शिवलिंग क्या है,
और… परमाणु बम का वो सूत्र था…..
e / c = m c {e=mc^2}
अब ध्यान दें कि …. ये सूत्र एक सिद्धांत है …. जिसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदला जा सकता है …..अर्थात, अर्थात….. पदार्थ और उर्जा … दो अलग-अलग चीज नहीं… बल्कि , एक ही चीज हैं….. परन्तु…. वे दो अलग-अलग चीज बनकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं….!
और….. जिस बात तो आईसटीन ने अभी बताया ….. उस रहस्य को तो …हमारे ऋषियो ने हजारो-लाखों साल पहले ही ख़ोज लिया था.
यह सर्वविदित है कि….. हमारे संतों/ऋषियों ने हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है … परन्तु, उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है.. बल्कि, उन्होंने हर काम के अंत में स्वीकार किया कि……. वे हमें वही बता रहे हैं…. जो, उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है.
और….लगभग १३.७ खरब वर्ष पुराना …. सार्वभौमिक ज्ञान हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में उपलब्ध होता है….. और, भावार्थ बदल जाने के कारण… इसे किसी अन्य भाषा में पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता …. कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही ।
इसके लिए…. एक बहुत ही छोटा सा उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा कि….. आज “”गूगल ट्रांसलेटर”” में ……लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है …..परन्तु… संस्कृत का नही … क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है …!
अति मूर्ख प्राणी नासा वाली बात का सबूत यहाँ देख सकते हैं…. : http://hindi.ibtl.in/news/
international/1978/article.ibtl
हुआ दरअसल कुछ ऐसा है कि……….. जब कालांतर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई तब पाश्चात्य वैज्ञानिको ने वेदों / उपनिषदों तथा पुराणो आदि को समझने में मूर्खता की …क्योकि, उनकी बुद्धिमत्ता वेदों में निहित प्रकाश से साक्षात्कार करने योग्य नही थी ।
और…. ऐसा उदहारण तो हम हमारे दैनिक जीवन में भी हमेशा देखते ही रहते हैं कि….देखते है जैसे परीक्षा के दिनों में अध्ययन करते समय जब कोई टॉपिक हमें समझ न आये तो हम कह दिया करते है कि ये टॉपिक तो बेकार है …..जबकि, असल में वह टॉपिक बेकार नही…. अपितु , उस टॉपिक में निहित ज्ञान का प्रकाश हमारी बुद्धिमत्ता से अधिक है ।
इसे ज्यादा सरल भाषा में ….इस तरह भी समझ सकते है कि,….. बैटरी चालित 12 वोल्ट धारण कर सकने वाले विद्युत् बल्ब में.., अगर घरों में आने वाले वोल्ट (240) प्रवाहित कर दिया जाये तो उस बल्ब की क्या दुर्गति होगी ??????
जाहिर सी बात है कि…. उसका फिलामेंट तत्क्षण अविलम्ब उड़ जायेगा ।
यही उन बेचारे वैज्ञानिकों के साथ हुआ … और, वेद जैसे गूढ़ ग्रन्थ पढ़कर …. उनका भी फिलामेंट उड़ गया और….. मैक्स मूलर जैसे गधे के औलदॊन तो ….. वेदों को काल्पनिक तक बता दिया !
खैर….. हम फिर शिवलिंग पर आते हैं…..
शिवलिंग का प्रकृति में बनना.. हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते है जब कि ……
किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है …..तो , उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व नीचे ) होता है.. जिसके फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है
उसी प्रकार…. बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप… एवं, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप …. भी शिवलिंग का निर्माण करते हैं….!
दरअसल…. सृष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ….. जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में इस प्रकार मिलता है कि …….. आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके ।
हमारे पुराणो में कहा गया है कि…… प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार….. इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।
इस तरह……….. सामान्य भाषा में कहा जाए तो….उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/
सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है ….
और, शिवलिंग का प्रतिरूप ब्रह्माण्ड के हर जगह मौजूद है…. जैसे कि….
1. हमारी आकाश गंगा , हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) , ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ), ब्लैक होल की रचना , संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह ( जो अभी तक रहस्य बने हए है.. और, हजारों की संख्या में है.. तथा , जिनमे से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है । ), समुद्री तूफान , मानव डीएनए, परमाणु की संरचना … इत्यादि…
और… परमाणु बम का वो सूत्र था…..
e / c = m c {e=mc^2}
अब ध्यान दें कि …. ये सूत्र एक सिद्धांत है …. जिसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदला जा सकता है …..अर्थात, अर्थात….. पदार्थ और उर्जा … दो अलग-अलग चीज नहीं… बल्कि , एक ही चीज हैं….. परन्तु…. वे दो अलग-अलग चीज बनकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं….!
और….. जिस बात तो आईसटीन ने अभी बताया ….. उस रहस्य को तो …हमारे ऋषियो ने हजारो-लाखों साल पहले ही ख़ोज लिया था.
यह सर्वविदित है कि….. हमारे संतों/ऋषियों ने हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है … परन्तु, उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है.. बल्कि, उन्होंने हर काम के अंत में स्वीकार किया कि……. वे हमें वही बता रहे हैं…. जो, उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है.
और….लगभग १३.७ खरब वर्ष पुराना …. सार्वभौमिक ज्ञान हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में उपलब्ध होता है….. और, भावार्थ बदल जाने के कारण… इसे किसी अन्य भाषा में पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता …. कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही ।
इसके लिए…. एक बहुत ही छोटा सा उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा कि….. आज “”गूगल ट्रांसलेटर”” में ……लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है …..परन्तु… संस्कृत का नही … क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है …!
अति मूर्ख प्राणी नासा वाली बात का सबूत यहाँ देख सकते हैं…. : http://hindi.ibtl.in/news/
international/1978/article.ibtl
हुआ दरअसल कुछ ऐसा है कि……….. जब कालांतर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई तब पाश्चात्य वैज्ञानिको ने वेदों / उपनिषदों तथा पुराणो आदि को समझने में मूर्खता की …क्योकि, उनकी बुद्धिमत्ता वेदों में निहित प्रकाश से साक्षात्कार करने योग्य नही थी ।
और…. ऐसा उदहारण तो हम हमारे दैनिक जीवन में भी हमेशा देखते ही रहते हैं कि….देखते है जैसे परीक्षा के दिनों में अध्ययन करते समय जब कोई टॉपिक हमें समझ न आये तो हम कह दिया करते है कि ये टॉपिक तो बेकार है …..जबकि, असल में वह टॉपिक बेकार नही…. अपितु , उस टॉपिक में निहित ज्ञान का प्रकाश हमारी बुद्धिमत्ता से अधिक है ।
इसे ज्यादा सरल भाषा में ….इस तरह भी समझ सकते है कि,….. बैटरी चालित 12 वोल्ट धारण कर सकने वाले विद्युत् बल्ब में.., अगर घरों में आने वाले वोल्ट (240) प्रवाहित कर दिया जाये तो उस बल्ब की क्या दुर्गति होगी ??????
जाहिर सी बात है कि…. उसका फिलामेंट तत्क्षण अविलम्ब उड़ जायेगा ।
यही उन बेचारे वैज्ञानिकों के साथ हुआ … और, वेद जैसे गूढ़ ग्रन्थ पढ़कर …. उनका भी फिलामेंट उड़ गया और….. मैक्स मूलर जैसे गधे के औलदॊन तो ….. वेदों को काल्पनिक तक बता दिया !
खैर….. हम फिर शिवलिंग पर आते हैं…..
शिवलिंग का प्रकृति में बनना.. हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते है जब कि ……
किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है …..तो , उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व नीचे ) होता है.. जिसके फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है
उसी प्रकार…. बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप… एवं, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप …. भी शिवलिंग का निर्माण करते हैं….!
दरअसल…. सृष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ….. जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में इस प्रकार मिलता है कि …….. आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके ।
हमारे पुराणो में कहा गया है कि…… प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार….. इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।
इस तरह……….. सामान्य भाषा में कहा जाए तो….उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/
सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है ….
और, शिवलिंग का प्रतिरूप ब्रह्माण्ड के हर जगह मौजूद है…. जैसे कि….
1. हमारी आकाश गंगा , हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) , ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ), ब्लैक होल की रचना , संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह ( जो अभी तक रहस्य बने हए है.. और, हजारों की संख्या में है.. तथा , जिनमे से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है । ), समुद्री तूफान , मानव डीएनए, परमाणु की संरचना … इत्यादि…