पहली टीप्पणी थी की कोर्ट न तो कीमत की जानकारी मांगेगा न राफेल के तकनीक की, कोर्ट को सिर्फ यह बता दिया जाय कि खरीद की प्रक्रिया क्या थी?

सुविज्ञ है कि किसी भी सरकारी खरीद में 2 पहलू देखे जाते है:
1. खरीद में यदि किसी अधिकारी या जन प्रतिनिधि ने घुस खाये है तो इस पर जांच या कार्यवाही CVC करता है.
2. यदि सरकारी खरीद में फंड के व्यय में अनियमितता बरती गई है तो इसका आडिट CAG करके लोक सभा के PAC को सौपेगा जो उसका परीक्षण कर लोक सभा के पटल पर तखेगा.

ज्ञातब्य है कि राफेल डील मामले में CVC या CAG में से किसी की कोई निगेटिव रिपोर्ट नही है. राहुल गांधी भी हवाई फ़ायर करते रहे. वह भी किसी प्रकार का भष्ट्राचार को कोई साक्ष्य नही बता पाए है लेकिन जब 5 बलात्कारियों की तरफ वाले वकील मनोहर लाल शर्मा ने PIL से मिलती जुलती रीट यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने दाखिल की तो सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील की कीमत बताने को कहा. जबकि सुप्रीम कोर्ट को यह विदित है कि रक्षा मंत्री ने लोक सभा मे फोटो स्टेट पेपर दिखाते हुए बताया था कि फ्रांस सरकार और भारत सरकार के मध्य समझौता हुआ है कि इस डील की जानकारी सरकार से बाहर नही जानी चाहिए. इससे दोनों देशों की सुरक्षा एंव आक्रामक क्षमता प्रभावित होगी.

इन उपरोक्त वर्णित परिस्थितियो में 3 बातो का निष्कर्ष निकलता है कि देश का सुप्रीम कोर्ट:
1., CVC और CAG की रिपोर्ट के बिना भी किसी सरकारी खरीद में मात्र PIL के आधार पर सरकार से वह गोपनीय जानकारी भी उजागर करना चाहता है जिसकी गोपनीयता बनाये रखने के लिए भारत सरकार का फ्रांस सरकार के साथ समझौता हुआ है.
2. सुप्रीम कोर्ट 2 देशो के समझौते से बड़ा है.
3. चूंकि राफेल डील की जानकारी खुलने से चीन और पाकिस्तान को ही लाभ मिलेगा फिर भी देश की सुरक्षा से भी बड़ा सुप्रीम कोर्ट है.

@इतना तो निश्चित है कि सारी जानकारी खुलने के बाद निकलेगा ढाँक का तीन पात. क्योंकि राफेल डील में जो खरीद 2 सरकारों के बीच हुए समझौते के अंतर्गत हुई है उसमें एक धेले का भी भष्ट्राचार नही मिलेगा.



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Uma Shanker Singh











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रूपे कार्ड
मास्टरकार्ड और वीज़ा का नाम हम में से अधिकतर ने सुन रखा है असल में ये एक पेमेंट प्रोसेसिंग तकनीक है जो कि हमारे ट्रान्जेक्शन के लिए बैंकों से कुछ पैसे लेती है.
 2012 में मनमोहन सिंह सरकार और आरबीआई ने "रूपे कार्ड" लॉन्च किया था जो कि मास्टरकार्ड और वीसा कार्ड का देसी वर्जन था... लेकिन, विदेशी दबाब के कारण इसका प्रमोशन रोक दिया गया...! बाद में मोदी सरकार ने बैंकिंग सेक्टर में इसे प्रमोट करना शुरु किया और जन-धन वाले अकाउंट्स के कारण इसके उपयोग और संख्या में अचानक से वृद्धि आई.और, 2018 आते-आते इस कार्ड के प्रयोग का (संख्या का नहीं) ये आलम है कि पिछले चार सालों में भारत के एक अरब कार्डधारकों में से आधे रूपे कार्ड का प्रयोग करते हैं.
सिर्फ पिछले दो सालों में ही इसके प्रयोग की गति ऐसी तेज हुई है कि मास्टरकार्ड वालों को रुलाई आ रही है.
इसका मुख्य कारण यह है कि पहले इन दो विदेशी कम्पनियों की इस क्षेत्र में डूओपॉली थी और हर ट्रान्जेक्शन पर लगने वाली फीस भारत से बाहर जाती थी.लेकिन, मोदी ने लोगों के बीच "रुपे कार्ड" को लोकप्रिय बनाया और फिर ये कार्ड मात्र चार सालों में मास्टरकार्ड वालों की हालत पतली कर रही है.
फिर हालात ये हो गई कि मास्टरकार्ड के मालिक ट्रम्प के पास ये बताने के लिए पहुंच गए कि मोदी ने भारत में उनके बिजनेस को बर्बाद कर दिया है...और, वो लोगों को 'देशभक्ति' और 'देश सेवा' के नाम पर 'रूपे कार्ड' को इस्तेमाल करने कह रहा है.

आप ऐसी कम्पनियों की दुस्साहस देख कर दंग रह जाएंगे कि इन्हें "अमेरिका फ़र्स्ट" कहने वाले राष्ट्रपति के पास "इंडिया फ़र्स्ट" कहने वाले प्रधानमंत्री की शिकायत करनी पड़ रही है कि "भारत का पैसा" अमेरिका में "क्यों नहीं आ" रहा है.

मतलब ये उम्मीद लेकर शिकायत की जा रही है कि ट्रम्प इंडिया की बाँह मरोड़ेगा और कहेगा कि भारत के लोग भारतीय पेमेंट प्रोसेसर का प्रयोग न करें....बल्कि, अपना पैसा अमेरिका को दें..मोदी ने 'भीम' और 'रूपे' कार्ड को प्रमोट किया है...और, कहा कि "हाँ, ये देश सेवा है क्योंकि आप जब रूपे इस्तेमाल करते हैं तो उस पैसे से सड़कें बनती हैं".और, मास्टरकार्ड के मालिक ने मोदी के इसी बयान का ज़िक्र करके अपनी सरकार से मोदी की शिकायत की है कि वो तो "देश सेवा" का नाम लेकर लोगों को उकसा रहा है.

कहने का मतलब है कि वे चाहते हैं कि भारत के लोग ज़िंदगी भर किसी न किसी उनकी ग़ुलामी करते रहें...और, यहाँ का पैसा वहाँ भेजते रहें. आश्चर्य होता है कि एक विदेशी कम्पनी ऐसा सोच भी कैसे लेती है कि भारतीय लोग अपने देश में बनाई सेवाओं का प्रयोग न करें क्योंकि इससे उनका बिजनेस खराब होगा...???

मोदी से आप खूब असहमति रखिए, लेकिन इस तरह की ख़बरों को सुनकर अच्छा लगता है कि विदेशियों को जहाँ तक संभव है, "बाँस" करते रहना चाहिए.कई जगह आप बारगेनिंग कैपेसिटी में नहीं होते हैं और, आपको उनके सामने झुकना पड़ता है.लेकिन, इसका मतलब ये तो नहीं कि आदमी खड़ा होना ही छोड़ दे.






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अथ सीबीआई कथा --अजित डोभाल के आने से कोंग्रेसी साजिशें नाकाम..!
मोदी सरकार को गिराने के लिए एक साजिश का पर्दाफ़ाश हुआ है,कांग्रेस के इशारे पर आलोक वर्मा प्रधानमंत्री कार्यालय पर CBI का छापा मार कर नरेंद्र मोदी को बदनाम करने की साजिश में जुटे थे।आलोक वर्मा लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार को संकट में फंसाने की साजिश कर रहे थे.
भ्रष्टाचार के केसों को जानबूझ कर लटकाया जा रहा था..
आलोक वर्मा व राकेश अस्थाना दोनों कांग्रेस के लिए काम कर रहे थे. आलोक वर्मा चिदंबरम गिरोह द्वारा संचालित थे, तो अस्थाना अहमद पटेल के संदेसरा ग्रुप से लाभ प्राप्त करने वालों में शामिल थे. यही कारण है कि पीएम मोदी ने आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना, दोनों पर एक साथ सर्जिकल स्ट्राइक कर कांग्रेस के दोनों खेमे पर प्रहार किया है.
राकेश अस्थाना कभी भी सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को पसंद नहीं थे क्योंकि वो उससे कहीं अधिक प्रसिद्ध हैं, इसलिए आलोक वर्मा को राकेश अस्थाना से निजी समस्या थी, राकेश अस्थाना वाड्रा-संजय भंडारी-अभिषेक वर्मा केस पर काम कर रहे थे
हुआ यह कि राकेश अस्थाना द्वारा एकत्र की गई जानकारी जो संजय भंडारी और वाड्रा के आपसी सम्बंध, भंडारी-वाड्रा की अवैध बिज़नस डील के अंतर्गत धन का आदान प्रदान, और कांग्रेस द्वारा संजय भंडारी को डसाल्ट से रफाल का ऑफसेट कॉन्ट्रेक्ट दिलवाने का दबाव बनाने की जानकारी किसी प्रकार मीडिया को लीक हो गई थी, जिससे ,राहुल गांधी, रॉबर्ट वाड्रा के कुकर्म देश की जनता के सामने उजागर हो गए थे,
इसके बाद आलोक वर्मा को राकेश अस्थाना कि जांच से भय लगने लगा और उसने प्रधानमंत्री कार्यालय से राकेश अस्थाना को हटाने की गुहार लगाई, जिसे मोदी ने नकार दिया,
हाल ही में मोइन कुरेशी मामले में भी अस्थाना को कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई थी जिसमे मोइन कुरेशी व् सोनिया गांधी के विरुद्ध कुछ जानकारियां थी मोइन कुरेशी सोनिया गांधी और रॉबर्ट वाड्रा का अति करीबी है,अब आप समझ सकते हैं कि राकेश अस्थाना किसके लिए समस्या थे, और कौन उन्हें हटाना चाहता था,
आलोक वर्मा पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल के बेटे शौर्य डोवाल का फोन टेप करने का आरोप भी है यूपीए-2 में प्रणव मुखर्जी की जासूसी कराने में पहले ही उनका नाम सामने आ चुका है. उनका पूरा गिरोह है, जिसमे वकीलों से लेकर पुलिस व् सीबीआई अधिकारी, सरकारी अम्लों में बैठे बड़े आला अफसर से लेकर न्यायपालिका में बैठे कई जज तक शामिल बताये जा रहे हैं.
आलोक वर्मा मोदी को फंसाने के लिए राफेल के कागजात का जुगाड़ कर रहे थे और ये बात राहुल गाँधी को पहले से ही पता थी.मगर राहुल गाँधी खुद ही ट्वीट करके फंस गए. राहुल ने ट्वीट करके कहा कि, “सीबीआई चीफ आलोक वर्मा राफेल घोटाले के कागजात इकट्ठा कर रहे थे. उन्हें जबरदस्ती छुट्टी पर भेज दिया गया.
प्रधानमंत्री का मैसेज एकदम साफ है जो भी राफेल के इर्द गिर्द आएगा- हटा दिया जाएगा, मिटा दिया जाएगा”.
अगस्ता वेस्टलैंड मामले में अभी तक चार्जशीट न दाखिल की गई हो या फिर उसी मामले में दुबई में गिरफ्तार मुख्य आरोपी मिशेल के प्रत्यर्पण के मामले को लटकाना रहा हो. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ एयरसेल-मैक्सिस घोटाला मामले में चार्जशीट न दाखिल करने की बात हो या उनके बेटे कार्ति चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कार्रवाई को सुस्त करना हो.,लालू यादव के घोटाला मामले में विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को जांच करने से रोकना हो या फिर बिकानेर जमीन घोटाले में राबर्ट वाड्रा की जांच रोकने का मामला हो. इन सारे मामलों में आलोक वर्मा पर सोनिया गांधी से लेकर उनके संबंधियों या उनके नजदीकी सहयोगियों को बचाने का आरोप है.
अगस्ता वेस्टलैंड में चार्जशीट दाखिल नहीं क्यों?
अगस्टा वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाला मामले में भ्रष्टाचार साबित होने के बाद भी आजतक चार्जशीट दाखिल नहीं की गई. आरोप है कि इसके पीछे आलोक वर्मा का ही हाथ बताया जा रहा है.इस घोटाले के मुख्य आरोपी (बिचौलिया) क्रिश्चियन मिशेल दुबई में गिरफ्तार किया गया. मिशेल ने भारतीय अधिकारियों के सामने स्पष्ट रूप से सोनिया गांधी का नाम लिया था दुबई की अदालत ने उसके प्रत्यर्पण की भी मंजूरी दे दी थी. लेकिन अंत में उसका प्रत्यर्पण नहीं हो पाया. . लेकिन आलोक वर्मा ने उनका प्रत्यर्पण नहीं होने दिया.
चिदंबरम के खिलाफ चार्जशीट नहीं
आरोप है कि आलोक वर्मा पी चिदंबरम के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर कांग्रेस आलाकमान को नाराज नहीं करना चाहते थे.जबकि ईडी और सीबीआई जांच के बाद यह करीब-करीब साबित हो चुका है कि पी चिदंबरम ने अपने बेटे को आर्थिक फायदा पहुंचाने के एबज में एयरसेल मैक्सिस को अवैध तरीके 3,500 करोड़ रुपये के लिए एफआईपीबी की मंजूरी दी थी, जबकि यह काम आर्थिक मामले की कैबिनेट कमेटी का है.
ईडी के प्रयास से उसकी गिरफ्तारी भी हो चुकी है, लेकिन सीबीआई ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है. कार्रवाई नहीं होने के लिए आलोक वर्मा को ही जिम्मेदारा माना जाता है.
यथावत के संपादक राम बहादुर राय ने अपने आलेख में एक जगह है लिखा है कि अगर लालू प्रसाद यादव रेलवे मंत्री नहीं बनाए गए होते तो उन्होंने अपने परिवार के लिए जो संपत्ति अर्जित की ही है वह नहीं कर पाते,ऐसे भ्रष्टाचारी को बचाने का आरोप आलोक वर्मा पर है. आरोप है कि जब विशेष निदेशक राकेश अस्थाना आईआरटीसी घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव की जांच कर रहे थे तो आलोक वर्मा ने उन्हें लालू प्रसाद यादव की जांच करने से रोक दिया था.
बलात छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर आरोप है कि बिकानेर में एक जमीन घोटाले में रॉबर्ट वाड्रा का नाम आया था. इस मामले की जांच सीबीआई को करनी थी, लेकिन आलोक वर्मा ने उस जांच को आगे ही नहीं बढ़ने दिया. आलोक वर्मा ने ही आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ जांच को रोक दिया था.
वामपंथी वकील प्रशांत भूषण की सहायता!
आरोप तो यह भी है कि आलोक वर्मा के कहने पर ही प्रशांत भूषण ने राकेश अस्थाना के खिलाफ जनहित याचिका दायर कर उनकी सीबीआई के विशेष निदेशक के पद पर हुई नियुक्ति को लेकर सवाल उठाया था.
आलोक वर्मा द्वारा लीक किये गए दस्तावेजों के आधार पर ही प्रशांत भूषण ने अस्थाना के खिलाफ स्टर्लिंग बायोटेक मामले से लेकर मोईन कुरैशी से संबंध के मामले को उछाला था.
पीएम मोदी के खिलाफ बीजेपी के मौकापरस्त नेताओं अरुण शौरी तथा यशवंत सिन्हा व् वामपंथी वकील प्रशांत भूषन के साथ मिलकर ये धूर्त आलोक वर्मा रफाल डील मामले में साजिश रच रहा था.
इस तिकड़ी ने सीबीआई को लिखी 132 पेज की चिट्ठी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में इनलोगों की मंशा पर पानी फेर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील की प्रक्रिया पर सुनवाई की बात करते हुए इन लोगों की साजिश का बेड़ा गर्क कर दिया.सुप्रीम कोर्ट से लात पड़ने के बाद ही इन लोगों ने आलोक वर्मा के माध्यम से सीबीआई के बहाने इस मसले को उठाने की योजना बनाई.
पूरे सीबीआई डिपार्टमेंट में कोई भी आलोक वर्मा से खुश नहीं है, और वह सभी जानते हैं कि आलोक वर्मा किसे बचाने का प्रयास कर रहे हैं, अस्थाना स्वयं आलोक वर्मा के इस आचरण, व्यवहार के बारे में खुलकर बोल चुके हैं और अपनी आपत्तियां दर्ज करवा चुके हैं।
अब बात राहुल गांधी के आरोप की तो प्रश्न उठता है कि यदि आलोक वर्मा रफाल की जांच कर रहे थे, तो किस संस्था, किस हायर अथॉरिटी, किस व्यक्ति के निर्देश पर कर रहे थे ? सीबीआई, सीवीसी(सेंट्रल विजिलेंस कमेटी) के अंतर्गत आती है, सीबीआई के पास सुप्रीम कोर्ट की तरह अपनी मर्जी से कोई केस उठाने अर्थार्थ सुओ-मोटो एक्शन लेने का कोई अधिकार नही हैं
वैसे रफाल मामले पर सुप्रीम कोर्ट में भी कांग्रेस ने पिटीशन दायर करवाई थी, उस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस को साक्ष्य और सबूत प्रस्तुत करने को कहा किंतु कांग्रेस वह नही प्रस्तुत कर सकी और सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की पिटीशन ही खारिश कर दी थी यदि कोई सबूत नहीं है तो उसका अर्थ हुआ कि राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं,
कुल मिलाकर पीएम मोदी के खिलाफ षड्यंत्र किये जा रहे हैं. किसी तरह से उन्हें बदनाम कर दिया जाए या फिर उनकी ह्त्या करवा दी जाए ताकि कांग्रेस सत्ता में वापसी कर सके क्योकि कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार व् लूट करना ऐसे अधिकारियों के लिए भी आसान रहता है.

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बान्द्रा स्टेशन की झोपडपट्टी में प्रतिवर्ष आग का रहस्य


मुम्बई में स्थित बांद्रा स्टेशन के आसपास चारों तरफ गहरी-घनी और गंदगी से लबरेज कई झोपडपट्टी मौजूद हैं, जिनमें से अधिकाँश का नाम “नवाज़ नगर”, “गरीब नगर”, “संजय गांधी नगर”, “इंदिरा गांधी नगर” वगैरह है. आप सोचेंगे इसमें ऐसी क्या ख़ास बात है, ऐसा तो भारत के कई रेलवे स्टेशनों के आसपास होता होगा... बान्द्रा की इन झोपडपट्टी (Biggest Slum Area of Asia) की ख़ास बात यह है कि इसमें प्रतिवर्ष बिना किसी खण्ड के, बड़ी जोरदार आग लगती है. ऐसे अग्निकाण्ड देश की किसी भी झोपडपट्टी में “नियमित” रूप से नहीं होते. आखिर इस आगज़नी का रहस्य क्या है?

बांद्रा झोपडपट्टी में लगने वाली यह आग हमेशा देर शाम को अथवा देर रात में ही लगती है, दिन में नहीं. ऐसी भीषण आग लगने के बाद बांद्रा स्टेशन पहुँचने वाले, वहाँ इंतज़ार करने वाले रेलवे यात्री घबराकर इधर-उधर भागने लगते हैं, डर के मारे काँपने लगते हैं (अभी कुछ सप्ताह पहले लगी आग के दौरान एक-दो यात्रियों की मौत आपाधापी में रेलवे ट्रैक पर आने से हो गयी. परन्तु सर्वाधिक आश्चर्य इस बात का है कि जब भी इन झोपडपट्टी में आग लगती है, तो यहाँ के निवासी बड़ी शान्ति के साथ चुपचाप खाली स्थानों, रेलवे स्टेशन के आसपास एकत्रित हो जाते हैं. उन्हें कतई भय नहीं होता, आग बुझाने की जल्दबाजी भी नहीं होती.


स्वाभाविक रूप से इन झोपडपट्टी की गलियाँ बेहद सँकरी होने के कारण अग्निशमन (फायर ब्रिगेड) और पुलिस की गाड़ियाँ अथवा एम्बुलेंस अन्दर तक नहीं पहुँच पातीं... कुल मिलाकर बात यह कि झोपडपट्टी पूरी जल जाने तक यहाँ के “निवासी” शान्ति बनाए रखते हैं. इसके बाद एंट्री होती है टीवी कैमरों, चैनलों के संवाददाता और पत्रकारों की, जो गलियों में पैदल घुसकर तमाम फोटो खींचते हैं, चिल्ला-चिल्लाकर बताते हैं कि “देखो, देखो... गरीबों का कितना नुक्सान हो गया है...”. कुछ ही समय में (या अगले दिन कुछ महिलाएँ कैमरे के सामने अपनी छाती कूटते हुए पधारती हैं, रोना-धोना मचाकर सरकार से मुआवज़े की माँग करती हैं. ज़ाहिर है कि अगले दिन की ख़बरों में, समाचार पत्रों, चैनलों इत्यादि पर झोपडपट्टी के इन “गरीबों”(??) के प्रति सहानुभूति जगाते हुए लेख और चर्चाएँ शुरू हो जाती हैं. आगज़नी के कारण जिन गरीबों का नुक्सान हुआ है, जिनकी झोंपड़ियाँ जल गयी हैं, उनका पुनर्वास हो ऐसी मांगें “नेताओं” द्वारा रखी जाती हैं.

कथित बुद्धिजीवी और कथित संवेदनशील लोग आँसू बहाते हुए बांद्रा की झोपडपट्टी वाले इन गरीबों के लिए सरकार से पक्के मकान की माँग भी कर डालते हैं.

ज़ाहिर है कि इतना हंगामा मचने और छातीकूट प्रतिस्पर्धा होने के कारण सरकार भी दबाव में होती है, जबकि कुछ सरकारें तो इसी आगज़नी का इंतज़ार कर रही होती हैं. इन कथित गरीबों को सरकारी योजनाओं के तहत कुछ मकान मिल जाते हैं, कुछ लोगों को कई हजार रूपए का मुआवज़ा मिल जाता है... इस झोपडपट्टी से कई परिवार नए मकानों या सरकार द्वारा मुआवज़े के रूप में दी गयी “नई जमीन” पर शिफ्ट हो जाते हैं...


इसके बाद शुरू होता है असली खेल. मात्र एक सप्ताह के अन्दर ही अधिकाँश “गरीबों”(??) को आधार कार्ड, PAN कार्ड, मतदाता परिचय पत्र वगैरह मिलने शुरू हो जाते हैं. मात्र पंद्रह दिनों के भीतर उसी जले हुए स्थान पर नई दोमंजिला झोपडपट्टी भी तैयार हो जाती है, जिसमे टीन और प्लास्टिक की नई-नकोर चद्दरें दिखाई देती हैं. कहने की जरूरत नहीं कि ऐसी झोपडपट्टी में पानी मुफ्त में ही दिया जाता है, बिजली चोरी करना भी उनका “अधिकार” होता है. झोपडपट्टी में थोड़ा गहरे अन्दर तक जाने पर पत्रकारों को केबल टीवी, हीटर, इलेक्ट्रिक सिलाई मशीनें वगैरह आराम से दिख जाता है (केवल सरकारों को नहीं दिखता).

प्रतिवर्ष नियमानुसार एक त्यौहार की तरह होने वाली इस आगज़नी के बाद रहस्यमयी तरीके से 1500 से 2000 नए-नवेले बेघर की अगली बैच न जाने कहाँ से प्रगट हो जाती है. जली हुई झोपडपट्टी के स्थान पर नई झोपड़ियाँ खड़ी करने वाले ये “नए प्रगट हुए गरीब और बेघर” वास्तव में गरीब होते हैं. इन्हें नई झोंपड़ियाँ बनाने, उन झोपड़ियों को किराए पर उठाने और ब्याज पर पैसा चलाने के लिए एक “संगठित माफिया” पहले से ही इन झोपडपट्टी में मौजूद होता है. न तो सरकार, न तो पत्रकार, न तो जनता... कोई भी ये सवाल नहीं पूछता कि जब जली हुई झोपडपट्टी में रहने वाले पूर्ववर्ती लोगों को नई जगह मिल गयी, कुछ को सरकारी सस्ते मकान मिल गए, तो फिर ये “नए गरीब” कहाँ से पैदा हो गए जो वापस उसी सरकारी जमीन पर नई झोपडपट्टी बनाकर रहने लगे?? कोई नहीं पूछता... नई बन रही झोपडपट्टी में ये नए आए हुए “गरीब मेहमान” हिन्दी बोलना नहीं जानते, उनकी भाषा में बंगाली उच्चारण स्पष्ट नज़र आता है...


ये “गरीब”(??) हमेशा दिन भर मुँह में गुटका-पान दबाए होते हैं (एक पान दस रूपए का या एक तम्बाकू गुटका भी शायद दस रूपए का मिलता होगा). इस झोपडपट्टी में आने वाले प्रत्येक “गरीब” के पास चारखाने की नई लुंगी और कुरता जरूर होता है... उनका पहनावा साफ़-साफ़ बांग्लादेशी होने की चुगली करता है. नवनिर्मित झोपडपट्टी में महाराष्ट्र के अकाल-सूखा ग्रस्त क्षेत्रों का किसान कभी नहीं दिखाई देता. इन झोपडपट्टी में मराठी या हिन्दुस्तानी पहनावे वाले साधारण गरीब क्यों नहीं दिखाई देते, इसकी परवाह कोई नहीं करता. दो-चार पीढियों से कर्ज में डूबे विदर्भ का एक भी किसान बांद्रा की इन झोपडपट्टी में नहीं दिखता?? ऐसा क्यों है कि बान्द्रा स्टेशन के आसपास एक विशिष्ट पह्नावेम विशिष्ट बोलचाल वाले बांग्लाभाषी और “बड़े भाई का कुर्ता, तथा छोटे भाई का पाजामा” पहने हुए लोग ही दिखाई देते हैं?? बांद्रा स्टेशन के आसपास चाय-नाश्ते की दुकानों, ऑटो व्यवसाय, अवैध कुली इत्यादि धंधों में एक “वर्ग विशेष” (ये धर्मनिरपेक्ष शब्द है) के लोग ही दिखाई देते हैं??

अब अगले साल फिर से बांद्रा की इस झोपडपट्टी में आग लगेगी... फिर से सरकार मुआवज़ा और नया स्थान देगी... फिर से कहीं से अचानक प्रगट हुए “नए गरीब” पैदा हो जाएँगे... झोपडपट्टी वहीं रहेगी... अतिक्रमण वैसा ही बना रहेगा... गुंडागर्दी और लूटपाट के किस्से वैसे ही चलते रहेंगे... लेकिन ख़बरदार जो आपने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई... आप तो चुपचाप अपना टैक्स भरिये.... वोटबैंक राजनीति की तरफ आँख मूँद लीजिए. और हाँ!!!

यदि आप ये सोच रहे हैं कि यह “गरीबी और आगज़नी का यह खेल” केवल बांद्रा स्टेशन के पास ही चल रहा है, तो आप वास्तव में बहुत नादान हैं... यह खेल बंगाल के कई जिलों में चल रहा है, देश के कई महानगरों में बड़े आराम से चल रहा है, एक दिन यह झोपडपट्टी खिसकते-खिसकते आपके फ़्लैट के आसपास भी आएगी, तब तक आप चादर तानकर सो सकते हैं .Written by desiCNN

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