Thursday 8 February 2018


 
ख़ुर्शीद अनवर लिखते हैं--आज एक मित्र ने मुझे अल्लाह हाफिज कहा . तो सोचा यह पोस्ट लिखूँ। बचपन से खुदा हाफिज सुनते आये थे अचानक कब खुदा गायब हुआ और अल्लाह आ गया हाफिज में। इलाहबाद का हूँ जहाँ सिर्फ मुस्लिम नहीं हिन्दू भी बड़े आराम से खुदा हाफिज कहते रहे हैं। 1978 में जिया उल हक सत्ता में आया तो पकिस्तान में उसने पहला काम किया सऊदी अरबिया के साथ सम्बन्ध गहरे करने का। अमरीकी डालर के साथ पेट्रो डालर दरकार थे। आते साथ उसने लायलपुरका नाम फैसलाबाद रखा किंग फैसल के नाम पर। किंग फैसल की मौत 1975 में हुई थी। फ़ौरन बहुत बड़ी रकम आई पकिस्तान। तुरन्त बाद 1979 में दो बड़ी घटनाएं हुई. सोवियत फौजों का अफगानिस्तान आना और खुमैनी का इरान में सत्ता संभालना। ईरान शिया बाहुल्य देश और खुमैनी शिया लीडर और सारे कानून शिया-थिओलाजी के लागू हुए। यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि ईरान कि जबान फ़ारसी है और खुदा लफ्ज़ फ़ारसी का है. सऊदी अरबिया की जबान अरबी है और अल्लाह लफ्ज़ अरबी का है। जिया को साबित करना था कि वह घोर ईरान विरोधी है। पाकिस्तान में फटाफट सारे सारे ऐसे काम हुए जिस से सऊदी और अमरीका खुश हों। पकिस्तान अचानक इस्लाम से सुन्नी इस्लाम की तरफ बढ़ गया। अहमदिया, बोहरा , कादियानी और ज़रा बाद में शिया समुदायों को इस्लामी दायरे से हटाने की मुहीम भी शुरू हो गई। इसके अलावा जो मूर्खतापूर्ण कदम था वह जिया का मीडिया, (रेडियो, टीवी, अखबार को निर्देश कि खुदा कि जगह अल्लाह इस्तेमाल करें। पहली बार पकिस्तान रेडियो पर 1979 में सुना गया “ अल्लाह हाफ़िज़” . धीरे धीरे खुदा ने गठरी संभाल ली और अल्लाह को अपनी सीट दे दी।
कुमार अवधेश सिंह

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