Saturday 1 November 2014

क्या आप को सरदार पटेल , हैदराबाद निजाम
और MIMका किस्सा पता है ?
जिसकी खबर सुन के नेहरु ने फ़ोन तोड़दिया था |
तथ्य जो कभी बतायेनहीं गए ........
1- हैदराबाद विलय के वक्त नेहरु भारतमें
नहीं थे |
2- हैदराबाद के निजाम और नेहरु नेसमझौता
किया था अगर उससमझौते पे ही रहा जाता
तो आज देशके बीच में एक दूसरा पकिस्तान
होता |
3 – मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन(MIM)
के पास उस वक़्त २०००००रजाकार थे जो
निजाम के लिएकाम करते थे और हैदराबाद
का विलयपकिस्तान में करवाना चाहते थेया
स्वतंत्र रहना |बात तब की है जब १९४७ में भारतआजाद हो गया उसके बाद हैदराबादकी
जनता भी भारत में विलयचाहती थी |
पर उनके आन्दोलनको निजाम नेअपनी निजी
सेना रजाकार केद्वारा दबाना शुरू कर दिया |
रजाकार एकनिजी सेना (मिलिशिया)थी जो
निजाम ओसमान अली खानकेशासन को बनाए रखनेतथा हैदराबादको नव स्वतंत्र भारत में
विलयका विरोध करने के लिए बनाई थी।
यह सेना कासिमरिजवी द्वारा निर्मित की गई थी।
रजाकारों ने यह भी कोशिशकी कि निजाम
अपनी रियासतको भारत के बजाय पाकिस्तान
मेंमिला दे। रजाकारों का सम्बन्ध‘मजलिस-ए-
इत्तेहादुल मुसलमीन(MIM ) नामकराजनितिक
दल से था।नोट -ओवैसी इसी MIMकी
विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं औरकांग्रेस की
मुस्लिम परस्ती और देशविरोधी नीतियों की
वजह से औरपकिस्तान परस्त मुल्लो की वजह
सेये आज तक हिन्दुस्तान में काम कररही है |
चारो ओर भारतीय क्षेत्र से घिरेहैदराबाद राज्य
की जनसंख्या लगभग1 करोड 60 लाख थी
जिसमें से 85%हिंदु आबादी थी।
29 नवंबर1947 को निजाम-नेहरू में
एकवर्षीय समझौता हुआ कि हैदराबादकी
यथा स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के
पहले थी।नोट – यहाँ आप देखते हैंकी नेहरु
कितने मुस्लिम परस्त थे की वो देशद्रोही से
समझौता कर लेते हैं|पर निजाम नें समझौते का उलंघन करतेहुए राज्य में एकरजाकारी
आतंकवादी संगठनको जुल्म और दमन के
आदेश दे दिए औरपाकिस्तान को 2 करोड़
रूपयेका कर्जभी दे दिया|राज्य में हिंदु औरतों
पर बलात्कारहोने लगे उनकी आंखें नोच
करनिकाली जाने लगी औरनक्सली तैय्यार
किए जाने लगे|सरदार पटेल निजाम के साथ
लंबी लंबी झुठी चर्चाओं से उकता चुकेथे अतः
उन्होने नेहरू के सामनेसीधा विकल्प रखे कि
युद्ध केअलावा दुरा कोई चारा नही है।
परनेहरु इस पे चुप रहे |कुछ समय बीता और नेहरु देश से बाहरगए सरदार पटेल गृह मंत्री तथा उपप्रधान मंत्री भी थे इसलिए उस उसवक़्त
सरदार पटेल सेना केजनरलों को तैयार रहने का आदेश देतेहुए विलय के कागजों के साथ
हैदराबाद केनिजाम के पास पहुचे और विलय
पेहस्ताक्षर करने को कहा |निजाम ने मना किया
और नेहरु से हुएसमझौते का जिक्र किया
उन्होंनेकहा की नेहरु देश में नहीं हैतो वो ही
प्रधान हैं |उसी वक्त नेहरु भी वापस आ रहे थेअगरवो वापस भारत की जमीन पे पहोच
जाते तो विलय न हो पाता इसको ध्यान में
रखते हुए पटेल नेनेहरु के विमान को उतरने
न देने का हुक्मदिया तब तक भारतीय वायु सेना
के विमाननिजाम के महल पे मंडरा रहे थे |
बसआदेश की देरी को देखते हुए निजाम नेउसी
वक़्त विलय पे हस्ताक्षर करदिए | और रातो
रात हैदराबादका भारत में विलय हो गया |
उसके बाद नेहरु केविमान को उतरने दिया गया लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल नेनेहरु
को फ़ोन किया और बसइतना ही कहा
” हैदराबादका भारत में विलय” ये सूनते ही
नेहरु ने वो फ़ोनवही AIRPORT पे पटक
दिया ” उसकेबाद रजाकारो (MIM) ने
सशस्त्रसंघर्ष शुरू कर दिया जो 13 सितम्बर
1947 से 17 सितम्बर 1948 तकचला |
भारत के तत्कालीन गृहमंत्री एवं‘लौह पुरूष’
सरदार वल्लभभाई पटेलद्वारा पुलिस कार्रवाई
करने हेतुलिए गए साहसिक निर्णय ने निजाम
को 17 सितम्बर, 1948 को आत्म-समर्पण
करने और भारत संघ मेंसम्मिलित होने पर
मजबूर करदिया। इस कार्यवाई को
‘आपरेशनपोलो’ नाम दिया गया था।
इसलिए शेष भारतको अंग्रेजी शासन से
स्वतंत्रता मिलने के बाद हैदराबादकी जनता
को अपनी आजादी केलिए13 महीने और
2 दिन संघर्ष करना पड़ा था।यदि निजाम को
उसके षड़यंत्र में सफल होने दिया जाता तो
भारतका नक्शा वह नहीं होता जो आज है।
वो फ़ोन आज भी संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है।

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मित्रो, हिन्दुस्तान दुनिया मेँ एकमात्र ऐसा देश हैँ, जहाँ विश्व के सभी मतो और मजहबो के लोग रहते हैँ क्योँकि सहनशीलता भारतीय जनता का मूल स्वभाव है। हिन्दुस्तान ही एकमात्र ऐसा देश है जहां 'इस्लाम' के सभी 72 फिरके मौजूद है। हम लोग कभी विचारधारा के आधार पर व्यक्ति का मुल्यांकन नही करते है परन्तु बदले मेँ हमेँ क्या मिला है?

पारसी लोग 1200 वर्ष पूर्व गुजरात आये, वहाँ उन्होनेँ शरण प्राप्त की। उन्होने अपना मूल धर्म(सूर्य-पूजा एवं अग्नि पूजा) जीवित रखा, पर न पारसियोँ ने कभी किसी को धर्म मेँ मिलाने, अपनी संख्या बढ़ाने का अपक्रम किया, न स्वयं किसी धर्म मेँ मिले। पारसी लोग संख्या मेँ सबसे कम हैँ लेकिन उन्हेँ अपनी धर्म कभी खतरे मेँ नजर नहीँ आया, उन्होनेँ दूसरोँ के मन्दिर-मूर्त्तियाँ कभी ध्वस्त नहीँ की। कभी आतंकवादी गतिविधियोँ मेँ, हत्याओँ, बलात्कार, लूटपाट मेँ भाग नहीँ लिया। पारसियोँ ने देश को बड़े-2 देशभक्त दिये जैसे मैडम कामा, दादाभाई नौरोजी, होमी जहाँगीर भाभा, जमशेद जी टाटा, जनरल मानेकशा, गोदरेज आदि। हमेँ पारसियोँ पर गर्व है। वे अलग रह कर भी मिलकर रहे।

लेकिन मुसलमान एक हजार वर्ष के इतिहास मेँ भारतीय समाज के साथ कभी एकाकार नहीँ हो सके। इनको अपना 'मजहब' सदैव खतरे मेँ दिखायी दिया। छोटी-छोटी बातोँ को लेकर वे तकरार मचाते रहे। बलवे करते रहे। हत्याएँ, उत्पात मचाते रहे। हो सकता है कि मुसलमानोँ मेँ मात्र कुछ प्रतिशत लोग बहुत भले होँ लेकिन अधिकांश धर्मान्ध हैँ, जो मजहब के नाम पर अत्यन्त असहनसील हैँ। इनमेँ भी 30% से अधिक लोग ऐसे हैँ, जो इस बात का अवसर ढूँढ़ते रहते हैँ कि किस बात का बहाना बनाकर, बलवा खड़ा किया जाये, सरकारी और निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाया जाये। लोगो पे हमला किया जाये तथा मन्दिरोँ और मुर्तियोँ को खण्डित किया जाये। मन्दिरोँ की मूर्त्तियोँ को मुहम्मद बिन कासिम, महमूम गजनवी से लेकर औरंगजेब तक सबने नष्ट कर, मस्जिद की सीढ़ियोँ मेँ चुनवा दिया, ताकि मुसलमान उनको कुचलता हुआ जाये और हिन्दू अपमानित महसूस करेँ। मुसलमानोँ नेँ इस दुष्कृत्य के लिए कभी माफी नहीँ माँगी, हालाँकि वो नरेन्द्र मोदी से माफी की उन्मीद रोज करते है जबकि वो दगेँ भी मुसलमानोँ की ही देन थे।

वे जैसे ऐसे मौको की ताक मेँ ही रहते हैँ, मानो वे लोग इस देश के नागरिक न होकर पाकिस्तान या किसी अरब देश के नागरिक हो। यह प्रवृति दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। अकबरूद्दीन ओवैसी देवी-देवताओँ का आम अपमान करता हैँ, सारे हिन्दुओँ को समाप्त करने की बात करता है, रजाकारी-इस्लामी राज्य स्थापित करने की बात करता है, और ये तब है जब उन्होनेँ इस्लाम के नाम पर इस देश को बंटवा भी लिया है। हम तो यही कहेगेँ कि मुसलमानोँ को इस देश मेँ रहना है, तो उन्हेँ देश की मुख्यधारा मेँ शामिल होना होगा क्योँकि हम देशभक्तोँ का हार्दिक सम्मान करते हैँ, देशद्रोहियोँ का नहीँ।

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