व्याधी महारथो जायताम्
दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः
पुरंध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो
युवाअस्य यजमानस्य वीरो जायतां
निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु
फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्ताम्
योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥ -- शुक्ल यजुर्वेद ; अध्याय २२, मन्त्र २२
ब्रह्मन्=हे महत्तम ब्रह्म !/ राष्ट्रे= राष्ट्र में / ब्राह्मणो=ज्ञानी जन / बह्मवर्चसी=बह्मतेजधारी / आ जायताम् = सर्वत्र होवे //
राजन्यः=क्षत्रिय/
धेनु: = गौ / दोग्ध्री = खूब दूध देनेवाली (हो)//
अनड्वान् =बैल / वोढ़ा= भार वहन करनेवाला (हो)//
सप्तिः=अश्व / आशु:= शीघ्र गतिवाला हो //
योषा = महिला / पुरंध्रि:= बहुत गुणों को धारण करने वाली (हो)//
अस्य = इस / यजमानस्य = यजमान का (=राष्ट्रिय व्यक्ति का) / युवा=जवान सन्तान / जिष्णु: = जयशील / रथेष्ठा:=उत्तम वाहनों का स्वामी (और)/ वीर:=पराक्रमी / आ जायताम् = सर्वत्र होवे //
नः=हमारे लिए / ओषधय: = अन्न और वृक्ष आदि / फलवत्यः=फलों से युक्त (हो कर)/ पच्यन्ताम् = (यथासमय) पकें //
नः = हमारा / योगक्षेमः = अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा का कार्य / कल्पताम् = सिद्ध होवे
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