Tuesday 4 November 2014

वरिष्ठजनों [ बुजर्गों ] के चरण [पैर ] क्यों दबाने चाहिए ?
वृद्धावस्था में शरीर में वायु तत्व प्रधान हो जाता है | हमारे शरीर में वायु का स्थान घुटने से नीचे पैरों तक होता है अतः टाँग व पैर दबाने तथा तेल मलने से कुपित वायु निकल जाती है तथा वायु जन्य रोगों में आराम मिलता है | अतः वरिष्ठजनों सेवा करना सभी का परम कर्तव्य है | 
ज्यादा दौड़ने -भागने के कारण भी शरीर में वायु बढ़ जाती है तब वज्रासन में बैठने से तथा पैरों को दबाने से व तेल मालिश से बहुत लाभ होता है | कई बार मौसम बदलने से भी शरीर में वायु का प्रकोप बढ़ जाता है तब कई बार शरीर में सूजन महसूस होती है या अचानक वजन बढ़ जाता है या अन्य वात-जन्य व्याधियाँ घेर लेती हैं तब पैरों को दबाने से तथा गुनगुने तेल की मालिश करने से लाभ होता है | मालिश के लिए कोई भी अनुकूल तेल प्रयोग किया जा सकता है |

अल्सर [ Ulcer ]
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आजकल की व्यस्त जीवनशैली में खान-पान में गड़बड़ी होना स्वाभाविक -सी बात है | लेकिन इस कारण से अल्सर जैसे रोग पाँव पसारते जा रहे हैं | इसमें पेट में जख़्म बन जाते हैं जिसे अल्सर कहते हैं | चाय , कॉफी ,शराब , अधिक खट्टे ,मसालेदार तथा गर्म वस्तुओं के सेवन से अल्सर होने की सम्भावना अधिक होती है | अल्सर रोग में अक्सर पेट में जलन होती है , खट्टी डकारें आती हैं , सर चकराता है , उलटी होती , दस्त के साथ खून आता है , शरीर में कमजोरी तथा मन बैचैन रहता है |

विभिन्न औषधियोँ द्वारा अल्सर का उपचार ----
१- चार मुनक्के तथा दो छोटी हरड़ पीसकर सुबह खाने से पेट की जलन तथा उल्टी समाप्त होती है |
२- पान के हरे पत्तों का १/२ [आधा ] चम्मच रस प्रतिदिन पीने से पेट के घाव व दर्द में लाभ होता है |
३- एक चम्मच आँवले के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन पीने से अल्सर ठीक होता है |
४- अल्सर के रोगी को अनार के रस तथा आँवला मुरब्बा सेवन से लाभ होता है |
५- अल्सर में दूध , पका केला , चीकू , शरीफ़ा तथा सेब का सेवन करना चाहिए |

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बढ़ते समुद्र धीरे-धीरे धरती को निगल रहे हैं, असमय गर्मी, अधिक बरसात, लगातार आफतों में घिरती धरती हमें चेता रही है, समय रहते हमें प्राकृतिक सम्पदा का अंधाधुंध दोहन रोकना होगा। 
औद्योगिकरण की होड़ ने धरती को पसीने-पसीने कर दिया है, लगातार बढ़ते तापमान का दबाव झेल रही धरती और बढ़ती प्राकृतिक आपदायें एक दिन धरती और मानव सभ्यता के विनाश का कारण बन जाएंगी, विनाशक समय आने से पहले हमें संभल कर पर्यावरण संरक्षण के विषय में गंभीरता से सोचना होगा

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हकलाना [Stammering ]
हकलाकर या अटक -अटक कर बोलना , दोनों का मतलब एक ही है - वाक् शक्ति में गड़बड़ी , जिसमे बोलनेवाला , बोलते-बोलते रुक जाता है , बोले हुए शब्दों को दोहराता है या लम्बा कर के बोलता है | 
हकलाहट के आयुर्वेदिक उपचार -
१-हकलाहट दूर करने के लिए १० बादाम तथा १० काली मिर्च थोड़ी सी मिश्री के साथ पीसकर प्रातःकाल एक गिलास गर्म दूध के साथ लें ,यह प्रयोग कम से कम दस दिन करें | 
२- गाय का घी हकलाहट दूर करने का एक उत्तम उपचार मन जाता है | ३-६ ग्राम घी में प्रतिदिन मिश्री मिलकर सुबह-शाम चाटें और ऊपर से गाय का दूध पियें | लगातार कुछ महीनों तक इसका सेवन करने से हकलाना बंद हो जाता है |
३- बच्चों को एक ताज़ा आंवला प्रतिदिन चबाने के लिए दें | इससे उनकी जीभ पतली और आवाज़ साफ होती है तथा उनका हकलाना और तुतलाना दूर हो जाता है |
४- रात को १० बादाम पानी में भिगो दें | सुबह उनके छिलके उतार कर पीस लें , और उन्हें ३० ग्राम मक्खन के साथ सेवन करने से भी हकलाहट में लाभ होता है |

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एक्ज़िमा (ECZIMA) -
एक्ज़िमा एक प्रकार का चर्म रोग है जिसमें रोगी की स्थिति अति कष्टपूर्ण होती है| इस रोग की शुरुआत में रोगी को तेज़ खुजली होती है तथा बार-बार खुजाने पर उसके शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आती हैं | इन फुंसियों में भी खुजली और जलन होती है तथा पकने पर उनमें से मवाद बहता रहता है और फिर यह जख्म का रूप ले लेता है |

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बेल का वृक्ष बहुत प्राचीन है |यह लगभग २०-३० फुट ऊंचा होता है | इसके पत्ते जुड़े हुए त्रिफाक और गंधयुक्त होते हैं | इसका फल ३-४ इंच व्यास का गोलाकार और पीले रंग का होता है | बीज कड़े और छोटे होते हैं | बेल के फल का गूदा और बीज एक उत्तम विरेचक (पेट साफ़ करने वाले ) माने जाते हैं | बेल शर्करा को कम करने वाला,कफ व वात को शांत करने वाला,अतिसार, मधुमेह,रक्तार्श,श्वेत प्रदर व अति रज : स्राव को नष्ट करने वाला होता है | आइए जानते हैं बेल के औषधीय गुण -
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मेंहदी (Henna) -
मेंहदी की पत्तियों का प्रयोग रंजक द्रव्य के रूप में किया जाता है तथा इसकी सदाबहार झाड़ियाँ बाड़ के रूप में लगाई जाती हैं | यह समस्त भारत में मुख्यतः पंजाब,गुजरात,मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के शुष्क पर्णपाती वनों में पायी जाती है | स्त्रिओं के श्रृंगार प्रसाधनों में विशिष्ट स्थान प्राप्त होने के कारण,मेंहदी बहुत लोकप्रिय है | मेंहदी की पत्तियों को सुखाकर बनाया हुआ महीन पाउडर बाजारों में पंसारियों के यहां तथा अन्य विक्रेताओं के यहाँ आकर्षक पैक में बिकता है | इसके पत्ते मलने से चिकने तथा लुआबदार हो जाते हैं | इसके कोमल पत्तों को सुखाकर,पीस्सकर मेंहदी के नाम से बेचा जा सकता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जुलाई से दिसंबर तक होता है |
मेंहदी का विभिन्न रोगों में उपयोग -

१- लगभग ४.५ ग्राम मेंहदी के फूलों को पानी में पीसकर कपड़े से छान लें,इसमें ७ ग्राम शहद मिलाकर कुछ दिन पीने से गर्मी से उत्पन्न सिरदर्द शीघ्र ही ठीक हो जाता है |

२- मेंहदी में दही और आंवला चूर्ण मिलाकर २- ३ घंटे बालों में लगाने से बल घने,मुलायम,काले और लम्बे होते हैं |

३- दस ग्राम मेंहदी के पत्तों को २०० मिली पानी में भिगोकर रख दें,थोड़ी देर बाद छानकर इस पानी से गरारे करने से मुँह के छाले शीघ्र शांत हो जाते हैं |

४- मेंहदी के बीजों को बारीक पीसकर,घी मिलाकर ५०० मिग्रा की गोलियां बना लें | इन गोलियों को सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से खुनी दस्तों में लाभ होता है |

५- लगभग ५ ग्राम मेंहदी के पत्ते लेकर रात को मिटटी के बर्तन में भिगो दें और प्रातःकाल इन पत्तियों को मसलकर तथा छानकर रोगी को पिला दें | एक सप्ताह के सेवन से पुराने पीलिया रोग में अत्यंत लाभ होता है |

६- मेंहदी और एरंड के पत्तों को समभाग पीसकर थोड़ा गर्म करे घुटनों पर लेप करने से घुटनों की पीड़ा में लाभ होता है |

७- अग्नि से जले हुए स्थान पर मेंहदी की छाल या पत्तों को पीसकर गाढ़ा लेप करने से लाभ होता है |
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दमा (श्वास रोग ) Asthma 
आज के समय में दमा तेज़ी से स्त्री - पुरुष व बच्चों को अपना शिकार बना रहा है | साँस लेने में दिक्कत या कठिनाई महसूस होने को श्वास रोग कहते हैं | फेफड़ों की नलियों की छोटी-छोटी पेशियों में जब अकड़न युक्त संकुचन उत्पन्न होता है तो फेफड़ा, साँस को पूरी तरह अंदर अवशोषित नहीं कर पाता है जिससे रोगी पूरा श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ने को विवश हो जाता है | इसी स्थिति को दमा या श्वास रोग कहते हैं |
दमा को पूर्ण रूप से ठीक करने हेतु प्राणायाम का अभ्यास सर्वोत्तम है |
विभिन्न औषधियों से दमे का उपचार :----
१- अदरक के रस में शहद मिलाकर चाटने से श्वास , खांसी व जुक़ाम में लाभ होता है ।
२- प्याज़ का रस , अदरक का रस , तुलसी के पत्तों का रस व शहद ३-३ ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह-शाम सेवन करने से अस्थमा रोग नष्ट होता है |
३- काली मिर्च - २० ग्राम , बादाम की गिरी - १०० ग्राम और खाण्ड - ५० ग्राम लें | तीनों को अलग - अलग बारीक़ पीस कर चूर्ण बना लें , फिर तीनों को अच्छी तरह से मिला लें | इस मिश्रण की एक चम्मच लें और रात को सोते समय गर्म दूध से लें , लाभ होगा |
विशेष :-- जिनको मधुमेह हो वे खाण्ड का प्रयोग न करें तथा जिनको अम्लपित्त [acidity ] हो वे काली मिर्च १० ग्राम की मात्र में प्रयोग करें |
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अर्श रोग [बवासीर ] Piles
बवासीर गुदा मार्ग की बीमारी है | यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है -- खूनी बवासीर और बादी बवासीर | इस रोग के होने का मुख्य कारण '' कोष्ठबद्धता '' या ''कब्ज़ '' है | कब्ज़ के कारण मल अधिक शुष्क व कठोर हो जाता है और मल निस्तारण हेतु अधिक जोर लगाने के कारण बवासीर रोग हो जाता है | यदि मल के साथ बूंद -बूंद कर खून आए तो उसे खूनी तथा यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और मल के साथ खून न आए तो उसे बादी बवासीर कहते हैं | अर्श रोग में मस्सों में सूजन तथा जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है |
बवासीर का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -------

१- जीरा - एक ग्राम तथा पिप्पली का चूर्ण आधा ग्राम को सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होती है |
२- जामुन की गुठली और आम की गुठली के अंदर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ सेवन से खूनी बवासीर में लाभ होता है |
३- पके अमरुद खाने से पेट की कब्ज़ दूर होती है और बवासीर रोग ठीक होता है |
४- बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर , ४ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है |
५- खूनी बवासीर में देसी गुलाब के तीन ताज़ा फूलों को मिश्री मिलाकर सेवन करने से आराम आता है |
६ - जीरा और मिश्री मिलकर पीस लें | इसे पानी के साथ खाने से बवासीर [अर्श ] के दर्द में आराम रहता है |
७- चौथाई चम्मच दालचीनी चूर्ण एक चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन एक बार लेना चाहिए | इससे बवासीर नष्ट हो जाती है |
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पिपरमिंट (Peppermint) -
यह विश्व में यूरोप,एशिया,उत्तरी अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है | समस्त भारत में यह बाग़-बगीचों में विशेषतः उत्तर भारत तथा कश्मीर में लगाया जाता है | यह अत्यंत सुगन्धित क्षुप होता है | इसके तेल,सत तथा स्वरस आदि का चिकित्सा में उपयोग किया जाता है | इसके पुष्प बैंगनी,श्वेत अथवा गुलाबी वर्ण के तथा पुष्पदण्ड के अग्र भाग पर लगे होते हैं | इसके फल चिकने अथवा खुरदुरे तथा बीज छोटे होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल सितम्बर से अप्रैल तक होता है |
पिपरमिंट का औषधीय प्रयोग -

१- पिपरमिंट के क्रिस्टल को दांतों के बीच में रखकर दबाने से दांत दर्द में लाभ होता है |

२- पिपरमिंट को छाती पर लगाने से श्वसन संस्थान गत सूजन में लाभ होता है |

३- पिपरमिंट क्रिस्टल का सेवन करने से उलटी,अतिसार,आध्मान तथा अजीर्ण में लाभ होता है |

४- २५ ग्राम पिपरमिंट सत में शक्कर मिलाकर सेवन करने से पेटदर्द तथा पेट के विकार ठीक होते हैं |

५- पिपरमिंट के पत्तों को पीसकर लगाने से चींटी आदि कीटों के काटने से होने वाली वेदना का शमन होता है |
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चीड़ (Long-leaved pine) -
चीड़ का बहुत ऊँचा वृक्ष होता है | इसकी छाल में किसी औज़ार से क्षत करने पर एक प्रकार का चिकना गोंद निकलता है जिसे श्रीवास या गंधविरोजा कहते हैं | इसके वृक्ष से तारपीन का तेल भी निकाला जाता है | प्राचीन आयुर्वेदीय संहिताओं व निघण्टुओं में सरल नाम से चीड़ का वर्णन प्राप्त होता है | इसके फल देवदारु के फल जैसे किन्तु आकार में कुछ बड़े ,पिरामिड आकार के नुकीले होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल मार्च से नवम्बर तक होता है |
चीड़ के औषधीय प्रयोग -

१- चीड़ के गोंद (गंधविरोजा) का क्वाथ बनाकर कुल्ला करने से मुँह के छाले ठीक होते हैं |

२- चीड़ के तेल की छाती पर मालिश करने से सांस की नली की सूजन,श्वास तथा खांसी में लाभ होता है |

३- गंधविरोजा (चीड़ का गोंद ) को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है तथा घावों में पस भी नहीं होती है |

४- गर्मी के कारण यदि शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आई हों तो चीड़ के तेल को लगाकर पांच मिनट बाद धो देने से लाभ होता है |

५- बच्चों की पसली चलने पर चीड़ तेल में बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिलाकर धीरे-धीरे मालिश करने से लाभ होता है |
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चीकू (Sapodilla) -
चीकू मूलतः दक्षिण अमेरिका में एवं अन्य उष्णकटिबंधीय भागों में प्राप्त होता है तथा भारत में भी इसकी खेती की जाती है | यह वृक्ष समुद्र के किनारों के प्रदेशों में विशेषतया उत्पन्न होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल वर्ष में अत्यधिक समय तक होता है | इसके फल में शर्करा,पेक्टिन,थ्रिओनिन तथा विटामिन C पाया जाता है |
चीकू के औषधीय प्रयोग -

१- पके चीकू के फलों के सेवन से दस्तों में लाभ होता है |

२- कच्चे फलों को पीसकर फोड़ों पर लगाने से फोड़े पककर फूट जाते हैं तथा पस बाहर निकल जाती है |

३-चीकू के १-२ फलों का नियमित सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है तथा दुर्बलता दूर होती है |

४-चीकू के फल पित्तशामक होते हैं,अतः इसका सेवन करने से पित्तज विकारों तथा पित्तज्वर का शमन होता है |

५- इसके फल को कूट कर गर्म कर सूजन युक्त स्थान पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है |
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जामुन [ Jambul Tree ]

जामुन के सदाहरित वृक्ष जंगलों और सड़कों के किनारे सर्वत्र पाए जाते हैं | इसका पेड़ आम के पेड़ की तरह ही काफी बड़ा होता है | जामुन के पेड़ की छाल का रंग सफ़ेद-भूरा होता है | इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों जैसे होते हैं | जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं और जुलाई से अगस्त तक जामुन पक जाते हैं | जामुन में लौह [ iron ] और phosphorus काफी मात्रा में होता है |
जामुन मधुमेह , पथरी , लिवर ,तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है | यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकलता है | जामुन और उसके बीज पाचक और स्तम्भक होते हैं |
जामुन का विभिन्न रोगों में प्रयोग :-----
१- ३००- ५०० मिली ग्राम जामुन के सूखे बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है |
२- जामुन के १० मि.ली. रस में २५० मिली ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में २-३ बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशयगत पथरी नष्ट होती है |
३- जामुन के १०-१५ मि.ली. रस में २ चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , खून की कमी तथा रक्त विकार में लाभ होता है |
४- जामुन के पत्तों की राख को दांतों और मसूढ़ों पर मलने से दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं |
५- जामुन के ५-६ पत्तों को पीसकर लगाने से घाव में से पस बाहर निकल जाती है तथा घाव स्वच्छ हो जाते हैं ।
६- तंग जूतों से पाँव में जख्म हो गए हों तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है |
नोट :- जामुन का पका हुआ फल अधिक मात्र में सेवन करना हानिकारक हो सकता है , इसको नमक मिलाकर ही खाना चाहिए |
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थकावट
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थकान शब्द से सभी परिचित हैं प्रायः थकावट से सभी का आमना - सामना होता है | सभी सोचते हैं थकावट कैसे दूर की जाए , आइये आज इस पर थोड़ा विचार किया जाए |
१- अधिक थकान होने पर, सोते समय गर्म दूध का सेवन करें , दूध हमेशा घूँट -घूँट करके पियें , चाहें तो दूध में एक चम्मच पिसी हुई हल्दी मिला सकते हैं | दूध को भली - भांति फेंट कर [ झाग बनाकर ] ही पियें यह अधिक लाभप्रद होता है |
२- अधिक दौड़ने - भागने , चढ़ाई चढ़ने - उतरने या अधिक पैदल चलने के कारण हुई थकान दूर करने के लिए आधा बाल्टी गर्म - पानी लें , उसमें दो चम्मच नमक डालें और बाल्टी में पैर डालकर बैठ जाएँ | थोड़ी देर में जब पानी कुछ ठंडा हो जाए तो और गर्म पानी डाल लें | आधे घंटे में फर्क महसूस करें |
३- थकावट दूर करने के लिए घर में किसी शांत स्थान पर , ढीले वस्त्र पहन कर शवासन में विश्राम करें , अर्थात कसे हुए वस्त्र बदलकर आरामदायक वस्त्र पहने और लेटकर शरीर के सभी अंगों को ढीला छोड़ दें और विश्राम करें |
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बेल -
बेल का वृक्ष बहुत प्राचीन है |यह लगभग २०-३० फुट ऊंचा होता है | इसके पत्ते जुड़े हुए त्रिफाक और गंधयुक्त होते हैं | इसका फल ३-४ इंच व्यास का गोलाकार और पीले रंग का होता है | बीज कड़े और छोटे होते हैं | बेल के फल का गूदा और बीज एक उत्तम विरेचक (पेट साफ़ करने वाले ) माने जाते हैं | बेल शर्करा को कम करने वाला,कफ व वात को शांत करने वाला,अतिसार, मधुमेह,रक्तार्श,श्वेत प्रदर व अति रज : स्राव को नष्ट करने वाला होता है | आइए जानते हैं बेल के औषधीय गुण -

१- पके हुए बेल का शर्बत पुराने आंव की महाऔषधि है | इसके सेवन से संग्रहणी रोग बहुत जल्दी ही दूर हो जाता है |

२- बेल का मुरब्बा खाने से पित्त व अतिसार में लाभ होता है | पेट के सभी रोगों में बेल का मुरब्बा खाने से लाभ मिलता है |

३- दस ग्राम बेल के पत्तों को ४-५ कालीमिर्च के साथ पीसकर उसमे १० ग्राम मिश्री मिलकर शरबत बना लें | इसका दिन में तीन बार सेवन करने से पेट दर्द ठीक हो जाता है |

४- बेल के गूदे को गुड़ मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार (खूनी दस्त ) के रोगी का रोग दूर हो जाता है |

५- मिश्री मिले हुए दूध के साथ बेल की गिरी के चूर्ण का सेवन करने से, खून की कमी व शारीरिक दुर्बलता दूर होती है |

६- बेल के पत्तों को पीसकर छान लें, इस १० मिलीलीटर रस के प्रतिदिन सेवन से मधुमेह में शर्करा आना कम हो जाती हैं |

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हरड़ -
हरड़ के नाम से तो हम सब बचपन से ही परिचित हैं | इसके पेड़ पूरे भारत में पाये जाते हैं | इसका रंग काला व पीला होता है तथा इसका स्वाद खट्टा,मीठा और कसैला होता है | आयुर्वेदिक मतानुसार हरड़ में पाँचों रस -मधुर ,तीखा ,कड़ुवा,कसैला और अम्ल पाये जाते हैं | वैज्ञानिक मतानुसार हरड़ की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसके फल में चेब्यूलिनिक एसिड ३०%,टैनिन एसिड ३०-४५%,गैलिक एसिड,ग्लाइकोसाइड्स,राल और रंजक पदार्थ पाये जाते हैं | ग्लाइकोसाइड्स कब्ज़ दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| ये तत्व शरीर के सभी अंगों से अनावश्यक पदार्थों को निकालकर प्राकृतिक दशा में नियमित करते हैं | यह अति उपयोगी है | आज हम हरड़ के कुछ लाभ जानेंगे -

१- हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है |

२- छोटी हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर प्रतिदिन ०३ बार लगाने से मुहं के छाले नष्ट हो जाते हैं | इसको आप रात को भोजन के बाद भी चूंस सकते हैं |

३- छोटी हरड़ को पानी में भिगो दें | रात को खाना खाने के बाद चबा चबा कर खाने से पेट साफ़ हो जाता है और गैस कम हो जाती है |

४- कच्चे हरड़ के फलों को पीसकर चटनी बना लें | एक -एक चम्मच की मात्रा में तीन बार इस चटनी के सेवन से पतले दस्त बंद हो जाते हैं |

५- हरड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दो किशमिश के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी ) ठीक हो जाती है |

६- हरीतकी चूर्ण सुबह शाम काले नमक के साथ खाने से कफ ख़त्म हो जाता है |

७- हरड़ को पीसकर उसमे शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आनी बंद हो जाती है|

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खुशहाली का कारण

जापान के टोक्यो शहर के निकट एक कस्बा अपनी खुशहाली के लिए प्रसिद्ध था | एक बार एक व्यक्ति उस कसबे की खुशहाली का कारण जानने के लिए सुबह -सुबह वहाँ पहुंचा | कस्बे में घुसते ही उसे एक कॉफ़ी -शॉप दिखायी दी।उसने मन ही मन सोचा कि मैं यहाँ बैठ कर चुप -चाप लोगों को देखता हूँ , और वह धीरे - धीरे आगे बढ़ते हुए शॉप के अंदर लगी एक कुर्सी पर जा कर बैठ गया |
कॉफ़ी-शॉप शहर के रेस्टोरेंटस की तरह ही थी ,पर वहाँ उसे लोगों का व्यवहार कुछ अजीब लगा |
एक आदमी शॉप में आया और उसने दो कॉफ़ी के पैसे देते हुए कहा , “ दो कप कॉफ़ी , एक मेरे लिए और एक उस दीवार पर। ”
व्यक्ति दीवार की तरफ देखनेलगा लेकिन उसे वहाँ कोई नज़र नहीं आया ,पर फिर भी उस आदमी को कॉफ़ी देने के बाद वेटर दीवार के पास गया और उस पर कागज़ का एक टुकड़ा चिपका दिया , जिसपर “एक कप कॉफ़ी ” लिखा था |
व्यक्ति समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है . उसने सोचा कि कुछ देर और बैठता हूँ ,और समझने की कोशिश करता हूँ |
थोड़ी देर बाद एक गरीब मजदूर वहाँ आया , उसके कपड़े फटे -पुराने थे पर फिर भी वह पुरे आत्म -विश्वास के साथ शॉप में घुसा और आराम से एक कुर्सी पर बैठ गया |
व्यक्ति सोच रहा था कि एक मजदूर के लिए कॉफ़ी पर इतने पैसे बर्वाद करना कोई समझदारी नहीं है …
तभी वेटर मजदूर के पास आर्डर लेने पंहुचा .“ सर , आपका आर्डर प्लीज !”, वेटर बोला |
“ दीवार से एक कप कॉफ़ी .” , मजदूर ने जवाब दिया |
वेटर ने मजदूर से बिना पैसे लिए एक कप कॉफ़ी दी और दीवार पर लगी ढेर सारे कागज के टुकड़ों में से “एक कप कॉफ़ी ” लिखा एक टुकड़ा निकाल कर डस्टबिन में पफेंक दिया |
व्यक्ति को अब सारी बात समझ आ गयी थी |कसबे के लोगों का ज़रूरतमंदों के प्रति यह रवैया देखकर वह भाव- विभोर हो गया … उसे लगा , सचमुच लोगों ने मदद का कितना अच्छा तरीका निकाला है जहां एक गरीब मजदूर भी बिना अपना आत्मसम्मान कम किये एक अच्छी सी कॉफ़ी -शॉप में खाने -पीने का आनंद ले सकता है | अब वह कसबे की खुशहाली का कारण जान चुका था और इन्ही विचारों के साथ वापस अपने शहर लौट गया |

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दालचीनी (Cinnamon bark)-
दालचीनी का प्रयोग सर्वत्र मसालों के रूप में किया जाता है | भारत में मुख्यतः तमिलनाडु,कर्नाटक एवं केरल में इसकी खेती की जाती है | दालचीनी की छाल तेजपात की छाल से अधिक पतली,पीली व अधिक सुगन्धित तथा स्वादयुक्त होती है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जुलाई से दिसंबर तक होता है |
आइये जानते हैं दालचीनी के कुछ औषधीय गुणों के विषय में -

१- दालचीनी के तेल को मस्तक पर मलने से सर्दी की वजह से होने वाला सिरदर्द मिट जाता है |

२- दालचीनी का तेल आँखों के ऊपर (पलकों पर) लगाने से आँख का फड़कना बंद हो जाता है और नेत्रों की ज्योति बढ़ती है |

३- आधा चम्मच दालचीनी चूर्ण को दो चम्मच मधु के साथ सुबह शाम सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है |

४-दालचीनी का तेल पेट पर मलने से आंतों का खिंचाव दूर हो जाता है |

५- शहद और दालचीनी मिलाकर रोग ग्रसित भाग पर लगाने से थोड़े-ही-दिनों में खाज-खुजली तथा फोड़े-फुंसी जैसे चर्म रोग नष्ट हो जाते हैं |

हानि - इसकी अधिक मात्रा उष्ण प्रकृति वालों को सिरदर्द पैदा करती है | दालचीनी गर्भवती स्त्रियों को नहीं देनी चाहिए |
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जायफल -
जायफल का उल्लेख आयुर्वेदीय तथा निघण्टुओं में प्राचीनकाल से प्राप्त होता है | जायफल और जावित्री का प्रयोग मसाले के रूप में होता है | जायफल के तेल का उपयोग साबुन बनाने तथा सुगन्धित द्रव्य के रूप में किया जाता है | जायफल को चारों ओर से घेरे हुए रक्तवर्ण का कठिन आवरणयुक्त मांसल कवच होता है जिसे 'जावित्री' कहते हैं | यह सूखने पर अलग हो जाता है | इस जावित्री के अंदर जायफल होता है,जो अंडाकार,गोल तथा १ इंच व्यास का बाहर से धूसर वर्ण का सिकुड़ा हुआ दिखाई देता है | जायफल की तासीर गर्म होती है अतः गर्म प्रकृति वाले लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए |
विभिन्न रोगों में जायफल से उपचार -

१- जायफल को पानी में घिसकर मस्तक पर लगाने से सर का दर्द ठीक होता है |

२- जायफल को पीसकर कान के पीछे लेप करने से कान की सूजन में आराम मिलता है |

३- जायफल के तेल में भिगोई हुई रुई के फाहे को दांतों में रखकर दबाने से दांत के दर्द में लाभ होता है |

४- ५०० मिलीग्राम जायफल चूर्ण में मधु मिलकर सेवन करने से खांसी,सांस फूलना ,भूख न लगना,क्षय रोग एवं सर्दी से होने वाले जुकाम में लाभ होता है |

५- जायफल तथा सौंठ बराबर मात्रा में लेकर जल में घिसकर सेवन करने से शीघ्र ही दस्त बंद हो जाते हैं |

६- जायफल को पानी में घिसकर पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है |

७- एक से दो बूँद जायफल तेल को बताशे में डालकर खिलाने से पेट दर्द में लाभ होता है |

८- जायफल तथा जावित्री के बारीक चूर्ण को जल में घोलकर लेप करने से झाइयाँ दूर होती हैं |
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मौसमी -
मौसमी अधिकतर दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाने वाला फल है | भारत में यह फल जुलाई, अगस्त तथा नवम्बर- मार्च तक उपलब्ध रहता है | यह देखने में कुछ -कुछ नींबू की तरह होती है परन्तु स्वाद में यह मीठी होती है | मौसमी का फल नारंगी के बराबर आकार का होता है| मौसमी खाने में शीतल होती है तथा इसका सेवन सभी प्रकृति वालों के लिए तथा सभी अवस्थाओं में लाभदायक है | 
मौसमी रुचिकारक, धातुवर्धक और खून को साफ़ करने वाली है | इसके सेवन से पाचन में लाभ मिलता है | आइये जानते हैं मौसमी के कुछ लाभ -

१- मौसमी का रस पीने से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा जीवनी शक्ति की वृद्धि होती है |

२- मौसमी खाने से दांत मज़बूत होते हैं और इसका रेशा कब्ज़ दूर करने में मदद करता है |

३-मौसमी के रस में क्षार तत्व अधिक होता है अत: यह खून की अम्लता (एसिडिटी) को दूर करता है|

४- मौसमी के रस को हल्का सा गर्म करके इसमें ५ - ६ बूँद अदरक का रस डालकर पीने से जुकाम में आराम मिलता है |

५- मौसमी या इसके रस के सेवन से रक्तवाहिनियों में कोलेस्ट्रोल जमा नहीं हो पाता और ह्रदय रोग होने की संभावना नहीं रहती | अतः इसका सेवन ह्रदय को स्वस्थ रखता है |

६- मौसमी का रस पीने से आंव या पेचिश का रोग दूर हो जाता है |

७- मौसमी के रस के सेवन से बुखार में काफी लाभ होता है |

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करेला -
करेला के गुणों से सब परिचित हैं |
मधुमेह के रोगी विशेषतः इसके रस और सब्जी का सेवन करते हैं | समस्त भारत में इसकी खेती की जाती है | इसके पुष्प चमकीले पीले रंग के होते हैं | इसके फल ५-२५ सेमी लम्बे,५ सेमी व्यास के,हरे रंग के,बीच में मोटे,सिरों पर नुकीले,कच्ची अवस्था में हरे तथा पक्वावस्था में पीले वर्ण के होते हैं | इसके बीज ८-१३ मिमी लम्बे,चपटे तथा दोनों पृष्ठों पर खुरदुरे होते हैं जो पकने पर लाल हो जाते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जून से अक्टूबर तक होता है | आज हम आपको करेले के कुछ औषधीय प्रयोगों से अवगत कराएंगे -

१- करेले के ताजे फलों अथवा पत्तों को कूटकर रस निकालकर गुनगुना करके १-२ बूँद कान में डालने से कान-दर्द लाभ होता है |

२- करेले के रस में सुहागा की खील मिलाकर लगाने से मुँह के छाले मिटते हैं |

३-सूखे करेले को सिरके में पीसकर गर्म करके लेप करने से कंठ की सूजन मिटती है ।

४- १०-१२ मिली करेला पत्र स्वरस पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं |

५- करेला के फलों को छाया शुष्क कर महीन चूर्ण बनाकर रखें | ३-६ ग्राम की मात्रा में जल या शहद के साथ सेवन करना चाहिए | मधुमेह में यह उत्तम कार्य करता है | यह अग्नाशय को उत्तेजित कर इन्सुलिन के स्राव को बढ़ाता है |

६- १०-१५ मिली करेला फल स्वरस या पत्र स्वरस में राई और नमक बुरक कर पिलाने से गठिया में लाभ होता है |

७- करेला पत्र स्वरस को दाद पर लगाने से लाभ होता है | इसे पैरों के तलवों पर लेप करने से दाह का शमन होता है|

८- करेले के १०-१५ मिली रस में जीरे का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पिलाने से शीत-ज्वर में लाभ होता है |
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टिंडा (डिण्डिश )-
समस्त भारत में पंजाब,उत्तर प्रदेश ,राजस्थान एवं महाराष्ट्र में सब्जी के रूप में इसकी खेती की जाती है | आयुर्वेदीय प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख प्राप्त नहीं होता | इसके फलों में प्रोटीन,वासा,खनिज द्रव्य तथा कार्बोहायड्रेट पाया जाता है | आईये जानते हैं टिंडे के कुछ औषधीय गुणों के बारे में -

१- टिंडे के डण्ठल की सब्जी बनाकर खाने से कब्ज में लाभ होता है | 

२- टिंडे की सब्जी बनाकर सेवन करने से मूत्रदाह तथा मूत्राशय शोथ का शमन होता है |

३- टिंडे का रस निकालकर मिश्री मिलाकर पीने से प्रदर तथा प्रमेह में लाभ होता है |

४- टिंडे को पीसकर लगाने से आमवात में लाभ होता है |

५- टिंडे के बीज तथा पत्तों को पीसकर सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है |

६- पके हुए टिंडे के बीजों को निकालकर मेवे के रूप में सेवन करने से यह पौष्टिक तथा बलकारक होता है |

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रक्ताल्पता या खून की कमी (ANAEMIA ) -
हमारे खून में दो तरह की कोशिका होती हैं -लाल व सफ़ेद | लाल रक्त कोशिका की कमी से शरीर में खून की कमी हो जाती है जिसे रक्ताल्पता या अनीमिया कहा जाता है | लाल रक्त कोशिका के लिए लौहतत्व (iron) आवश्यक है अतः हमारे हीमोग्लोबिन में लौह तत्व की कमी के कारण भी रक्ताल्पता होती है | 
रक्ताल्पता या खून की कमी होने से शरीर में कमज़ोरी उत्पन्न होना,काम में मन नहीं लगना,भूख न लगना,चेहरे की चमक ख़त्म होना,शरीर थका-थका लगना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण हैं | स्त्रियों में खून की कमी के कारण 'मासिक धर्म' समय से नहीं होता है | खून की कमी बच्चों में हो जाने से बच्चे शारीरिक रूप से कमज़ोर हो जाते हैं जिसके कारण उनका विकास नहीं हो पाता तथा दिमाग कमज़ोर होने के कारण याद्दाश्त पर भी असर पढता है | इस वजह से बच्चे पढाई में पिछड़ने लगते हैं |
आइये जानते हैं रक्ताल्पता के कुछ उपचार -

१- खून की कमी को दूर करने के लिए,अनार के रस में थोड़ी सी काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है |

२- मेथी,पालक और बथुआ आदि का प्रतिदिन सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है | मेथी की सब्ज़ी खाने से भी बहुत लाभ होता है क्यूंकि मेथी में आयरन प्रचुर मात्रा में होता है |

३- गिलोय का रस सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है | आप यह अपने निकटवर्ती पतंजलि चिकित्सालय से प्राप्त कर सकते हैं |

४- रक्ताल्पता से पीड़ित रोगियों को २०० मिली गाजर के रस में १०० मिली पालक का रस मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है |

५- प्रतिदिन लगभग २००-२५० ग्राम पपीते के सेवन से खून की कमी दूर होती है | यह प्रयोग लगभग बीस दिन तक लगातार करना चाहिए |

६- दो टमाटर काट कर उस पर काली मिर्च और सेंधा नमक डालकर सेवन करना रक्ताल्पता में बहुत लाभकारी होता है |

७- उबले हुए काले चनों के प्रतिदिन सेवन से भी बहुत लाभ होता है |

८- गुड़ में भी लौह तत्व प्रचुर मात्रा में होता है अतः भोजन के बाद एक डली गुड़ अवश्य खाएं लाभ होगा |

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तेजपात (Indian Bay Leaf)-
भारत में उष्णकटिबंधीय एवं इसके अतिरिक्त उपउष्णकटिबन्धीय हिमालय से भूटान तक ९००-१५०० मी तक की ऊंचाई पर सिक्किम में २४०० मी तथा सिल्हट एवं खसिया के पहाड़ी क्षेत्रों में ९००-१२०० मी की ऊंचाई तक तेजपात के जंगली वृक्ष पाये जाते हैं | इसके पत्तों को धूप में सुखाकर प्रयोग में लिया जाता है | पत्तियों का रंग जैतूनी हरा तथा ३ स्पष्ट शिराओं युक्त तथा इसमें लौंग एवं दालचीनी की सम्मिलित मनोरम गंध पायी जाती है | यह सदा हरा रहने वाला वृक्ष है | आज हम तेजपात के औषधीय गुणों की चर्चा करेंगे -

१- तेजपात के ५-६ पत्तों को एक गिलास पानी में इतने उबालें की पानी आधा रह जाए | इस पानी से प्रतिदिन सिर की मालिश करने के बाद नहाएं | इससे सिर में जुएं नहीं होती हैं |

२- चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम,छींकें आना ,नाक बहना,जलन ,सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है |

३- तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह-शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है |

४- तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है |

५- एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है |

६- तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है |

७- इसके २-४ ग्राम चूर्ण का सेवन करने से उबकाई मिटती है |
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कान का दर्द -
गर्मियों में कान के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में संक्रमण होना आम बात है| अधिकतर तैराकों को ख़ास-तौर पर इस परेशानी का सामना करना पड़ता है | कान में फुंसी निकलने,पानी भरने या किसी प्रकार की चोट लगने की वजह से दर्द होने लगता है | कान में दर्द होने के कारण रोगी हर समय तड़पता रहता है तथा ठीक से सो भी नहीं पाता| बच्चों के लिए कान का दर्द अधिक पीड़ा भरा होता है | लगातार जुक़ाम रहने से भी कान का दर्द हो जाता है |
आज हम आपको कान के दर्द के लिए कुछ घरेलू उपचार बताएंगे -

१- तुलसी के पत्तों का रस निकाल लें| कान में दर्द या मवाद होने पर रस को गर्म करके कुछ दिन तक लगातार डालने से आराम मिलता है |

२- लगभग १० मिली सरसों के तेल में ३ ग्राम हींग डाल कर गर्म कर लें | इस तेल की १-१ बूँद कान में डालने से कफ के कारण पैदा हुआ कान का दर्द ठीक हो जाता है |

३- कान में दर्द होने पर गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का रस निकालकर कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है |

४- तिल के तेल में लहसुन की काली डालकर गर्म करें,जब लहसुन जल जाए तो यह तेल छानकर शीशी में भर लें | इस तेल की कुछ बूँदें कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है |

५- अलसी के तेल को गुनगुना करके कान में १-२ बूँद डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है |

६- बीस ग्राम शुध्द घी में बीस ग्राम कपूर डालकर गर्म कर लें | अच्छी तरह पकने के बाद ,ठंडा करके शीशी में भरकर रख लें | इसकी कुछ बूँद कान में डालने से दर्द में आराम मिलता है |


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