Wednesday, 8 May 2013

क़ुतुब मीनार का सच ..............
असली नाम: विष्णु स्तंभ, ध्रुव स्तंभ
निर्माता: विराहमिहिर
विराहमिहिर के मार्गदर्शन में बना, सम्राट चंद्रगुप्त के शाशन काल केदौरानअसली आयु: २५०० साल से अधिक पुराना.--------------- ----------- 1191A.D.में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली परआक्रमण किया ,तराइन के मैदान मेंपृथ्वी राजचौहान के साथ युद्ध में गौरी बुरी तरहपराजितहुआ, 1192 में गौरी नेदुबारा आक्रमणमें पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन,गौरी कासेनापति था. 1206 में गौरी नेकुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्तकिया औरजब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुईtab वह गद्दी पर बैठा ,अनेकविरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौरमेंही दो वर्ष लग गए.1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े सेगिरकर उसकी मौत हो गयी. अब इतिहासकेपन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीननेक़ुतुब मीनार ,कुवैतुल इस्लाम मस्जिद औरअजमेर मेंअढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिदभीबनवाई.अब कुछ प्रश्न .......अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिनकब ?क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206से1210 मीनार का निर्माणकरा सकता था ?जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर मेंविरोधियों कोसमाप्त करने में बिताये और1210 में भी मरनेके पहले भी वह लाहौर में था ?कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरूकिया यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एकही मंजिल बनायीं उसके ऊपर तीन मंजिलेंउसकेपरवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई औरउसकेऊपर कि शेष मंजिलें बाद में बनी. यदि 1193मेंकुतुबुद्दीन ने मीनार बनवाना शुरूकिया होता तो उसका नाम बादशाहगौरी केनाम पर"गौरी मीनार", या ऐसा ही कुछहोता न कि सेनापति कुतुबुद्दीन के नाम परक़ुतुब मीनार.उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनारबनवाई,अब क्या किसी भवन के मलबे से कोईक़ुतुबमीनार जैसा उत्कृष्ट कलापूर्ण भवनबनाया जा सकता है जिसका हर पत्थरस्थानानुसार अलग अलग नाप का पूर्वनिर्धारित होता है ?कुछ लोगो ने लिखा कि नमाज़ समय अजानदेने केलिए यह मीनार बनी पर क्या उतनी ऊंचाईसेकिसी कि आवाज़ निचे तक आभी सकती है ?सच तो यह है की जिस स्थान में क़ुतुबपरिसरहैवह मेहरौली कहा जाता है,मेहरौली वराहमिहिर के नाम परबसाया गया था जो सम्राट चन्द्रगुप्तविक्रमादित्य के नवरत्नों में एक , औरखगोलशास्त्री थे उन्होंने इस परिसर मेंमीनारयानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों केअध्ययन केलिए २७ कलापूर्ण परिपथों का निर्माणकरवाया था.इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्मकारीगरी केसाथ देवी देवताओं की प्रतिमाएंभी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने केबादभी कहीं कहींदिख जाती हैं. कुछ संस्कृतभाषा केअंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों परउकेरेहुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने केबावजूदपढ़े जा सकते हैं. मीनार , चारों ओर केनिर्माणका ही भाग लगता है ,अलग सेबनवाया हुआनहीं लगता,इसमे मूल रूप में सातमंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर "ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिएहुए"मूर्ति थी जो तोड़डाली गयीं थी ,छठी मंजिल पर विष्णुजी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे. वहभी हटा दिए गए होंगे ,अब केवल पाँच मंजिलेंही शेष है.इसका नाम विष्णु ध्वज /विष्णु स्तम्भया ध्रुवस्तम्भ प्रचलन में थे, इन सब का सबसेबड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौहस्तम्भ हैजिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख,जिसमेलिखा है की यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वजकहा गया है जो सम्राट चन्द्र गुप्तविक्रमादित्य (राज्य काल 380-414ईसवीं)द्वारा स्थापित किया गया था और यहलौहस्तम्भआज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्यकी बातहै कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा.उसी महानसम्राट के दरबार में महानगणितज्ञआर्य भट्ट,खगोल शास्त्री एवं भवन निर्माणविशेषज्ञ वराह मिहिर ,वैद्य राजब्रम्हगुप्तआदि हुए.ऐसे राजा के राज्य काल को जिसमे लौहस्तम्भस्थापित हुआ तो क्या जंगल मेंअकेला स्तम्भबना होगा? निश्चय ही आसपास अन्यनिर्माणहुए होंगे, जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिरथा उसी मंदिर के पार्श्व में विशालस्तम्भवि ष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखेजो सत्ताईसनक्षत्रो व खगोलीय अध्ययन के लिए बनाएगएनिश्चय ही वराह मिहिर के निर्देशन मेंबनायेगए.इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माणका श्रेयसम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्यकलमें खगोल शाष्त्री वराहमिहिरको जाता है.कुतुबुद्दीन ने सिर्फइतना किया कि भगवानविष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे कुवातु लइस्लाम मस्जिद कह दिया ,विष्णु ध्वज(स्तम्भ )के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर अरबी केशब्दलिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया....


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