Sunday, 30 November 2014

भारत से ज्यादा लोग अमेरिका में धूर्त "गाडमैन" के चंगुल में फंसकर अपनी गाढ़ी कमाई लुटा देते है ....

भारत में रामपाल की कहानी तो हमे मीडिया के माध्यम से देखने को मिल रही है .. और हम सोच रहे है की भारत की जनता अशिक्षित और अज्ञानता के कारण ही ऐसे लम्पटो के चंगुल में फंस जाती है .. लेकिन ऐसा नही है ... भारत से ज्यादा लोग अमेरिका में धूर्त "गाडमैन" के चंगुल में फंसकर अपनी गाढ़ी कमाई लुटा देते है ....


अमेरिका में हर साल तीन चार धूर्तो के खिलाफ केस दर्ज होती है जो गाडमैन बनकर लोगो को मोक्ष और शांति देने के नाम पर ओने चेलो को ठग लेते है ...

अमेरिका का अब तक का सबसे बड़ा मायावी धूर्त जेम्स वारेन जोन्स था | 1978 में इसने अपने आपको ईश्वर घोषित कर दिया था और "पीपुल्स टेम्पल" नाम से एक सम्प्रदाय खड़ा किया
ये अपने अनुयायीयो को सीधे स्वर्ग में भेजने का दावा करता था ... देखते ही देखते इसके लाखो अनुयायी बन गये .. ये अपने अनुयायीयो से कहता था की अपना सब सम्पत्ति बेचकर इसके आश्रम में ही रहो ... और ये उनके सारे दौलत ले लेता था ... जब अमेरिका सरकार को शिकायत मिली की इसके आश्रम में महिलाओ और लडकियों का यौन शोषण होता है तो अमेरिका सरकार ने जाँच के लिए एक कमेटी बनाई .. लेकिन ये अमेरिका छोडकर गुयाना चला गया .. और अपने अकूत दौलत से इसने अपने नाम पर "जोन्स टाउन" बसाया ... इसने अपने आश्रम में एयरपोर्ट भी बनवाया ... इसके पास कई प्लेन थे . इसने अपनी निजी सेना तक बना ली थी ..और कई लडाकू जहाज भी खरीद लिए थे .. इसने अनुयायीयो में फाइटर पाइलट से लेकर डाक्टर तक शामिल थे ...

फिर इसके चंगुल में फंसे कुछ अमेरिकी परिवारों ने अमेरिकी सरकार ने मदद की गुहार लगाई .. एक अमेरिकी सांसद ने जेम्स जोन्स का मामला संसद में खूब उठाया .. अमेरिकी सरकार हरकत में आई और उसने उसी सांसद की अध्यक्षता में एक जाँच कमेटी का गठन करके जांच के लिए गुयाना भेजा ... अमेरिकी सांसद और जाँच टीम जब जेंम्स टाउन में गये तो लोगो ने उसके दहशत के कारण उन्हें बताया की उन्हें कोई परेशानी नही है और लोग अपनी मर्जी से यहाँ रह रहे है ... फिर एक परिवार ने हिम्मत करके सच्चाई बता दी की कई लोग यहाँ से निकलना चाहते है लेकिन जेम्स के कमांडो उन्हें बाहर नही जाने देते .

फिर अमेरिकी सरकार और जेम्स के बीच ये समझौता हुआ की जो लोग यहाँ से निकलना चाहते है उन्हें जाने दिया जायेगा ... लेकिन जैसे ही जांच टीम एयरपोर्ट पर पहुची उनके प्लेन को जेम्स के कमांडो ने भारी गोलीबारी करके उड़ा दिया ,, सांसद सहित सब लोग मारे गये |

फिर जेम्स ने अपने अनुयायीयो से कहा की अब स्वर्ग में जाना है और कहा की सब लोग ये साइनाइड पी लो क्योकि ईश्वर हमे बुला रहे है .. खुद जेम्स ने भी पीया .. और एक मिनट में जेम्स टाउन में लाशो का अम्बार लग गया ... जब अमेरिकी सेना पहुची तो देखा वहाँ कुल 930 लोगो की लाशें पड़ी है जिसमे 330 बच्चे भी थे ..

अमेरिका के बाहर ये अमेरिकियों का सबसे बड़ा संहार था ... हलांकि उन्होंने खुद ही सामुहिक आत्महत्या की थी .

कितना ज़हर भरा है इनके दिलो में हिन्दुओ के खिलाफ...

मुस्लिम लड़की और उसके हिंदू पति की दिन-दहाड़े हत्या
दिल्ली से 75 किलोमीटर दूर हापुड़ में एक हिंदू व्यक्ति और उसकी मुस्लिम पत्नी को सरेआम कत्ल कर दिया गया। हत्या का आरोप महिला के भाई पर लगा है जो इन दोनों की शादी से नाराज था।
22 साल के सोनू और उनकी पत्नी दानिश्ता बेगम ने चार महीने पहले ही शादी की थी। 
शनिवार को दानिश्ता के भाई तालिब ने सरेआम सोनू का गला काट दिया। जब दानिश्ता ने अपने पति को बचाने की कोशिश की तो उसका भी गला काट दिया गया। पुलिस ने हत्या का केस दर्ज कर लिया है। तालिब और उसकी मांग नूर जहां ने घटना के बाद सरेंडर कर दिया था। चार अन्य आरोपी फरार हैं। इनमें दानिश्ता के दो भाई आसिफ और तस्लीम के अलावा उनके दो दोस्त जफरूद्दीन और अमीरूद्दीन भी शामिल हैं।
सोनू के पिता सत्यवान ने कहा कि कत्ल की साजिश पहले से रची जा चुकी थी। उन्होंने कहा, 'मेरे बेटे को दिन-दहाड़े मार दिया। कोई उसे बचाने नहीं आया। अब मैं इस गांव में नहीं रहूंगा क्योंकि यहां मैं भी सुरक्षित नहीं हूं।' इस इलाके में ज्यादातर मुसलमान परिवार हैं और सत्यवान अकेले दलित हैं।
कितना ज़हर भरा है इनके दिलो में हिन्दुओ के खिलाफ
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--जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में गत तीन महीनों में ऐसी तीन घटनाएं सामने आईं जब आईएस के झंडे लहराए गए
--झारखंड के धनबाद शहर में भी मोहर्रम के जुलूस में कुछ युवकों को आईएसआईएस लिखा टी शर्ट पहने हुए देखा गया
--कल्याण के ३ मुस्लिम युवक ईराक ISIS ट्रेनिंग को गये
--केरला में भी ISIS के भरी मात्र में सपोर्टर पाये जा रहे है
--आईएस द्वारा इराक और सीरिया में लड़ने के लिए तमिलनाडु, केरल, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र के युवकों की भर्ती करने की कोशिश कर रही है
--आईएस संगठन ने सोशल मीडिया पर ‘जिहाद के 44 तरीके’ नाम से एक किताब भी पोस्ट की है
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भारत में मुसलमानों कि आबादी जबरदस्त रफ़्तार से बढ़ रही है ! दर्जनों बच्चे पैदा कर मुसलमान भारत औरपूरी दुनिया में बेरोजगारी, गरीबी, जमिन - पानी कि किल्लत, झुग्गी बस्तिया, गुनहगारी, महंगाई बढ़ा रहे है ! कोई भी देश मुस्लिम बहुल आबादी का होने के बाद वहा आतंकवाद, मदरसे, दंगे, बम धमाके, जेहाद्द के अलावा कुछ भी नहीं बचता, यह हम पाकिस्तान, सौदी अरेबिया, इरान, इराक, येमेन, इजिप्त, लीबिया, सीरिया, बांग्लादेश, अफगानिस्तान आदि इस्लामी राष्ट्रों में देख हि रहे है ! भारत में मुसलमानों कि आबादी पर नियंत्रण के लिये अति शीघ्र कड़ा कानून पास करना बहुत हि जरुरी है !
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Saturday, 29 November 2014

ईसाईयों द्वारा इडुक्की (कर्नाटक ) के जंगलमें ‘क्रॉस’ खडा कर भूमि हथियानेका षडयंत्र !

यदि कांग्रेस के राज्यमें ईसाईयों द्वारा ऐसे षडयंत्र रचे गए, तो उसमें कोई आश्चर्य नही है !

इडुक्की (कर्नाटक ) : यहांके चरुतोणे गांवके पासके जंगलमें एकाएक ईसाईयोंके ‘क्रॉस’ का निर्माण कार्य किया गया है । इससे पूर्व यहां भारी मात्रामें इस प्रकारके अवैध कृत्य किए जाते थे । तत्पश्चात वे बंद हो गए थे । अब इस घटनासे पुनः ये कृत्य चालू हो गए, ऐसा दिखाई दे रहा है । कुछ धर्मांध ईसाई संगठनोंद्वारा ‘क्रॉस’ खडा करनेपर वहां चर्चका निर्माण कार्य कर आसपासके जंगलोंको नष्ट कर यह भूमि अपनीही मालिकीकी है, ऐसा दर्शाते हुए भूमि हथियानेका षडयंत्र रचाया जा रहा है ।

१. कांक्रीट के ‘क्रॉस’में धारवाले आरेके टुकडे लगाए गए हैं । ऐसे ‘क्रॉस’से वन्यप्राणियोंको कष्ट हो रहा है । (तथाकथित समाजसेवा का ढोंग करनेवाले ईसाईयोंकी धर्मांधता ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

२. वहांके निवासियोंने कहा कि लोगबस्तीसे से ३ कि.मी.दूरीपर स्थित जंगलमें यह ‘क्रॉस’ स्थापित किया गया है ।

३. इससे पूर्व भी भूमि हथियानेके लिए यहां अनेक बार ‘क्रॉस’ स्थापित किया गया था, जिसे अनेक बार जंगली हाथियोंने उद्धस्त किया था । इस पार्श्वभूमिपर हाथि स्पर्श भी न कर सके, इस तरह धारवाले आरेके टुकडे लगाकर ‘क्रॉस’ स्थापित किया गया है । प्राणियोंद्वारा स्पर्श होते ही उन्हें जखम होनेके उद्देश्यसे करवत गुणनफलके चिन्होंमें संलग्न किए गए हैं ।

४. इस ‘क्रॉस’के विरुद्ध इडुक्की एस्.पी.सी.आय. (सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स ) द्वारा जिलाधिकारीकी ओर परिवाद प्रविष्ट किया गया है । इस परिवादमें कहा गया है कि वन्यजीव सुरक्षा कानूनके अनुसार ‘वन्यप्राणियोंको घायल करना‘ शिकार करने समान ही है । जंगलमें धारवाले शस्रोंका उपयोग कर ‘क्रॉस’का निर्माण करना धर्मके अनुसार नहीं है एवं यह भूमि हथियानेकी एक धारणा है ।

५. ६ मईको किए गए इस परिवादके विषयमें संबंधित अधिकारियोंने आजतक कुछ भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Love Jihad ईसाई संगठन का यह न्यूज़लेटर साम्प्रदायिक है या मनगढ़न्त?


केरल में कोचीन स्थित केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (KCBC) के तहत काम करने वाले संगठन कमीशन फ़ॉर सोशल हारमोनी एण्ड विजिलेंस द्वारा जारी ताज़ा न्यूज़लेटर में केरल में चल रहे "लव जेहाद" और इसके धार्मिक दुष्प्रभावों के बारे में ईसाई समाज को जानकारी दी गई है।
अपने अनुयायियों में बाँटे गये इस न्यूज़लेटर के अनुसार पालकों को निर्देशित किया गया है कि केरल और कर्नाटक में "लव जेहाद" जारी है, जिसमें भोलीभाली लड़कियों को मुस्लिम लड़कों द्वारा फ़ाँसकर उन्हें शादी का भ्रमजाल दिखाकर धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है। बिशप काउंसिल ने आग्रह किया है कि पालक अपनी लड़कियों पर नज़र रखें, यदि लड़कियाँ मोबाइल उपयोग करती हैं तो उनके माता-पिता को उनकी इनकमिंग और आऊटगोइंग कॉल्स पर नज़र रखना चाहिये, यदि घर पर कम्प्यूटर हो तो वह "सार्वजनिक कमरे" में होना चाहिये, न कि बच्चों के कमरे में। पालकों को अपनी लड़कियों को ऐसे लड़कों के जाल में फ़ँसने से बचाव के बारे में पूरी जानकारी देना चाहिये। यदि कोई लड़की गुमसुम, उदास अथवा सभी से कटी-कटी दिखाई देने लगे तब तुरन्त उसकी गतिविधियों पर बारीक नज़र रखना चाहिये।
(यदि ऐसे दिशानिर्देश किसी हिन्दूवादी संगठन ने जारी किये होते, तो पता नहीं अब तक नारी संगठनों और न्यूज़ चैनलों ने कितनी बार आकाश-पाताल एक कर दिये होते)।
ईसाई संगठन का यह न्यूज़लेटर साम्प्रदायिक है या मनगढ़न्त? KCBC Newsletter Kerala Love Jihad

ये हैं दुनिया के सबसे पुराने हवाई अड्डे जहां हनुमान जी ने मचा दी थी तबाही !

होशियारपुर. श्रीलंका की श्री रामायण रिसर्च कमेटी ने रावण के चार हवाई अड्डे खोजने का दावा किया है। ये हैं उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला। कमेटी के मुताबिक सीता की तलाश में जब हनुमान लंका पहुंचे तो लंका दहन में रावण का उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था।
पिछले ९ वर्षों से ये कमेटी श्री लंका का कोना कोना छान रही थी जिसके तहत कई छुट पुट जानकारी व् अवशेष भी मिलते रहे परन्तु पिछले ४ सालो में लंका के दुर्गम स्थानों में की गई खोज के दोरान रावण के ४ हवाईअड्डे हाथ लगे है ।
उसानगोडा रावण का निजी हवाईअड्डा था तथा यहाँ का रनवे लाल रंग का है । इसके आसपास की जमीं कहीं काली तो कहीं हरी घास वाली है । जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका गये तो वहां से लौटते समय उन्होंने रावण के निजी उसानगोडा को नष्ट कर दिया था ।
आगे केंथ ने बताया की अब तक उनकी टीम ने लंका के ५० दुर्गम स्थानों की खोज की है । इससे पूर्व पंजाब के अशोक केंथ सन २ ० ० ४ में लंका में स्थित अशोक वाटिका खोजने के कारन सुर्खियों में आये थे । तत्पश्चात श्री लंका सर्कार ने २ ० ० ७ में ‘श्री रामायण अनुसन्धान कमेटी’ का गठन किया तथा केंथ को इसका अध्यक्ष बनाया था ।
रावण के हवाई अड्डे की तलाश भी हो चुकी है पूरी
श्रीलंका के अंदर जिस सोने की लंका में दुनिया भर के सप्तद्वीपों का राजा रावण रहता था, वह तो डूब चुकी है लेकिन श्री लंका का 60 फीसदी हिस्सा अभी भी  रावण की स्मृतियों को ताजा कर देता है। यहां खोजे गए स्थान कम से कम इतना तो प्रमाणित कर ही रहे हैं कि रामायण काल से जुड़ी लंका वास्तव में श्री लंका ही है। श्री लंका में रामायण काल से जुड़े अनेक स्थलों को खोजा जा रहा है। श्री रामायण रिसर्च कमेटी द्वारा पिछले चार साल में खोजे गए 50 के करीब स्थलों में रावण के हवाई अड्डे भी मिले हैं। श्री रामायण रिसर्च कमेटी श्रीलंका द्वारा खोजी गई अशोक वाटिका से लेकर पाताल लोक के साथ-साथ एक अहम स्थान ऐसा भी है जिसे सुनकर एक बार तो विश्वास करना भी मुश्किल हो जाता है। जी हां वह स्थल हैं रावण के हवाई अड्डे। लंका नगरी में रावण के पांच हवाई अड्डे होने का दावा किया जा रहा है।


हनुमान जी ने उसानगौड़ा हवाई अड्डे को कर दिया था नष्ट
श्रीलंका के लोगों का विश्वास है कि हनुमान जी ने जब लंका दहन किया तो रावण के पांच हवाई अड्डों में से एक महत्वपूर्ण स्थान उसानगौड़ा हवाई अड्डे को भी पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। उसानगौड़ा वह हवाई अड्डा है जिसे स्वंय राजा रावण निजी तौर पर प्रयोग करता था। इस हवाई अड्डे का रन वे सुर्ख लाल रंग का दिखता है। रन-वे के आसपास की जमीन कहीं काली तो कहीं हरी घास युक्त बनी हुई है। कुछ जगह पर जले हुए पत्थर भी एक दूसरे से जुड़े हुए दिखते हैं। अशोक कैंथ ने बताया कि इस पर अभी और भी खोज जारी है फिर भी 10-10 किलोमीटर लंबाई व चौड़ाई तक फैले कच्चे परंतु कठोर जमीन पर बने रन-वे सरीखे मैदान देख कर तो ऐसा लगता है कि यहां रावण की प्रजा के लिए हवाई अड्डे जरुर रहे होंगे। ऐसा प्रतीत होता है जैसे आज की नई तकनीक भी इतनी शानदार व सख्त हवाई पट्टी नहीं बना सकती जितनी ठोस यह हवाई पट्टी बनी है। यह हवाई पट्टी आसपास की भूमि से बिल्कुल अलग है। जिस जगह पर यह हवाई पट्टी है उस स्थान पर कोई भी पेड़ नहीं है। श्री रामायण रिसर्च कमेटी के चीफ रिसर्चर अशोक कैंथ ने बताया कि रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि उस समय के हवाई जहाज पैट्रोल से नहीं मरकरी से चलाए जाते थे।
श्रीलंका में कहां- कहां थे रावण के हवाई अड्डे
श्री रामायण रिसर्च कमेटी श्री लंका द्वारा अशोक कैंथ के नेतृत्व में लंका में चार स्थानों पर रावण के हवाई अड्डों की खोज की गई है।


1. उसानगौड़ा
2. गुरुलोपोथा(इस स्थान को एयरक्राफट रिपेयर सैंटर के तौर पर खोजा गया है)
3. -तोतूपोलाकदा
4-. वारियापोला में दो हवाई रन वे।

श्री रामायण रिसर्च कमेटी के प्रमुख रिसर्चर अशोक कैंथ ने कहा कि दोनों देशों (श्री लंका व भारत)की सरकारें अगर इस पर मिलजुल कर काम करें तो इन हवाई अड्डों को एक ऐतिहासिक व पर्यटन स्थलों के तौर पर पूरी तरह से विकसित किया सकता है। यही नहीं श्रीलंका में रामायण काल से जुड़ी सभी प्रमुख स्थलों जो अब विकसित हो रही है में सहयोग देनी चाहिए।

श्री रामायण अनुसन्धान कमेटी के मुख्य सदस्य :
इस कमिटी में श्री लंका के पर्यटन मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल क्लाइव सिलबम , आस्ट्रेलिया के हेरिक बाक्सी , लंका के पीवाई सुदेशम, जर्मनी के उर्सला मुलर , इंग्लॅण्ड की हिमी जायज शामिल है ।
अब तक क्या क्या पाया ?
अशोक वाटिका,रावण के ४ हवाईअड्डे : उसानगोडा , गुरुलोपोथा , तोतुपोलाकंदा , वरियापोला रावण का महल ,विभीषण का महल आदि ।
 श्रीलंका के नेशनल असेंबली  में आज भी महाराज विभीषण का आदमकद मूर्ति  है...
हैरानीवाली बात है कि श्रीलंका के नाम का खयाल आते ही हमारे जेहन में बुराईयों के प्रतीक के रुप में रावण का नाम सबसे पहले आता है लेकिन कम लोग ही जानते होंगे कि श्रीलंका में आज भी रावण को वहां के लोग बड़े ही आदर व सममान से लिया करते हैं। आश्चर्य होता है कि श्रीलंका के नेशनल असेंबली के मुखय कक्ष में आज भी रावण के साथ साथ रावण की मौत के बाद लंका के राजा बने महाराज विभीषण का आदमकद मूर्ति लगाई गई है। श्रीलंका के रामायण रिसर्च कमेटी के चेयरमैन अशोक कैंथ  ने दैनिक भास्कर के साथ इन विषयों पर खुलकर बातचीत की।
माता सीता ही सबसे पहले लंका विमान से पहुंची थी
अशोक कैंथ ने बताया कि श्रीलंका में आज भी वहां बौद्घ धर्म को मानने वाले बहुसंखयक होने के बावजूद माता सीता को बड़े ही आदर से लोग नाम लेते हैं। यही नहीं श्रीलंका के लोगों के साथ साथ वहां की सरकारे भी मानती है कि माता सीता ही वह शखस थी जो सबसे पहले विमान(पुष्पक) से भारत से श्रीलंका पहुंची थी जिसका पायलट महाराज रावण थे। यही कारण है कि आज भी श्रीलंका के सबसे पहले एयरलाइंस का नाम सीता एयरलाईन्स के नाम से ही जाना जाता है।





Friday, 28 November 2014

sanskar----

दुनिया की पहली तस्वीर के बारे में जबरदस्त जानकारी :
1. फोटोग्राफी के इतिहास में यह पहला फोटो है, जिसमें इंसान ने इंसान को दिखाया है।
2. यह पेरिस की सड़क का फोटो है, जिसे 1838 में फ्रांसीसी आर्टिस्ट एवं फोटोग्राफर लुईस देगुरे ने क्लिक किया था।
3. फोटो को एक्सपोजर में सात मिनट लगे थे।
4. काफी दूर से लिए गए इस फोटो में उन्होंने 'सुनसान' सड़क पर जूता पॉलिश करवाते व्यक्ति को दिखाया है।
5. देगुरे ने बताया था कि वहां घोड़ागाड़ी और पैदल चलने वाले कई लोग थे। उनकी गति ज्यादा होने के कारण फोटो में कोई दिखाई नहीं दिया। देगुरे का कैमरा पॉलिश कराने वाले की ओर था।
6. फोटो की ज्यादा डिटेलिंग में शू पॉलिश करने वाले के पास एक घोड़ागाड़ी दिख रही है, जिसमें दो महिलाएं हैं। इसके अलावा इमारत की दूसरी मंजिल की खिड़की में बच्चा दिखाई दे रहा है।
7. यह उस फोटो के करीब है, जिसे इतिहास का पहला फोटो (1826-27) माना जाता है। उसे जोसेफ नाइसफोर ने खींचा था। वे देगुरे के सहयोगियों में से एक थे।

अदरक में स्वस्थ रखने की जबरदस्त शक्ति



 अदरक कई सारे गुणों की खान है और इसे विभिन्न तरीकों से उपयोग में लाया जा सकता है
 परेशानी नई हो या बहुत पुरानी- इसके गुण   स्वस्थ रखने का काम बखूबी निभाते हैं। अदरक का ज्यूस इसे इस्तेमाल करने का सबसे अच्छा तरीका समझा जाता है।

1. अदरक के ज्यूस में सूजन को कम करने की शक्ति अत्यधिक मात्रा में होती है और यह उन लोगों के लिए वरदान की तरह है, जो जोड़ों के दर्द और सूजन से परेशान हैं। एक अध्ययन के मुताबिक जो लोग अदरक के ज्यूस का उपयोग नियमित तौर पर करते हैं उन्हें जोड़ों में सूजन और दर्द पैदा करने वाली बीमारियां परेशान नहीं करतीं।  अदरक के ज्यूस में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में ताजे रक्त के प्रवाह को बढ़ाते हैं, क्योंकि इनमें खून को साफ करने का खास गुण होता है।
2. अदरक में कैंसर जैसी भयानक बीमारी से शरीर को बचाए रखने का गुण होता है। यह कैंसर पैदा करने वाले सेल्स को खत्म करता है। एक शोध के हिसाब से अदरक स्तन कैंसर पैदा करने वाले सेल को बढ़ने से रोकता है।
3. अदरक में खून को पतला करने का नायाब गुण होता है और इसी वजह से यह ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी में तुरंत लाभ के लिए जाना जाता है।
4. सभी प्रकार के दर्द से राहत देने की इसकी क्षमता इसे बहुत ही खास बनाती है। चाहे आपके दांत में दर्द हो या सिर में- अदरक का ज्यूस बहुत असरकारक है। शोधों के हिसाब से यह माइग्रेन से बचने में भी आपकी भरपूर मदद करता है।
5.   अदरक का ज्यूस  पेट में पड़े हुए खाने को निकास द्वार की तरफ धकेलता है। अदरक का यह चमत्कारी गुण  न केवल पाचन और गैस बल्कि सभी तरह के पेट दर्द से भी निजात दिलाता है।
6. अदरक के ज्यूस में गठिया रोग को भी ठीक करने की क्षमता होती है। इसके सूजन को खत्म करने वाले गुण गठिया और थायराईड से ग्रस्त मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद हैं।
7. अदरक के ज्यूस के नियमित इस्तेमाल से कोलेस्ट्रॉल को हमेशा कम बनाए रख सकते हैं। यह रक्त के थक्कों को जमने नहीं देता और खून के प्रवाह को बढ़ाता है और इस प्रकार हृदयाघात की आशंका से  बचाए रखता है।
8. अदरक को सर्दी से बचाने में सबसे अधिक कारगर माना जाता है। यह सर्दी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म करने के साथ-साथ सर्दी फिर से  परेशान न कर पाए, यह भी पक्का करती है।
9. घने और चमकदार बाल चाहते हैं तो अदरक ज्यूस का नियमित उपयोग यह इच्छा पूरी कर सकता है। इसे  पी भी सकते हैं और सीधे सिर की त्वचा पर भी लगा सकते हैं। यह ध्यान रखना है कि आप शुद्ध ज्यूस सिर पर लगाएं जिसमें पानी की मात्रा बिलकुल न हो या न के बराबर हो। यह न केवल  बाल स्वस्थ बना देगा बल्कि यह  रूसी से भी छुटकारा दिला देगा।
10.  त्वचा से जुड़ी हुई समस्या है तो आप अदरक के ज्यूस को नियमित तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दीजिए। अदरक के ज्यूस से मुहांसों से हमेशा के लिए निजात पा सकते हैं।
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पथरी (किडनी / गल ब्लैडर) का आयुर्वेदिक उपचार :-
एक पौधा होता है जिसे हिंदी मे पत्थरचट्टा, पाषाणभेद, पणफुट्टी, भष्मपथरी कहते है, फोटो देखे निचे ... इसका वैज्ञानिक नाम है "bryophyllum pinnatum" !
सेवन की विधि : दो पत्ते तोड़े, उसको अच्छी तरह पानी से धोने के बाद सुबह सुबह खाली पेट चबा कर खाले, हलके गरम पानी के साथ !
एक हफ्ते के अन्दर पथरी विघटित हो कर शरीर से निकल जाएगी
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Thursday, 27 November 2014

पिछले लगभग चार वर्ष से भारत के कम से कम पाँच गाँव ऐसे हैं, जहाँ की पूरी आबादी सिर्फ संस्कृत में बात करती है, मजे की बात ये है कि इस दौरान ना तो मुरली मनोहर जोशी HRD मंत्री थे और ना ही प्रगतिशीलों(?) के "भौंकात्मक निशाने" पर रहीSmriti Zubin Irani. जी हाँ, चौंकिए मत!!! हमारे मध्यप्रदेश के तीन गाँव (झिरी, मोहद, बघुवार) तथा कर्नाटक के दो गाँव मुत्तूर और होसहल्ली) भारत के ऐसे अनूठे गाँव हैं जहाँ "सभी जातियों के लोग" आपस में संस्कृत में बातचीत करते हैं...

वामपंथियों, सेकुलरों एवं प्रगतिशीलों के लिए इससे भी ज्यादा दुःख की खबर ये है, कि संस्कृत में बातचीत करने के बावजूद इन गाँवों में अभी तक, कोई व्यक्ति बेरोजगारी या भूख से नहीं मरा. दिन भर संस्कृत में बातचीत करने के बावजूद न तो किसी को हैजा हुआ और ना ही विज्ञान की पढ़ाई में कोई बाधा उत्पन्न हुई... क्योंकि बाहरी व्यक्ति से वे लोग हिन्दी या कन्नड़ में बात कर लेते हैं और विज्ञान की पढ़ाई अंग्रेजी में कर लेते हैं...

चूँकि "प्रगतिशीलता" का अर्थ हिन्दू संस्कृति, संस्कृत, वंदेमातरम, सरस्वती पूजा, सूर्य नमस्कार आदि का विरोध करना तथा "किस ऑफ लव" का समर्थन करना होता है... इसलिए मैं कोशिश करता हूँ कि ऐसे बदबूदार दिमागों से दूर ही रहा जाए... हो सकता है कल वे मेरे हाथ से भोजन करने की आदत को भी दकियानूसी बता दें...  
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी के हाल ही में आरटीआई दाखिल करने के बाद सियासत में तमाम तरह की बयानबाजी हो रही है लेकिन जसोदाबेन ने इसका जो कारण बताया है वह बेहद चौंकाने वाला है। जसोदाबेन ने बताया कि वह सुरक्षाकर्मियों के खाने और चाय आदि का खर्च वहन नहीं कर पा रही हैं। सुरक्षाकर्मी हर जगह उनके साथ जाते हैं लेकिन उन्हें इसके लिए बेहद कम भत्ता मिलता है। भत्ता कम मिलने के कारण सुरक्षा में तैनात गार्ड्स उनसे ही चाय-नाश्ते की मांग करते हैं। जसोदाबेन का कहना है कि इससे ही परेशान होकर उन्हें आरटीआई डालनी पड़ी ताकि वह प्रोटोकॉल की जानकारी ले सकें।
सूत्रों का कहना है कि यह पूरा मामला एक हफ्ते पहले तब ज्यादा बढ़ गया जब जसोदाबेन 13 दिनों के लिए मुंबई गईं। जसोदाबेन मुंबई के मीरा रोड अपार्टमेंट में ऊपरी मंजिल पर ठहरीं। जसोदाबेन के भाई अशोक मोदी ने सुरक्षाकर्मियों को अपना रहने-खाने का इंतजाम खुद करने के लिए कहा। ड्यूटी के मुताबिक सुरक्षाकर्मी जसोदाबेन को अकेला छोड़कर नहीं जा सकते थे, लिहाजा उन्होंने अपार्टमेंट के बेसमेंट में ही अपने रहने का इंतजाम किया। लेकिन उन्होंने मेजबान से ही चाय और खाने की मांग की। जसोदाबेन का कहना है कि वह इस स्थिति में नहीं है कि 9 सुरक्षाकर्मियों को खाना और चाय दे सके। आरटीआई डालने के पीछे एक कारण यह भी था कि सुरक्षाकर्मियों को कम भत्ता मिलने के मामले को प्रमुखता से उठाया जा सके। सूत्रों का कहना है कि सुरक्षाकर्मियों को इस तरह के मामले में खासी दिक्कतों को सामना करना पड़ता है।
जसोदाबेन के घर ऊंझा में 12 घंटे ड्यूटी करने वाले सुरक्षाकर्मियों के पास बैठने या आराम करने की भी जगह नहीं है। उन्हें जसोदाबेन के घर के आंगन के बाहर ही थोड़ी सी जगह किराए पर लेनी पड़ी। इसके लिए सुरक्षाकर्मियों को केवल 400 रुपए मिलते हैं। इसके अलावा जब वह ड्यूटी के दौरान ट्रैवल करते हैं तो उन्हें बाहर खाने-पीने के लिए 30 से 100 रुपए के बीच ही भत्ता मिलता है जोकि नाकाफी है।
भतीजे ने तैयार किया आरटीआई आवेदन
जब जसोदाबेन मुंबई से अहमदाबाद लौंटीं तो उन्होंने अपने भतीजे संदीप मोदी से संपर्क किया। पेशे से वकील संदीप की मदद से ही जसोदाबेन ने आरटीआई आवेदन तैयार किया। संदीप का कहना है, 'जसोदाबेन डरी हुई थीं क्योंकि सुरक्षाकर्मियों के पास ड्यूटी ऑर्डर के पेपर भी नहीं थे। सुरक्षाकर्मी शिफ्ट में काम करते हैं, इससे जसोदाबेन को अपनी सुरक्षा की भी चिंता हो रही थी। इसलिए आरटीआई में उन सभी सवालों को शामिल किया गया। इस काम में मैंने उनकी मदद की।'

पिछले हज़ार साल का इतिहास के कुछ तथ्य....

 भारत के इतिहास/ अतीत पर दुनिया भर के 200 से ज्यादा विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत शोध किया है। इनमें से कुछ विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूँगा। ये सारे विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञ भारत से बाहर के हैं, कुछ अंग्रेज़ हैं, कुछ स्कॉटिश हैं, कुछ अमेरिकन हैं, कुछ फ्रेंच हैं, कुछ जर्मन हैं। ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ कहा और लिखा है उसकी जानकारी मुझे देनी है।आज आप भारत के विषय में कुछ ऐसी जानकारी पड़ेंगे जो न तो पहले आपने पढ़ी होगी और न ही सुनी होगी | ये बहुत ही आश्चर्य और दुःख की बात यह है कि हमारी सरकार इस प्रकार की जानकारी को छुपाती है, इसको आज की शिक्षा-प्रणाली में शामिल नहीं करती |
 क्यों नहीं बताया जाता है हमको हमारे भारत के विषय में !!
 क्यों स्कूल की किताबो में बस वही सब मिलता है जिससे हम अपने अतीत पर गर्व नहीं, शर्म कर सके !! और दुःख इस बात का भी है कि आधुनिक सरकारी-शिक्षा ने हमें ऐसा बना दिया है कि हमारे लिए भारत के वास्तविक अतीत पर विश्वास करना सहज नहीं है, लेकिन स्कूल में पढ़े आधे-अधूरे सत्य पर हमें विश्वास हो जाता है | 
चलिए आज आपका एक छोटा सा परिचय करता है .. भारत के स्वर्णिम अतीत है !!!1. सबसे पहले एक अंग्रेज़ जिसका नाम है ‘थॉमस बैबिंगटन मैकाले’, ये भारत में आया और करीब 17 साल रहा। इन 17 वर्षों में उसने भारत का काफी प्रवास किया, पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत में गया। अपने 17 साल के प्रवास के बाद वो इंग्लैंड गया और इंग्लैंड की पार्लियामेंट ‘हाउस ऑफ कोमेन्स’ में उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद एक लंबा भाषण दिया।उसका अंश पुन: प्रस्तुत करूँगा उसने कहा था :: “ I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation. ”इसी भाषण के अंत में वो एक वाक्य और कहता है : वो कहता है ”भारत में जिस व्यक्ति के घर में भी मैं कभी गया, तो मैंने देखा की वहाँ सोने के सिक्कों का ढेर ऐसे लगा रहता हैं, जैसे की चने का या गेहूं का ढेर किसानों के घरों में रखा जाता है और वो कहता है की भारतवासी इन सिक्को को कभी गिन नहीं पाते क्योंकि गिनने की फुर्सत नही होती है इसलिए वो तराजू में तौलकर रखते हैं। किसी के घर में 100 किलो, इसी के यहा 200 किलो और किसी के यहाँ 500 किलो सोना है, इस तरह भारत के घरों में सोने का भंडार भरा हुआ है।”
इससे भी बड़ा एक दूसरा प्रमाण मैं आपको देता हूँ एक अंग्रेज़ इतिहासकर हुआ उसका नाम है “विलियम डिगबी”। ये बहुत बड़ा इतिहासकर था, सभी यूरोपीय देशों में इसको काफी इज्ज़त और सम्मान दिया जाता है। अमेरिका में भी इसको बहुत सम्मान दिया जाता है, कारण ये है की इसके बारे में कहा जाता है की ये बिना के प्रमाण कोई बात नही कहता और बिना दस्तावेज़/ सबूत के वो कुछ लिखता नहीं है। इस डिगबी ने भारत के बारे में एक पुस्तक में लिखा है जिसका कुछ अंश मैं आपको बताता हूँ। ये बात वो 18वीं शताब्दी में कहता है: ” विलियम डिगबी कहता है की अंग्रेजों के पहले का भारत विश्व का सर्वसंपन्न कृषि प्रधान देश ही नहीं बल्कि एक ‘सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक और व्यापारिक देश’ भी था। इसके आगे वो लिखता है की भारत की भूमि इतनी उपजाऊ है जितनी दुनिया के किसी देश में नहीं। फिर आगे लिखता है की भारत के व्यापारी इतने होशियार हैं जो दुनिया के किसी देश में नहीं। उसके आगे वो लिखता है की भारत के कारीगर जो हाथ से कपड़ा बनाते हैं उनका बनाया हुआ कपड़ा रेशम का तथा अन्य कई वस्तुएं पूरे विश्व के बाज़ार में बिक रही हैं और इन वस्तुओं को भारत के व्यापारी जब बेचते हैं तो बदले में वो सोना और चाँदी की मांग करते हैं, जो सारी दुनिया के दूसरे व्यापारी आसानी के साथ भारतवासियों को दे देते हैं। इसके बाद वो लिखता है की भारत देश में इन वस्तुओं के उत्पादन के बाद की बिक्री की प्रक्रिया है वो दुनिया के दूसरे बाज़ारों पर निर्भर है और ये वस्तुएं जब दूसरे देशों के बाज़ारों में बिकती हैं तो भारत में सोना और चाँदी ऐसे प्रवाहित होता है जैसे नदियों में पानी प्रवाहित होता है और भारत की नदियों में पानी प्रवाहित होकर जैसे महासागर में गिर जाता है वैसे ही दुनिया की तमाम नदियों का सोना चाँदी भारत में प्रवाहित होकर भारत के महासागर में आकार गिर जाता है। अपनी पुस्तक में वो लिखता है की दुनिया के देशों का सोना चाँदी भारत में आता तो है लेकिन भारत के बाहर 1 ग्राम सोना और चाँदी कभी जाता नहीं है। इसका कारण वो बताता है की भारतवासी दुनिया में सारी वस्तुओं उत्पादन करते हैं लेकिन वो कभी किसी से खरीदते कुछ नहीं हैं।” इसका मतलब हुआ की आज से 300 साल पहले का भारत निर्यात प्रधान देश था। एक भी वस्तु हम विदेशों से नहीं खरीदते थे।3. एक और बड़ा इतिहासकार हुआ वो फ़्रांस का था, उसका नाम है “फ़्रांसवा पिराड”। इसने 1711 में भारत के बारे में एक बहुत बड़ा ग्रंथ लिखा है और उसमे उसने सैकड़ों प्रमाण दिये हैं। वो अपनी पुस्तक में लिखता है की “भारत देश में मेरी जानकारी में 36 तरह के ऐसे उद्योग चलते हैं जिनमें उत्पादित होने वाली हर वस्तु विदेशों में निर्यात होती है। फिर वो आगे लिखता है की भारत के सभी शिल्प और उद्योग उत्पादन में सबसे उत्कृष्ट, कला पूर्ण और कीमत में सबसे सस्ते हैं। सोना, चाँदी, लोहा, इस्पात, तांबा, अन्य धातुएं, जवाहरात, लकड़ी के सामान, मूल्यवान, दुर्लभ पदार्थ इतनी ज्यादा विविधता के साथ भारत में बनती हैं जिनके वर्णन का कोई अंत नहीं हो सकता। वो अपनी पुस्तक में लिख रहा है की मुझे जो प्रमाण मिलें हैं उनसे ये पता चलता है की भारत का निर्यात दुनिया के बाज़ारों में पिछले ‘3 हज़ार वर्षों’ से आबादीत रूप से बिना रुके हुए लगातार चल रहा है।”4. इसके बात एक स्कॉटिश है जिसका नाम है ‘मार्टिन’ वो इतिहास की पुस्तक में भारत के बारे में कहता है: “ब्रिटेन के निवासी जब बार्बर और जंगली जानवरों की तरह से जीवन बिताते रहे तब भारत में दुनिया का सबसे बेहतरीन कपड़ा बनता था और सारी दुनिया के देशों में बिकता था। वो कहता है की मुझे ये स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है की “भारतवासियों ने सारी दुनिया को कपड़ा बनाना और कपड़ा पहनना सिखाया है” और वो कहता है की हम अंग्रेजों ने और अंग्रेजों की सहयोगी जातियों के लोगों ने भारत से ही कपड़ा बनाना सीखा है और पहनना भी सीखा है। फिर वो कहता है की रोमन साम्राज्य में जीतने भी राजा और रानी हुए हैं वो सभी भारत के कपड़े मांगते रहे हैं, पहनते रहे हैं और उन्हीं से उनका जीवन चलता रहा है।”
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यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं, लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं। बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह है। “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) ऐसी ही एक जगह है। इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं। इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं।

इतिहास कुछ इस प्रकार है कि एक तरफ़ औरंगज़ेब और दूसरी तरफ़ से शिवाजी द्वारा लगातार जारी हमलों से परेशान होकर आदिलशाही द्वितीय (जिसने बीजापुर पर कई वर्षों तक शासन किया) ने सेनापति अफ़ज़ल खान को आदेश दिया कि इनसे निपटा जाये और राज्य को बचाने के लिये पहले शिवाजी पर चढ़ाई की जाये। हालांकि अफ़ज़ल खान के पास एक बड़ी सेना थी, लेकिन फ़िर भी वह ज्योतिष और भविष्यवक्ताओं पर काफ़ी भरोसा करता था। शिवाजी से युद्ध पर जाने के पहले उसके ज्योतिषियों ने उसके जीवित वापस न लौटने की भविष्यवाणी की। उसी समय उसने तय कर लिया कि कहीं उसकी मौत के बाद उसकी पत्नियाँ दूसरी शादी न कर लें, इसलिये सभी 63 पत्नियों को मार डालने की योजना बनाई।
अफ़ज़ल खान अपनी सभी पत्नियों को एक साथ बीजापुर के बाहर एक सुनसान स्थल पर लेकर गया। जहाँ एक बड़ी बावड़ी स्थित थी, उसने एक-एक करके अपनी पत्नियों को उसमें धकेलना शुरु किया, इस भीषण दुष्कृत्य को देखकर उसकी दो पत्नियों ने भागने की कोशिश की लेकिन उसने सैनिकों को उन्हें मार गिराने का हुक्म दिया। सभी 63 पत्नियों की हत्या के बाद उसने वहीं पास में सबकी कब्र एक साथ बनवाई।
आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं। यहाँ पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं और वहीं एक बड़ी “आर्च” (मेहराब) भी बनाई गई है, ऐसा क्यों और किस गणित के आधार पर किया गया, ये तो अफ़ज़ल खान ही बता सकता है। वह बावड़ी भी इस कब्रगाह से कुछ दूर पर ही स्थित है। अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी। हालांकि उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफ़नाया गया था, लेकिन इससे यह भी साबित होता है कि वह अपनी मौत को लेकर बेहद आश्वस्त था, भला ऐसी मानसिकता में वह शिवाजी से युद्ध कैसे लड़ता? मराठा योद्धा शिवाजी के हाथों अफ़ज़ल खान का वध प्रतापगढ़ के किले में 1659 में हुआ।
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चर्चित न्यायालय की फजीहत के बारे में पढ़िए.
शाहबानो प्रकरण -
धर्मनिरपेक्षता / साम्प्रदायिकता ?----------------
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आज कल हर कोई साम्प्रदायिकता की बात करता है और
धर्मनिरपेक्षता की बात करता है, पर आज शायद बहुत कम ही युवाओ
को शाहबानो केस के बारे में मालूम होगा।शाहबानो एक 62 वर्षीय
मुसलमान महिला और पाँच बच्चों की माँ थींजिन्हें 1978 में उनके पति ने
तालाक दे दिया था। मुस्लिम पारिवारिक कानून के अनुसार
पति पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ़ ऐसा कर सकता है। अपनी और अपने
बच्चोंकी जीविका का कोई साधन न होने के कारण शाहबानो पति से
गुज़ारा लेने के लिये अदालत पहुचीं। न्यायालय ने अपराध दंड
संहिता की धारा 125 के अंतर्गत निर्णय लिया जो हर किसी पर लागू
होता है चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो। न्यायालय ने
निर्देश दिया कि शाहबानो को निर्वाह-व्यय के समान जीविका दी जाय।
अदालत ने गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया पर भारत के
रूढ़िवादी मुसलमानों के अनुसार यह निर्णय उनकी संस्कृति और
विधानों पर अनाधिकार हस्तक्षेप था। एक बुढ़िया को गुजारा भत्ता देने से
पूरा इस्लाम असुरक्षित हो गया और पूरे भारत मैं इसके खिलाफ मोर्चे
खुल गए और उस असली धर्म सापेक्ष जज के पुतले जलाये गए और
# राजीव गाँधी ने उसी वक़्त सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त करके इस
पर रोक लगा कर तुरंत एक नया कानून बना दिया जिसमें कोई मुस्लिम
महिला तलाक के बाद भत्ते की मांग नहीं कर सकती।
इस नए कानून के अनुसार :"हर वह आवेदन
जो किसी तालाकशुदा महिला के द्वारा अपराध दंड संहिता 1973
की धारा 125 के अंतर्गत किसी न्यायालय में इस कानून के लागू होते
समय विचाराधीन है, अब इस कानून के अंतर्गत निपटाया जायेगा चाहे
उपर्युक्त कानून में जो भी लिखा हो"।
कांग्रेस सरकार ने इसे"धर्मनिरपेक्षता" के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत
किया।
अब आप ही बताइये कि शाहबानो पर कांग्रेस सरकार का निर्णय
धर्मनिरपेक्ष था या साम्प्रदायिक?"
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हाल ही में एक पत्रकार संजीव नैयर ने सन् 2006-07 से अब तक भारत में आये हुए कुल आधिकारिक विदेशी धन, उसके स्रोत, धन पाने वाली संस्थाओं और क्षेत्रों का अध्ययन किया और उसके नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे। उन्होंने भारत सरकार की विदेशी मदद और चन्दे सम्बन्धी आधिकारिक वेबसाईट (यहाँ देखें) से आँकड़े लिये और उनका विश्लेषण किया। भारत में आये हुए विदेशी चन्दे में सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और स्पेन से आता है। आईये संक्षेप में देखें इस विदेशी मदद का गोरखधंधा, शायद आपकी आँखें भी फ़टी की फ़टी रह जायें –
1) 1993-94 से 2006-07 के बीच भारत में कुल 64,670 करोड़ रुपये का विदेशी चन्दा आया (यह आँकड़ा रजिस्टर्ड संस्थाओं द्वारा आधिकारिक रूप से प्राप्त चन्दे का है)।
2) 1993 में विदेशी चन्दा आया था 1865 करोड़ रुपये जबकि 2007 में आया 12990 करोड़ रुपये, यानी कि 650% की बढ़ोतरी… (क्या इसका अर्थ ये लगाया जाये कि 1993 के बाद भारत में गरीबों की संख्या में भारी बढ़त हुई है?)
3) जितनी संस्थायें 1997 में विदेशी चन्दे का हिसाब देती थीं और जितनी संस्थाएं 2006 में हिसाब देती हैं उनका प्रतिशत 66% से घटकर 56% हो गया है। इसका साफ़ मतलब यह है कि 12990 करोड़ का जो आँकड़ा है वह वास्तविकता से बहुत कम है और कई संस्थाएं झूठ बोल रही हैं।
4) गत पाँच वर्ष से जब से माइनो आंटी सत्ता में आई हैं, विदेशी मदद का प्रतिशत 100% से भी अधिक बढ़ा है।
5) सर्वाधिक चन्दा लेने वाली संस्थायें “संयोग से” (???) ईसाई मिशनरी हैं, जिन्हें अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन से 2002-2006 के दौरान क्रमशः 10,589 करोड़, 5233 करोड़ और 4612 करोड़ रुपये मिले हैं। पश्चिमी देशों से अधिक चन्दा प्राप्त करने में अपवाद है दलाई लामा का धर्मशाला स्थित दफ़्तर।
6) विदेशी चन्दा प्राप्त करने में अव्वल नम्बर हैं तमिलनाडु, दिल्ली, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र… (यानी कि “एक और संयोग” कि यहाँ भी 4-5 साल से UPA सत्ता में है)।
7) तमिलनाडु को सन् 2002 में 775 करोड़ का विदेशी चन्दा मिला था जबकि 2006 में 2244 करोड़ रुपये, “संयोग” से 200% की भारी-भरकम बढ़ोतरी।
8) विदेशी मददगारों(?) की लिस्ट में मुस्लिम देशों से कोई भी उल्लेखनीय नाम नहीं मिलता अर्थात या तो वे बेहद ईमानदार हैं या फ़िर “हवाला रूट” का उपयोग करते हैं।
2006-07 के टॉप 6 दानदाता संस्थायें और देश –
1) Misereor Postfach, Germany – 1244 करोड़ रुपये
2) World Vision (Gospel for Asia), USA – 469 करोड़ रुपये
3) Fundacion Vincente Ferrer, Spain – 399 करोड़ रुपये
4) ASA Switzerland – 302 करोड़ रुपये
5) Gospel For Asia – 227 करोड़ रुपये…
6) M/s Om Foundation, USA - 227 करोड़ रुपये
इनमें से सिर्फ़ ओम फ़ाउंडेशन यूएस, का नाम हिन्दू संगठन जैसा लगता है जिन्होंने दलाई लामा को चन्दा दिया है, बाकी सारी संस्थायें ईसाई मिशनरी हैं। ये तो हुई टॉप 6 दानदाताओं की आधिकारिक सूची, अब देखते हैं टॉप 6 विदेशी मदद(?) पाने वाली संस्थाओं की सूची –
2003-2006 के दौरान कुल विदेशी चन्दा लेने वाली टॉप 6 संस्थाओं की सूची –
1) Ranchi Jesuits, Jharkhand – 622 करोड़
2) Santhome Trust of Kalyan, Maharashtra – 333 करोड़
3) Sovereign Order of Malta, Delhi – 301 करोड़ रुपये
4) World Vision of India, Tamil Nadu – 256 करोड़ रुपये (इस संस्था पर “सुनामी” विपदा के दौरान भी गरीबों और बेघरों को पैसा देकर धर्मान्तरण के आरोप लग चुके हैं)
5) North Karnataka Jesuit Charitable Society – 230 करोड़ रुपये (अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक विवादास्पद पुस्तक छापने पर चर्च-विहिप विवाद, में शामिल ईसाई संस्था इसकी Subsiadiary संस्था है)
6) Believers Church India, Kerala – 149 करोड़ रुपये।
यह तमाम डाटा भारत सरकार के FCRA रिपोर्ट पर आधारित है, हो सकता है कि इसमें कुछ मामूली गलतियाँ भी हों…। भारत में गत कुछ वर्षों से असली-नकली NGO की बाढ़ सी आई हुई है, इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि NGO का “मुखौटा” लगाये हुए ये संस्थायें किसी “गुप्त खतरनाक खेल” में लिप्त हों। जब सूचना का अधिकार लागू किया गया था उसी समय यह माँग उठी थी कि इस कानून के दायरे में सभी प्रकार के NGO को भी लाया जाये, ताकि सरकार की नज़र से बचकर जो भी “काले-सफ़ेद काम” NGO द्वारा किये जा रहे हैं उन्हें समाजसेवियों द्वारा उजागर किया जा सके, हालांकि हाल ही में सुनने में आया है कि सूचना अधिकार का यह कानून NGO पर भी लागू है, लेकिन अभी इस सम्बन्ध में कई बातों पर स्थिति अस्पष्ट है।
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गाँधी का समर्थन पाकर मुस्लिम उत्साहित तो थे ही,उन्होंने जिस प्रकार मालाबार में हिन्दुओं का बर्बरता से कत्लेआम किया,और जबरन धर्म परिवर्तन करवाया..
इससे दुःखी होकर स्वामी श्रद्धानन्द जी,लाला जी व स्वामी हंसराज जी ने शुद्धिकरण का कार्य प्रारम्भ कर दिया..
पर गाँधी को ये पसन्द नहीँ आया और उसने श्रद्धानन्द जी को इसमें भाग ना लेने को कहाँ गया,पर स्वामी जी कांग्रेस को छोड़कर पुर्ण रूप से शुद्धिकरण कार्य में लग गए ॥
मुसलमान इसे सहन नहीँ कर पाए और अब्दुल रशिद नामक मुस्लिम ने स्वामी जी की गोली मारकर हत्या कर दी ॥
अब यहाँ भी गाँधी ने तुष्टीकरण की हद पार कर दी उन्होंने यंग इंडिया में लिखा की "भाई अब्दुल रशीद नामक मुसलमान,जिसने स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या की है,का पक्ष लेते हुए कहता हुँ की सारा दोष हमारा है,द्वेषाग्नि भड़काने के लिए हिंदु भी जिम्मेदार है"
अरून शुक्ला,

यही खासियत है वामपंथी और सेकुलर लेखकों और इतिहासकारों की।

1980 में मलप्पुरम में कई सिनेमाघरों में बम विस्फ़ोट हुए, पुलिस ने कुछ नहीं किया, केरल के उत्तरी इलाकों में गत एक दशक में कई विस्फ़ोट हो चुके हैं लेकिन पुलिस कहीं भी हाथ नहीं डाल पा रही। बेपूर बन्दरगाह पर हुए विस्फ़ोट में भी आज तक एक भी आरोपी नहीं पकड़ाया है, ज़ाहिर है कि सत्ताधारी पार्टी ही जब समर्थन में हो तो पुलिस की क्या हिम्मत। लेकिन मलप्पुरम जिले का तालिबानीकरण अब बेहद खतरनाक स्थिति में पहुँच चुका है, हाल ही में 25 जुलाई 2008 के बंगलोर बम विस्फ़ोटों के सिलसिले में कर्नाटक पुलिस ने नौ आरोपियों के खिलाफ़ केस दायर किया है और सभी आरोपी मलप्पुरम जिले के हैं, क्या इसे सिर्फ़ एक संयोग माना जा सकता है? 6 दिसम्बर 1997 को त्रिचूर रेल धमाके हों या 14 फ़रवरी 1998 के कोयम्बटूर धमाके हों, पुलिस के हाथ हमेशा बँधे हुए ही पाये गये हैं।
पाठकों ने गुजरात, अहमदाबाद, कालूपुर-दरियापुर-नरोडा पाटिया, ग्राहम स्टेंस, कंधमाल आदि के नाम सतत सुने होंगे, लेकिन मराड, मलप्पुरम या मोपला का नाम नहीं सुना होगा… यही खासियत है वामपंथी और सेकुलर लेखकों और इतिहासकारों की। मीडिया पर जैसा इनका कब्जा रहा है और अभी भी है, उसमें आप प्रफ़ुल्ल बिडवई, कुलदीप नैयर, अरुंधती रॉय, महेश भट्ट जैसों से कभी भी “जेहाद” के विरोध में कोई लेख नहीं पायेंगे, कभी भी इन जैसे लोगों को कश्मीर के पंडितों के पक्ष में बोलते नहीं सुनेंगे, कभी भी सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ाने वाली बातें ये लोग नहीं करेंगे, क्योंकि ये “सेकुलर” हैं… इन जैसे लोग “अंसल प्लाज़ा” की घटना के बारे में बोलेंगे, ये लोग नरोडा पाटिया के बारे में हल्ला मचायेंगे, ये लोग आपको एक खूंखार अपराधी के मानवाधिकार गिनाते रहेंगे, अफ़ज़ल गुरु की फ़ाँसी रुकवाने का माहौल बनाने के लिये विदेशों के पाँच सितारा दौरे तक कर डालेंगे…। यदि इंटरनेट और ब्लॉग ना होता तो अखबारों और मीडिया में एक छोटी सी खबर ही प्रकाशित हो पाती कि “केरल के मराड में एक हिंसा की घटना में नौ लोगों की मृत्यु हो गई…” बस!!!
अब केरल में क्या हो रहा है… घबराये और डरे हुए हिन्दू लोग मुस्लिम बहुल इलाकों से पलायन कर रहे हैं, मलप्पुरम और मलाबार से कई परिवार सुरक्षित(?) ठिकानों को निकल गये हैं और “दारुल-इस्लाम” बनाने के लिये जगह खाली होती जा रही है। 580 किमी लम्बी समुद्री सीमा के किनारे बसे गाँवों में हिन्दुओं के “जातीय सफ़ाये” की बाकायदा शुरुआत की जा चुकी है। पोन्नानी से बेपूर तक के 65 किमी इलाके में एक भी हिन्दू मछुआरा नहीं मिलता, सब के सब या तो धर्म परिवर्तित कर चुके हैं या इलाका छोड़कर भाग चुके हैं। बहुचर्चित मराड हत्याकाण्ड भी इसी जातीय सफ़ाये का हिस्सा था, जिसमें भीड़ ने आठ मछुआरों को सरेआम मारकर मस्जिद में शरण ले ली थी (देखें)। 10 मार्च 2005 को संघ के कार्यकर्ता अश्विनी की भी दिनदहाड़े हत्या हुई, राजनैतिक दबाव के चलते आज तक पुलिस कोई सुराग नहीं ढूँढ पाई। मलप्पुरम सहित उत्तर केरल के कई इलाकों में दुकानें और व्यावसायिक संस्थान शुक्रवार को बन्द रखे जाते हैं और रमज़ान के महीने में दिन में होटल खोलना मना है। त्रिसूर के माथिलकोम इलाके के संतोष ने इस फ़रमान को नहीं माना और शुक्रवार को दुकान खोली तथा 9 अगस्त 1996 को कट्टरवादियों के हाथों मारा गया, जैसा कि होता आया है इस केस में भी कोई प्रगति नहीं हुई (दीपक धर्मादम, केरलम फ़ीकरारूड स्वान्थमनाडु, pp 59,60)।
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जहाँ पूरा विश्व २६/११ के हमले पर पाकिस्तान पर ऊँगली उठा रहा था वही देश के दो मलेक्ष दिग्विजय और महेश भट्ट इसे #RSSकि साजिश बताने मे जुटे थे !!





बरगद का पेड़ है बहुत सारी बीमारियों की दवा, आजमाएं ये देहाती नुस्खे ---


बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। बरगद के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वंर माना जाता है।

बरगद के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।

बरगद की जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकता है। ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।

लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़न, बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफ़ेद होते हैं। प्रति दिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।

पेशाब में जलन होने पर बरगद की जड़ों (10 ग्राम) का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची (2-2ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो अति शीघ्र लाभ होता है। यही फार्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।

पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर बरगद का दूध लगाया जाए तो कुछ ही दिनों फटी एड़ियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं।

बरगद की ताजा कोमल पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर चूर्ण बनाया जाए। इस चूर्ण की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रति दिन एक बार शहद के साथ लेने से याददाश्त बेहतर होती है।

बरगद के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। कई इलाकों में आदिवासी ज्यादा गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोडा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देते हैं और सूती कपड़े से घाव पर पट्

Monday, 24 November 2014

आपका नेता कैसा हो? मैं कहना है...शाश्त्रीजी जैसा हो....
1. जब इंदिरा शाश्त्रीजी के घर (प्रधान मंत्री आवास ) पर पहुची तो कहा कि यह तो चपरासी का घर लग रहा है, इतनी सादगी थी हमारे शास्त्रीजी में...
2.जब 1965 मे पाकिस्तान से युद्ध हुआ था तो शासत्री जी ने भारतीय सेना का मनोबल इतना बड़ा दिया था की भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी थी और पाकिस्तान का बहुत बड़ा हिस्सा जीत लिय
ा था ।
3.जब भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा तो अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए कहाथा की भारत युद्ध खत्मकर दे नहीं तो अमेरिकाभारत को खाने के लिए गेहू देना बंद कर देगातो इसके जवाब मे शास्त्री जी ने कहाकीहम स्वाभिमान से भूखे रहना पसंद करेंगे किसी के सामने भीख मांगने की जगह । और शास्त्री जी देशवासियों से निवेदन किया की जब तक अनाज की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक सब लोग सोमवार का व्रत रखना चालू कर दे और खाना कम खाया करे ।
4.जब शास्त्री जी तस्केंत समझोते के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी के कहा की अब तो इस पुरानी फटी धोती कीजगह नई धोती खरीद लीजिये तो शास्त्री जी ने कहा इस देश मे अभी भी ऐसे बहुत से किसान है जो फटी हुई धोती पहनते है इसलिए मै अच्छे कपडे कैसे पहन सकता हु क्योकि मै उन गरीबो का ही नेता हूँ अमीरों का नहीं और फिरशास्त्री जी उनकी फटी पुरानी धोती को अपने हाथ से सिलकर तस्केंत समझोते के लिए गए ।
5. जब पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था तो शास्त्री जी ने देशवासियों से कहा की युद्ध मे बहुत रूपये खर्च हो सकते है इसलिएसभी लोग अपने फालतू केखर्च कम कर देऔर जितना हो सके सेना को धन राशि देकर सहयोगकरें । और खर्च कम करने वाली बात शास्त्री जी ने उनके खुद के दैनिक जीवन मे भी उतारी । उन्होने उनके घर के सारे काम करने वाले नौकरो को हटा दिया था और वो खुद ही उनके कपड़े धोते थे, और खुद ही उनके घर की साफ सफाई और झाड़ू पोंछा करते थे ।
6. शास्त्री जी दिखन?े मे जरूर छोटे थे पर वो सच मे बहुत बहादुर और स्वाभिमानी थे ।
7. जब शास्त्री जी की मृत्यु हुई तो कुछ नीचलोगों ने उन पर इल्ज़ाम लगाया की शास्त्री जी भ्रस्टाचारी थे पर जांच होने के बाद पता चला की शास्त्री जी केबैंक के खाते मे मात्र365/- रूपये थे । इससे पता चलता है की शास्त्री जी कितने ईमानदार थे ।
8. शास्त्री जी अभी तक के एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री रहे हैं जिनहोने देश के बजट मे से 25 प्रतिशत सेना के ऊपर खर्च करनेका फैसला लिया था । शास्त्री जी हमेशा कहते थे की देश का जवान और देश का किसान देश के सबसे महत्वपूर्ण इंसान हैं इसलिए इन्हे कोई भी तकलीफ नहीं होना चाहिए और फिर शास्त्री जी ने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया ।
9.जब शास्त्रीजि तस्केंत गए थे तो उन्हे जहर देकर मार दिया गया था और देश मे झूठी खबर फैला दी गयी थी की शास्त्री जी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई । और सरकार ने इस बात पर आज तक पर्दा डाल रखा है ।
10 शास्त्री जी जातिवाद के खिलाफ थे इसलिए उन्होने उनके नाम के आगे श्रीवास्तव लिखना बंद कर दिया था ।
हम धन्य हैं की हमारी भूमि पर ऐसे स्वाभिमानी और देश भक्त इंसान ने जन्म लिया । यह बहुत गौरव की बात है की हमे शास्त्री जी जैसे प्रधान मंत्री मिले ।
जय जवान जय किसान !

बच्चों को मार्शल आर्ट्स और AK47 चलाने की ट्रेनिंग दे रहा ISIS

बगदाद : इराक और सीरिया के कई हिस्सों पर कब्जा जमा चुके आतंकी संगठन आईएसआईएस ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें उसके आतंकी छोटे बच्चों को AK47 चलाने की ट्रेनिंग देते नजर आ रहे हैं। वीडियो में दावा किया गया है कि जिन बच्चों को मिलिट्री ट्रेनिंग दी जा रही है, वे कजाकिस्तान से हैं उन्हें शुरुआत से ही अरेबिक लिखने और पढ़ने की तालीम दी जा रही है।
वीडियो को संगठन के मीडिया शाखा अल हयात मीडिया सेंटर ने जारी किया है। वीडियो में कजाक और अरेबिक भाषा में बातचीत है। अंग्रेजी समेत तीन भाषाओं में सबटाइटिल का इस्तेमाल किया गया है। वीडियो में कहा गया है, ”कजाकिस्तान की जमीन से आए हमारे नए भाइयों से मिलिए। ये खुदको और अपने बच्चों को काफिरों से लड़ने के लिए तैयार कर रहे हैं।”  वीडियो में क्लासरूम की भी झलकियां हैं, जहां विभिन्न उम्र के लोगों को स्नाइपर राइफलों की रेंज के बारे में जानजारी दी जा रही है। वीडियो में कजाक बच्चों को कुरान पढ़ते दिखाया गया है। इसके बाद, बच्चों को मिलिट्री ट्रेनिंग लेते दिखाया गया है। बच्चे मशीनगन को खोलते और असेंबल करते दिख रहे हैं। इसके अलावा, वे जिम में कसरत करते और मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग लेते भी दिख रहे हैं।
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सिर्फ जल संरक्षण नहीं, जल संचय, प्रबंधन  और बचत भी आवश्यक...

- Suresh Chiplunkar, Ujjain 

आधुनिक युग में जैसा कि हम देख रहे हैं, प्रकृति हमारे साथ भयानक खेल कर रही है, क्योंकि मानव ने अपनी गलतियों से इस प्रकृति में इतनी विकृतियाँ उत्पन्न कर दी हैं, कि अब वह मनुष्य से बदला लेने पर उतारू हो गई है. केदारनाथ की भूस्खलन त्रासदी हो, या कश्मीर की भीषण बाढ़ हो, अधिकांशतः गलती सिर्फ और सिर्फ मनुष्य के लालच और कुप्रबंधन की रही है. 

बारिश के पानी को सही समय पर रोकना, उचित पद्धति से रोकना ताकि वह भूजल के रूप में अधिकाधिक समय तक सुरक्षित रह सके तथा छोटे-छोटे स्टॉप डैम, तालाब इत्यादि संरचनाओं के द्वारा ग्रामीण इलाकों में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की विभिन्न प्रक्रियाओं पर लगातार विचार किया जाता रहा है और आगे भी इस दिशा में कार्य किया ही जाता रहेगा, क्योंकि जल हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे जीवन, हमारे सामाजिक ताने-बाने, हमारी सांस्कृतिक गतिविधियों का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है. ज़ाहिर है कि समय-समय पर इस विषय को लेकर कई जल विशेषज्ञ, इंजीनियर एवं समाजशास्त्रियों द्वारा उल्लेखनीय कार्य किया गया है. परन्तु मेरा मानना है कि हमें जल संरक्षण के साथ-साथ जल बचत पर भी उतनी ही गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. चूँकि मैं मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले से हूँ, अतः इस सम्बन्ध में मैं आपके समक्ष इसी क्षेत्र को उदाहरण के रूप में पेश करता हूँ, ताकि इस उदाहरण को देश के अन्य जिलों की सभी जल संरचनाओं पर समान रूप से लागू किया जा सके.

जैसा कि सभी जानते हैं, उज्जैन एक प्राचीन नगरी है जहाँ ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर स्थित हैं, तथा प्रति बारह वर्ष के पश्चात यहाँ कुम्भ मेला आयोजित होता है, जिसे सिंहस्थकहा जाता है. उज्जैन में आगामी कुम्भ मेला अप्रैल-मई २०१६ में लगने जा रहा है, अर्थात अब सिर्फ डेढ़ वर्ष बाकी है. उज्जैन नगर को जलप्रदाय करने अर्थात इसकी प्यास बुझाने का एकमात्र स्रोत है यहाँ से कुछ दूरी पर बना हुआ बाँध जो 1992 वाले कुम्भ के दौरान गंभीर नदी पर बनाया गया था. उल्लेखनीय है कि गंभीर नदी, चम्बल नदी की सहायक नदी है, जो कि नर्मदा नदी की तरह वर्ष भर सदानीरा नहीं रहती, अर्थात सिर्फ वर्षाकाल में ही इसमें पानी बहता है और इसी पानी को वर्ष भर संभालना होता है. कहने को तो यहाँ शिप्रा नदी भी है, परन्तु वह भी सदानीरा नहीं है और उसे भी स्थान-स्थान पर स्टॉप डैम बनाकर पानी रोका गया है जो सिंचाई वगैरह के कामों में लिया जाता है, पीने के योग्य नहीं है क्योंकि सारे उज्जैन का कचरा और मल-मूत्र इसमें आकर गिरता है. पेयजल के एकमात्र स्रोत अर्थात गंभीर बाँध की मूल क्षमता 2250 McFT है. 1992 में इसके निर्माण के समय यह कहा गया था कि, अब अगले तीस-चालीस साल तक उज्जैन शहर को पानी के लिए नहीं तरसना पड़ेगा. इंजीनियरों द्वारा ये भी कहा गया था कि इस बाँध को एक बार पूरा भर देने के बाद, यदि दो साल तक लगातार बारिश नहीं भी हो, तब भी कोई तकलीफ नहीं आएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वर्ष 2004 में जलसंकट और वर्ष 2007 में यह प्राचीन नगरी अपने जीवनकाल का सबसे भयानक सूखा झेल चुकी है. उस वर्ष जून से सितम्बर तक औसत से 40% कम वर्षा हुई थी. तो फिर ऐसा क्या हुआ, कि मामूली सा जलसंकट नहीं, बल्कि सात-सात दिनों में एक बार जलप्रदाय के कारण शहर से पलायन की नौबत तक आ गई? कारण वही है, कुप्रबंधन, राजनीति और दूरगामी योजनाओं का अभाव.


(चित्र :- उज्जैन नगर को पेयजल आपूर्ति करने वाला गंभीर बाँध 
जो शहर से लगभग १८ किमी दूर है) 

जल संरक्षण के साथ-साथ जिस जल संचय एवं जल बचत के बारे में मैंने कहा, अब उसे सभी बड़े शहरों एवं नगरों में लागू करना बेहद जरूरी हो गया है. उज्जैन में 2007 के भीषण जलसंकट के समय प्रशासन का पहला कुप्रबंधन यह था कि जब उन्हें यह पता था कि माह सितम्बर तक औसत से बहुत कम बारिश हुई है, तो उन्हें “लिखित नियमों” के अनुसार बाँध के गेट खुले रखने की क्या जरूरत थी? पूछने पर प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि यह शासकीय नियम है कि वर्षाकाल में माह जुलाई से पन्द्रह सितम्बर तक बाँध के गेट खुले रखना जरूरी है, लेकिन यह एक सामान्य समझ है कि इस नियम को तभी लागू किया जाना चाहिए, जब लगातार बारिश हो रही हो. ऊपर से बारिश नहीं हुई और इधर बाँध से पानी बहता रहा. दूसरी गलती यह रही कि नवंबर से जनवरी के दौरान गेहूँ की फसल के लिए इसी बाँध से आसपास के किसानों ने पानी की जमकर चोरी की और प्रशासन तथा राजनीति मूकदर्शक बने देखते रहे, क्योंकि किसान एक बड़ा वोट बैंक है. हालाँकि दिखावे के लिए बाँधों के आसपास स्थित गाँवों में समृद्ध किसानों की चंद मोटरें और पम्प जब्त किए जाते हैं, लेकिन यह बात सभी जानते हैं कि जल संसाधन विभाग के कर्मचारी इसमें कितनी रिश्वतखोरी करते हैं और आराम से पानी चोरी होने देते हैं. यह तो हुई राजनीती और कुप्रबंधन की बात, अब आते हैं दूरगामी योजनाओं के अभाव के बारे में.

इस वर्ष भी उज्जैन और आसपास बारिश कम हुई है. गंभीर बाँध जिसकी क्षमता 2250McFT है वह इस बार सिर्फ 1700 McFT ही भर पाया है (वह भी इंदौर के यशवंत सागर तालाब की मेहरबानी से). अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है, कि आगे और बारिश होने वाली नहीं है तथा समूचे उज्जैन शहर को इतना ही उपलब्ध पानी जुलाई 2015 के पहले सप्ताह तक चलाना है तो फिर अक्टूबर के माह में रोजाना जलप्रदाय की क्या जरूरत है? जी हाँ!!!, उज्जैन में पिछले वर्ष भी पूरे साल भर रोजाना एक घंटा नल दिए गए, फिर जब इस वर्ष बारिश में देरी हुई तो हाय-तौबा मचाई गई. इस साल भी बारिश कम हुई है, तब भी एक दिन छोड़कर जलप्रदाय के निर्णय में पहले देर की गई और अब त्यौहारों का बहाना बनाकर रोजाना जलप्रदाय किया जा रहा है. सार्वजनिक नल कनेक्शन की दुर्दशा के बारे में तो सभी जानते हैं. अतः रोजाना जो जलप्रदाय किया जा रहा है, वह खराब या टूटी हुई टोंटियों से नालियों में बेकार बहता जा रहा है, अथवा इस जलप्रदाय का फायदा सिर्फ उन मुफ्तखोरों को मिल रहा है, जो पानी बिल तक नहीं चुकाते. ऐसे में उज्जैन की जनता को आगामी मई-जून 2015 के भविष्य की कल्पना भी डरा देती है. मेरा प्रस्ताव यह है कि पूरे देश में जहाँ भी किसी शहर की जलप्रदाय व्यवस्था सिर्फ एक स्रोत पर निर्भर हो, वहाँ साल भर एक दिन छोड़कर नलों में पानी दिया जाए. वैसे भी ठण्ड के दिनों में अर्थात नवंबर से फरवरी तक पानी की खपत कम ही रहती है. इसलिए इस दौरान जल संचय या जल बचत का यह फार्मूला जनता को मई-जून-जुलाई में राहत देगा, बशर्ते इसमें राजनीति आड़े ना आए.

दूरगामी योजनाओं के अभाव की दूसरी मिसाल है बाँधों में जमा होने वाली गाद, जिसे अंगरेजी में हम “सिल्ट” कहते हैं, की सफाई नहीं होना. प्रकृति का नियम है कि नदी में बारिश के दिनों में बहकर आने वाला पानी अपने साथ रेत, मिट्टी के बारीक-बारीक कण लेकर आता है, जो धीरे-धीरे बाँध की तलहटी में बैठते, जमा होते जाते हैं और जल्दी ही एक मोटी परत का रूप धारण कर लेते हैं. मैंने उज्जैन के जिस गंभीर बाँध का यहाँ उदाहरण दिया है, उसकी क्षमता 2250 McFT बताई जाती है. उज्जैन नगर को पानी पिलाने में रोजाना का खर्च होता है लगभग 6-7 McFT. यदि मामूली हिसाब भी लगाया जाए, तो पता चलता है कि यदि शहर को रोजाना भी पानी दिया जाए तो वर्ष में लगभग 320-350दिनों तक जलप्रदाय किया जा सकता है (माह सितम्बर में बाँध भरने के दिन से गिनती लगाई जाए तो). लेकिन पिछले दस वर्ष में ऐसा कभी नहीं हुआ कि जुलाई माह आते-आते बाँध के खाली होने की नौबत ना आ जाती हो. ऐसा क्यों होता है?? ज़ाहिर है कि, जिस बाँध की क्षमता 2250 MCFT बताई जा रही है, उसकी क्षमता उतनी है ही नहीं... यह क्षमता इसलिए कम हुई है, क्योंकि बाँध की तलहटी के एक बड़े हिस्से में खासी गाद जमा हो चुकी है, जिसकी सफाई वर्षों से आज तक नहीं हुई. यदि एक मोटा अनुमान भी लगाया जाए तो पता चलता है कि पिछले बीस वर्ष में गंभीर बाँध में गाद की एक खासी मोटी परत जमा हो गई है, जिसके कारण बाँध की वास्तविक क्षमता बेहद घट चुकी है, लेकिन अधिकारी और प्रशासन उसी पुराने स्केल पर मीटर की गहराई नाप रहा है जो बरसों पहले दीवार पर पेंट की गई है. कहने का तात्पर्य यह है कि जिस बाँध की क्षमता 2250 बताई जा रही है वह शायद 1500 या उससे भी कम रह गई हो, अन्यथा सितम्बर से लेकर जुलाई तक सिर्फ 270 दिनों में ही, हर साल बाँध का पानी खत्म क्यों हो जाता है? अतः मेरा दूसरा सुझाव यह है कि देश के सभी बाँधों में जमा गाद की गर्मियों में नियमित सफाई की जाए. गर्मियों के दिनों में जब बाँधों का पानी लगभग खत्म हो चुका होता है, उसी समय आठ दिनों के सामाजिक श्रमदान एवं प्रशासनिक सहयोग तथा आधुनिक उपकरणों के जरिये बाँधों को गहरा किया जाना चाहिए. यह पता लगाया जाना चाहिए कि बाँध की वास्तविक क्षमता क्या है?


(प्रस्तुत चित्र 2007 के जलसंकट के समय का है, साफ़ देखा जा सकता है कि बाँध की तलहटी में कितनी गाद जम चुकी है, जिसके कारण इसकी भराव क्षमता कम हुई है). 

तीसरी एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है, कि बढ़ते शहरीकरण के कारण बाँध के पानी के उपयोग की प्राथमिकताओं में कलह होने लगा है. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बाँध का पानी सिंचाई के लिए है या पेयजल के लिए, अर्थात शहरी और ग्रामीण हितों का टकराव न होने पाए. अक्सर देखा गया है कि समृद्ध किसान नवंबर से फरवरी के दौरान अपनी फसलों के लिए बाँधों से पानी चोरी करते हैं. इसे रोका जाना चाहिए. इस पर रोक लगाने के लिए सिर्फ प्रशासनिक अमला काफी नहीं है, राजनैतिक इच्छाशक्ति भी जरूरी है, क्योंकि जैसा मैंने पहले कहा किसान एक बड़ा वोट बैंक है.

अंत में संक्षेप में सिर्फ तीन बिंदुओं में कहा जाए तो – १) शहरों में रोजाना जलप्रदाय की कतई आवश्यकता नहीं है, एक दिन छोड़कर जलप्रदाय किया जाना चाहिए... २) गर्मियों के दिनों में बाँधों की तलछट में जमा हुई गाद की नियमित सफाई होनी चाहिए, ताकि बाँध गहरा हो सके और उसकी क्षमता बढे... और ३) बाँध से पानी की चोरी रोकना जरूरी है, यह सुनिश्चित हो कि पानी का उपयोग पेयजल हेतु ही हो, ना कि सिंचाई के लिए.... यदि सभी शहरों में इन तीनों बिंदुओं पर थोड़ा भी ध्यान दिया जाएगा, तो मुझे विश्वास है कि “जल-संचय” एवं “जल-बचत” के माध्यम से भी हम काफी कुछ जल संरक्षण का लक्ष्य हासिल कर सकेंगे. मैं इस मीडिया चौपाल के माध्यम से अपने समस्त पत्रकार मित्रों एवं मीडिया समूहों से आव्हान करना चाहता हूँ कि सभी बड़े नगरों में इन तीन बिंदुओं पर अवश्य विचार किया जाए. इसमें मीडिया का दबाव कारगर होता है, और स्वाभाविक है कि जब हम कहते हैं कि जल ही जीवन है, तो अपने जीवन हेतु हमें सम्मिलित प्रयास करने ही होंगे... भूजल संरक्षण के साथ ही जो जल भण्डार हमें वर्षाकाल में उपलब्ध होते हैं उस पानी की बचत और समुचित प्रबंधकीय संचय करना भी जरूरी है.

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---____ :-  सुरेश चिपलूणकर, उज्जैन