*एक बार स्वामी विवेकानंद जी से किसी ने जिज्ञासा की और अपना प्रश्न पूछा .."हिन्दुओं में बाल विवाह होता है, ये गलत है, हिन्दू धर्म में सुधार होना चाहिए !
स्वामी जी ने उस से पूछा :-"क्या हिन्दू धर्म ने कभी कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति का विवाह होना चाहिए और वह विवाह उसके बाल्यकाल में ही होना चाहिए "
प्रश्न पूछनेवाला थोडा सा सक् पकाया फिर भी जिद करते हुए बोला ...."हिन्दुओं में बाल विवाह नहीं होते क्या ?
स्वामी जी :- पहले ये बताओ "विवाह का प्रचलन हिन्दू समाज में है अथवा हिन्दू धर्म में। धर्म तो ब्रह्मचर्य पर बल देता है। 2 5 वर्ष के अवस्था से पहले गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने की अनुमति कोई स्म्रति नहीं देती और स्मरति भी तो समाज-शास्त्र ही है ये समाज का विधान है' .....
स्वामी जी ने थोडा विराम लिया और फिर से बोले :- धर्म तो विवाह की बात करता ही नहीं है। धर्म , पत्नी प्राप्ति की नहीं, ईश्वर -प्राप्ति की बात करता है ..प्रश्न फिर हुआ .स्वामी जी सुधार होना तो जरूरी है
स्वामी जी : अब आप खुद ही निर्णय करे की ..सुधार किसका होना जरूरी है .. समाज का या हिन्दू धर्म का ... हमें धर्म-सुधार की नहीं, समाज सुधार की जरूरत है और ये ही अपराध हम अब तक करते आ रहे है ... हमें समाज- सुधार की जरूरत थी और करने लग गए धर्म में सुधार
स्वामी जी आगे बोले ...धर्म सुधार के नाम पर हिन्दुओं का सुधार तो नहीं हुआ किन्तु ये सत्य है की हिन्दुओं का विभाजन अवश्य हो गया। उनमे हीन भावना अधिक गहरी जम गई। धर्म सुधार के नाम पर नए -नए सम्प्रदाय बनते गए और वो सब हिन्दू समाज के दोषों को,हिन्दू धर्म से जोड़ते रहे और
इनको ही गिनाते रहे साथ ही साथ ये सम्प्रदाय भी एक दुसरे से दूर होते गए.सब में एक प्रतिस्प्रधा सी आ गई है और हर सम्प्रदाय आज इसमें जीतना चाहता है, प्रथम आना चाहता है --हिन्दू धर्म की आलोचना करके "शाशन की कृपा पाना चाहता है और उसके लिए हिन्दू धर्म की आलोचना करना सबसे सरल उपाय है ...
आज देखो, ये जितने भी सम्प्रदाय हैं हिन्दुओं की तुलना में ईसाईयों के अधिक निकट हो गए हैं। वे हिन्दू समाज के दोषों को -हिन्दू धर्म के साथ जोड़कर हिन्दुओं के दोष और ईसाईयों के गुण बताते हैं। पहले ही हिन्दू मुगलों के हिंसा से पीड़ित रहे हैं।
ये दुर्भाग्य ही तो है ..समाज सुधार को ..धर्मके सुधार से जोड़ देना ..जबकि धर्म में सुधार की जरूरत ही नहीं थी .जरूरत तो केवल धर्म के अनुसार समाज में सुधार करने की है ....
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ये हैं डॉ शंकर गोवडा | ये रहते हैं कर्णाटक के मंड्या नामक जगह में | इनकी ख़ास बात ये हैं की ये त्वचा रोग के डॉ हैं और अपने मरीजो से फीस के नाम पर मात्र 5 रुपैये लेते हैं , इनका अपना कोई क्लिनिक भी नहीं , एक मित्र की दूकान के बगल में थोड़ी सी जगह में बैठे मिलते हैं डॉ साहब ||
इनकी सच्ची सेवा के लिए एक लाइक तो बनता हैं ||
स्वामी जी ने उस से पूछा :-"क्या हिन्दू धर्म ने कभी कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति का विवाह होना चाहिए और वह विवाह उसके बाल्यकाल में ही होना चाहिए "
प्रश्न पूछनेवाला थोडा सा सक् पकाया फिर भी जिद करते हुए बोला ...."हिन्दुओं में बाल विवाह नहीं होते क्या ?
स्वामी जी :- पहले ये बताओ "विवाह का प्रचलन हिन्दू समाज में है अथवा हिन्दू धर्म में। धर्म तो ब्रह्मचर्य पर बल देता है। 2 5 वर्ष के अवस्था से पहले गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने की अनुमति कोई स्म्रति नहीं देती और स्मरति भी तो समाज-शास्त्र ही है ये समाज का विधान है' .....
स्वामी जी ने थोडा विराम लिया और फिर से बोले :- धर्म तो विवाह की बात करता ही नहीं है। धर्म , पत्नी प्राप्ति की नहीं, ईश्वर -प्राप्ति की बात करता है ..प्रश्न फिर हुआ .स्वामी जी सुधार होना तो जरूरी है
स्वामी जी : अब आप खुद ही निर्णय करे की ..सुधार किसका होना जरूरी है .. समाज का या हिन्दू धर्म का ... हमें धर्म-सुधार की नहीं, समाज सुधार की जरूरत है और ये ही अपराध हम अब तक करते आ रहे है ... हमें समाज- सुधार की जरूरत थी और करने लग गए धर्म में सुधार
स्वामी जी आगे बोले ...धर्म सुधार के नाम पर हिन्दुओं का सुधार तो नहीं हुआ किन्तु ये सत्य है की हिन्दुओं का विभाजन अवश्य हो गया। उनमे हीन भावना अधिक गहरी जम गई। धर्म सुधार के नाम पर नए -नए सम्प्रदाय बनते गए और वो सब हिन्दू समाज के दोषों को,हिन्दू धर्म से जोड़ते रहे और
इनको ही गिनाते रहे साथ ही साथ ये सम्प्रदाय भी एक दुसरे से दूर होते गए.सब में एक प्रतिस्प्रधा सी आ गई है और हर सम्प्रदाय आज इसमें जीतना चाहता है, प्रथम आना चाहता है --हिन्दू धर्म की आलोचना करके "शाशन की कृपा पाना चाहता है और उसके लिए हिन्दू धर्म की आलोचना करना सबसे सरल उपाय है ...
आज देखो, ये जितने भी सम्प्रदाय हैं हिन्दुओं की तुलना में ईसाईयों के अधिक निकट हो गए हैं। वे हिन्दू समाज के दोषों को -हिन्दू धर्म के साथ जोड़कर हिन्दुओं के दोष और ईसाईयों के गुण बताते हैं। पहले ही हिन्दू मुगलों के हिंसा से पीड़ित रहे हैं।
ये दुर्भाग्य ही तो है ..समाज सुधार को ..धर्मके सुधार से जोड़ देना ..जबकि धर्म में सुधार की जरूरत ही नहीं थी .जरूरत तो केवल धर्म के अनुसार समाज में सुधार करने की है ....
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ये हैं डॉ शंकर गोवडा | ये रहते हैं कर्णाटक के मंड्या नामक जगह में | इनकी ख़ास बात ये हैं की ये त्वचा रोग के डॉ हैं और अपने मरीजो से फीस के नाम पर मात्र 5 रुपैये लेते हैं , इनका अपना कोई क्लिनिक भी नहीं , एक मित्र की दूकान के बगल में थोड़ी सी जगह में बैठे मिलते हैं डॉ साहब ||
इनकी सच्ची सेवा के लिए एक लाइक तो बनता हैं ||
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