Friday, 3 May 2013

हमारे धर्म ग्रंथों में कुल आठ ऐसे लोगों के बारे में जानकारी मिलती है जो अमर हैं 

इस विषय में एक श्लोक प्रचलित है-

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

भगवान परशुराम : जगतपालक भगवान विष्णु के दशावतारों में एक हैं। इनके द्वारा पृथ्वी से 21 बार निरकुंश व अधर्मी क्षत्रियों का अंत किया गया।

मार्कण्डेय : भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए और युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं।

कृपाचार्य : युद्ध नीति में कुशल होने के साथ ही परम तपस्वी ऋषि, जो कौरवों और पाण्डवों के गुरु थे।

हनुमानजी- रामजी के परमभक्त हनुमानजी को भी अष्ठ चिरंजीवियों में से एक माना गया है।

राजा बलि : भक्त प्रहलाद के वंशज। भगवान वामन को अपना सब कुछ दान कर महादानी के रूप में प्रसिद्ध हुए।

विभीषण : लंकापति रावण के छोटे भाई, जिसने रावण की अधर्मी नीतियों के विरोध में युद्ध में धर्म और सत्य के पक्षधर भगवान श्रीराम का साथ दिया।

भगवान वेद-व्यास : सनातन धर्म के प्राचीन और पवित्र चारों वेदों - ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का सम्पादन और 18 पुराणों के रचनाकार भगवान वेदव्यास ही हैं।

अश्वत्थामा : कौरवों और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य के सुपुत्र थे, जो परम तेजस्वी और दिव्य शक्तियों के उपयोग में माहिर महायोद्धा थे, जिनके मस्तक पर मणी जड़ी हुई थी। शास्त्रों में अश्वत्थामा को अमर बताया गया है।

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