Wednesday, 22 May 2013

रोमन अंक-प्रणाली(गणन ­ा करने की पद्धत) छोडकर हिन्दू संख्या-प्रणाली क्यों अपनानी पड़ी ?

यूरोप को रोमन अंक-प्रणाली(गणन ­ा करने की पद्धत) छोडकर हिन्दू संख्या-प्रणाली क्यों अपनानी पड़ी ?
आखिर यह "शुन्य" o को इतना महत्व क्यों दिया जाता है ?
क्या रहस्य है इसका?
पढो इसका उत्तर सरल भाषा में

=> यूरोप में 13 वी शताब्दी तक लोगो को 0(शून्य) क्या होता है यह पता नही था. उस समय यूरोप में रोमन अंक पद्धत का चलन था(जिसमे I, II, III जैसे काडिया लगाकर क्रमांक लिखे जाते थे, क्युकी उन्होंने कोई लिपि या चिन्ह विकसित नही किये थे 0-9 तक के.

यूरोप में गणना करने की रोमन पद्धत(जो सोलहवी शताब्दी तक लागू थी)- I, II, III, IV, V, VI, VII, VIII, IX,X.

इस रोमन पद्धत में 1 से 9 नौ के लिए काडिया(I, II, III) जोड़ दी गई थी, और पांच, दस के लिए कुछ चिन्ह(V, X) लगा दिए जाते थे.

तो फिर इसमें समस्या कहाँ पर शुरू हुई ? कमिया क्या थी ?

इसमें समस्या ये थी की ये पद्धत बहुत हीसरल थी क्युकी जब गिनती 20 तक पहुंचती,तो उसे "दो बार दस" ऐसे लिखा जाता था !
10 को रोमन में लिखतेहै X. इसलिए 20 को जब लिखना होता था, तो लिखते थे XX.

अब इसमें समस्या तब बढने लगी जब गणना बड़ी हो जाती, जैसे की कोई समुद्र की लम्बाई हो, या ग्रहों की कोई गणना करनी हो, तो इसमें लिखने, जोड़ने, गुणाकार करने में ही घंटो लग जाते थे. इससे निपटने के लिए उन्होंने कुछ और चिन्ह जोड़ दिए.जैसे की 50 को लिखने के लिए XXXXX की जगह L लिखो.
इसी तरह, 100 को LL लिखने की जगह C लिखो.
इसी तरह, 500 के लिए CCCCC के स्थान पर D लिखो.
और हजार के लिए M लिखो.

अब कुछ सरल उदाहरण लेते है, ताकि आपको यह पद्धत समझ आ जाए -
1) 400 = CD (इसमें जब भी बाई और का अंक छोटा हो तो उसके दाई वालेअंक को उतना कम करनाहोता है. इसलिए CD का अर्थ हुआ D - C = 500 - 100= 400. इस तरह 400 बन गया.
2) 300 = CCC
3) 1250 = MCCL

अब हमे पांच लक्ष लिखना है. कैसे लिखोगे ?
अब हमे पांच करोड़ लिखना है. कैसे लिखोगे ?
इन्हें लिखने पर बहुत सारे अंक हो जाते थे और पढ़ते समय बहुत समस्या होने लगी. इसका कारण यह था की "शुन्य" ना होने के कारण स्थानीय मूल्य(प्लेस-वेल ­्यू) की अवधारणा यूरोप की अंक-प्रणाली में नही थी. जो की भारतीयसंख्या प्रणाली मेंशुरू से ही थी.

फिर हिन्दू गणना पद्धत यूरोप कैसे पहुंची ? और वेटिकन चर्च ने इसे क्यों नकार दिया ?

13 वी शताब्दी में जबअरबी लुटेरो ने उत्तर भारत के कुछ प्रान्तों पर अधिकार जमाया, तो अरबी व्यापारियों ने यूरोपयूरोप के हर मार्ग, हर इमारत पर भारतीय अंक-प्रणाली छापना.
हमे भारतीय विद्यालयों में रोमन पद्धत तो सिखा देते है थोड़ी सी जानकारी के लिए, परन्तु इसका इतिहासनही बताते. "ज्ञान कैसे, और कहा फैला", यह भी बताना चाहिए स्कुलो में.

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