किसकी मूर्ती टूटी जान तो लो कौन था #लेनिन
7 नवम्बर को रूस में लेनिन की बोल्शेविक सरकार "सोवियत ऑफ दी पीपुल्स कमिसर्स" की स्थापना हुई,
7 नवम्बर को रूस में लेनिन की बोल्शेविक सरकार "सोवियत ऑफ दी पीपुल्स कमिसर्स" की स्थापना हुई,
और आठ महीने बाद 16 जुलाई 1918 को जार निकोलस द्वितीय, उसकी पत्नी जरीना, उसके बेटे और चार बेटियों की गोली मार कर हत्या कर दी गयी।
क्यो की लेनिन अपनी जीत का जश्न विरोधियों की हत्या करके करता था
क्यो की लेनिन अपनी जीत का जश्न विरोधियों की हत्या करके करता था
कथित रूप से महान लेनिन का अपने पूर्ववर्ती शासक के प्रति यह ब्यवहार था।
जार के परिवार के सामूहिक नरसंहार से प्रेरणा ले कर महान लेनिन के बोल्शेविक क्रांतिकारियों ने गाँव-नगर के हर सम्भ्रांत परिवार को शोषक कह कर जलाना प्रारम्भ किया।
उनके घरों को बाहर से बंद कर आग लगा दिया जाता जिसमें युवक,बूढ़े, बच्चे सब जीवित जल मरते। ना किसी स्त्री को छोड़ा गया, ना ही कोई बच्चा जीवित बचा। चार साल तक चले लेनिन के सामाजिक न्याय ने हर उस व्यक्ति के समूचे परिवार को जलवा दिया, जो उसकी बोल्शेविक सरकार का समर्थन नहीं करता था।
लेनिन ने पूँजीवाद का नाश नहीं किया, पूँजीवादियों का नाश कर दिया।
कथित क्रांति के बाद के चार-पाँच वर्षों का रूसी इतिहास पढ़ लिया जाय, तो लेनिन से घृणा की सीमा से अधिक घृणा होने लगेगी।
मुझे नहीं पता कि भारत के बाहर लेनिन कितने प्रासंगिक हैं, पर इतना अवश्य कह सकता हूँ कि भारत में लेनिन के लिए एक मूर्ति लगाने भर का स्थान भी नहीं, भारत की मिट्टी ऐसे घृणित और क्रूर लोगों का सम्मान नहीं कर सकती।
आज लेनिन की मृत्यु के 94 वर्ष बाद दूर भारत की छाती पर थोपी गयीं लेनिन की मूर्तियों के ध्वंस से जिनको पीड़ा हो रही हो वे अपना विधवा-विलाप करते रहें, पर जिस दिन धरती की छाती पर गाड़ी गयी लेनिन की अंतिम मूर्ति उखाड़ कर फेंक दी जाएगी, उस दिन प्राचीन रूस के उन असंख्य दुधमुहे बच्चों की आत्मा को शांति मिलेगी, जिन्हें क्रूर लेनिन ने निरपराध जलवा दिया। भारत ने प्रारम्भ कर दिया, अंत लेनिन का रूस करेगा।
------------मुम्बई के आजाद मैदान पर शहीद स्मारक टूटने पर मुंह मे दही जमाए बैठे लोग लेनिन की मूर्ति तोड़ने पर बिलबिला रहे है..?------------------
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