Thursday 18 August 2016

इसरो से काम करवाने के लिए देशों में होड़, अमेरिका की उड़ी नींद..!

इसरों ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बार फिर इतिहास रचते हुए दोबारा इस्तेमाल होने वाले प्रक्षेपण यान (आरएलवी–टीडी) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इसका उद्देश्य प्रक्षेपण यान को अंतरिक्ष में ले जाकर उपग्रहों की कक्षा में स्थापित करने के बाद एक विमान की तरह वापस धरती पर आनें में सक्षम बनाना है, जिससे कि इसका बार –बार उपयोग किया जा सके। इससे उपग्रहों को प्रक्षेपित करनें के खर्च में दस गुना तक की कमी आएगी, बाद में इसके विकसित संस्करण की सहायता से इसे मानव मिशन में भी प्रयोग किया जा सकता है।
 बढ़ती लागत और दुर्घटनाओं की वजह से अमेरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा 2011 से ही स्पेस शटलों का प्रयोग बंद कर चुकी है। लेकिन भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित करने की लागत को कम करने का उपाय यही है कि रॉकेट को री-साइकिल किया जाए और इसे दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाया जाए। प्रौद्योगिकी के सफल होने पर अंतरिक्षीय प्रक्षेपण की लागत को 10 गुना कम करके 2000 डॉलर प्रति किलो पर लाया जा सकता है। फिलहाल इसरो ने स्वदेश निर्मित पुन: प्रयोग योग्य प्रक्षेपण यान- प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल- टेक्नोलॉजी डेमोनस्ट्रेटर यानी आरएलवी-टीडी) का सफल परीक्षण कर दुनियां के स्पेस मार्केट में एक हलचल जरूर पैदा कर दी है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने राज्यसभा में बताया था कि भारत इस साल सात देशों के 25 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने वाला है, जिसमें सबसे ज्यादा अमेरिका का 12 उपग्रह शामिल हैं, जबकि भारत ने अभी तक पीएसएलवी के जरिये 21 देशों के 57 विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर चुका है।
कुलमिलाकर स्पेस मार्केट में भारत की धाक बढ़ती जा रही है। ये कामयाबी इसलिए भी खास है क्योंकि एक समय अमेरिका सहित कुछ विकसित देश भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बिलकुल भी मदद देनें को तैयार नहीं थे ऐसे हालात में इसरों ने अपने अंतरिक्ष अभियानों को न सिर्फ जिंदा रखा, बल्कि कम लागत में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए उपग्रहों के प्रक्षेपण का शतक भी लगा दिया।
बेहतर भविष्य के लिए पहला कदम : 
दरअसल, आरएलवी-टीडी पुन: प्रयोग किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान का छोटा प्रारूप है। आरएलवी को भारत का अपना विशुद्ध स्वदेशी प्रयास है। इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार, यह लागत कम करने, विश्वसनीयता कायम रखने और मांग के अनुरूप अंतरिक्षीय पहुंच बनाने के लिए एक साझा हल है।
इसरो ने कहा कि आरएलवी-टीडी प्रौद्योगिकी प्रदर्शन अभियानों की एक श्रृंखला है, जिन्हें री यूजेबल यान ‘टू स्टेज टू ऑर्बिट’ (टीएसटीओ) को जारी करने की दिशा में पहला कदम माना जाता रहा है। फिलहाल आरएलवी-टीडी पुन: प्रयोग किए जा सकने वाले रॉकेट के विकास की दिशा में एक ‘‘बेहद महत्वपूर्ण कदम’’ है, जिसके अंतिम प्रारूप के विकास में 10 से 15 साल लग सकते हैं।
अंतरिक्ष की दुनियां में भारत :  स्पेस शटल की संचालित उड़ानों के लिए कोशिश करने वाले चंद देशों में अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान शामिल हैं । अमेरिका ने अपना स्पेस शटल 135 बार उड़ाया और वर्ष 2011 में उसकी अवधि खत्म हो गई। उसके बाद से वह अमेरिका निर्मित रॉकेटों में अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता खो चुका है। रूस ने एक ही स्पेस शटल बनाया और इसे बुरान कहकर पुकारा। वह वर्ष 1989 में एक ही बार अंतरिक्ष में गया!इसके बाद फ्रांस और जापान ने कुछ प्रायोगिक उड़ानें भरीं और उपलब्ध जानकारी के अनुसार , ऐसा लगता है कि चीन ने कभी स्पेस शटल के प्रक्षेपण का प्रयास नहीं किया। भारत ने 15 साल से भी पहले से अपनी स्पेस शटल बनाने के विचार को अपना लिया था, लेकिन इसकी शुरुआत लगभग पांच साल पहले ही हुई, तब इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के एक समर्पित दल ने आरएलवी-टीडी को हकीकत में बदलना शुरू किया।
कुलमिलाकर इसरो द्वारा स्वदेशी स्पेस शटल की लॉन्‍चिंग एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है, इसकी सफ़लता अंतरिक्ष में भारत के लिए संभावनाओ के नए दरवाजें खोल देगी। अपने स्पेस कार्यक्रमों की लगातार सफ़लता से दुनिया में इसरों की स्तिथि बहुत मजबूत हुई है और वो दिन दूर नहीं है जब भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में दुनियाँ भर में शीर्ष पर होगा।
(लेखक शशांक द्विवेदी चितौड़गढराजस्थाइन में मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं और टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं। 12 सालों से विज्ञान विषय पर लिखते हुए विज्ञान और तकनीक पर केन्द्रित विज्ञानपीडिया डॉट कॉम के संचालक है। एबीपी न्यूज द्वारा विज्ञान लेखन के लिए सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का सम्मान हासिल कर चुके शशांक को विज्ञान संचार से जुड़ी देश की कई संस्थाओं ने भी राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया है। वे देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लगातार लिख रहे हैं।)

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